कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 17 Neena Paul द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 17

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

17

"क्या ऐसे गर्म देशों में साँप सड़कों पर घूमते हैं निशा। ऐसी जहरीली चीज से डर तो लगता ही है ना...," बात करते हुए भी सायमन एक झुरझरी महसूस कर रहा था।

"नहीं सायमन... जितना मनुष्य साँप से डरते हैं उससे कहीं अधिक साँप मनुष्य से डरता है इसीलिए अपनी सुरक्षा हेतु वह पहले आक्रमण करता है। साँप का काटा एक बार बच भी सकता है परंतु मनुष्य के वार से साँप नहीं बच सकता।"

"तुम कुछ अपनी बचपन के स्कूल की बात बता रही थी निशा... फिर क्या हुआ?"

अरे हाँ... फिर क्या, सब बच्चे पेड़, पौधे, फूलों का नाम लिखने में व्यस्त हो गए। थोड़ी देर में मिस्टर जेम्स की आवाज आई... बस फूल पत्तों के नाम लिखने का समय समाप्त हुआ। अब हम एक और खेल खेलते हैं। उन्होंने चार-चार बच्चों के चार ग्रुप बनाए। प्रत्येक ग्रुप का एक ग्रुप लीडर चुना गया। हर लीडर को एक कंपस दिया गया।

हाँ तो बच्चों आप लोग जानते हैं कि इस कंपस का प्रयोग कैसे किया जाता है। आप सब लोगों को कक्षा में मैं यह पढ़ा चुका हूँ। यह अब आप सब की असली परीक्षा का समय है। हम यह देखेंगे कि किसको कितना याद है। ग्रुप लीडर इसी लिए चुना गया है कि सब उसकी बात सुनें और ग्रुप लीडर का यह कर्तव्य है कि वह अपने पूरे ग्रुप की रक्षा करे। उन्हें सही सलामत वापिस ले कर आए।"

उनके कंपस को सेट करके चारों ग्रुप के बच्चों को चार अलग दिशाओं भेज दिया गया यह कह कर कि सब को आधे घंटे में यहीं वापिस आना है। जो समयानुसार वापिस आएगा उसे उसी हिसाब से अंक दिए जाएँगे। बस फिर क्या था हम सब लोग भाग पड़े अपनी दिशाओं की ओर।"

सायमन जो बड़े ध्यान से निशा की बातें सुन रहा था निशा के रुकते ही बोला...

"अभी तुम्हारी एक और दिशा है निशा जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।"

"हाँ जानती हूँ सायमन, बस आज शाम से ही उसकी तैयारी में लग जाऊँगी।"

"निशा कल तुम कुछ स्टीम इंजन की गाड़ियों के विषय में बता रही थी ये स्टीम इंजन गाड़ियाँ भी तो गर्मियों में ही चलती हैं न।"

"हाँ... यह छोटे डिब्बों वाली गाड़ियाँ होती हैं जो स्कूल के बच्चों की गर्मी की छुट्टियों में चलाई जाती हैं। यह गाड़ियाँ हर स्टेशन से नहीं चलतीं। इनके निर्धारित शहर होते हैं। लेस्टर से ऐसी कोई गाड़ी नहीं चलती लॉफ़्बरो से चलती है। यही तो आकर्षण है इन गाड़ियों का जिसका बच्चे भरपूर मजा उठाते हैं। यह गाड़ियाँ हर रोज नहीं चलतीं। इनका भी दिन और समय निर्धारित होता है। इनकी टिकट भी बहुत पहले से लेनी पड़ती है।"

"हम अभी से टिकट बुक करा लेते हैं फिर शेफील्ड से आकर चलेंगे," सायमन जल्दी से बोला।

"निशा सायमन की उत्सुकता देख कर हँसते हुए बोली..., "वैसे तो स्टीम रेल बच्चों के लिए होती है तुम्हारा मन है तो हम ले चलेंगे अपने बेबी को।"

"क्यों बच्चों के साथ बड़े नहीं होते," सायमन ने चिढ़ कर कहा।

"बाबा नाराज क्यों होते हो। मैं तो छेड़ रही थी। अधिकतर बच्चों के साथ उनके ग्रेंड पेरेंटस होते हैं। यह स्टीम गाड़ी हर छोटे स्टेशन पर रुकती हुई जाती है। यह वही लाइन है जहाँ कभी कोयले से भरी माल गाड़ियाँ चला करती थीं।"

कोयले की बंद खदानें, जिनके आगे अब बड़ी घास और झाड़ियाँ उग चुकी हैं उन्हें देख कर कई बुजुर्गों की पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। यह सोच कर कि अभी कल की ही बात लगती है जब वह इन खदानों में काम किया करते थे उनकी पलकें भीग जाती हैं। छोटे बच्चों के लिए यह एक नया अनुभव होता है जिसे वह बड़े उत्सुक हो कर बड़ों से बाँटते हैं। गाड़ी प्रत्येक छोटे स्थान पर रुकती हुई आगे बढ़ती जाती है। कुछ बच्चे जिन्होंने पहले कभी गाड़ी नहीं देखी उनके लिए तो यह एक बहुत बड़ी बात है।"

"मैं जानती हूँ यह तुम्हारे लिए भी बड़ी बात है। तुम कभी स्टीम रेल पर नहीं बैठे। हम घर चल कर इंटरनेट पर टिकट बुक कर लेंगे।"

"अच्छा सायमन यह सामने बोर्ड पढ़ो क्या लिखा है...," लेस्टर ब्रिटेन का सर्व प्रथम वातावरण का दोस्त शहर माना जाता है। ये सुपरमार्किट्स में और दूसरे स्थानों पर जो तीन बड़े-बड़े ड्रम से देखते हो यह अपने शहर को साफ रखने का एक तरीका है जिसकी पहल लेस्टर से हुई।"

इससे पहले घर के और शहर के कूड़े करकट की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया था। कूड़ा फेंकने वाले स्थानों पर कूड़े के ढेर लगते जा रहे थे। लेस्टर के छात्रों ने सबसे पहले सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। घरों में भी एक ही डस्टबिन हुआ करता था जिसमें रसोई और घर का कूड़ा सब एक ही बिन में जाता था। कुछ ऐसा सामान जैसे समाचार पत्र, एलमोनियम के टिन, काँच की व प्लास्टिक की बोतलें आदि का प्रयोग री-साइकल करके दोबारा किया जा सकता है सब बेकार जा रहा था।"

"अब तो यह ड्रम प्रत्येक शहर में दिखाई देते हैं," सायमन भोलेपन ले बोला।

"हाँ... इसकी शुरुआत तो लेस्टर से ही हुई है ना। जब लेस्टर के छात्रों ने सरकार का ध्यान इस ओर आकर्शित किया तो वातावरण को शुद्ध रखने का कदम उठाया गया। सबसे पहले घरों में एक के स्थान पर दो डस्टबिन दिए जाने लगे। एक रसोईघर के कूड़े के लिए व दूसरा घर के और फालतू सामान के लिए। यही नहीं न पहनने वाले कपड़े, पुराने अच्छी हालत के जूते, बेल्ट, पर्स, यहाँ तक कि नजर के पुराने चश्मे तक फिर से प्रयोग में लाने के लिए घर घर में प्लास्टिक के बड़े थैले डाले जाते हैं जो लोग अपना पुराना व फिर से प्रयोग में आने वाला सामान उन थैलों में डाल दें जिनके लिए कितनी ही चेरिटी की दुकाने खुली हुई हैं जो यह सामान बेच कर इनके पैसे गरीब देशों में भेजते हैं।"

"हूँ..."

"यह जो तुम तीन अलग रंग के ड्रम सुपरमार्किट्स में देखते हो ये भी इसी काम के लिए हैं। काला.. काँच की बोतलें और दूसरा काँच का सामान फेंकने के लिए, हरे रंग के ड्रम में पुराने समाचार पत्र, गत्ते के डिब्बे व पुराने कागज, अलमोनियम के टिन इत्यादि और तीसरे भूरे रंग के ड्रम में पुराने न पहनने वाले कपड़े डाले जाते हैं। ऐसे ड्रम अब देश के हर शहर में मिलते हैं जिसकी शुरुआत लेस्टर से हुई... तो है न हमारा लेस्टर महान।"

"महान शहर की महान देवी जी अब घर चलें," सायमन उसका हाथ पकड़ कर बोला।

"घर जाने से याद आया सायमन कि करीब सारी युनिवर्सिटी खाली हो चुकी है। हमें भी अब कुछ समय अपने परिवारों के बीच गुजारना चाहिए।"

"हाँ निशा मैं भी यही सोच रहा था कि तुम्हारा शेफील्ड का इंटरव्यू हो जाए तो हम भी कुछ दिन घर वालों के साथ बिताएँगे। एक बार काम आरंभ हो गया और अपनी जिंदगियों में उलझ गए तो कहाँ समय मिलेगा।"

***

लोग सोचते ही रह जाते हैं और यह समय कहाँ का कहाँ निकल जाता है। देखते ही देखते निशा की युनिवर्सिटी की पढ़ाई भी समाप्त हो गई। यह तीन वर्ष कैसे गुजर गए कुछ पता ही न चला और अब नौकरी की चिंता।

"माँ... आप जानती हैं मेरा शेफील्ड का इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ है। एक बार काम में सैटल हो जाऊँ तो मैं जितेन का युनिवर्सिटी का सारा भार सँभाल लूँगी।"

"पर बेटा इतनी दूर शेफील्ड क्यों। लॉफ़्बरो या लेस्टर में ही कहीं कोई काम मिल जाता तो अच्छा था न। वैसे काम करने की आवश्यकता भी क्या है। तुम्हारी शादी की उम्र है। एक माँ को कितना चाव होता है अपनी बेटी के हाथ पीले करने का।"

"वो सब भी हो जाएगा माँ पहले इतने साल जो मैंने पढ़ाई में लगाए हैं उसका कुछ तो लाभ हम सब उठा लें। आप शेफील्ड को दूर कहती हैं मम्मा मेरी अभी पापा से बात हो रही थी कि मुझे लंदन की एक बहुत बड़ी सोफ्टवेयर कंपनी से जॉब की ऑफर आई है। पापा भी यही चाहते हैं कि मैं पहले किसी छोटी कंपनी में काम करके थोड़ा अनुभव प्राप्त कर लूँ तब किसी बड़ी कंपनी की ओर हाथ बढ़ाऊँ।"

"लंदन... न बाबा वहाँ तो मैं तुम्हें हरगिज नहीं भेजूँगी।"

"ठीक है मॉम समय आने पर इस विषय में भी बात कर लेंगे। वैसे हमारी पाँच जुलाई की टिकट भारत के लिए बुक हो गई हैं।"

"इतनी जल्दी। एक बात का ख्याल रखना बेटा जुलाई में बहुत गर्मी होती है। यदि कभी जल्दी बारिशें शुरू हो गईं तब तो जगह जगह कीचड़, उमस भरी हवाएँ, मच्छर यही सब देखने को मिलेगा।"

"नहीं मॉम हमारे लिए यही समय ठीक है। एक बार काम आरंभ कर दिया तो फिर छुट्टी लेनी मुश्किल हो जाएगी। मैं बचपन से नानी से वादा करती आ रही हूँ कि उन्हें उनके घर नवसारी ले कर जाऊँगी। यदि अपना वादा पूरा न कर पाई तो जीवन भर पश्चाताप के तले दबी रहूँगी।"

"नानी की ही तो चिंता है बेटा। एक तो ढलती आयु ऊपर से इस उम्र में उनका ऑपरेशन... वो पहले से भी अधिक दुबली हो गई हैं। कहीं कोई बात हो गई तो अकेले कैसे सँभालोगी।"

"आप नानी की चिंता मत करो माँ मैं उनका पूरा ख्याल रखूँगी। फिर सायमन भी तो है न साथ में।"

"यह हर बात में सायमन कहाँ से आ टपकता है हमारे बीच," सरोज चिढ़ कर बोलीं।"

"मॉम यदि आपने फिर से सायमन की बात उठाई है तो मैं आपको एक खुशी की बात बता दूँ कि मुझे और सायमन दोनों को शेफील्ड में काम मिला है। हम अगस्त महीने से काम करना शुरू करेंगे। फिर भारत से वापिस आ कर हमें मकान भी तो ढूँढ़ना है रहने के लिए।"

"हमें... क्या मतलब तुम दोनों एक ही घर में रहोगे," माँ हैरान हो कर बोली।

"इसमें इतनी हैरानी की क्या बात है, अभी तक हम इकट्ठे ही रहते आए हैं।"

"पहले तुम पाँच एक घर में रहते थे। अब केवल तुम दोनों एक ही घर में...। क्यों हमारी इज्जत उछालने में लगी हुई हो निशा। हमने तुम्हारे ऊपर कभी कोई बंदिश नहीं लगाई तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम हर बात पर मनमानी करती रहो। जसु बेन और धीरु भाई कितने अच्छे निकले कि समय से दोनों बेटियों की शादी करके निश्चिंत हो गए हैं।"

"जरा उनसे यह जाकर पूछिए कि वो कितने निश्चिंत हैं। किन हालात में उन्होंने अपनी दोनो बेटियों की शादी की है। मैं अगर आपको उनकी बेटियों के कारनामे बता दूँ तो आप के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी।"

"क्यों, क्या बुराई थी उनमें। इतनी संस्कारी लड़कियाँ। सुबह शाम पूजा करने वाली। आज कल ऐसी लड़कियाँ कहाँ मिलती हैं।"

"ऐसी लड़कियाँ... भगवान ऐसी लड़कियाँ किसी माता-पिता को न दे। पूछिए धीरु भाई से कि चार दिन के अंदर बेटी वीणा की शादी करके उसे अमरीका क्यों भेज दिया उन्होंने। वो भी ऐसे लड़के से जो स्वयं वहाँ गैरकानूनी तरीके से रह रहा था। उसके पास ग्रीन कार्ड भी नहीं था मॉम। वीणा कभी ब्रिटेन नहीं आ सकती। उस समय धीरु भाई के पास और कोई चारा ही नहीं था बदनामी से बचने का। लॉफ़्बरो छोटा सा शहर है। वीणा के शर्मनाक कारनामें कब तक लोगों की आँखों से बचते रहते। छोटी बेटी जयश्री तो बड़ी बहन से भी चार कदम आगे लिकल गई थी। कम से कम मुझमें आपके दिए हुए संस्कार तो हैं मॉम जो सदा बुराई से बचाते हैं।"

"वो तो सब ठीक है बेटा लेकिन यह दुनिया वालों को तो ताने मारने के लिए कुछ चाहिए।"

"यह दूसरों के घरों में झाँकने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि उनके घरों की खिड़कियाँ भी शीशे की बनी हैं। वो क्या जाने कि उनके बच्चे बाहर क्या गुल खिला रहे हैं। इस लिए मेरी अच्छी माँ किसी प्रकार की भी चिंता छोड़ कर अपने बच्चों पर विश्वास करना सीखिए...," माँ के गले में बाँहें डाल कर निशा प्यार से बोली, "कभी मन में कोई खुराफात आए भी तो आपके संस्कार बीच में ढाल बन कर खड़े हो जाते हैं।"

"अब मैं तुम्हारी तरह पढ़ी लिखी तो हूँ नहीं जो बातों में तुमसे जीत पाऊँ।"

"आप स्वयं को कहती हैं कि पढ़ी लिखी नहीं हैं। याद है कैसे टाउल्स कारखाने में काम करते हुए आपने अपने फोरमैन की बोलती बंद कर दी थी।"

"अरे वो... सरोज हँसते हुए बोली... वो तो हमारा फोरमैन ही बेवकूफ था। जब मेरी पूरे सप्ताह के काम की टिकट्स सामने पड़ी थीं जिन्हें गिन कर ही हर हफ्ते हमें पैसे मिलते थे। उन्हें गिनने के पश्चात वह कहने लगा कि इन टिकट्स को देख कर पता चलता है कि तुम बहुत जयादा कमा रही हो।"

"नहीं मिस्टर वील्स मैं कठिन परिश्रम कर रही हूँ। यह उसी परिश्रम का फल है।"

"लेकिन मैं तुम्हें इतने अधिक पैसे नहीं दे सकता।"

"आप... आप कौन होते हैं मुझे पैसे देने वाले। मैं और आप दोनों इसी कारखाने में काम करते हैं और यहीं से वेतन लेते हैं। जो स्वयं भिखारी हो वह दूसरे को क्या भीख देगा।"

"क्या जवाब दिया था मॉम आपने कि वह अपने मुँह की खा कर रह गया।"

"अच्छा छोड़ अब पुरानी बातों को, तेरी एक सहेली लिंडा भी तो थी। उसका कोई अता-पता रखती है या नहीं। उसकी माँ शायद बीमार रहती थी अब कैसी है।"

"क्या बताऊँ लिंडा बेचारी के बारे में। इतनी छोटी सी उम्र और इतनी बड़ी जिम्मेदारी। पढ़ने में इतनी तेज। उसकी वो बात याद आती है कि... "डिग्री मेरी माँ से बढ़ कर नहीं है।" कितनी ऊँची बात कर दी उसने मॉम...। लोगों को बड़ी गलतफहमी है कि अंग्रेज बच्चे अपने माता-पिता का ख्याल नहीं रखते। कोई आकर लिंडा को देखे जिसने माँ की देख भाल के लिए अपनी हर इच्छा का दमन कर दिया है। वह भी तो युवा है। केवल 24 वर्ष की। उसके अपने भी तो कई अरमान होंगे।"

"आखिर उसकी माँ को बीमारी क्या है बेटा जो वह घर से बाहर भी नहीं निकलती।"

"लिंडा की माँ को कोई शारीरिक बीमारी नहीं है माँ। अकेले होते ही उनकी घबराहट बढ़ जाती है जिससे वह कुछ उल्टी सीधी हरकतें करने लगती हैं। यही कारण है कि उनको काम भी छोड़ना पड़ा। अभी उनकी आयु इतनी भी नहीं जो पेन्शन मिल सके और इतनी बीमार भी नहीं हैं कि सरकार की सहायता मिल सके। सोशल सर्विस वाले इतनी सहायता जरूर करते हैं कि जब लिंडा काम पर होती है तो कोई न कोई एक दो बार घर में चक्कर लगा कर देख जाता है कि जैकी ठीक है। घर चलाने के लिए किसी को तो काम करना है। लिंडा यहीं लॉफ़्बरो में काम करती है। भारत जाने से पहले उसे मिल कर जाऊँगी।"

"हाँ मिलने से याद आया कि तुम्हारी पुरानी अध्यापिका मिसेस हेजल फिश का फोन आया था वह भी तुमसे मिलना चाहती हैं।"

"मॉम अब इतना समय कहाँ है जो सबसे मिलती फिरूँ। मिसेस फिश को यहीं चाय पर बुला लेंगे। इसी बहाने आपसे भी उनकी मुलाकात हो जाएगी। मैं जरा नानी को देख कर आती हूँ। वह तो अभी से तैयारी हो कर के बैठी होंगी। इतने वर्षों के पश्चात उनकी इच्छा जो पूरी हो रही है।"

यह नहीं कि इच्छाओं का दमन केवल महिलाएँ ही करती हैं। पुरुष भी परिवार की खातिर अपने अरमानों का गला घोंटते रहते हैं वो भी खमोशी से। अपने दर्द की किसी को भनक भी नहीं पड़ने देते।

यही हाल सुरेश भाई का है... होठों पर मुस्कान बिखेरे, विनम्रता पूर्वक बोलने वाले सुरेश भाई जाने कितने तूफान अपने भीतर छुपाए हुए हैं। इस आयु में भी पत्नी से काम करवाना उनकी मजबूरी है। कभी वह स्वयं को धिक्कारते हैं कि जवान बेटी को अकेले अनजान देश में भेज रहे हैं। वह निशा को जाने से रोक भी तो नहीं सकते। वह अब छोटी बच्ची नहीं रही बालिग हो चुकी है। इस देश में बालिग होने का मतलब सुरेश भाई अच्छी तरह से जानते हैं। कहने को तो भारत उनका अपना देश है परंतु वह भारत को जानते ही कितना हैं।

काम छोड़ कर जाएँ तो जो यह थोड़ी सी आमदनी है वह भी बंद हो जाएगी। सरोज की कमाई से सारा घर चल रहा है उसे भी भेजें तो कैसे भेजें। वह सरोज का डर जानते हैं। सरोज तो अपने दिल की बात पति से बता सकती है परंतु सुरेश भाई अपने दिल का डर किसे बताएँ। चाहे सायमन साथ में है लेकिन उसके लिए वो देश ही नहीं वहाँ के वासी और भाषा भी अजनबी है। बस अपनी बच्ची को भगवान भरोसे भेज रहे हैं।

सुरेश भाई के समान सरोज की आँखों में भी नींद कहाँ... वह पति की ओर करवट बदल कर बोली...

"सुनिए जी सो गए क्या..."

"नहीं..." एक लंबी साँस छोड़ते हुए सुरेश भाई ने कहा।

"हम बेटी को अकेले भेज तो रहे हैं यदि वहाँ कोई ऊँच-नीच हो गई या बा बीमार पड़ गईं तो निशा कैसे सँभालेगी।"

"चिंता मत करो सरोज हमारी बेटी समझदार है और फिर सायमन भी तो है उसके साथ।"

"पता नहीं इस छोकरे सायमन ने क्या जादू कर दिया है दोनों बाप बेटी पर। जब देखो उसी के गुण गाते रहते हैं। मेरा तो जी चाहता है कि कोई अच्छा सा अपनी बिरादरी का लड़का देख कर निशा की शादी कर दूँ।"

"ये सोच अपने दिमाग से जितनी जल्दी निकाल दें उतना अच्छा है सरोज नहीं तो पीड़ा आप को ही होगी। हमने अपने बच्चों पर न कभी जोर पकड़ की है और ना ही आगे करेंगे। निशा तीन वर्ष घर से बाहर अपने दोस्तों के बीच रह कर आई है। अब घर से आजादी का अर्थ क्या होता है वह जान गई है।"

एक हल्की सी दबी हुई सिसकी सुनाई दी…

"अपने बच्चों को इस माहौल में भेजने वाले भी तो हम ही हैं सरोज। उस समय हम उन्हें प्रोत्साहित करते थे कि घर पर भी अंग्रेजी में ही बात करें जो अंग्रेजी तौर-तरीके सीख कर वह अंग्रेजों के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें। अब वह उनके साथ कदम मिला कर इतनी आगे बढ़ गए हैं कि हम उन्हें पीछे नहीं खींच सकते। वो भी इनसान हैं कोई आपके कारखाने की मशीन नहीं कि जब चाहें नया धागा लगा कर डिजाइन बदल दें।"

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