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मुखौटा - 2

मुखौटा

अध्याय 2

"मैं किसी से तुम्हारी जान पहचान कराती हूं।"

"अभी मैं शांति से हूं । मेरी शांति तुम्हें पसंद नहीं क्या सुभद्रा ? जरा बताना तो मेरे चेहरे पर हंसी नहीं है क्या ?"

"यह तुम्हारा अपना पहना हुआ मुखौटा है। अपने को धोखा देने के लिए हंसती हो।"

अब तो यह याद करके भी अचंभा होता है। मेरी पूर्वजों के जींस से यह हंसी मुझे मिली हुई है।

सुंदरी बुआ की हंसी। सुंदरी बुआ की आयु अम्मा के बराबर ही होगी । सुंदर, अति सुंदर ! साथ ही उतना ही मीठा गाने वाली महिला। शादियों में नाचते हुए गाना होता है, तो सब उसको ही बुलाते थे। शादी के समय विभिन्न रीति-रिवाजों के वीडियो बनाने के लिए गाना होना ही चाहिए। वह गाती थी । अतः हर शादी वाले घर में उसकी पूछ होती थी और उसको सप्रेम बुलाते थे। सभी आयोजनों में तैयार होकर सुंदरी बुआ सबसे पहले, सबसे आगे खड़ी रहती। ठहाका मारकर हंसती। जहां पुरुष होते वहां पर बड़े उत्साह के साथ अपनी योग्यता का प्रदर्शन करती थी। बड़े साहस के साथ सब से बात करती। अपने पल्ले को सीने पर से जानबूझकर थोड़ा सरका देती। उसकी सुडौल छाती लड़कियां भी मुंह फाड़ कर देखती रह जातीं । वह जहाँ होती सबकी निगाह वहीँ होती। विशेष अवसरों पर लड़कियां ख़ास तवज्जों पाने को उसके पीछे-पीछे भागती, चिपके-चिपके रहतीं।

"कितनी बेशर्म औरत है ! अपने आदमी से इतनी बुरी तरह तो पिटती है। फिर भी कोई बुलाए तो तुरंत हंसते हुए आ जाती है!"

"यह औरत इस तरह नाचती फिरती है तो उसका आदमी क्यों नहीं पीटेगा ?"

क्यों ? यह सब किस लिए ? इसके बारे में सोचने-समझने के लिए किसी के पास धैर्य नहीं है। बुआ और उसके पति में कोई भी तो समानता नहीं थी, इस बात को किसी ने कभी सोचा ही नहीं। वे बड़े ही भद्दे थे. उनमें सुंदरता का एक लक्षण भी नहीं था। इसके अलावा वे एक नंबर के बेवकूफ थे । संदेह करने की बड़ी बिमारी थी उन्हें । संगीत में कोई रुचि नहीं थी उनकी । यह जानते हुए भी कि अगर वह नाचने-गाने बाहर जाएगी तो पति उसे बुरी तरह मारेगा फिर भी सुंदरी बुआ कैसे चली जाती है यह आश्चर्य की बात है। ऊपर से पुरुषों के सामने सीने के पल्ले को थोड़ा सा खिसका देने वाली वक्रबुद्धि से तृप्त होने वाली के बारे में आज सोच कर आश्चर्य होता है। उसका पति जब मरणासन्न अवस्था में था मैं उन्हें देखने गई थी । बुआ एकदम से कमजोर हो गई थी। मुझसे लिपटकर वे बहुत रोई थी ।

"यह फूल, और यह बिंदी सब इसी के कारण ही तो ! इसी के रहते तो, मालिनी, मैं मनुष्य जैसे गौरव से घूम रही हूं ! यह चले जाएं तो मेरे लिए तो सब कुछ चला जाएगा।"

सेंट्रल के अंदर घुसते ही मैं आश्चर्य से भर गई । रोहिणी ऐसे खड़ी हुई थी जैसे किसी का इंतजार कर रही हो । हमेशा की तरह बड़े लगन से किए हुए श्रृंगार से सुशोभित थी। साफ-सुथरा चेहरा । यह मेरे साथ पैदा हुई है सोच कर मुझे गर्व हो रहा था। हम दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए। उसके हाथ को उत्सुकता से पकड़ कर मैंने पूछा "तुम भी इसकी मेंबर हो ?"

"नहीं, किसी सहेली ने बुलाया है । वह दिख नहीं रही । चलो तब तक कॉफी पीएं।", वह आत्मीयता से बोली .

"हां" कहकर उसके कंधे को पकड़ती हुई मैं चलने लगी। "दुरैई कैसा है ?"

"फाइन !" क्षण भर को मुझे देखकर वह पूछी, "यूनिवर्सिटी कब खुल रहा है ?"

"अगले महीने 10 तारीख को।"

"घर में बैठे-बैठे बोर नहीं होती ?"

"नहीं तो ! पढ़ना, लिखना... कब समय कट जाता है पता ही नहीं चलता। मालिनी अभी घर पर है।"

रेस्टोरेंट में कूपन लेकर बैठे तो रोहिणी बताने लगी, "मुझे भी शादी नहीं करना चाहिए थी, मैं भी फंस गई।"

मैं हंसी।

"तुमने अपनी मर्जी से ही तो शादी की थी रोहिणी। दुरैई बहुत अच्छा आदमी है। तुम्हें क्या कमी है ? वह तुम्हारी पूजा करता है।"

"वही तो, बहुत बोर है ! जीवन बहुत ही डल हो गया। उसे इंटरेस्टिंग ढंग से बात करना नहीं आता। नपुंसक है वह !... इसीलिए मुझे बच्चा भी नहीं हुआ।"

मुझे लगा जैसे किसी ने आसमान से नीचे फेंक दिया । उसकी बातों से नहीं। उसकी आंखों से फटाफट बहते आंसुओं की धारा देख कर।

कॉफी की ट्रे आता देख उसने स्वयं को संभालते हुए बड़े नाजुकता के साथ आंखों को पोंछ लिया। अपने झूठे चेहरे को ठीक कर लिया जैसे "सॉरी" कह रही हो. बोली, "मेरा दुख तुम्हारे और नलिनी के समझ में नहीं आएगा। लड़कियों की स्वतंत्रता के बारे में सिर्फ लेक्चर देना ही तुम लोगों को आता है। मेरे विषय की बात आती है तो तुम दुरैई के पक्ष में ही बोलोगी।”

मैंने अपनी हंसी को नियंत्रित किया.

"तुम्हारी स्वतंत्रता पर अभी क्या विपत्ति आ गई जो तुम ऐसा सोच रही हो?" मैं कॉफ़ी बनाने लगी थी .

"तुम नहीं समझोगी मालिनी !", उसने बड़ी तीव्रता से अपना सिर हिलाया ।

"कैसे बोलूं ? मुझे... कुछ एक्साइटमेंट चाहिए। दुरैई वह नहीं दे सकता। लगता है जैसे उससे बात करने के लिए भी कोई विषय ही नहीं है । इससे छुटकारा कैसे मिलेगा ? इससे कैसे बाहर निकलूं ? क्या कारण बताऊं ? कौन सा कोर्ट मुझे डायवर्स दिलवाएगा ?"

मैंने चकित होकर उसे देखा।

"यह क्या बेवकूफी है रोहिणी ? ‘सिनेमा के हीरो जैसा पुरुष होना चाहिए’ तुमने ही अपेक्षा की थी ना ? अपनी बुद्धि को किसी और बात में लगाओ, नौकरी पर जाओ ।"

"कौन सी नौकरी मिलेगी सिर्फ B.A. पढ़ी हुई को ?"

"फिर फ्रेंच या जर्मन भाषा सीखो।"

"यह सब मेरे बस की बात नहीं है।"

"फिर से गाना सीखो ! तुम्हें तो गाना पसंद है ना, सुंदरी बुआ जैसे ?"

अरे ! यह तो मैंने अपनी तरफ से मिला कर कह दिया ! मैंने अपने होंठों को दबा लिया।

रोहिणी ने तुरंत गर्दन ऊंची करके देखा।

"यू नो समथिंग ? सुंदरी बुआ की याद मुझे अक्सर आती है। जैसा उपहास उसका उड़ा शायद मेरे साथ भी वही होना है। आखिर में वह जैसे शून्य होकर खड़ी हो गई वैसे ही मुझे खड़ा होना पड़ेगा, ऐसा लगता है।"

"क्या बक रही है ? बके मत।" मैंने सख्ती से कहा । "बुआ और तेरे बीच कोई समानता नहीं है। तुमने बहुत कुछ कल्पना कर लिया है, जरुरत से ज्यादा सोच लिया है। खुशी को एक सामान की तरह ढूंढते मत फिरो। यदि कुछ नहीं है तो उसे ढूंढते हैं। जो हम ढूंढ रहे हैं वही सच है।"

"यह विचित्र बात है, विचित्र बातें मेरी समझ में नहीं आती !"

मैं निराश होकर चुप हो गई। उसने मुझे घूर कर देखा।

"यह तुम बोल रही हो कि तुम खुशी को नहीं ढूंढ रही हो ? "

"नहीं ! खुशी से यूनिवर्सिटी जाती हूं। खुशी से पुस्तकें पढ़ती हूं। खुशी से खाना बनाती हूं। ख़ुशी तो मेरे साथ है !" मैंने मुस्कुराकर कहा।

रोहिणी ने दयनीय दृष्टि से मुझे देखा।

"ऐसा है तो तुम अपने आप को धोखा दे रही हो, मालिनी !"

"खुशी एक भावना है, मैं ऐसा मानती हूं।"

कुछ देर वह चुप रही।

फिर बड़े ही सहज हो बोली "अमेरिका से कृष्णन आया हुआ है।"

थोड़ी देर के लिए मेरी बुद्धि ने काम करना ही बंद कर दिया। यह मेरे लिए अनअपेक्षित समाचार था। फिर मैंने अपने आप को संभाल कर सिर उठाकर रोहिणी को देखा तो उसकी नजरों में कशमकश दिखाई दी ।

"कैसे मालूम ?"

"उसने मुझे टेलीफोन किया था ।"

अंदर ही अंदर मुझे दर्द हुआ। उसने मुझे नहीं किया। अरे, मैं तो पागल हूं। किस मुंह से मुझे फोन करता ? मैंने अपनी आवाज में बेफिक्री घोलते हुए पूछा, "कब ?"

"कल शाम को। उसकी बातों में नरमी महसूस हो रही थी। फोन में आने वाली आवाज सहलाने वाली जैसे थी। तुम्हारे बारे में पूछ रहा था।"

मैं सीधे होकर बैठ गई ।

"उसके लिए ही मैं पिघल रही हूं, ऐसा तुमने बोल तो नहीं दिया ?"

नैपकिन से अपने होठों को नाजुक तरीके से पोंछ कर रोहिणी बोली, "इसे किसी को कहने की जरूरत नहीं। वह ऐसा सोचता होगा।"

"कैसे ?"

"उसे तुम्हें धोखा दे कर गए तीन साल हो गए। तुम किसी और से शादी क्यों न कर सकी ? अभी भी उसको भुला नहीं सकी, इसीलिए ही तो ?"

"किसी से भी शादी करना है, ऐसा मुझे नहीं लगता।"

"क्यों ?"

"पता नहीं, मेरा इंटरेस्ट खत्म हो गया लगता है ।"

"नॉनसेंस....! क्यों लगता है ऐसा ? उसने तो बिना कुछ सोचे समझे फटाक से किसी से शादी कर ली, तुम्हें भी ऐसा ही करना चाहिए। अभी तुम्हारा यूँ त्याग की मूर्ति जैसे रहना कृष्णन के इगो को तृप्त ही करेगा।"

मैं हंसी।

"अभी तुम स्वयं ही तो परेशान हो रही थी कि अकेला रहना ही तुम्हारा मकसद है। शादी करना ही गलत है । और अब मुझे फंसने के लिए बोल रही हो ?" मैंने बात की दिशा को बदला।

अपनी स्थिति की याद आने पर रोहिणी का चेहरा फिर से उदास हो गया ।

"मैं तुम्हें पूछना भूल जाती हूं रोहिणी। तुम और दुरैई मेडिकल चेकअप क्यूँ नहीं करवा लेते अपना।"

"वह तो हमने करा लिया, डॉक्टर का कहना है कि सब नॉर्मल है ।"

"तुम्हें बच्चे की ज्यादा ही इच्छा हो तो उसका भी एक सरल-सा समाधान है, एक अनाथ बच्चे को गोद लेकर पाल सकते हो तुम लोग ।"

"मैं ऐसा नहीं करूंगी । मुझे अपना स्वयं का बच्चा चाहिए, नहीं तो नहीं।"

मैं हंसी। "अपने कोख से पैदा हुआ बच्चा ही पुत्र है और वही पुत्र तुम्हें स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ाएगा, ऐसी है तुम्हारी सोच ?"

"नहीं मालूम ! रोजाना बोर होती रहती हूं. उस बोरियत को बच्चा दूर करेगा। मजाक नहीं है, हमारी नानी-दादी, परदादी ने इसीलिए ही तो दस-बारह बच्चे पैदा किये होंगे, है न ?"

"तुम बहुत टेंशन के साथ सोने जाती हो मुझे लगता है।", कहते हुए मैं उठी । "तुम और दुरैई कुछ दिनों के लिए शिमला, मसूरी जा आओ।"

"वहां जाने से वह बदल जाएगा ?"

'तुम बदल जाओ ' मैं अपने-आप में बड़बड़ाई । फिर थोडा संभल कर मैंने कहा, “ उसके साथ तुम्हें थोड़ी करुणा के साथ पेश आना चाहिए।"

"उपदेश मत दो मालिनी, प्लीज !"

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