मुखौटा - 6 S Bhagyam Sharma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुखौटा - 6

मुखौटा

अध्याय 6

टिकट लेकर जब हम थिएटर में घुसे तो देखा पिक्चर शुरू होने में अभी देरी थी। बाहर, यहाँ-वहां युवक और युवतियां झुण्ड बनाकर खड़े बातों में मशगुल थे. किसी ने नलिनी को देखकर हाथ हिलाया।

"अभी आती हूं दीदी, तुम अंदर जाकर बैठो।" कहकर उसने एक टिकट मुझे पकड़ा कर ये गई वो गई ।

मैं थिएटर के अंदर चली गई। अपनी सीट ढूंढ कर बैठते समय मेरे पैर ठिठक गए । मेरी अगली सीट पर से कृष्णन की धीमी आवाज़ मेरे कानों से टकराई, "हेलो मालिनी" ! मेरा शरीर जैसे लोहा बनकर कस गया।

खून मेरे चेहरे के रोम-रोम तक दौड़ आया जो अँधेरे में मैंने ही महसूस किया। मेरी धड़कन तेज हो गई । ‘क्या है यह सब ? कहीं मेरे साथ कोई साजिश तो नहीं कर रहा ?’ उस हल्की रोशनी में भी मेरी आंखें उसके पास बैठी हुई उसकी पत्नी को ढूंढ़ी रही थी । उसके पास एक आदमी ही बैठा था।

कृष्णन का चेहरा भी सफेद हो गया था मुझे देख कर और पूछते हुए उसके चेहरे पर एक संकोच की लहर दौड़ गई थी । मेरी आशंकाएं धूमिल हो गईं ।

'ओ हलो !" मैंने अपने-आपको संभालते हुए मुस्कुराई, “'कब आए?"

"आए एक हफ्ता हो गया, बैठो ना", थिएटर के मालिक जैसे बोला। "अकेली आई हो ?"

"नहीं नलिनी भी आई है।'

उसने पास बैठे अपने दोस्त से मेरा परिचय कराया।

"मीट माय फ्रेंड मालिनी। एंड दिस इज माय बॉस इन न्यू जर्सी।"

उसका इस तरीके से मेरा परिचय देने पर मुझे एक जलन की अनुभूति हुई।

मेरे बैठते ही "सॉरी मालिनी" बोला।

"किसलिए?"

"मैंने आते ही तुम्हें इन्फॉर्म नहीं किया।"

मैं जानबूझकर हंसी। अरे, ‘अल्प बुद्धि' नारायणी बड़ी मां के जैसी हंसी ।

"उससे क्या ? मुझसे बढ़कर और काम तुम्हारे लिए नहीं है क्या?"

वह परेशान हो इधर-उधर देखने लगा।

"तुम्हारा नंबर मेरे पास नहीं था।" धीमी आवाज में बोला।

'प्लीज कृष्णन ! मैंने कोई सफाई तो मांगी नहीं । तुम बताओ कैसे हो ? तुम्हारी पत्नी कैसी है?"

"फाइन !", उसकी उदिग्नता कम हो गई थी । मुझे जितना याद था पहले से अब ज्यादा स्मार्ट है । बातों में ज्यादा पॉलिश था।

"सिनेमा के लिए नहीं आई ?"

"उसको पिक्चर देखने में इंटरेस्ट नहीं है।", इसके आगे क्या बात करूं मेरी समझ में नहीं आया।

अब उसकी दुनिया दूसरी है, अब तक यह ख़याल आ गया था मुझे।

"तुम कैसी हो मालिनी ?" इसका मतलब यह पहले ही से सोची समझी साजिशें नहीं हैं । मेरा हाथ को उसने पहले के ख्याल में पकड़ा अथवा अमेरिकन व्यवहार के कारण मुझे पता नहीं। दिल में हल्का धक्का-सा जरुर लगा।

अचानक बिना किसी वजह के नानी याद आई। ‘किसी को भी छू कर बात करना गलत आदत है।‘ वह कहती। ‘स्पर्श में बहुत शक्ति होती है। आचार-विचार, स्पर्श, अस्पृश्य यह सब बड़े लोगों ने इसीलिए तो रखा है!’, नानी को फ्रायड के बारे में जानने की जरूरत नहीं। उनके बुजुर्गों ने पीढ़ियों से जो कहा है वह फ्रायड को भी हरा देगा । मैंने धीरे से अपने हाथ को खींच लिया।

"मैं अच्छी हूं, देखो"। कहकर में हंसी। "तुमने मुझे देखा उससे उम्र ज्यादा हो गई बस इतना ही...."

"उम्र हो गई ?"आंखें फाड़ कर बोला। "उम्र कम हो गई ऐसा लग रहा !"

"मस्का मत लगा ",मैंने उससे अपनी निगाहों को हटाते हुए कहा । "तीन साल के तीन कैलेंडरों को रख रखा है। पहले की नायिकाएं दीवार पर नाखून से दिनों के हिसाब से निशान बना कर रखती थी। उसके बदले मैंने कैलेंडर को गोले बनाकर रखा है......"

कृष्णन ने बहुत धीरे से मेरे कान के पास बोला, "तुम्हें मुझ पर कितना गुस्सा है मुझे मालूम है।"

"मुझे गुस्सा बिल्कुल नहीं है कृष्णन।"

"मैं विश्वास नहीं करता !"

"तुम विश्वास नहीं करते तो वह मेरी समस्या नहीं है ।"

"दुख ?"

"प्लीज कृष्णन। मेरी बात करने की इच्छा नहीं है।"

"सॉरी। मैंने क्यों नहीं बताया ! "

हॉल में पूर्णतया अँधेरा हो गया और इश्तेहार शुरू हो गए । फिल्म शुरू होते समय टॉर्च की रोशनी में नलिनी जल्दी-जल्दी दो पॉपकॉर्न के पैकेट लेकर आकर बैठी।

कृष्णन ने आगे को झुककर 'हाय नलिनी' बोला।

नलिनी की घबराहट उसके चेहरे पर दिखाई दी। जवाबी 'हाय' कहकर उसने संदेह से मुझे देखा। मैंने सिर हिलाकर होंठ बिचका दिए ।

यह देख नलिनी व्यंग से हंसी। "सो प्रकृति खेल रही है, देखा ? नहीं तो इतनी भीड़ में वह आया है हमें पता नहीं चलता।“

“उससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता।" मैंने तपाक से कहा ।

फिल्म शुरू हो गई।

कृष्णन झुक कर मेरे सामने से अपने हाथ को बढ़ाकर नलिनी के हाथ को साधारण ढंग से छूकर बोला, "फिर बात करेंगे।"

नलिनी चेहरे को गंभीर बनाकर पीछे की तरफ सहारा लेकर बैठ गई। थोड़ी देर के मौन के बाद फिर मुझसे धीरे से बोली:

"तुमसे इसके पास कैसे बैठा जा रहा है ?"

मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उसका प्रश्न मुझे किसी छोटे बच्चे के प्रश्न जैसा लगा। मुझे आखिर किस से डर कर भागना है ? उलटे कृष्णन को ही संकोच होना चाहिए। शुरू में मेरा जो झुकाव था वह अब कम हो गया है, ऐसा लगा मुझे ।

यही बात तो आपत्तिजनक है। मुझे ऐसे छूएगा ? मुझे तनाव महसूस हुआ । पहले छूने की बात अलग थी, एक खेल था । एक आनंद की अनुभूति। एक प्रेम का संकेत। अब उसका स्पर्श मुझे अपमानजनक लगता है। मेरी पवित्रता खत्म हो जाएगी ऐसा एक रोष उत्पन्न हुआ। मैं पवित्र हूं बोलने से ये हंसेगा। मुझे उसके बारे में कोई परवाह नहीं।

पर्दे पर कौन सी कहानी चल रही है मुझे समझ में नहीं आ रही । मेरे मन में एक अलग ही उधेड़बुन चल रही है। मैंने कनखियों से देखा, कृष्णन का चेहरा मेरे पास ही दिखाई दे रहा था।

"कल तुम फ्री हो क्या ?" वह बोला।

"फ्री हूं, क्यों ?"

"मैं घर आऊंगा।"

'नहीं' बोलते-बोलते शब्द को निगल कर "वाइफ को भी लेकर आना। " जवाब में कहा ।

"ओ .के." वह बोला मगर उसकी निगाहें पर्दे पर थीं । इस बात से जाने मैंने क्यूँ अंदाजा लगाया कि वह नहीं लेकर आएगा। मेरे मन में एक उत्सुकता जगी, इसकी पत्नी किस तरह की होगी । मैंने पर्दे पर अपना ध्यान लगाने की कोशिश की। उसकी जांघ मेरी जांघ के ऊपर थोड़ी सी छूती महसूस किया मैंने । मैं जल्दी से सरक गई। इसके अंदर जो अहंकार है वह इसकी परवरिश की बदौलत है। कहीं जाने की जगह न होने के कारण आधा तो लड़कियों के कारण है बाकी इसने स्वयं बटोर लिया। तभी अच्छी बात यह हुई कि इंटरवल हो गया । अपनी चेयर से जल्दी से उठते हुए मैंने नलिनी से कहा, "टॉयलेट चलें" । वह तुरंत उठ गई। मैंने कृष्णन की तरफ बिल्कुल नहीं देखा।

बाहर आते ही "तुम्हें पिक्चर देखना है ?" नलिनी से बोली।

"नहीं देखना।" मुस्कुराकर जवाब दिया उसने । दोनों जने मौन ही मिलन रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए कूपन लेकर बैठ गए। मैं अपने अंदर डूबी सी किन्हीं योजनाओं में फंसी थी। अचानक लगा जैसे नलिनी मुझसे कुछ कह रही है, "उसे तुम्हें भूलना चाहिए।"

मैं संभल कर हंसी।

"भूल तो गई, मगर जानबूझ कर अचानक इतना पास आए तो आघात नहीं होगा क्या ?"

"होगा।" बड़ी आत्म्तियता से नलिनी ने कहा । "तभी तो कहती हूँ कि वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि उसके बारे में ज्यादा सोचो । बिजनेस पार्टनर धोखा देकर जाए तो कुछ दिनों तक सदमा रहेगा। फिर दूसरे पार्टनर को लेकर बिजनेस शुरू कर देना चाहिए।"

"तुम कहना चाह रही हो कि सब लेन-देन का हिसाब है ? "

"ऐसा ही है। लड़कियों के विषय में यही तो हो रहा है अपने समाज में ।" वह आवेश में थी । "जया मौसी और कप्पू मौसी ने जो अपमान सहा उसको मैं समझ सकती हूं। मगर तुम्हारे साथ ऐसा क्यों हुआ ? आदमी होने के गरुर के कारण ही कृष्णन अपने स्वयं के लाभ का सोच तुम्हें झटक के चला गया ?"

"विश्वासघात कोई भी कर सकता है नलिनी।"

"राइट ! फिर उसके बारे में ही मत सोचती रह । नए-नए विश्वासों को उत्पन्न करना है। नहीं तो दुनिया ठहर जाएगी ।"

मुझे हंसी आई। मेरी छोटी लाडली बहन है यह !

"मुझे स्वयं पर विश्वास है क्योंकि मेरे भविष्य की सोचने की स्वतंत्रता मेरे पास है।"

"गुड ! बेस्ट ऑफ लक !" कहकर नलिनी फीकी हंसी हंसी ।

लेकिन वह जया मौसी और कप्पू मौसी के साथ मेरी क्या तुलना कर रही है, आश्चर्य की बात है ! वे दोनों अम्मा की बहने थीं। मुझे लगता था जया मासी हमेशा एक हीन भावना में ही रहती थी । वह एस.एस.एल.सी. में फेल हो गई थी। उसके बाद वह आगे नहीं पढ़ी। इसी वजह से हीन भावना हो सकती है। थोड़ी ठिगनी, थोड़ी मोटी थी पर वैसे सुंदर लगती थी। उसे अपने पर बहुत घमंड था। बहुत बढ़िया खाना बनाती। उसे देखने के लिए बहुत से लड़के आए। नाश्ता-वाश्ता खा-पीकर कहते, “हम जाकर फिर बताएंगे.” कहकर चले जाते, फिर अपने घर/शहर से खत लिख देते, ‘हमें रिश्ता पसंद नहीं’। हमारे नानाजी शुरू हो जाते कि ‘तुमने इस रंग की साड़ी क्यों पहनी, तुम्हें उस रंग की साड़ी पहननी चाहिए। तुमने काजल बहुत ज्यादा लगाया।‘ इस तरह के बातें वर्णन कर करके कहते। बेचारी मौसी कभी मुंह नहीं खोलती। कभी-कभी कमरे के कोने में जाकर खड़ी होकर आंसू बहाती। हमें लगता यह नाना जी की बातें सुनकर ही रो रही है। हर एक के सामने दिखावटी वस्तु जैसे खड़ा कर देते फिर हर बार वह आये उस नए लड़के को अपना होने वाला पति मानती, फिर उसे यह अपमान सहना पड़ता..... एक अदद पति पाने के लिए और कोई उपाय था भी नहीं । पता नहीं किसके पुण्य प्रताप से, आखिरकार एक अच्छा पति उसे मिल ही गया । और कप्पू मासी की तो बात ही कुछ अलग है.....

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