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कर्तव्य से संतुष्टि

कर्तव्य से संतुष्टि

जबलपुर का लोकसभा में प्रतिनितिधत्व कर चुके श्री श्रवण पटेल का कथन है कि उनके पिता स्वर्गीय राजर्षि परमानंद भाई पटेल बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। वे एक समर्पित समाजसेवी, राजनीतिज्ञ, सफल उद्योगपति, आध्यात्मिक विचारक एवं प्रदेश के रणजी ट्राफी खिलाडी थे। वे सिद्धांतवादी राजनीति में विश्वास रखते थे। उनका यह दृढ मत था कि यदि हमें मनुष्य जीवन मिला है तो हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम असहाय, पीड़ित, जरूरतमंद गरीब लोगों की मदद करे।

श्री श्रवण पटेल बताते है कि उनका रूझान मात्र किक्रेट के प्रति था और उन्हें भी कम उम्र में रणजी ट्राफी खेलने का यश प्राप्त हुआ। उनके पूज्य पिताजी ने उनके बडे होने पर यह मन बना लिया था कि उन्हें समाज में सेवा कार्य करने के लिए प्रेरणा देंगें। उनके मन में राजनीति के प्रति कोई रूझान नही था। माता पिता की तीव्र इच्छा के चलते सन् 1980 में उन्हें म.प्र. विधानसभा का चुनाव लडना पडा और बहोरीबंद विधानसभा के ढीमरखेडा ब्लाक का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। वे चुनाव के दौरान जब पहली बार क्षेत्र में गये तो लौटने के पश्चात वहाँ के पिछडेपन एवं लोगों की गरीबी देखकर इतना दुखी होकर घर वापिस आये और सीधे आँखों में आँसू लेकर माँ से उन्होंने कहा कि इतना दुख संसार में होगा यह मैं नही जानता था और मैं यह चुनाव नही लड सकूँगा। माँ ने उन्हें समझाया और कहा कि ईश्वर ने पिछडे क्षेत्र का उत्थान करने का अवसर तुम्हें दे दिया है और मुझे विश्वास है कि तुम इस कसौटी पर खरे उतरोगे।

उन्हें ढीमरखेडा क्षेत्र का भ्रमण करते हुए, खमतरा गांव में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। यह पिछडा क्षेत्र था इस कारण वहाँ पर अत्याधिक गरीबी एवं भुखमरी की स्थिति थी। दुर्भाग्यवश सूखा पड जाने के कारण एक चौदह, पंद्रह वर्षीय आदिवासी कन्या ने भूख के कारण जंगली घास खा ली थी। जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। उन्होंने यह अनुभव किया कि यदि उनके क्षेत्र में आवागमन का साधन सुलभ होता तो शायद उस कन्या को बचाया जा सकता था।

उस समय का एक और प्रसंग उन्हें आज भी याद है कि वर्षा ऋतु के समय में ढीमरखेडा ब्लाक के ग्राम झिन्ना पिपरिया में कुएँ का जल प्रदूषित हो गया था और पानी पीने के पश्चात कई लोगों की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने जब वहाँ पर जाना चाहा तो उन्हें सलाह दी गई कि वहाँ पर हैजा की स्थिति बन गई है और आपके स्वास्थ्य को भी खतरा हो सकता है। उन्होंने सोचा कि विधायक होने के कारण उनका कर्तव्य है कि ऐसे कठिन समय में वे जनता के समीप रहे और जब वे वहाँ पहुँचे तो वहाँ पर लाशो का ढेर देखकर बहुत व्यथित हो गये क्योंकि वहाँ पर भी आवागमन का साधन यदि सहज रूप में उपलब्ध होता तो बहुत से लोगों को बचाया जा सकता था।

उन्होंने उसी समय मन ही मन संकल्प लिया था कि यदि भविष्य में उन्हें कभी अवसर मिलेगा तो वे इस क्षेत्र की सडकों को बनवाने का प्रयास करेंगें। सन् 1998 में उन्हें पुनः तीसरी बार विधायक चुना गया और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए मध्य प्रदेश का लोक निर्माण मंत्री बनाया गया। केंद्र सरकार की सी.आर.एफ योजना के अंतर्गत पर्याप्त मात्रा में धन उपलब्ध करवाया गया था। जिससे उन्होने जबलपुर एवं कटनी जिले की ग्रामीण सडकों गुणवत्ता पूर्ण निर्माण करके जीर्णोद्धार कर दिया।

वर्तमान में यद्यपि वे अब राजनीति से अलग है परंतु उन्हें यह जानकर अत्याधिक संतोष होता है कि उनके पंचवर्षीय कार्यकाल 1998 से 2003 में जो सडकों का जाल जनता के लाभ के लिए उपलब्ध कराया गया था, जिसके कारण आज भी, कोई गर्भवती माता डिलेवरी के समय डाक्टर या मिड वाइफ के अभाव में अपने जीवन का दाँव नही खेलेगी, कोई पीडित या गंभीर रूप से जीवन और मरण के संघर्ष में उलझा हुआ व्यक्ति चिकित्सा सुविधा के अभाव में अपना दम नही तोडेगा।

उनका स्पष्ट मत है कि मानव सेवा पूर्ण रूप से व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होना चाहिए इसमें यदि परोपकार या सेवा के पीछे लक्ष्य प्राप्ति की इच्छा माला पहनने की प्रवृत्ति या भाषणों के माध्यम से अपने अहंकार की तृप्ति का आंशिक भाव भी हो तो वह मानव सेवा की सच्ची भक्ति नही हो सकती।

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