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कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 4

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

4

साथ वाले घर में इतनी हलचल देख कर जूलियन ने अपने पति को आवाज दी...

"डेव जल्दी आओ देखो पड़ोसी क्या करने वाले हैं।" पड़ोसी यदि एशियन हों तो अंग्रेजों की उत्सुकता और भी बढ़ जाती है।

इस घर में गुरमेल सिंह अपने परिवार सहित रहते हैं। इनके पास डबल गैरेज है। दो महीने में इनके बेटे रजिंदर सिंह की शादी होने वाली है। शादी के लिए तो गुरुद्वारे का हॉल बुक है परंतु कुछ खास रिश्तेदार जो भारत से आने वाले हैं उनको तो घर पर ही ठहराना होगा। ब्रिटेन में वैसे भी घर इतने बड़े नहीं होते जो मेहमानों को ठहराया जा सके। गुरमेल सिंह ने अपने डबल गैरेज की सफाई करवा कर ठीक-ठाक कर दिया। अब इसमें मेहमान रात को आराम से सो सकते थे। वहीं गैरेज के कोने में सबकी सुविधा को ध्यान में रख कर रात को प्रयोग में लाने के लिए एक छोटी सी टॉयलेट भी बनवा दी गई।

उत्सुकता वश अंग्रेज पड़ोसी बार-बार अपने बेडरूम की खिड़की से झाँक कर देखते कि आखिर गैरेज के एक कोने में ये छोटा सा कमरा कैसे बन रहा है। दूसरों के कार्यों में टाँग अड़ाना तो अंग्रेजों का काम है ही।

आखिर डेव से पूछे बिना नहीं रहा गया... "मिस्टर सिंह... यह गैरेज में क्या बन रहा है...।"

"आपको मैंने बताया था डेव कि मेरे बड़े बेटे रजिंदर सिंह की शादी है। शादी में कुछ बाहर से मेहमान आ रहे हैं। आप तो जानते ही हैं हमारे घर इतने बड़े नहीं हैं जो महमानों को ठहराया जा सके। सोचा गैरेज काफी बड़ा है। क्यों ना उनके सोने का इंतजाम यहीं कर दिया जाए। जुलाई का महीना होगा तो हीटिंग की भी आवश्कता नहीं पड़ेगी। रात को एक बिजली के हीटर से काम चल जाएगा। बस उसी के लिए कुछ काम हो रहा है...।"

डेव का माथा ठनक गया। गोरों के पास न तो भारतीयों जैसा दिमाग है और न ही आवभगत की भावना। इनकी शादियों में भी यदि रात को किसी को ठहरना हो तो वह अपना इंतजाम स्वयं किसी होटल में कर के आएगा।

वह समय ही ऐसा था कि एशियंस की शिकायत लगाने के गोरे हमेशा बहाने ढूँढ़ते रहते थे। फिर क्या था कि अचानक पुलिस की दो गाड़ियाँ आ धमकीं। पुलिस ने जब आकर देखा कि वहाँ आराम की हर वस्तु मौजूद है। किसी प्रकार का कानून भंग नहीं हुआ तो वह कुछ न कर सके। बस ये कह कर चले गए कि ख्याल रहे दस बजे के बाद कोई शोर न हो...।

ब्रिटेन में एक यह भी कानून है कि रात के दस बजे के पश्चात कोई शोर नहीं कर सकता। यहाँ तक कि कोई अपनी कार का हार्न भी नहीं बजा सकता जो किसी की नींद खराब ना हो। आप तो अपने घर में जश्न मना रहे हैं किंतु और लोगों ने काम पर जाना होता है। इस लिए रात देर तक शोर करने की मनाही है।

हाँ, तब एशियंस नहीं गोरे शोर मचाते हैं जब पूरा सप्ताह काम करने के पश्चात शुक्रवार को एशियंस का पे-पैकेट अंग्रेजों के मुकाबले में भारी होता है। किंतु उस समय वह शोर नहीं मचाते जब पब में उनके शराब के दौर पे दौर चल रहे होते हैं और एशियंस ओवरटाइम करके पसीना बहा रहे होते हैं। उस वक्त उनको लालची और न जाने क्या-क्या कह कर गालियाँ दी जातीं हैं। अंग्रेज लड़कों के लिए हफ्ते में चालीस घंटे काम करना भी मुसीबत से कम नहीं होता। उन्हें जल्दी से जल्दी घर भागने की पड़ी रहती है। भई क्यों न भागें... शाम होते ही यदि पब नहीं पहुँचेंगे तो उन की गर्लफ्रेंड्स उन्हें छोड़ कर नहीं भाग जाएँगी...।

और चीजों के साथ-साथ लेस्टर अपने पबस के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ पब में लोग केवल शराब पीने ही नहीं आते बल्कि यह उनका सोशल क्लब भी होता है। यहाँ लोग शराब के साथ पब के गर्मा-गर्म खाने का भी मजा लेते हैं। शाम को सब दोस्त यहाँ इकट्ठे होते हैं। बारी-बारी से ड्रिंक्स के दौर चलते हैं। जब एक हाथ में सिगरेट दूसरे में बियर का गिलास और बगल में गर्लफ्रेंड हो तो शाम भी झूमती हुई गुजरती है। पैसों की भी कोई परवाह नहीं करता चाहे सोमवार से ही उनके पास डबलरोटी के लिए भी कुछ नहीं बचता। वह एक दूसरे से उधार माँगते फिरते हैं।

पब का माहौल कुछ अपनी ही रंगीनियाँ लिए होता है। शुक्रवार और शनिवार की शाम को सड़कों पर विशेषकर पब के अंदर और आस-पास बहुत ही चहल पहल और शोर-शराबा सुनने को मिलता है। लोग अपनी गर्लफ्रेंड्स व पत्नियों की बाहों में बाँहें डाले घूम रहे होते हैं। उस दिन सबकी जेब जो गर्म होती है। लोग पब में तरह-तरह के खेल जैसे क्विज, डार्टस आदि, खेलते मिलते हैं। पब चलाने वाले भी कम दाम पर शराब और बड़ी टी.वी. स्क्रीन पर फुटबाल मैच दिखा कर लोगों के मनोरंजन का पूरा खयाल रखते हैं।

शुक्रवार और शनिवार की रात को पब के आस पास पुलिस भी काफी सतर्क दिखाई देती है। पीने वालों का कोई भरोसा नहीं कि कब पीकर इनका दिमाग फिर जाए और आपस में हाथापाई पर उतर आएँ जो अक्सर शुक्रवार और शनिवार की रातों को देखने को मिलता है। इन दो रातों को पुलिस का काम भी बढ़ जाता है।

यह नहीं कि शराब पीकर पुरुष ही हाथापाई करते हों। कई बार तो महिलाएँ भी नशे में धुत आपस में गुत्थमगुत्था हुई सड़क पर लड़ती हुई मिलती हैं।

लेस्टर की हर बड़ी सड़क पर दो तीन पब होने मामूली बात है। जब हर कोने पर पब हों तो एशियंस भी कैसे उनसे अछूते रह सकते हैं। जैसे-जैसे लेस्टर की जनसंख्या बढ़ने लगी पब वालों की बिक्री में भी बढ़ोती होने लगी। इस बात के लिए वह एशियंस का धन्यवाद करते न शरमाते।

***

यह नहीं कि भारतीय केवल कारखानों में ही काम कर रहे थे। अफ्रीका से आने वाले भारतीय अपने साथ पैसा लेकर आए थे। वहाँ करीब सभी का अपना कारोबार था। यह अफ्रीका में बड़ा बिजनस चलाने वाले एशियंस पहले से ही अपने काम के सिलसिले में ब्रिटेन के लोगों से जुड़े हुए थे जिनमें एशियंस ही नहीं गोरे भी थे। यह लोग पढ़े-लिखे भी थे। वहाँ बड़ा अच्छा समय व्यतीत कर के आ रहे थे।

ब्रिटेन उनके लिए नया नहीं था। उन्हें जैसे ही यह आभास हुआ कि युगांडा के राष्ट्रपति इदी अमीन एशियंस को देश से निकलने का आदेश देने वाले हैं तो वह चुपचाप अपनी दुकानें व मकान बेच कर ब्रिटेन आ गए। अपने कारोबार को लेकर पहले से ही ब्रिटेन से जुड़े होने के कारण उन्हें किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। इनके पास पैसा था। ब्रिटिश पासपोर्ट था। यह अपना हक जान कर ब्रिटेन में आए और आते ही सैटल भी हो गए।

पहले भारत फिर अफ्रीका से भारतवंशियों के आने से ब्रिटेन की इकोनोमी को भी बहुत लाभ हुआ। कारखानों में काम तेजी से चलने लगा। लोगों के पास भरपूर काम था। जिनके पास पैसा था उन्हों ने रहने के लिए मकान व कारोबार के लिए दुकाने लेकर काम करना आरंभ कर दिया। लेस्टर की बेलग्रेव रोड पर धीरे-धीरे साड़ियाँ, सोने चाँदी, हीरे के आभूषण और खाने-पीने की दुकाने दिखाई देने लगीं। जगह जगह गुजराती मिठाई की दुकानें व पंजाबी ढाबे व रेस्तराँ खुल गए।

भारत और अफ्रीका से आए लोगों में अंतर यह है कि भारत से आए लोग स्वयं को प्रवासी कहते हैं। उन्हें ब्रिटेन में वर्किंग वीजे के साथ, जेब में केवल तीन या पाँच पाउंड लेकर ही आने की अनुमति मिली। अफ्रीका से आने वाले लोगों के पास पहले से ही ब्रिटिश पासपोर्ट होने के कारण वह स्वयं को प्रवासी नहीं इस देश का निवासी समझते हैं। उनके पास पैसा भी है और इस देश में रहने के पूरे अधिकार भी।

अधिकार समझ कर ही तो लोग एक दूसरे से पैसा लेकर अपने घर खरीदने लगे...

"मनोज भाई आप घर देख रहे थे कैसा लगा?"

"घर तो अच्छा है लेकिन थोड़ा छोटा है..."

"अरे भाई छोटा है तो क्या हुआ, है तो अपना ही ना। थोड़े समय के पश्चात जब काम अच्छा चल पड़े तो बड़ा भी ले लेना। किराये के मकान में तो डर ही लगा रहता है कि कब मकान मालिक खाली करने को बोल दे।"

"ठीक कहा यार... अकेली जान तो कैसे भी रह ले किंतु बाल बच्चों के साथ दर-दर भटकना भी तो आसान बात नहीं।"

"ठीक कहा मनोज भाई। गोरे तो वैसे ही हम से उखड़े रहते हैं..."

***

भारत से केवल देहातों से अनपढ़ लोग ही ब्रिटेन में नहीं आए थे बल्कि कुछ डिग्रियाँ लिए लोग भी थे। जो ठीक प्रकार से अंग्रेजी लिख बोल लेते थे उनके पास अच्छी नौकरियाँ भी थीं। अधिकतर लोगों को अपने रंग-रूप व ठीक से अंग्रेजी न बोल सकने के कारण मजबूर हो कर कारखानों में मजदूरी करनी पड़ी। घर वालों ने उन्हें बड़ी आशाओं के साथ यहाँ भेजा था इस लिए वह वापिस भी किस मुँह से जाते। कुछ ने कारखानों का रुख किया, कुछ टैक्सी ड्राइवर बने और कुछ तकदीर के मारे ऐसे भी थे जिन्हें होटलों में बर्तन धोने तक का काम करना पड़ा।

व्यापार और कारखाने बेलग्रेव रोड के आस पास होने के कारण लोगों ने मकान भी यहीं ढूँढ़ने आरंभ कर दिए। भारतीयों की एक विशेषता है कि घर चाहे छो़टा हो परंतु अपना होना चाहिए किराए का नहीं।

बेलग्रेव रोड के आस-पास जितनी भी स्ट्रीटस हैं उनमें अधिकतर टैरेस्ड घर हैं। टैरेस्ड यानी 10-12 या कभी उस से भी अधिक एक जैसे घर सीधे एक ही कतार में जुड़े हुए होते हैं। हर दो घरों के बीच में घर के पिछवाड़े तक ले जाने के लिए एक छोटी सी गली होती है। ब्रिटेन के कानून के अनुसार घरों से बाहर निकलने के लिए दो रास्ते होना आवश्यक है। यदि कोई दुर्घटना हो जाए, घर में आग लगने से एक रास्ता बंद हो जाए तो दूसरे दरवाजे से निकल कर कम से कम अपनी जान तो बचाई जा सकती है।

सन् 1970 तक यहाँ के आम घरों में सर्दियों में घरों को गर्म करने के लिए गैस या बिजली की सैंट्रल हीटिंग नहीं थी। बड़े मनोरंजक तरीके से घरों को गर्म किया जाता था। नीचे वाले कमरों में दीवार के बीचोबीच एक अँगीठी बनी होती थी जिसमें कोयला जलाया जाता था। यह अँगीठी दो काम करती थी। एक तो कोयले की गर्मी से घर गर्म रहते थे दूसरा इस अँगीठी के ऊपर ही बड़ी सी चिमनी बनी होती थी जो ऊपर बाथरूम से होकर छत पर खुलती थी। (आज कल भी जिन घरों में बिजली या गैस के हीटर हैं उन घरों में यह चिमनियाँ दिखाई देती हैं जिनका काम है हीटर से निकलती जहरीली गैस को सीधे चिमनी के द्वारा बाहर निकाल देना।) कमरे में अँगीठी से थोड़ी दूर दीवार पर एक लोहे की छड़ लटक रही होती थी। उस छड़ को खींचते ही बाथरूम में ठीक चिमनी के ऊपर रखे हुए पानी के टैंक में पानी गर्म होने लगता था। ठीक अँगीठी के ऊपर पानी का टैंक लगाने का भी एक कारण था। क्यों कि हीट हमेशा ऊपर को उठती है। यही हीट ऊपर रखे पानी के टैंक को गर्म करने का काम करती थी। यह गर्म पानी नहाने और सारा दिन घर के काम करने के लिए प्रयोग किया जाता था।

पानी के टैंक इतने बड़े नहीं होते थे जो कि परिवार के सदस्य प्रतिदिन नहा सकें। गोरे तो वैसे भी नहाने के चोर होते हैं। सुबह उठ कर गीले कपड़े से शरीर को पोंछ कर अच्छी तरह से परफ्यूम छिड़क कर काम पर चल देते हैं।

यह वो समय था जब अधिकतर लोग टैरेस्ड घरों में रहते थे। इन घरों में लोगों के नहाने के लिए टब या शावर तक की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। नहाने के लिए पब्लिक बाथ बने होते थे जहाँ पैसे डाल कर गर्म पानी उपलब्ध होता था। लोग सप्ताह में एक बार वहाँ जाते थे नहाने के वास्ते।

जिन घरों में टब थे भी वहाँ सप्ताह में एक बार आधा टब भर कर घर के सारे बच्चों को एक साथ एक ही पानी में नहलाया जाता था।

यह टैरेस्ड घर अधिक बड़े नहीं होते बस दो या तीन बेडरूम के ही होते हैं। घरों में जलाने वाला कोयला या बाकी का फालतू सामान रखने के लिए घरों के नीचे सैलर यानी तहखाने होते हैं। उन दिनों कोयले की खपत बहुत अधिक थी। कारखानों से लेकर घर के हर काम के लिए कोयले की आवश्यकता पड़ती थी।

घर के बाहर सैलर के ठीक ऊपर एक छोटी सी खिड़की बनी होती थी जिसके द्वारा बाहर से ही अँगीठी में जलाने वाला कोयला सैलर में भरा जा सकता था। बहुत से लोग इन कोयले की खदानों में काम करते थे। इन कोयले की खदानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए घरों में प्रयोग करने का कोयला मुफ्त में मिलता था।

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लेस्टर अपनी एक और चीज के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है और वह है उसके चारों और बनी हुई केनाल्स। केनाल प्रकृति की नहीं मनुष्य द्वारा बनाई हुई छोटी नहरें हैं जो बारिश का पानी इकट्ठा करने का काम भी करती हैं। उन दिनों इन्हीं केनाल्स के द्वारा ब्रिटेन का सारा व्यापार होता था। इन केनाल का सबसे बड़ा आकर्षण है इनका लॉक सिस्टम। क्यों कि इन में ज्यादा पानी नहीं होता इस लिए थोड़ी थोड़ी दूर पर पानी को रोकने के लिए लंबे दरवाजेनुमा पुल और उनमें लगे ताले हैं। इन्हीं तालों द्वारा केनाल के पानी पर रोक लगाई जाती है। जब कश्ती एक केनाल से दूसरी में जाने लगती है तो ताला और दरवाजा खोल कर पिछली केनाल से थोड़ा पानी आगे आने वाली केनाल में भरा जाता है जो पानी की सतह एक सी रहे और कश्ती आराम से चल सके।

आज भी पानी के इस मनोरंजक तरीके से ऊपर नीचे जाने के दृश्य का अनुभव करने के लिए ही कुछ लोग किराए पर कश्तियाँ लेकर केनाल में उतरते हैं। कई बार तो स्कूल के बच्चों को भी यह सब दिखाने के लिए केनाल बोट ट्रिप पर ले जाया जाता है।

सन् 1960 से पहले इन्हीं केनाल के द्वारा कारखानों का कच्चा माल व घरों के लिए कोयला आदि कश्तियों के द्वारा पहुँचाया जाता था। पहले दूर से कश्तियों में सामान आता था। फिर बाहर तैयार खड़ी घोड़ागाड़ी में सामान लाद कर घरों में ले जाने का काम होता। कश्तियों और घोड़ागाड़ी के द्वारा सामान इधर से उधर पहुँचाना काफी महँगा भी पड़ता था और समय भी अधिक लगता था। इसका स्थान बाद में स्टीम से चलने वाली मालगाड़ियों और सड़क द्वारा सामान पहुँचाने का काम ट्रकों ने ले लिया। धीरे धीरे केनाल्स का प्रयोग कम होते हुए बिल्कुल ही समाप्त सा होने लगा। आज कल लोग इन केनाल्स में घूमने व पिकनिक करने जाते हैं।

केनाल के साथ साथ किनारे से थोड़ी ही दूरी पर मकान बने हुए हैं। पब हैं जहाँ कश्ती को रोक कर वहीं पर तैयार हुए गर्मागरम खाने के साथ ड्रिंक्स का भी मजा लिया जा सकता है। कुछ फिशिंग के शौकीन लोग केनाल के किनारे बैठे सारा दिन मछलियाँ पकड़ते दिखाई देते हैं। केनाल का पानी साफ न होने के कारण पकड़ी हुई मछली खाई नहीं जाती। बस यह तो एक शौक और समय बिताने का एक साधन है। इसी बहाने लोग थोड़ी धूप भी सेंक लेते हैं।

पहले काँटा डाल कर मछली को पकड़ा जाता है फिर उसे तोल कर और उसकी लंबाई नाप कर उसे फिर से पानी में छोड़ देते हैं...। घर जाने से पहले देखा जाता है कि किसने सबसे अधिक व सबसे बड़ी मछली पकड़ी है। यह उनके लिए एक प्रकार का खेल और मन बहलाने का एक जरिया है। सैंकड़ों बतखें वहाँ तैरती व मछलियों का शिकार करती मिलती हैं। जहाँ इनसान होंगे वहाँ खाने के लालच में पक्षी भी दिखाई देंगे...। यह केनाल बारिश का पानी इकट्ठा करने में सहायक सिद्ध होती हैं जो बारिश अधिक होने से पानी सड़कों पर न आ जाए।

यहाँ की बारिश भी एक विशेष चीज है। हर समय अपने साथ छाता रखना पड़ता है कि न जाने कब सूर्य देवता थक कर बादलों की शैया पर विश्राम करने चले जाएँ और हवाओं के हिंडोलों के साथ बरखा रानी अपनी तान छेड़ कर उन्हें लोरी सुनाने आ धमकें।

वैसे गर्मी की बारिश में भीगने का तुत्फ कुछ अपना ही होता है। ब्रिटेन की गर्मी की बारिश का हाल कोई निशा और उसकी सहेलियों से पूछे…

निशा सहेलियों के साथ स्कूल से आ रही थी। आसमान बादलों से भरा हुआ था। फिर भी काफी गर्मी थी। हवा भी उमस भरी थी। देखते ही देखते हवा की गति तेज हो गई... हवा का साथ देने के लिए उतरी दिशा से घुमड़ कर बादल भी आ गए। लोगों का कहना है कि जब उत्तरी दिशा से बादल आएँ तो बरस कर ही जाएँगे। काले घने बादलों में गड़गड़ाहट होते ही जोर से बारिश आरंभ हो गई। कुछ लड़कियाँ बारिश से बचने के लिए पेड़ों का सहारा लेने लगीं तो दूसरी उन्हें खींच कर फिर बारिश में ले आतीं। सब सहेलियाँ एक दूसरे के पीछे भागती हुई मस्ती से शोर मचाते हुए बारिश में भीगने लगीं।

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