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मुखौटा - 1

मुखौटा

तमिल मूल लेखिका वासंती का परिचय

26.7.1941 मैसूर में जन्मी वासंती शादी हो कर पति के साथ भारत के विभिन्न राज्यों में रही हुई है। इनकी उपन्यास 'आकाश के मकान'पर यूनेस्को के सरकार ने पुरस्कृत किया है। इसके अलावा इस उपन्यास का अंग्रेजी, चेक, जर्मन, हिंदी, आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है। पंजाब साहित्य अकादमी ने और उत्तर प्रदेश के साहित्य अकादमी ने इन्हें सम्मानित किया है। विभिन्न देशों में आपको भारत के प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है। इन्होंने डेढ़ सौ से ज्यादा उपन्यास और कहानी संग्रह तमिल और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखे हैं। अभी भी निरंतर लिख रही हैं।

मुखौटा

यह उपन्यास प्रसिद्ध लेखिका वासंती की लिखी हुई है। इस उपन्यास में यह बताया गया है कि हम सब अपने चेहरों को वैसे का वैसा दूसरों के सामने नहीं दिखाते पर उसके ऊपर एक मुखौटा लाल लेते हैं। कैसे मुखौटा कौन सा मुखौटा कब डालते हैं? यह सब जानने के लिए आपको तो यह उपन्यास पढ़कर मालूम करना पड़ेगा। यह पुरानी पीढ़ी बीच की पीढ़ी और आधुनिक लड़कियों और औरतों में परिवर्तन को दिखाया गया है।

एस. भाग्यम शर्मा

संक्षिप्त जीवन परिचय

एस.भाग्यम शर्मा एम.ए अर्थशास्त्र.बी.एड. 28 वर्ष तक शिक्षण कार्य किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानियां प्रकाशित। तमिल कहानियों का हिन्दी में अनुवाद एवं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, जैसे नवनीत, सरिता, कथा-देश, राष्ट्रधर्म, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, मधुमती, सहित्य अमृत, ककसाड, राज. शिक्षा -विभाग की पत्रिका आदि। बाल-साहित्य लेखन, विभिन्न बाल-पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं व कहानियां प्रकाशित, जैसे नंदन, बाल भास्कर, बाल हंस, छोटू-मोटू आदि। वेणु, महाश्वेता देवी, साहित्य-गौरव, हिन्दी भाषा विभूषण, स्वयं सिद्धा आदि विभिन्न सम्मान मिला। 2017 वुमन ऑफ 2017 का जोनल अवार्ड मिला । राज.की मुख्य मंत्री वसुंधरा जी से यह सम्मान प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। कई कहानियां प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत भी हुई।

1 नीम का पेड़ कहानी संग्रह 2 प्रतिनिधि दक्षिण की कहानियां 3 बाल कथाएं 4 समकालीन तमिल प्रतिनिधि कहानियां 5 झूला 6 राजाजी की कथाएं 7 एक बेटी का पत्र कहानी संग्रह 8 श्रेष्ठ तमिल कहानियाँ 9 आर. चूडामणी का उपन्यास दीप शिखा का अनूवाद किया और इसका बोधि प्रकाशन से 2019 में प्रकाशित |

एस. भाग्यम शर्मा बी-41 सेठी कालोनी जयपुर 302004 मो 9351646385

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मुखौटा

अध्याय 1

मुझे अक्सर एक सपना आता है। सच जैसा सपना। अवचेतन से आता है तो निश्चित ही कोई शर्म की बात नहीं है, मैं स्वयं को तर्क देती हूँ । मेरा उससे कोई संबंध नहीं है, ऐसा मैं उठते ही खुद ही से घबरा कर बोलती हूं। मुझसे बदला लेने के लिए आया हुआ यह सपना नहीं एक शैतान है !

पर वह है बड़ा मजेदार । सपना टूटने पर मैं नशे में डूबी-डूबी सी हवाओं में तैरती हुई, ऊपर ...और ऊपर...अन्तरिक्ष में कहीं ग्रहों के चक्कर लगा रही होती हूँ । मुझे लगता है कि मैं कृष्णन के आगोश में हूं। मेरे शरीर में नई ऊष्मा भर जाती है, होंठ कुछ मुलायम हो जाते हैं, छाती, नाभि आदि में एक कम्पन होती है। मेरी सांस फूलने लगती है। सारा शरीर पिघलने लगता है। प्रतीत होता है जैसे एक महत्वपूर्ण कामशक्ति मेरे भीतर समा गई है । पर वश की सीमा तक । चराचर को हिला कर रख देने वाली है वह शक्ति ।

आज मैं एक ऐसे ही सपने से जागती हूं। कृष्णन के शरीर ने जो गर्मी मुझे दी, उससे मेरा शरीर अभी भी तप रहा है । उसके होंठों से जो छू गए थे, मैं मेरे उन गालों को छू कर देखती हूं । यह क्या ? गाल पर रेत ही रेत रगड़ खा रहे हैं। जैसे कि हम समुद्र के किनारे बैठे हुए थे । मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी । मेज, कुर्सी सभी के ऊपर पतली सी रेत की परत जमी हुई दिखी ।

कल रात आंधी चली होगी। मुझे होश भी नहीं कब तो मैं सोई थी। देखा तो सब खिड़कियां बंद थी। नलिनी ने बंद किया होगा। पहले मुझे भी उसी की तरह रात 2:00 बजे तक पढ़ने की आदत थी।

"यह क्या पढ़ाई है रे पूरी रात लाइट जला कर ?" रात को बीच-बीच में बाथरूम जाने को उठी नानी झांक कर देखती तो पूछती।

"यह बस हो गया अम्मां " मैं बिना मुंडी ऊपर किये जवाब देती। नानी, नानी जैसे नहीं थी। उनकी उम्र छोटी थी इसीलिए उन्हें नानी न कहकर अम्मा ही बुलाते थे हम । मेरी मां की शादी के समय नानी की उम्र 35 साल थी। मेरे पैदा होने के 4 साल बाद मामा पैदा हुआ। नानी के प्रसव के समय मदद करने के लिए मेरी अम्मा अपनी सास से बहुत अनुनय विनय कर अनुमति लेकर मैके जा पाई थी ।

"समधिन ने मुझे नीचा दिखा कर इतनी गालियां दी कि मुझे चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए था । पता नहीं मैं कैसे नहीं मरी !” वह बात याद आते ही मेरी नानी ऐसा बोलती।

"ऐसी परिस्थिति में लाकर मुझे खड़ा कर दिया इस आदमी ने । सोच कर मुझे बहुत गुस्सा आता था।" नानी बोलती।

अब सोचती हूं तो लगता है क्या नानी के अनिच्छा से उनके गर्भ रहा होगा ? जरुर गर्भ न ठहरने के उपाय नहीं जानने के कारण गर्भ ठहर गया होगा।

सिर्फ वंश के बढ़ने के लिए ही दोनों के शरीर का मिलन हो, ऐसी ही कोई शर्त पति-पत्नी ने अपनाया होता तो सुबह उठकर जल्दी से कहीं दौड़ने की जरूरत नहीं होती। मेरी पड़दादी को भूत-ऊत ने पकड़ लिया था। वह किस तरह का भूत था वह तो मुझे बाद में पता चला। पति से उनकी सास उन्हें मिलने नहीं देती थी। बहुत परेशान करती थीं । भूत पकड़ने की, हिस्टीरिया होने वाली लड़कियों की कई कहानियां मेरी नानी सुनाया करती थी। परंतु भूत ने उन्हें कैसे पकड़ा नानी को सब पता होगा.....मुझे हंसी आ रही है. लगता है, मेरे मरने तक नानी की याद मेरे चारों तरफ बनी रहेगी. उनका 'जीन' मेरे अंदर है। मेरे जींस मेरी पोती उठाएगी। कड़ी दर कड़ी यह एक जंजीर है। हजारों वर्षों के पहले की लड़कियों की तहजीब अभी तक मुझ में है। उनके दुख, खुशी, बल, कमजोरी मुझे और मेरे वंश को मिलाती है।

मैंने उठकर खिड़की खोली । ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी। 'आंधी' के कारण गर्मी कम हो गई थी। आंधी के आने के बाद के बदले हालात देखने से पता चल रहा था।

"क्या समय हुआ दीदी ?" नलिनी ने पूछा।

मैं बिना मुड़े ही "पांच" बोली।

"क्यों इतनी जल्दी उठती हो ? यूनिवर्सिटी की अभी तो छुट्टी ही है ?"

"नींद खुल गई, क्या करूं ?... रात में आंधी आई थी क्या ?"

"आराम से पूछ, कुंभकरण जैसी सो रही थी !"

उसकी तरफ मुड़ कर मैं मुस्कुराई। "डस्टिंग की ड्यूटी अब मेरी है, ओके !"

"निश्चय ही मेरी नहीं है।" कहकर नलिनी ने आंखें बंद कर ली। "दीदी बाहर जाओगी क्या ?"

"हां अमेरिका के सेंट्रल लाइब्रेरी जा रही हूं। शाम को ही आऊंगी। तुम्हारे लिए खाना बना कर जाऊंगी।"

"खाने की जरूरत नहीं। ब्रेड बहुत है एक अकेली के लिए।"

"शादी हो जाएगी तो क्या करेगी नलिनी ?"

"जिसे खाना बनाना आता हो देखकर ऐसे पुरुष से शादी करूंगी। तुमको भी खाना बनाने वाला चाहिए क्या ?"

"नहीं !”

“अब बच्चे पैदा करने के लिए तो उसे नहीं बोल सकते न !", नलिनी हंसने लगी।

"तुम्हें याद है क्या दीदी ? अपनी बड़ी मां (मां की बड़ी बहन) बोलती थी ना, - लड़के की पोस्टिंग आगरा हो गई ; खाने के लिए परेशान हो रहा है ! आते ही उसकी शादी करनी है। - गॉड ! एक के लिए खाना बनाने के लिए, उसके साथ सोने के लिए ही सिर्फ शादी याद आती है ? कितनी ओछी बात है !"

"अब विवाद की बात मत शुरू कर दे । सोना है तो सो। मैं अपना काम देखती हूं।"

"खाना मत बनाना।"

"ओ .के !" कह कर मैं दांत साफ करने चली गई।

बड़ी मां का लड़का बालू की पत्नी मल्लिका को, मुझे नहीं लगता, इस तरह की असमंजस का सामना करना पड़ा होगा । मुझे नहीं लगता वह ऐसे सोचती भी होगी कि पति के लिए खाना बनाना, उसके साथ सोना ही कर्तव्य है । खुश होकर खाना बनाती है । स्वयं स्वाद लेकर उसे खिलाती है । उसके साथ सोने में भी खुशी का अनुभव करती है, ऐसा ही मैं सोचती हूं। हमेशा उसके चारों तरफ सेंट की खुशबू, पावडर की महक उड़ती रहती है। उसका बालू को देखना प्रेम ही दिखता है। शरीर की भूख सिर्फ पुरुष को ही होती है क्या ?

लड़कियों के चारों ओर हमेशा एक पर्दा टंगा रहता है। इस पर्दे को हमेशा के लिए फाड़ कर फेंक देना चाहिए, ऐसा सोचते हुए मुझमें गुस्से का भाव है। अप्पा ने जो कहानी कही थी मुझे याद आ रही है। राजस्थान में जब जंगल में शौच के लिए औरतें बैठी होती है तब गलती से कोई पुरुष उधर चला आए तो अपने लंबे चौड़े घाघरे को उठाकर अपना चेहरा ढक लेती थी। यही तो सभी औरतें किसी न किसी रूप में हमेशा ही करती हैं, ऐसा मुझे बार-बार लगता है। इन सब बातों की आदमियों को जरूरत होती है। मेरे पिताजी की आंखों में इस कहानी के कहते समय जो बिजली सी चमकती हुई खुशी दिखाई देती थी, अभी भी मुझे याद है।

मुहावरों का अर्थ पूछकर मैंने नई कॉफी डिगाशन बनाया। दूध की बोतल लेकर आती कामवाली बाई, लक्ष्मी, बाहर पड़े अखबार भी ले आई।

मैं पेपर पढ़ते हुए दूध को गर्म करने चढ़ा दिया. कॉफी बनाकर लक्ष्मी को कप पकड़ा, मैं भी पीने बैठ गई ।

"सब्जी काटना है क्या ?" लक्ष्मी ने पूछा।

"नहीं । खाना नहीं बनाने वाले हैं। ब्रेड रखी है।"

"घर में आदमी नहीं है तो ऐसा ही होता है।" लक्ष्मी बोली।

मेरी हंसी छूट गई ।

"क्यों, आदमी के लिए ही सब लोग खाना बनाते हैं ?"

"तरीके से तभी तो बनाने की सोचते हैं। मेरे पति को रोजाना नया-नया ही चाहिए। नहीं तो थाली उठाकर मुझ पर ही फेंक देगा। दस दिन के लिए गांव की तरफ गया था देखो, मैं अकेली कभी बनाती तो कभी नहीं। कभी-कभी दो इडली लेकर खा लेती और सो जाती।

"तेरे पति के जीभ तूने ही इतनी लंबी की है लक्ष्मी ! "

"अरे, मुझे लंबी करने की क्या जरूरत पड़ी थी ? आदमियों की जीभ जन्म से लंबी होती है।"

मैं जोर से हंस पड़ी।

"यह सब बेकार के काम नहीं करना चाहिए इसीलिए तो आपने शादी नहीं की, है न दीदी ?"

मेरी हंसी एकाएक रुक गई । "पहले घर को अच्छी तरह से साफ करो, बहुत मिट्टी है।" मैंने बात बदल दिया था । "मैं डस्टिंग कर देती हूं।" कहकर मैं उसके साथ हो ली।

"अम्मा यदि जिंदा होती तो ऐसा छोड़ देती ?"

लक्ष्मी के प्रश्न को मैंने सुना-अनसुना कर दिया। मां के मौत तो मेरे लिए भी अनापेक्षित थी। आराम से बैठी टी.वी देख रही थी। अचानक बोली कि छाती में दर्द हो रहा है । हम उठकर ‘क्या हुआ’ पूछते, इसके पहले ही उनकी साँसें थम गई।

हार्ट अटैक आया था । अचानक उठा वह दर्द और भय उनकी खुली पलकों में कहीं ठहर गया था. हमें इस आघात से मुक्त होने में बहुत समय लगा। मां की आँखें बंद करने के बाद कई दिनों तक मेरे अंदर स्वयं के दोषी होने की भावना उठती रही । पर्दा ही क्या एक मुखौटा ही मेरे लिए जरूरतहै, मैंने सोचा। लोग क्या कहेंगे इस बात से डरती थी मैं ।

लक्ष्मी के जाने के बाद मैं नहा कर तैयार होकर बाहर निकलने लगी तो नलिनी उठ गई। उसने पूछा "क्या कह रही है लक्ष्मी ?"

"अपने घर के ब्रेड से वह बोर हो गई है। शादी कर लो फिर खाना बनाने का तुम्हारा मन करेगा !"

नलिनी मुझे देखकर हंसी। फिर जल्दी से बोली "तुम्हें एक दोस्त की जरूरत है दीदी। शादी करना जरूरी नहीं है।"

मेरे अंदर एक संकोच फैल गया। ये खेत के किनारे पर बैठकर प्रेम के गीत गाने जैसी स्थिति है।

"तेरी इस योजना के लिए धन्यवाद !" कहते हुए मैं रवाना हो गई। मेरी दादी को जिस भूतनी ने पकड़ा शायद वह मुझे भी पकड़ लेगा, यही सोच कर डर रही है क्या ?

"पुरानी बातों को पकड़े मत बैठो मालिनी । " मेरे साथ यूनिवर्सिटी में काम करने वाली सुभद्रा रोजाना ही मुझे देख कर नाराज होती बोलती है। "कोई नया दोस्त बनाओ।"

"मुझे तो कोई भी नहीं दिखाई दे रहा है।"

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