कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 11 Neena Paul द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 11

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

11

समय की रफ्तार तो एक ही रहती हैं परंतु मनुष्य कभी धीमे और कभी तेज गति से उसके साथ कदम मिलाने के प्रयास में जुटा रहता है। जिसमें कभी वह अपनी सफलता पर इतराता है और कभी असफल हो कर मायूस हो जाता है।

निशा का युनिवर्सिटी में यह अंतिम वर्ष है। सब छात्र छात्राएँ अच्छे अंकों में पास होने के लिए जी-जान से परिश्रम कर रहे हैं। अंतिम वर्ष में ही विद्यार्थी नौकरियों के लिए अर्जी डालना आरंभ कर देते हैं। बस सब का यहाँ इतना ही साथ होता है। अलग होते ही कुछ दोस्त सदा के लिए अलग हो जाएँगे और कुछ दूर हो कर भी दोस्ती निभाते रहते हैं। जहाँ एक ओर डिग्री मिलने की खुशी है तो वहीं बिछुड़ने का दुख भी कम नहीं होता।

"निशा अब तो हमारे बिछुड़ने का समय भी करीब आ रहा है। भई मुझे तो सोच कर ही कुछ होने लगता है..." अलका ने अंदर आते हुए कहा।

"अरे यार हम युनिवर्सिटी छोड़ कर जाएँगे दुनिया तो नहीं। छुट्टियाँ तो काम करते हुए भी सब को मिलेंगी।"

"छुट्टियाँ तो मिलेंगी परंतु दूरियों में वो बात नहीं रहती..."

"वैसे निशा तुमने और सायमन ने क्या सोचा है।" सारे दोस्त जानते हैं कि आज कल निशा और सायमन की नजदीकियाँ काफी बढ़ रही हैं। बढ़ती भी क्यों न। जब निशा को जर्मन मीजल्स निकले थे उस समय सायमन और अलका ने उसका कितना ख्याल रखा था।

जर्मन मीजल्स जिसे भारतीय भाषा में खसरा बोलते हैं इसमें शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं जैसे किसी को खुजली हो गई हो। इसके निकलने से शरीर के कुछ विशेष जोड़ों में जैसे हाथ की कलाइयाँ, घुटने व पैरों के जोड़ों में दर्द होने लगता है। दोस्तों ने कालेज में किसी को भी कानों-कान खबर न होने दी नहीं तो शायद निशा को उसके घर या हस्पताल भेज दिया जाता। दिन रात साथ होने के कारण निशा और सायमन की दोस्ती बढ़ने लगी जो दोस्तों की निगाहों से छुपी नहीं थी।

***

पतझड़ का मौसम शुरू हो गया था। पतझड़ का मतलब तेज ठंडी हवाएँ। अभी से सर्दी ने अपना रंग दिखाना आरंभ कर दिया था। जहाँ गर्मी के दिनों में रात के दस बजे तक दिन रहता है वहीं सर्द मौसम में तीन बजे से ही आकाश पर कालिमा छाने लगती है...। ब्रिटेन में वर्ष में दो बार यहाँ की घड़ियों का समय एक घंटा आगे पीछे होता रहता है। मार्च के अंतिम सप्ताह में बसंत ऋतु आने से पहले घड़ियों को एक घंटा आगे कर दिया जाता है और दूसरा शीत ऋतु के शुरू होने से पहले यानी अकतूबर के अंतिम सप्ताह में घड़ियाँ एक घंटा पीछे कर दी जाती हैं। ऐसा सारे विश्व की घड़ियों के साथ चलने के लिए ही किया जाता है। तभी ब्रिटेन में शीत ऋतु में अँधेरा बहुत लंबा लगता है।

युनिवर्सिटी पाँच दिनों के लिए बंद होने वाली थी। इन्हीं छुट्टियों के बीच ही गाय फोक्स नाइट भी पड़ रही थी जो पाँच नवंबर को आती है। गाय फोक्स नाइट या बोन फायर नाइट ब्रिटेन का एक ऐतिहासिक त्यौहार है जो पटाखों के शोर में मनाया जाता है। पाँच दिनों की छुट्टियाँ हों और निशा घर न जाए यह तो हो ही नहीं सकता। निशा के सब दोस्तों ने यह छुट्टियाँ साथ मिल कर बिताने की सोची।

"सुना है निशा कि लॉफ़्बरो युनिवर्सिटी में बोन फायर नाइट के दिन पटाखों के साथ और भी बहुत कुछ होता है। क्यों न हम सब मिल कर ये छुट्टियाँ तुम्हारे शहर लॉफ़्बरो में मनाएँ। इन आखिरी छुट्टियों की कुछ यादें भी साथ रहेंगी।"

"क्यों नहीं निशा चहक कर बोली... मम्मा के हाथ का बना हुआ गर्मा गर्म खाना भी खाएँगे और लॉफ़्बरो और आस पास के गाँवों में भी घूमेंगे।"

"मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि तुम में से ठीक तरह कोई भी नहीं जानता होगा कि गाय फोक्स नाइट क्यों मनाई जाती है..." पीछे से सायमन की आवाज आई।

"हाँ क्योंकि हम में से किसी ने भी ब्रिटेन का इतिहास नहीं पढ़ा..." निशा तुनक कर बोली।

"तो भई फिर यह जीनियस कब काम आएगा। हम केवल सुंदर शक्ल ही नहीं रखते अकल भी रखते हैं..." सायमन भी उसी अंदाज से बोला।

"अब तुम दोनों एक दूसरे की टाँग ही खींचते रहोगे या आगे भी बढ़ोगे।" किशन की आवाज आई।

"देखो मैंने थोड़े दिन पहले ही इस के विषय में पढ़ा है। दिमाग में सब कुछ ताजा तरीन है। यदि कोई थोड़े प्यार से पूछेगा तो शायद माबदौलत तुम सब के साथ इतिहास की कुछ बातें साझा कर लें...।" सायमन निशा की ओर देखते हुए बोला।

"अब तुम ज्यादा भाव मत खाओ वैसे मैं भी बहुत कुछ जानती हूँ इस विषय में। वह तो हम सब यूँ ही तुम्हें झाड़ पर चढ़ा देते हैं यह सोच कर कि तुम इतिहास के विद्यार्थी हो।"

"चलिए अगर आप सब इतना कह रहे हो तो बता देता हूँ..." उसने निशा की ओर देख कर आँख मारी।

देखो यह एक बहुत पुरानी 16वीं सदि की बात है... सायमन अपनी कमीज के कॉलर को सीधा करते हुए कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया और अध्यापकों के अंदाज में बताते हुआ बोला..."

यदि मेरी याददाश्त ठीक से काम कर रही है तो यह शायद सन् 1603 की बात है जब प्रशासन के जुल्मों से तंग आ कर 13 युवा लोगों ने हॉउस ऑफ पारलियामेंट को उड़ाने की साजिश रची। यह वो समय था जब पहली रानी एलिजबेथ की मृत्यु हुई थी। पहली रानी एलिजबेथ की मृत्यु के पश्चात कुँवर "जेम्स" को राजा धोषित कर दिया गया। उस समय इंग्लैंड की गद्दी को रोमन केथोलिक से बचाने का यही एक रास्ता सब को दिखाई दिया।

"वैसे कितनी अजीब सी बात है कि स्वयं को इतना सभ्य समझने वाले देश में भी धर्म के नाम पर झगड़े होते रहते हैं।"

"धर्म तो सदा से ही झगड़े का कारण रहा है अलका। ब्रिटेन में हमेशा से ही दो धर्म मानने वाले पाए जाते हैं केथोलिक और प्रोटेस्टियन। प्रोटेस्टियन की संख्या अधिक होने के कारण इनका दबदबा केथोलिक्स पर रहा है। नए राजा जेम्स की माँ केथोलिक परिवार से थी इस लिए केथोलिक धर्म के लोगों ने सोचा कि शायद यह राजा उनके साथ थोड़ी नर्मी से पेश आए। परंतु उनकी सोच से भिन्न यह राजा और अधिक जालिम सिद्ध हुआ। केथोलिक्स पर अत्याचार और भी बढ़ गए।

हमारे बड़े बुजुर्ग सही कह गए हैं कि जब जुल्मों की इंतहा होती है तब बागी उत्पन्न होते हैं। इन जुलमों से सदा के लिए छुटकारा पाने के लिए एक रॉबर्ट कैटस्वी नामक युवक ने सिर उठाया। वह एक योजना बनाने लगा जिसमें 13 और युवक भी शामिल हो गए। इन सब ने मिल कर योजना बनाई कि क्यों न पूरे हाउस ऑफ पार्लियामेंट को राजा जेम्स, प्रिंस ऑफ वेल्स के साथ साथ मुख्य नेताओं को भी उड़ा दिया जाए। बस फिर क्या था योजनानुसार गोला बारूद के ड्रम इकट्ठे करने शुरू कर दिए गए। यह सारा गोला बारूद वहीं पार्लियामेंट के सैलर में ही छुपाने की सोची।"

"मगर वहाँ के सैलर में ही क्यों। सैलर में आते जाते उन्हें कोई देख लेता तो पकड़े जाने का भी डर था..." किशन के मन में सवाल उठा।

"देखो किशन चोर चोरी का सामान यदि थानेदार के घर में छुपा दे तो सामान वहाँ सुरक्षित रहेगा। ऐसे ही सैलर की ओर किसी का ध्यान भी न जाता और बारूद भी सुरक्षित रहता।"

"इसका मतलब ये खुराफाती दिमाग हर जमाने में पाए गए हैं।"

"हाँ..." अब आगे बढ़ें, सायमन हाथ के इशारे से किशन को चुप करा कर बोला... "जहाँ कुछ लोग इस पार्लियामेंट को उड़ाने वाली बात से बहुत उत्सुक दिखाई दे रहे थे, वहीं उनका एक सदस्य मासूमों का खून बहाने के पक्ष में नहीं था। जब उसने दबी आवाज में अपना पक्ष सबके सामने रखा तो उसकी बात को कायरता बता कर बाकी के सदस्य उसका मजाक उड़ाने लगे। उसके दिल ने मासूमों के खून खराबे की गवाही न दी। उसने चुपचाप से राजा और उसके साथियों को सावधान करने के लिए एक पत्र लिख डाला। वह पत्र सीधा राजा जेम्स के हाथों लगा। इस प्रकार इतना बड़ा अनर्थ होने से पहले ही रॉबर्ट कैटस्वी व उसके साथियों को पकड़ कर उन्हें मृत्यु दंड देकर सारा गोला बारूद भी सैलर से बरामद कर लिया गया।

उस भले इनसान का क्या हुआ जिसने देश को इतने बड़े कांड से बचाया था सायमन...

गेहूँ के साथ तो घुन भी पिस जाता है ना किशन। मृत्यु दंड तो उस भले इनसान को भी सहना पड़ा जिसने इतने बड़े अनर्थ से देश को बचाया था। कभी बुराइयों का नाश करने के लिए अच्छाइयों को भी कुर्बानी देनी पड़ती है।

वह पाँच नवंबर का दिन था। पूरे देश ने उस दिन जश्न मनाया। तब से प्रत्येक वर्ष पाँच नवंबर को पटाखों के शोर में इस दिन को मनाया जाता है। जिसका नाम रखा गया "गाय फोक्स नाइट"। "गाय" यानी एक इनसान "फोक्स" का मतलब उसके साथी। पाँच नवंबर से दो-तीन दिन पहले ही बच्चे रॉबर्ट कैटस्वी का एक पुतला बना कर लोगों से चंदा इकट्ठा करते हैं। फिर शाम को इस पुतले को जला कर पटाखों द्वारा खुशी प्रकट की जाती है। जगह जगह आतिशबाजी के तमाशे होते हैं जिस की खुशी में हर आयु के लोग शामिल होते हैं।"

"मैं यह भी बता दूँ कि गाय फोक्स नाइट हमारे भारतीय त्यौहार दशहरे से बहुत मिलता जुलता है।"

"दशहरे में क्या होता है निशा?"

"दशहरा भारतीय त्यौहार दीवाली के करीब बीस दिन पहले आता है। जब पुरुषोतम राम और रावण के महायुद्ध में श्री राम द्वारा रावण का वध किया गया था। ऐसे ही प्रत्येक वर्ष भारतवासी भी रावण का पुतला बना कर जलाते हैं और खुशियाँ मनाते हैं। उस दिन भी जगह जगह आतिशबाजी के करतब दिखाए जाते हैं। त्यौहार किसी भी देश का क्यों न हो मतलब सब का एक ही है, बुराई पर अच्छाई की विजय। बुराई कितना भी सिर क्यों ना उठा ले, अंत में विजय हमेशा अच्छाई की ही होती है। हिंदी में मनाएँ या अंग्रेजी में त्यौहार कोई न कोई संदेश दे कर ही जाता है।"

"निशा ये अपने अहं त्यौहार दीवाली के विषय में भी कुछ बताओ कि यह क्यों मनाई जाती है।"

"यह एक लंबी कहानी है वापिसी में लेस्टर जाते हुए रास्ते में बताऊँगी।"

"चलो भई यह नाटक समाप्त हुआ। अब सब मुँह खोले देखते ही रहोगे या आगे का भी कुछ प्रोग्राम करें" सायमन हँसते हुए बोला।

"देखा, पढ़ाई का ये फायदा होता है..." निशा सायमन को चुटकी काट कर बोली।

"तभी तो कहता हूँ बच्चों समय बर्बाद मत करो। मेरी तरह कुछ बनना है तो... हाँ हाँ बोलो..." सब लोग अपनी बाँहें चढ़ा कर आगे बढ़े तो सायमन डरने का ढोंग करते हुए वहीं कुर्सी पर बैठ गया। एक ठहाका कमरे में गूँज उठा।

इस प्रकार लड़कों के साथ हँसी ठट्ठा करते व खुले आम घूमते देख कर निशा की माँ कुछ सोचने पर मजबूर हो गई। जमाने के साथ चलते हुए माता पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा तो देते हैं परंतु साथ ही उन्हें अपने पुराने ख्याल और संस्कारों में भी बाँध कर रखना चाहते हैं। जिस प्रकार हालात के अनुसार नई पीढ़ी बदलती है माता पिता नहीं बदल पाते। तभी यह जनरेशन गैप भी बढ़ता जाता हैं।

सरोज यह अच्छी तरह से जानती है कि बेटी आधुनिक ख्यालों की है। युवा खून है। घर से बाहर रहती है। माना कि उसके संस्कार उसे कोई गलत कदम नहीं उठाने देंगे

परंतु इस बदलते समय का कुछ तो प्रभाव उस पर भी होगा। सरोज यही सोच कर अपने दिल को तसल्ली देने लगी कि बस कुछ महीनों की ही तो बात है। जैसे ही डिग्री ले कर निशा घर आएगी अपनी ही बिरादरी में कोई अच्छा सा लड़का देख कर वह बेटी की शादी कर देगी।

यह एशियंस की हर सोच लड़की की शादी तक ही सीमित क्यों रह जाती है। क्या शादी ही हर मसले का हल होता है। आज के जमाने में लड़कियाँ इतनी सक्षम हो गई हैं कि कई बार शादी शब्द उनके शब्दकोश में ही नहीं मिलता।

माँ को किन्हीं ख्यालों में खोए देख कर निशा जल्दी से बोली... "मॉम आपको याद है न आज गाय फोक्स नाइट है। मेरे सारे दोस्त खास उसी को देखने तो लेस्टर से लॉफ़्बरो आए हैं। आज मैं इनको दिखा ही दूँ कि हमारा लाफ़्बरो नक्शे पर जरूर छोटा है किंतु कारनामें बहुत बड़े करता है।"

"हाँ, हाँ ठीक है ज्यादा इतराओ मत" पीछे से सायमन की आवाज आई।

"देखो बच्चों तुम फिर शुरू मत हो जाना," माँ ने मजा लेते हुए कहा, "हाँ तो निशा तुम क्या कह रही थी।"

"मॉम हम लोग रात को खाना नहीं खाएँगे बस चाय के साथ नाश्ते में थोड़े पोहे और थेपले बना देना इन सब को भी बहुत पसंद है। आप जब भी मेरे लिए कुछ भेजती हैं तो ये लोग सब खा जाते हैं।"

"अच्छा ठीक है मैं ज्यादा भेज दिया करूँगी..." माँ ने रसोई में जाते हुए कहा।

"आंटी थोड़े सी वो राउंड थिंग भी...।" सरोज जाते हुए फिर रुक गई और पलट कर निशा की ओर देख इशारे से पूछने लगी कि सायमन क्या बोल रहा है।

"माँ वो पकोड़े इन लोगों को बहुत पसंद हैं..." निशा थोड़ा झेंपते हुए बोली।

सब ने डट कर सरोज के हाथ का बना हुआ नाश्ता खाया।

"मॉम हमें रात को काफी देर हो सकती है आप हमारा इंतजार मत करिएगा मेरे पास घर की चाबी है। वैसे मॉम नानी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं। वह अपने कमरे में भी नहीं हैं। उनकी तबियत तो ठीक है न।"

"हाँ बेटा तुम्हारी नानी अपनी एक सहेली के पास दो तीन दिन के लिए गई हुई हैं। सहेली की तबियत कुछ ठीक नहीं है उसी की सहायता करने गई हैं। वैसे बा के लिए भी अच्छा है। आज कल वे काफी उदास दिखती हैं।"

"आप फिकर मत करिए मॉम बस चार-पाँच महीने की और बात है। परीक्षा समाप्त होते ही मैं नानी को भारत ले जाऊँगी। उनसे वादा है यह मेरा। अच्छा मॉम अब चलती हूँ। सब इंतजार कर रहे हैं।"

जहाँ आतिशबाजी होने वाली है वह मैदान अभी से खचाखच भरा हुआ मिला। हर कोई आगे खड़ा हो कर इस तमाशे का मजा लेना चाहता है। हालाँकि सुबह से ही मिन्न-

मिन्न बारिश हो रही है। मैदान में भी लोगों के चलने से काफी कीचड़ और छोटे छोटे गड्ढे बन गए हैं फिर भी लोग लंबे बूट पहने बच्चों को साथ लिए वहाँ पहुँचे हुए हैं। कुछ ने बच्चों को अपने कंधों पर उठाया हुआ है और कुछ मनचले नौजवानों ने अपनी गर्लफ्रेंड्स को। चारों ओर हँसी खुशी का माहौल है। इतनी सर्दी में भी लोग बड़े धैर्य से आतिशबाजी शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। आस पास के गाँवों से भी लोग बड़ी संख्या में बच्चों को लेकर यहाँ एकत्रित हैं।

आखिर वह घड़ी आ गई जब लॉफ़्बरो के लार्ड मेयर ने आकर सजे हुए आतिशबाजी के ढेर को चिनगारी दिखाई। चारों ओर शोर से भरी हुई तालियाँ गूँज उठीं। करीब एक घंटे तक आतिशबाजी का तमाशा चलता रहा। सावधानी के लिए मैदान के चारों ओर तारें लगाई गई थी जिससे कोई भी बच्चा उत्सुक हो सबकी नजरें बचा कर पटाखों के पास तक न पहुँच जाए। ब्रिटेन की यही बात तो सबसे अच्छी है कि किसी भी उत्सव का आयोजन शुरू करने से पहले सावधानी का पूरा ख्याल रखा जाता है।

आतिशबाजी का तमाशा समाप्त होते ही सारी भीड़ तितर-बितर होने लगी। बच्चों वालों ने घरों का रुख किया। कुछ लोग पब की ओर चल पड़े। पब ही एक ऐसा स्थान है जहाँ हर उत्सव के पश्चात लोग पहुँच जाते हैं या फिर नाइट क्लब हैं जहाँ निशा के साथी जाना चाहते हैं।

"निशा यहाँ का नाइट क्लब कैसा है?"

"बहुत अच्छा जैसे नाइट क्लब होते हैं..."

"तुम युनिवर्सिटी जाने से पहले कभी नाइट क्लब गई हो?" अलका की आवाज आई।

"हाँ वह मेरा 18वाँ जन्म दिन था। सब हम उम्र दोस्त नाइटक्लब जाने की जिद करने लगे। इससे पहले सभी ने नाइटक्लब के बारे में केवल सुना ही था अंदर से किसी ने भी नहीं देखा था। तब हम सब लोग पहली बार गए थे।"

"तुम्हारी मॉम ने तुम्हें जाने दिया।"

"हाँ यार... जाने तो दिया पर बड़ी मिन्नतों के बाद और वो भी केवल दो घंटे के लिए।"

नाइटक्लब बाहर से जितना शांत लग रहा रहा था अंदर पहुँचते ही चकाचौंध से सब की आँखें चौंधिया गईं। अंदर की दुनिया तो बिल्कुल ही भिन्न थी। सबसे पहली चीज जो उनके नथुनों से टकराई वो था सिगरेट का धुआँ और शराब की गंध। रंग बिरंगी बत्तियाँ जल बुझ रहीं थी। बहुत से युवा जोड़े बाहों में बाँहें डाले नाच रहे थे।

उन नाचते हुए लोगों में अचानक किसी पर नजर पड़ते ही निशा चौंक गई। यह विक्टोरिया स्ट्रीट के सबसे अधिक धार्मिक परिवार की बड़ी बेटी वीणा थी। इतने धार्मिक विचारों वाली वीणा यहाँ, और वो भी इस हाल में। इसके घर में तो बिना आरती किए कोई खाना नहीं खाता। आज पहली बार निशा ने वीणा को इस तरह की पोशाक में देखा था। पोशाक इतनी छोटी थी कि समझना मुश्किल हो रहा था कि पोशाक तन को ढकने की कोशिश कर रही है या तन पोशाक के सामने…

वीणा एक अंग्रेज युवक के बदन से चिपकी नाच रही थी। अब वह नाच रही थी या घर वालों को नचा रही यह तो वही जाने। उस अंग्रेज युवक ने वीणा को जोर से अपने बदन से कस कर उसके होठों का एक भरपूर चुंबन लिया जिसमें वीणा ने उसका पूरा साथ दिया। निशा यह सब देख कर शर्म से गढ़ी जा रही थी। उसकी मॉम तो सदैव वीणा और उसकी छोटी बहन जयश्री का उदाहरण दिया करती हैं कि कितनी संस्कारी और सभ्य लड़कियाँ हैं। काश इस समय मेरी मॉम और वीणा के घर वाले यहाँ होते इस संस्कारी लड़की के तमाशे देखने के लिए।

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