कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर
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आप देखिएगा नानी हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इन्हें कैसा सबक सिखाती हैं। यह बहुत इतराते हैं ना कि सारी दुनिया में राज्य करके आए हैं अब हम इन पर राज्य कर के दिखाएँगे।"
"क्या ऐसा कभी होगा।"
"यदि हमारे समय में नहीं तो आने वाले समय में तो जरूर होगा। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जैसे एक ही ऋतु हर समय नहीं रहती वैसे ही एक ही समय हर वक्त नहीं रहता। अब बदलाव आने का समय आ गया है।
ठीक है नानी आप आराम करिए मैं जरा देख कर आऊँ कि माँ क्या कर रही हैं।"
***
"मॉम ऑपरेशन के बाद नानी काफी कमजोर हो गई हैं। अब उनकी आयु भी दिखाई देने लगी है। मेरा नानी से वादा है कि मैं उन्हें नवसारी ले कर जाऊँगी। मेरी परीक्षा मई के दूसरे सप्ताह में समाप्त हो जाएगी। फिर एक डेढ़ महीना काम वगैरह ढूँढ़ने में लग जाएँगे। पापा से कहिए जुलाई के पहले सप्ताह की भारत की तीन टिकटें बुक करवा देंगे।"
"यह तीसरा कौन जा रहा है बेटा... तेरे पापा..."
"नहीं माँ पापा से बात हुई थी वह दो तीन हफ्ते के लिए दुकान छोड़ कर नहीं जा पाएँगे। तीसरा मैं सायमन को साथ ले जा रही हूँ।"
"यह सायमन कुछ ज्यादा ही अंदर घुसने की कोशिश नहीं कर रहा। मुझे तेरा उसके साथ बहुत मिलना जुलना अच्छा नहीं लगता। यह दोस्ती बढ़ते-बढ़ते कोई और ही रूप ना लेले बस इसी बात का डर है...।"
"मम्मा... यह सब बेकार की बातें करना छोड़िए। वह तो मेरे साथ आकर हम सब पर एहसान कर रहा है। सोचिए दो अकेली औरतें, एक अजनबी शहर ही नहीं अजनबी देश में जा रही हैं। नानी को भी भारत या नवसारी के विषय में कुछ नहीं मालूम। एक आदमी के साथ होने से हौसला कितना बढ़ जाता है।"
"पर बेटा लोग क्या कहेंगे। कोई पूछेगा यह छोकरा कौन है तो क्या जवाब दोगी।"
"कौन पूछेंगे मुझसे माँ... जिन्हें मैं जानती भी नहीं...। किस हक से कोई पूछेगा मुझसे... ऐसे लोगों को मुझे जवाब देना आता है। रही बात सायमन की तो वह हमारे साथ जरूर जाएगा। आप जानती भी हैं मॉम कि मेरे लिए सायमन अपनी नौकरी एक महीना देर से शुरू कर रहा है केवल इसलिए कि अजनबी देश में मैं अकेली न जाऊँ। वो भी नानी के साथ।"
"कुछ भी हो मुझे तेरा सायमन के साथ इतना लगाव अच्छा नहीं लगता," सरोज कहते हुए दूसरे कमरे में चली गईं।
अब किसी को अच्छा लगे या न लगे सुरेश भाई ने भारत के लिए तीन टिकटें बुक करवाने की सोच ली। सुरेश भाई खुश थे कि निशा अकेली नहीं होगी सायमन भी साथ होगा।
***
परीक्षा समाप्त हो गई। कुछ छात्रों की पढ़ाई डिग्री तक ही सीमित थी और कुछ ने आगे और पढ़ने की सोची। मगर यह आखिरी छुट्टियों का कुछ समय सभी साथ बिताना चाहते थे। यूनिवर्सिटी की यादें, वो दोस्तों के साथ खट्टे-मीट्ठे नोंक-झोंक हर कोई सँजो कर साथ ले जाना चाहता था।
मौसम खुलने लगा था...। दिन में गर्मी महसूस होने लगी थी...। ऐसा मौसम हो तो सारे पार्क भी भरे हुए दिखाई देते हैं फूलों से भी और बंदों से भी। लोगों के कपड़े भी उतरने लगते हैं। बाजारों में भी चहल पहल बढ़ जाती है।
अकेले होते ही सायमन ने पूछा
"निशा काम के लिए कोई पत्र आया।"
"नहीं सायमन शेफील्ड या डारबी से आने वाले पत्रों का ही इंतजार कर रही हूँ। मुझे यकीन है कि एक दो दिन में कोई जवाब जरूर आ जाएगा।"
"मैं तभी शेफील्ड का काम लूँगा अगर तुम्हें भी वहाँ मिल जाएगा तो..."
"पागल मत बनो सायमन... तुम तो किस्मत वाले हो कि तुम्हे तुम्हारी मर्जी का काम मिल रहा है। ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। मुझे यदि शेफील्ड में नहीं तो आस पास भी कहीं मिल गया तो भी काम चल जाएगा।"
"अच्छा चलो तुम्हारा मूड ठीक करने के लिए कल बोट-ट्रिप पर चलते हैं," निशा सायमन का हाथ थामते हुए बोली।
"इसका मतलब हम फिर लॉफ़्बरो जाएँगे..."
"नहीं बुद्धू... देखा नहीं केनाल्स लेस्टर में भी हैं। यहाँ लॉफ्बरो रोड पर ही छोटी बड़ी कश्तियों का स्टेशन है जहाँ जाकर हम कश्ती बुक कर सकते हैं। चलो यूनी चल कर औरों से भी पूछ लेते हैं। जितने अधिक लोग होंगे उतना मजा आएगा साथ में पिकनिक भी हो जाएगी।"
पिकनिक का नाम हो और घूमने को मिले तो कौन मना करेगा। पाँच निशा और उसके साथी और सात और लोगों को लिया गया जो 12 लोगों की कश्ती किराए पर ली जाए। पिकनिक के लिए सबको लिस्ट दे दी गई कि कौन क्या सामान ले कर आएगा। सब बहुत उत्सुक दिखाई दे रहे थे।
कश्ती किराए पर लेते हुए पहले ही बता दिया था कि उन्हें कश्ती के साथ बंधी छोटी डिंगी भी चाहिए। सब लोग अपनी इस ट्रिप का भरपूर मजा उठाना चाहते थे जो अच्छी यादों को साथ ले जा सकें।
कश्ती में घुसते ही सब भाग कर ऊपर डैक पर चले गए। तय होने लगा कि पहले डिंगी में कौन बैठेगा। हर किसी के लिए यह नया अनुभव था। सब के नाम की परचियाँ डाली गईं और उसी क्रम से सबको जाना था।
कश्ती को रोका गया जो चार लोग डिंगी में बैठ जाएँ।
"आप सब लोग डिंगी को कस के पकड़ लेना। चलते ही झटका लग सकता है सीधे पानी में गिरोगे," चालक ने सब को सावधान किया।"
जैसे ही कश्ती चली डिंगी में लोगों को देख कर खाने के लालच में बतखों ने उनकी डिंगी को चारों ओर से घेर लिया। नीचे बतखें और ऊपर पक्षी सब खाने की तलाश में उनके साथ चलने लगे। एक दो बतखें तो डिंगी के ऊपर भी आ गईं।
बतखों को भगाने के चक्कर में नाविक ने कश्ती की रफ्तार थोड़ी बढ़ा दी। ऐसा करते ही डिंगी उछल उछल कर कश्ती के साथ भागने लगी और चारों बैठे हुए लोग बुरी तरह से भीग गए। चारों दोस्त एक दूसरे को थामे हुए थे। जब ठंडे पानी और हवा से काँपने लगे तो बारी बारी से डिंगी छोड़ कर कश्ती में बैठे दोस्तों में शामिल हो गए।
केनाल के लॉक सिस्टम से सब बहुत प्रभावित हुए कि कैसे लॉक खुलते ही आगे की केनाल से पानी उनकी केनाल में भरने लगा जिससे धीरे धीरे कश्ती उस पानी के साथ उठते हुए उसकी सतह तक पहुँच गई। ऐसा लॉक सिस्टम केवल ब्रिटेन की केनाल्स में ही देखने को मिलता है।
एक पब के पास आकर नाविक ने कश्ती रोक दी..., "इस पब का खाना बहुत अच्छा होता है। आप चाहें तो यहाँ खाने और ड्रिंक का आनंद ले सकते हैं।" सब ने हँसी मजाक के साथ पब के खाने का भी तुत्फ उठाया। शाम को यह लोग थक टूट कर अपने कमरों में वापिस पहुँचे। पेट भरे हुए थे ही। आते ही सब बिस्तर पर गिर गए...।
***
गर्मी के मौसम में बेलग्रेव रोड पर टूरिस्ट बसें चलने लगती हैं। यह टूरिस्ट बसें हर समय यात्रियों से खचाखच भरी हुई मिलती है। गर्मी की छुट्टियों में दूर-दूर से लोग बच्चों के साथ यहाँ घूमने आते हैं। ये बसें खुली छत वाली होती हैं। हर बस के साथ एक गाइड होता है जो रास्ते भर उस स्थान के विषय में बताता रहता है।
इन वसों को हॉप ऑन, हॉप ऑफ बसें कहते हैं। एक ही रास्ते पर तीन चार बसें यात्रियों की सुविधाओं के लिए चलाई जाती हैं। जहाँ चाहो एक बस से उतरो... जो भी देखना है देखो... खरीदना है खरीदो... और पीछे आती दूसरी बस में बैठ जाओ। इसका असली कारण लोगों को लेस्टर की ओर आकर्षित करना है।
कुछ लोग ऊपर खुली छत पर बैठे हैं और कुछ नीचे।
बच्चे हाथ पे हाथ धरे एक स्थान पर कहाँ बैठ सकते हैं। एक नटखट बालक चीजों से खेल रहा है...
"मॉम मैं यह खिड़की का शीशा गिरा दूँ बाहर से ठंडी हवा आ रही है।"
"नहीं खिड़की से दूर रहना कहीं चोट न लग जाए। कितनी अच्छी धूप है जाओ तुम भी ऊपर जाकर अपनी बहन के साथ बैठो।"
गाइड बता रहा था... "यह है बेलग्रेव रोड... जिसे सोने के आभूषणों की खान कहते हैं। हर दूसरी दुकान यहाँ आभूषणों की दुकान है तभी तो इसे गोल्डन माइल बोलते हैं। बाकी की कुछ दुकानों पर साड़ियों ने अपना अधिकार जमाया हुआ है। महिलाएँ ऐसी जगह पर आएँ और बिना आभूषण या साड़ी खरीदे चली तो यह तो संसार का सबसे बड़ा अजूबा होगा। कई बार तो बेलग्रेव की दुकानों पर साड़ियों के दाम भारत से भी कम मिलते हैं। यहाँ की दुकानों पर कंपिटीशन बहुत है जिससे दुकानदार कम मुनाफे पर अपना सामान बेचते नजर आते हैं और खरीदार उसका लाभ उठाते हैं।
जो एक बार लेस्टर आता है वह बार-बार आता है और अकसर यहीं का होकर रह जाता है। ऐसा है हमारा लेस्टर जहाँ के टैक्सी ड्राइवर भी आपको सहायता करने वाले और बहुत मिलनसार मिलेंगे। यहाँ के पुराने टैक्सी वाले लेस्टर का पूरा इतिहास जानते हैं। टैक्सी में, दुकानों पर, रेस्तराँ में यहाँ के स्थानीय हिंदी प्रसारण के रेडियो पर बजते हुए हिंदी के गाने अपने भारतवर्ष की याद दिलाते हैं। यहाँ के तरह तरह के स्वादिष्ट खानों का मजा ही कुछ और है। रेस्तराँ से उठती हुई खाने की खुशबुएँ ऐसी कि लोग स्वयं ही आने पर मजबूर हो जाएँ। विभिन्न पकवान। गुजराती, पंजाबी, बंगाली, पाकिस्तानी, मद्रासी के साथ साथ इटेलियन, स्पेनिश और अंग्रेजी खाने आदि भी मिलते हैं। कहते हैं कि जिसने ब्रिटेन में आकर यहाँ की मशहूर फिश एंड चिप्स नहीं खाया उसने कुछ नहीं खाया।
हालाँकि बेलग्रेव रोड हिंदू प्रधान है फिर भी आपको पाकिस्तानियों की भी कुछ दुकानें मिलेंगी। ब्रिटेन में लेस्टर एक ऐसा शहर है जहाँ धर्म को लेकर, राजनीति को लेकर कभी भी हिंदू मुसलमानों में कोई दंगा फसाद या झगड़ा नहीं हुआ जैसा कि ब्रिटेन के अन्य शहरों ब्रेडफर्ड, प्रेस्टन आदि मुसलमान प्रधान शहरों में कभी कभी दिखाई दे जाता है। इनके विचारों में कितनी भी असमानता क्यों ना हो लेकिन एक भाईचारा भी है। इसमें लेस्टर काउंसिल का भी पूरा योगदान है।
यदि दीवाली पर बेलग्रेव रोड को बत्तियों से सजाया जाता है तो ईद पर हाईफील्ड रोड भी जगमगाती है। यदि इनमें दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी नहीं दिखाई देती। सब मिल जुल कर त्यौहार मनाते हैं।
बच्चों के लिए सब से बड़ा आकर्षण यहाँ का स्पेस सेंटर है। बाहर से ही इसका बड़ा अच्छा आकार बनाया गया है बिल्कुल स्पेस शटल की तरह। अंदर जा कर तो ऐसा लगता है जैसे आप अंतरिक्ष में पहुँच गए हों।
आज यहाँ पर बच्चों का कुछ खास ही जमघट लगा हुआ है। ब्रिटेन की एक बहुत बड़ी अंतरिक्ष यात्री हेलन शार्मन यहाँ आई हुई हैं। जो बच्चों के साथ अंतरिक्ष में भी जाएँगी और उनके सवालों का जवाब भी देंगी। स्पेस सेंटर वाले यहाँ बच्चों को आकर्षित करने के लिए किसी न किसी स्पेस से संबंध रखने वाले लोगों को बुलाते रहते हैं जो बच्चों की इसमें रुचि बढ़े और अंतरिक्ष के विषय में जानने को मिले।
जिज्ञासु बच्चे हेलन शार्मन से सवाल पूछ रहे हैं और उनके साथ स्पेस सेंटर की अंतरिक्ष यात्रा पर जाने के लिए भी उत्सुक हैं। वहीं पर एक कमरे को स्पेस शटल का नाम दिया गया है। यहाँ कमरे में चारों ओर बड़ी बड़ी टी.वी. स्क्रीन लगाई गई हैं। पूरा स्पेस का माहौल बनाने का प्रयास किया गया है। जैसे ही हेलन ने बच्चों के साथ कमरे में प्रवेश किया बत्तियाँ बुझा कर टी.वी. स्क्रीन चालू कर दी गईं। स्क्रीन पर हेलन अपने साथियों के साथ अंतरिक्ष में उड़ रहीं थी। पीछे से कमेंट्री आ रही थी। थोड़े समय के पश्चात बच्चों को ऐसा अनुभव होने लगा जैसे वो भी उन सब के साथ अंतरिक्ष में उड़ रहे हों। यह अपने में ही बच्चों के लिए एक बहुत अच्छा अनुभव था।
यहीं पर अंतरिक्ष से लाई गई रॉक (पत्थर का टुकड़ा) भी प्रयटकों को दिखाने के लिए रखी गई है। सब बच्चों ने हेलन शार्मन से प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासा मिटाई और जाते जाते हेलन शार्मन की ऑटोग्राफ ली, उनके साथ तसवीरें उतरवाईं।
लेस्टर में बच्चे ही नहीं हर आयु के लोगों के लिए कुछ न कुछ है। जैसे बुजुर्ग महिलाओं के लिए मंदिर हैं, बेलग्रेव रोड पर ही नेबरहुड सेंटर है जहाँ लोगों को सेहत के विषय में, बेनिफिट्स वगैरह के विषय में सलाह दी जाती है। यहाँ हर धर्म के मंदिर खुल गए हैं। स्वामी नारायण मंदिर, साईं बाबा, जला राम मंदिर, गीता भवन... जो बेलग्रेव रोड के आस पास ही हैं। जब बच्चे स्पेस सेंटर देखने गए थे उस समय बुजुर्ग इन मंदिरों के दर्शन कर रहे थे।
***
दूर से निशा को आते देख सायमन वहीं रुक गया। निशा का चेहरा उदास व पलकें झुकी हुई थीं। वह धीरे से कदम उठाती सायमन की ओर बढ़ने लगी।
"क्या बात है निशा। आज सुबह डाकिए से चिट्ठी लेते हुए मैंनें तुम्हें देखा है। कोई बुरी खबर।"
"हाँ शेफील्ड से चिट्ठी आई है।"
"अरे यदि उन्होंने तुम्हारी अर्जी को नामंजूर कर दिया है तो इसमें इतना उदास होने की क्या जरूरत है। हम दूसरे शहरों में इंटरव्यू के लिए और अर्जियाँ भेजेंगे।"
"अरे बुद्धू मुझे इंटरव्यू का पत्र आ गया है और दो दिन के बाद ही बुलाया है निशा सायमन के हाथ पकड़ कर उसे घुमाते हुए बोली।"
"तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी थी निशा।"
"चलो इसी बात पर कहीं घूमने चलते हैं। खाना भी मेकडोनल्ड में खाएँगे।"
निशा और सायमन हाथों में हाथ डाले मेकडोनल्ड से बाहर निकल ही रहे थे कि सामने किसी पर नजर पड़ते ही निशा चौंक गई। मिसेस फिश... वह भाग कर जा उस महिला के गले लग गई।
"अरे निशा... .. कितनी बड़ी हो गई हो। क्या कर रही हो आज कल।"
"मैंने अभी युनिवर्सिटी का अंतिम वर्ष पूरा किया है। मिसेस फिश यह है मेरा दोस्त सायमन...। सायमन यह मेरी सैकंडरी स्कूल की अध्यापिका मिसेस हेजल फिश हैं जो मेरी ही नहीं सब छात्रों की चहेती हैं।"
"और सायमन मैं यह भी बता दूँ कि यह हमारे स्कूल की सबसे होनहार लड़की निशा है" मिसेस फिश बोलीं... "अभी मैं जरा जल्दी में हूँ निशा। स्कूल के छात्रों को एक छोटे से ट्रिप पर लेकर जा रही हूँ। यह मेरा कार्ड है तुम फोन करना। फिर हम आराम से बैठ कर बातें करेंगे। तुम से मिल कर बहुत खुशी हुई सायमन। फिर मिलते हैं।"
निशा काफी देर तक मिसेस फिश को जाते हुए देख कर बोली..., "जानते हो सायमन यह हमारे सैकंडरी स्कूल की सबसे अच्छी और चहेती अध्यापिका हैं। लड़कियाँ तो बस इनके आगे पीछे घूमती रहती हैं।"
"वह तो मैंने देख ही लिया है जिस प्रकार तुम उनके गले मिली हो।"
"तुम्हें एक बार का बड़ा मनोरंजक किस्सा सुनाती हूँ। मैं सैंकंडरी स्कूल में मिसेस फिश की कक्षा में थी। बंगलादेश से आई हुई कुछ लड़कियाँ भी मेरी कक्षा में थीं। यह लड़कियाँ किसी से मिल जुल कर नहीं रहती थीं। बस अपना ही इनका एक गुट होता था। हमेशा की तरह मिसेस फिश ने छात्रों का एक छोटा सा ग्रुप बाहर वुड्स में ले जाना चाहा जहाँ बच्चे फूल और पौधों को देख कर उनका नाम पहचानें। मिसेस फिश कक्षा में लैक्चर देने के स्थान पर बच्चों को खुले में ले जाना अधिक पसंद करती हैं जहाँ बच्चे एक बंदिश नहीं खुश होकर अपने अनुभव द्वारा सीखें।
कुछ सोच कर 16 बच्चों का एक ग्रुप तैयार किया गया। छात्र अधिक होने के कारण एक और अध्यापक मिस्टर विक्टर जेम्स साथ चलने को तैयार हो गए। अपने निर्धारित स्थान पर आकर बस रुक गई। सब बच्चों में उत्साह था।
उस छोटे से जंगलनुमा स्थान में प्रवेश करने से पहले थोड़ी लंबी घास थी जिसको पार कर के ही अंदर प्रवेश करना था। बाकी बच्चे तो कुछ परवाह किए बगैर घास को रौंदते हुए अंदर चले गए लेकिन कुछ बंगाली लड़कियाँ एक दूसरे का हाथ थामे डरती हुई वहीं रुक गईं।
"साइमा क्या बात है तुम लोग रुक क्यों गईं चलो आओ सामने से मिसेस फिश की आवाज आई।"
"नहीं मिस हम इस लंबे घास में नहीं आएँगी," एक लड़की ने काँपती आवाज में कहा।
"क्यों इस घास में ऐसी क्या खास बात है और बच्चे भी तो आए हैं।"
"मिस ऐसे लंबे घास में साँप होते हैं हम नहीं आएँगी।"
"साँप और यहाँ ब्रिटेन में..." मिसेस फिश कुछ सोचते हुए फिर से घास को पार करके उन लड़कियों के पास पहुँचीं। देखो यह ब्रिटेन है। एक ठंडा देश। साँप गर्म देशों में होते हैं। जहाँ गर्मी के पश्चात बारिश होती है तो साँपों को अपने बिल से बाहर भोजन ढूँढ़ने के लिए या अपनी सुरक्षा के लिए बिल से बाहर आना पड़ता है। बंगलादेश, भारत, अफरीका आदि ये सब गर्म देश हैं इसलिए वहाँ साँप पाए जाते हैं। यहाँ के ठंडे मौसम में बेचारे कीड़े मकोड़े भी डरते हुए सामने आते हैं तो फिर साँप बिच्छू की क्या मजाल जो हिम्मत दिखाएँ। यहाँ कोई साँप नहीं हैं चलो आओ मेरे साथ। सभी लड़कियों ने डरते हुए घास को पार किया।"
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