कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर
15
ऐसा अधिक देर तक नहीं चलता सरोज। हर काम की एक अति होती है। इसने तो बेइमानी की सब हदों को पार कर दिया है। लॉफ़्बरो में कोई ऐसा इनसान नहीं जिसके आगे यह हाथ न फैला चुका हो। मेरी ही दुकान से इसने कितना सामान उधार लिया हुआ है जिसका भुगतान आज तक नहीं हुआ। एक दुकनदार कब तक किसी को उधार देता जाएगा। यह लोगों के अच्छे स्वभाव का खूब फायदा उठाता है।"
"बात चीत में तो यह आदमी बड़ा भला लगता है।"
"यह भला आदमी लायब्रेरी किसी काम से नहीं बल्कि घर की बिजली गैस बचाने के चक्कर में जाता है। आप तो जानती ही हैं कि ब्रिटेन में बिजली से अधिक गैस की खपत होती है क्योंकि घरों की सैंट्रल हीटिंग अधिकतर गैस से ही है। फिर सर्दियों के बिल तो आसमान को छू रहे होते हैं। कई बार तो लायब्रेरी वाले ही तंग आ कर इसे जाने के लिए बोल देते हैं।"
"बेचारा हरभजन..." अचानक सरोज के मुँह से निकला।
"कोई बेचारा वेचारा नहीं। इसका दिमाग बहुत ही शातिर है। कभी जाने माने लोग यदि हरभजन सिंह को सड़क पर सामने से आता देख लें तो वह अपना रास्ता ही बदल लेते हैं कि कहीं यह हमसे कुछ माँग ना ले। कभी दया भी आती है इस इनसान पर जो इतना पढ़ा लिखा हो कर भी भटक रहा है। यदि यह ठीक से काम करे तो इसका समाज में कितना नाम हो। इसकी हाथ की मुट्ठी सदैव बंद रहे। इज्जत हो, मान हो लेकिन नहीं... इस शराब और जुए की लत ने तो कितनों के घर बरबाद कर डाले हैं तो फिर हरभजन सिंह क्या है।"
सुरेश भाई अभी बैठे ही थे कि फिर फोन की घंटी बज उठी। वह बुरा सा मुँह बना कर उठे कि कहीं हरभजन न हो।
"पापा मैं निशा..."
"ओह हैलो बेटा। कैसा है मेरा बच्चा। पढ़ाई कैसी चल रही है?"
"पापा आज कल पढ़ाई के सिवा और कुछ सूझता ही कहाँ है। घर में सब लोग कैसे हैं। नानी ठीक हैं न। आज कल उनकी बहुत याद आती है।"
"वो भी तुम्हें बहुत याद करती हैं बेटा। अभी कुछ दिन पहले उनका एक छोटा सा ऑपरेशन हुआ है।"
"ऑपरेशन कैसा ऑपरेशन पापा। मुझे किसी ने क्यों नहीं बताया।"
"बस जल्दी में सब हो गया। नानी के गॉलब्लैडर में पथरी थी जिसके कारण उनके पेट में दर्द रहता था। अब सब ठीक है। दो सप्ताह हस्पताल में रह कर वापिस घर आ गई हैं। हमने सोचा तुम क्रिसमस पर तो घर आने वाली हो, कर लेना नानी से खूब लाड़ और बातें।"
"पापा मैंने यही बताने के लिए फोन किया है कि शायद इस क्रिसमस पर मैं घर ना आ पाऊँ।"
"नहीं बेटा चाहे दो दिन के लिए ही सही घर जरूर आना। सब लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। लो अपनी माँ से बात करो वह कब से फोन लेने के लिए कुलबुला रही हैं।"
"हैलो निशा बेटे मैं क्या सुन रही हूँ कि तुम क्रिसमस की छुट्टियों में घर नहीं आ रही।"
"मॉम आप तो जानती हैं कि बस अब यूनिवर्सिटी में हमारे कुछ ही महीने बाकी हैं। घर आकर पढ़ाई कहाँ होती है। या तो मैं जितेन से पंगे लेती रहती हूँ या आपसे और नानी से बातें करती रहती हूँ। घर आकर पढ़ने का किसका मन करता है माँ। अब नानी को देखने तो आना ही पड़ेगा।"
"इस बार तुम आराम से पढ़ना तुम्हें कोई तंग नही करेगा।"
"लेकिन मैं तो सब को तंग करूँगी न मॉम। जितेन घर पर हो और मैं पढ़ने बैठ जाऊँ ऐसा तो हो ही नहीं सकता यह आप भी जानती हैं। हाँ ऐसा कर सकती हूँ कि हमारी लायब्रेरी 25-26 दो दिन बंद है तब घर आ सकती हूँ लेकिन उन दो दिन तो न बसें चलती हैं न रेलगाड़ी। फिर कुछ सोचते हुए निशा बोली...
"ठीक है माँ मैं 24 रात को आती हूँ और फिर 27 सबेरे लेस्टर पहुँच जाऊँगी। प्लीज मॉम रोकने की कोशिश मत करिएगा।"
"ठीक है बेटा जैसे तुम ठीक समझो।"
"ठीक तो कल रात से किशन की तबियत ठीक नहीं है। निशा ने कमरे में आते ही जैकी से किशन के विषय में पूछा..." जैकी आज सुबह से किशन दिखाई नहीं दिया। किसी से कुछ बोल के गया है कि कहाँ जा रहा है और कब आएगा। निशा के पाँचों साथी एक दूसरे का बहुत ख्याल रखते हैं।
"वो तो घर पर ही है। फ़्लू के कारण बिस्तर से नहीं निकला। कल मिस्टर शॉपिंग करने गए और वापिसी में तेज बारिश में भीग कर आए हैं," जैकी ने बताया।
"हाँ लेकिन किसी ने उसे देखा, चाय वगैरह दी है। यह बहुत बुरी बात है। एक ही घर में रहते हुए एक दोस्त सुबह से बीमार है और किसी ने उसे पूछा तक नहीं...," कहते हुए निशा किशन के कमरे की ओर चल पड़ी।
युनिवर्सिटी का एक नियम है कि पहले वर्ष वह अपने छात्रों को युनिवर्सिटी होस्टल में रखते हैं। सब 18 वर्ष के बच्चे पहली बार घर से दूर हुए होते हैं। इस प्रकार उनके नए मित्र बनते हैं और दिल में बैठा हुआ डर भी थोड़ा दूर होता है। दूसरे वर्ष से सबको अपना रहने का स्थान स्वयं तलाश करना पड़ता है।
निशा और उसके मित्र एक तीन बेडरूम का घर किराए पर लेकर उसी में रहने लगे। एक कमरा सायमन और किशन का है, दूसरा कमरा थोड़ा बड़ा है। उसमें तीन पलंग लगे हुए हैं जिसमें लड़कियों ने अपना डेरा डाल लिया। तीसरे कमरे को इन्होंने पढ़ने का कमरा बना लिया। यदि देर सवेर किसी का पढ़ने का मन करे तो दूसरों की नींद खराब किए बिना वह उस कमरे में जा कर पढ़ सकता है।
निशा किशन के कमरे गई तो वह सो रहा था। निशा ने धीरे से हाथ किशन के माथे पर रखा बुखार देखने के लिए।
"मॉम..." किशन ने अपना गर्म हाथ निशा के हाथ पर रख दिया।
"मम्मा की याद आ रही है किशन...। फिकर मत करो मैं तुम्हें बिल्कुल ठीक कर दूँगी। पहले यह बताओ कोई दवा ली। कुछ खाया पिया या नहीं।"
"हाँ... पेरासिटामोल ली है और कुछ खाने का बिल्कुल मन नहीं है निशा।"
"मन कैसे नहीं है। मैं अभी तुम्हारे लिए बढ़िया सी अदरक की चाय के साथ कुछ खाने को लाती हूँ।"
रसोई में जाकर निशा जोर से बोली... "मैं अदरक की चाय बनाने जा रही हूँ किसी को चाहिए।"
" प्लीज एक कप इधर भी तीन आवाजें इकट्ठी आईं।"
निशा ने एक गैस के चूल्हे पर दो अंडे उबलने को रखे। दूसरे चूल्हे पर चाय के लिए पानी चढ़ा कर अदरक कद्दूकस करने लगी। अदरक के साथ उसने तीन चार पत्ते तुलसी के भी चाय के पानी में डाल दिए। निशा की यह आदत है कि जब भी लॉफ़्बरो जाती है वहाँ से थोड़े तुलसी के पत्ते लाकर फ्रीजर में रख देती है। जुकाम, खाँसी, बुखार के लिए तुलसी अदरक की चाय बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।
"चाय बन गई है आकर रसोई से लेलो..." आवाज लगा कर निशा ने एक ट्रे में दो कप चाय, प्लेट में उबले अंडे व एक टोस्ट रख कर किशन को खिलाने उसके कमरे की ओर जाने लगी।
निशा ने सबको बताया कि उसे लॉफ़्बरो जाना है नानी को देखने।
"मत जाओ ना निशा... क्या तुम्हारा लॉफ़्बरो जाना जरूरी है," सायमन ने उसे सामान पैक करते देख कर कहा, "देखो बाहर कितनी जोरों से बर्फबारी हो रही है।"
"जाना जरूरी है। ना होता तो मैं रुक जाती सायमन। आज क्रिसमस ईव है। दिसंबर का महीना हो तो बर्फ गिरना कोई आश्चर्य की बात नहीं। खुशी तो इस बात की है कि बहुत वर्षों के पश्चात इस बार व्हाइट क्रिसमस होगी। और फिर मैं केवल दो दिन के लिए तो जा रही हूँ।"
"लेकिन तुम्हारे बगैर क्रिसमस..."
"छोड़ो यार हम 27 को क्रिसमस मना लेंगे," निशा सायमन की बात को बीच में ही काट कर उसकी गाल पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली।
क्रिसमस क्रिशचियन्स का सबसे अहं त्यौहार है जिसकी पूरे साल प्रतीक्षा की जाती है। सैंकड़ों पाउंड घर को सजाने मे, रंग बिरंगी बत्तियाँ लगाने में और तोहफे खरीदने में खर्च किए जाते हैं। लेकिन किसी का भी ध्यान उन अकेले रह रहे बुजुर्गों की ओर नहीं जाता जिनके कान अपनों का एक प्यार भरा बोल सुनने को तरस रहे होते हैं। कुछ के तो परिवार होते हुए भी वह अकेले हैं। कैसे अपने ही बच्चे एक कार्ड भेज कर अपना फर्ज पूरा कर लेते हैं। कुछ बदकिस्मत ऐसे हैं जिन्हें कार्ड भी नसीब नहीं होता। मिलता है तो एक लंबा इंतजार। यह इंतजार अपनों का है या मौत का कोई नहीं जानता।
क्रिसमस हो या ईस्टर उनके लिए सब एक समान है। बस हल्की सी एक आग की लौ के सामने बैठ कर बाहर गिरती बर्फ को देख कर वे ठिठुरते रहते हैं। घर को अधिक गर्म भी तो नहीं कर सकते कि बिल कहाँ से भरेंगे। कुछ खिड़की के सामने खड़े होकर बाहर झाँकते रहते हैं कि शायद भूले भटके कोई इधर का रुख कर ले। आज के दिन इनसान तो क्या कोई कुत्ता भी बाहर दिखाई नहीं देता। भई वो भी तो अपने मालिकों के संग क्रिसमस मना रहे होते हैं। इन बेचारे बुजुर्गों को मिलता है तो एक लंबा इंतजार... जब सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम और शाम से रात हो जाती है। आज के दिन भी कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं। उनका जीवन प्रकृति के नियमों के साथ गुजरता चला जा रहा है।
उनके पास तो कोई नहीं आया परंतु निशा जरूर नानी के पास पहुँच गई। वह आते ही नानी से लिपट गई...
"देखो बेटा तुम्हारे आने से कितना अच्छा लग रहा है। घर में एक बार फिर से रौनक आ गई है नानी प्यार से निशा को गले लगा कर बोलीं।"
"क्यों नानी जितेन भी तो घर पर है। वह भी आपसे उतना ही प्यार करता है।"
"जितेन लड़का है। दोस्तों के साथ बाहर चला जाता है। घर आया एक दो औपचारिक बातें करके ऊपर अपने कमरे में जा कर गुम हो जाता है। अब तुम आई हो तो जितेन भी नीचे दिखाई देगा।"
"नानी सुना है हस्पताल में आप बड़ी मस्ती मार कर आई हैं। बड़े-बड़े वहाँ के अनुभव लेकर आ रही हैं। कुछ मजेदार बातें बताइए न।"
"हाँ बेटा कुछ बातें बाद में मजेदार लगती हैं मगर उस समय पूरे वार्ड की महिलाएँ बुरी तरह से डरी हुईं थी।"
"बताइए ना नानी क्या हुआ था निशा ने और पास आते हुए पूछा...।"
नानी चुस्कियाँ ले कर बताने लगीं... .
"हुआ यह कि रात का करीब दस बजे का समय था। सब मरीज दवा लेकर सोने की तैयारी में थे कि अचानक दो अफरीकन नर्स भागती हुई कॉरीडोर में से आईं। पीछे की तरफ ही पुरुषों का वार्ड था। हमारे वार्ड की सारी मरीज महिलाएँ कुछ सो गईं थी कुछ सोने की तैयारी में थीं। भागते हुए पैरों की आवाज सुन कर सब जल्दी से कंबल को ऊपर तक खींच कर बिस्तर पर बैठ गईं। वह अफरीकन नर्सें भी डरी हुई थी। उन के पीछे एक 6 फुट से ऊँचा गोरा आदमी जो अधेड़ उम्र का था हाथ में लोहे का लंबा स्टैंड लिए गुस्से से बड़बड़ाता चला आ रहा था।
महिलाओं के वार्ड में आते ही वह स्टैंड को डंडे के समान हिलाते हुए बोला कोई बात नहीं लड़कियों डरो मत मैं आ रहा हूँ तुम्हें इन एलियंस से बचाने के लिए...। जो उसके सबसे पास पलंग था उसके एक दम करीब जाकर वह खड़ा हो गया। उस पर बैठी एक तीस पैंतीस साल की महिला डर कर जहाँ तक हो सका पलंग के कोने पर चली गई। वह बुरी तरह से काँप रही थी।
एक नर्स हिम्मत करके आगे बढ़ के बोली... देखो यह सब मरीजों के सोने का समय है आप भी अपने वार्ड में जाइए। दूसरी नर्स ने जल्दी से सिक्यूरिटी गार्डस को फोन कर के बुला लिया।
उस नर्स को देख कर वह डंडा उठा कर दो कदम आगे बढ़ा।
वहीं रुके रहो आगे मत बढ़ना नहीं तो अच्छा नहीं होगा। नर्स को डर था कि कहीं यह मरीजों को क्षति न पहुँचाए। वह उसी पहले पलंग के पास जाकर उस डरी हुई महिला को आँख से और हाथ से इशारा करके बोला...
कम ऑन गर्ल, डरो मत। मैं अब आ गया हूँ। यह एलियंस तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुम चलो मेरे साथ। उसने उस महिला की ओर हाथ बढ़ाया तो वह डर कर चीख पड़ी। इतने में दो सिक्यूरिटी गार्डस वहाँ आ गए और बड़े प्यार से उस आदमी के हाथ से डंडा लिया और हाथ पकड़ कर उसे उसके वार्ड में ले गए।"
"उस बेचारी महिला का क्या हुआ नानी। उसकी तो डर के मारे जान निकल गई होगी।"
"उसकी क्या हम सबकी जान निकली हुई थी। ऐसे सिर फिरे का क्या भरोसा कब क्या कर डाले।"
"क्या फिल्मी ड्रामा था नानी। मुझे नहीं मालूम था कि हस्पताल में ऐसे भी कारनामे होते हैं। कुछ और बताइए न नानी," निशा मजे लेते हुए बोली।
"क्या बताऊँ बेटे दिल दुखता है ऐसी बातें बताते और सुनते हुए। ऑपरेशन के बाद जब मैं थोड़ा चलने फिरने के काबिल हुई तो मुझे दूसरी जगह भेज दिया गया। इस वार्ड में कमरे थे। एक कमरे में चार पलंग और सारे पलंग मरीज महिलाओं से भरे हुए थे। हमारे साथ वाले कमरे से किसी महिला की जोर से आवाजें आने लगी।
मुझे छूना मत, दूर रहो मुझ से। अपने गंदे काले हाथ मुझसे दूर रखो। आवाज सुन कर स्टाफ नर्स भागी हुई उस कमरे में गई।
क्या बात है यह कैसा शोर हो रहा है इस कमरे में वह गुस्से से बोली। इस वार्ड में और भी मरीज हैं। यह सब क्या तमाशा है नर्स।
तमाशा तो यह कर रही हैं सिस्टर। आपके कहने से मैं इन्हें टीका लगाने आई और यह चिल्लाने लगीं।
सिस्टर, मुझे इसके गंदे हाथों से टीका नहीं लगवाना। आप किसी गोरी नर्स को भेजिए। पता नहीं लोगों को क्या होता जा रहा है। जहाँ देखो तरह तरह की शक्लें दिखाई देती जिन्हें देखते ही लोग और बीमार पड़ जाएँ।
बस बहुत हो गया... सिस्टर दबी आवाज में बोली...। यह एन.एच.एस. है जहाँ आप लोगों का मुफ्त इलाज होता है। यहाँ काले गोरे का कोई भेद भाव नहीं है। यह नर्सें जी जान लगा कर कितनी मेहनत से आप लोगों की सेवा कर रही हैं और उसके परिणाम में आप उन्हें यह दे रही हैं। यदि इतनी ही मनमानी का शौक है तो पैसा खर्चा करके प्राइवेट हस्पताल में चली जाओ। वहाँ भी आपको मनपसंद नर्सें नहीं मिलेंगी।
नर्स लगाओ टीका... सिस्टर ने आदेश दिया।
देखो नजदीक मत आना मेरे, मैं तुम सब की शिकायत कर दूँगी। वह चिल्लाती रही। दो और नर्सों ने उसका हाथ पकड़ा और उसे टीका लगाया गया जो उसके लिए बहुत जरूरी था।"
"उफ नानी अभी भी रंग को ले कर इतनी घृणा लोगों के मन में है"
"यही नहीं बेटा एक और बात सुनाऊँगी तो तुम हैरान हो जाओगी। मुझे स्कैन के लिए ले जाया गया। वहाँ पहले से ही कुछ लोग बैठे अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। वहाँ एक काफी बुजुर्ग करीब 90-92 वर्ष के मरीज भी थे जो पलंग पर लेटे हुए थे। उनके साथ नर्स भी थी सहायता के लिए। वह बुजुर्ग स्वयं करवट भी नहीं बदल सकते थे। पोर्टर आया और उस पलंग और दूसरी व्हील चेयर के बीच में जगह खाली देख कर उसने एक व्हील चेयर वहाँ लगा दी। उस व्हील चेयर पर एक गोरे रंग का लड़का बैठा हुआ था जो स्कैन करवाने आया था। उसके साथ उसकी माँ भी थी। दोनों माँ बेटा धीरे धीरे बात कर रहे थे।
पहले तो वह बुजुर्ग उस गोरे लड़के और उसकी माँ को देख कर खुश दिखाई दिए। जैसे ही उनकी बातें उनके कानों में पड़ीं तो वह बुरी सी शक्ल बना कर मुँह में कुछ बड़बड़ाए। फिर मुँह में दो उँगलियाँ ऐसे डालीं जैसे कुछ इकट्ठा कर रहे हों। उन्होंने अपनी उँगलियाँ उस लड़के की दिशा में झटक दीं। उन्होंने यह एक बार नहीं कई बार किया।
अपनी ओर से वह उस लड़के पर थूक रहे थे परंतु हाथों में इतनी ताकत तो थी नहीं यदि कुछ उँगलियों पर कुछ लगता भी था तो वो उनके बिस्तर पर ही गिर जाता था।"
"तौबा नानी... किसी ने उनसे कुछ कहा नहीं...।"
"कहने की बात यह है बेटा कि अपनी जान का पता नहीं कि कब ऊपर से बुलावा आ जाए। दुख होता है यह सोच कर इतनी नफरत लेकर लोग जाएँगे कहाँ। कहीं चमड़ी के रंग से नफरत तो कहीं भाषा को लेकर। यह आज कल की नई पौध ही रंग रूप के भेद-भाव को मिटाने के लिए कुछ कर सकती है।"
"करेगी क्या नानी कर रही है। आज कल के पढ़े लिखे युवा लोगों के पास इन सब फजूल की बातों के लिए कोई समय नहीं है। सब इकट्ठे मिल कर रहते हैं, खाते पीते हैं, मस्ती मारते हैं। हमारी डीमॉटफर्ट यूनिवर्सिटी में ही देखो हर देश, हर शहर से छात्र आए हुए हैं। सबमें एक भाईचारा है। एक दूसरे की सहायता करते हैं। यदि हम भी यह ऊँच नीच, रंग रूप, भेद भाव करने लगें तो पढ़ेगा कौन। आप ऐसी बातों पर ध्यान ही मत दिया करिए। यह कुछ ही दकियानूसी लोग हैं जिन्हें उनके बच्चे ठीक करेंगे।
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