कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 14 Neena Paul द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 14

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

14

"यह ऐसा ही फनफेयर है आंटी जो सी-साइड पर लगा मिलता है," अलका ने पूछा।

"हाँ बेटा वैसा ही समझ लो। सी-साइड पर तो यह पूरी गर्मियों के लिए होता है परंतु जगह जगह शहरों में ये दो या तीन दिन के लिए ही आता है।

यहाँ चार दिन के लिए लॉफ़्बरो मार्किट के रास्ते आवागमन के लिए बंद हो जाते हैं। केवल पैदल चलने वालों के लिए ही यह रास्ते खुले होते हैं। बुधवार की दोपहर को बडे ट्रकों में झूले आने आरंभ हो जाते हैं। रातों रात सड़कों को साफ कर बहाँ झूले लग जाते हैं। इसमें छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक का ख्याल रखा जाता है।"

"हाँ सायमन लॉफ़्बरो के लार्ड मेयर भी इसमें अपना पूरा सहयोग देते हैं," निशा कंबल के बीच से मुँह निकाल कर बोली।

"जब आंटी बता रहीं हैं तो आप बीच में क्यों टपक पड़ीं," सायमन तुनक के बोला।

"ये लो भलाई का तो कोई जमाना ही नहीं रहा," निशा नाराज होते हुए बोली।

"आंटी इसे छोड़िए आप आगे बताइए..."

"बस बेटा आगे यही कि गुरुवार दोपहर बारह बजे से पहले सब कुछ सैट हो जाता है। लॉफ़्बरो के लार्ड मेयर स्कूल के कुछ चुने हुए बच्चों और उनकी आध्यापिकाओं के साथ वहाँ आते हैं। लार्ड मेयर ने रिबिन काटा। रिबिन के कटते ही सारे जनरेटर्स चालू हो गए और उनके साथ ही झूले। इतने जनरेटर्स होने के पश्चात भी सड़क पर एक भी बिजली का तार दिखाई नहीं देता। तारों का जाल सड़क पर बिछा कर उन पर इस प्रकार टारमैक डाल दिया जाता है कि कोई भी बड़ा हादसा न हो। लार्ड मेयर बच्चों के साथ कुछ झूलों पर जाते हैं और फेयर पब्लिक के लिए चालू कर दिया जाता है।

यह फेयर तीन दिन तक रहता है। तीन दिन लॉफ़्बरो में खूब रौनक मेला होता है। नवंबर का महीना है तो मौसम तो सर्द होगा ही तब भी लोग हुम-हुमा कर आते हैं। लॉफ़्बरो के आस पास के गाँव में से यहाँ तक कि लेस्टर तक से लोग आते हैं इस मेले में।"

"फिर तो खाने पीने के स्टॉल भी खूब होते होंगे," सायमन ने उत्सुक हो कर पूछा।

"पूछी ना इसने अपने मतलब की बात...," निशा से फिर बोले बिना ना रहा गया।

सरोज ने मुस्कुरा कर बेटी की ओर देखा "हाँ... चारों ओर खाने पीने के स्टालों से उड़ती हुइ खुशबुएँ, खुशनुमा माहौल, शोर शराबा बस तीन दिन यही सब तो देखने को मिलता है। खाने की चीजें ऐसी जो इन्हीं स्थानों पर मिलती हैं। ठंडे मौसम में छोटे-छोटे गर्मा-गर्म डोनट्स जो आपके सामने ही तैयार किए जाते हैं। जिन्हें खाकर मजा आ जाता है। पाउंड के पाँच एक लिफाफे में मिलते हैं जो एक के बाद एक ऐसे मुँह में जाते हैं कि जब तक आप किसी दूसरे को देने की सोचो सब नदारद हो चुके होते हैं। ऐसे ही अँगीठियों पर सिकते हुए हेजल नट्स जो केवल ऐसे मेलों में ही दिखाई देते हैं।"

"कुछ शाकाहारी लोगों के लिए भी होता है आंटी।"

हाँ बेटा... आज कल तो शाकाहारी खाना भी ऐसी जगहों में खूब मिलने लगा है। हॉट डॉग और बर्गर्ज की खुशबू यूँ नथुनों में घुसती है कि स्वयं ही दुकान के पास खींच लाती है। उधर कैंडी फ्लोस और टॉफी ऐपल के स्टाल के बाहर माता पिता की उँगली थामें बच्चे भी एक कतार में खड़े मिलते हैं।

शनिवार की शाम को वहाँ पैर रखने की भी जगह नहीं होती। सब जगह युवा जोड़े और झूलों पर बैठी लड़कियों की चीखें ही सुनाई देती हैं। शनिवार को झूलों के दाम व खाने पीने की चीजों के दाम भी दुगने हो जाते है। यह उस साल का आखिरी फेयर होता है। इसके पश्चात इसे अच्छे मौसम तक के लिए बंद कर दिया जाता है।"

***

बंद तो लेस्टर के कारखाने हो रहे थे। एक ओर जहाँ ये कारखाने बंद हो रहे थे वहीं दूसरी ओर रोज नई सुपर मार्किट खुल रहीं थी। सुपर मार्किटस में भी आपस में होड़ चल रही थी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए। कहीं कोई चीज सस्ती तो कहीं कोई चीज सेल पर। नौकरियाँ छूटने के कारण लोग भी काफी सतर्क हो गए थे। जहाँ जो वस्तु सस्ती मिलती वहाँ से लेकर वह दूसरी सुपर मार्किट में जा पहुँचते। नित नई सुपर मार्किट खुलने से युवा लोग बहुत खुश थे। उनके पास भरपूर काम था। यहाँ तक कि यूनिवर्सिटी के छात्रों के पास भी शनिवार या शाम की नौकरियाँ मौजूद थीं जो छात्र बड़ी खुशी से करते थे।

अपने और साथियों के समान निशा भी एक सुपर मार्किट में हर शनिवार काम करती है। घर की हालत उससे छुपी नहीं है। चाहे माँ पापा उसे कुछ न बताएँ। आगे जितेन की भी पूरी पढ़ाई बाकी है। वह पढ़ाई समाप्त करके तुरंत नौकरी करना चाहती है जो माँ पापा का थोड़ा बोझ कम कर सके।

निशा को सिर पर पड़े नानी के वादे का बोझ भी शीघ्र ही उतारना है। उन्हें नवसारी जल्दी ही ले जाना होगा नहीं तो मन में अरमान रह जाएगा। यही सब सोचते हुए निशा का हाथ टिल पर तेजी से चल रहा है। उसमें एक बहुत अच्छी बात है कि जो काम करती है लगन से करती है तभी तो सब उसे प्यार करते हैं।

काम तो युनिवर्सिटी की और लड़कियाँ भी करती हैं किंतु उनके और निशा के काम में जमीन आसमान का अंतर है।

"देखो तो अलका यह मायरा इतनी सज-धज कर कहाँ जा रही है और वो भी इतनी शाम को अकेले।"

"बना लिया होगा कोई नया बॉयफ्रैंड। तुम तो जानती हो कि आज कल आए दिन इसके दोस्त बदलते रहते हैं हमें क्या जाने दो।"

"अरे नहीं यार हमारे साथ पढ़ती है... चलो सायमन और किशन से पूछते हैं। लड़कों को तो लड़कियों की हर बात की खबर होती है," दोनों उत्सुकतावश पहुँच गईं लड़कों से पूछने...।

"सायमन तुम लोग जानते ही होगे कि यह मायरा, जिलियन वगैरह हर शुक्रवार को ऐसे सज-धज कर कहाँ जाती हैं।"

"तुम लोगों क्या करना है इन सब बातों से... अपने काम से मतलब रखो..."

"ओह तो इसका मतलब जो हम नहीं जानते वो तुम जानते हो। हमें भी तो पता चलना चाहिए बताओ ना सायमन..."

"सायमन निशा की बात को टाल ना सका। निशा यह लोग कॉलगर्ल का काम करती हैं। आज कल के महँगाई के जमाने में अपनी निजी आवश्यकताएँ कभी ऐसे काम करने पर भी मजबूर कर देती हैं जिन्हें हमें करना ही पड़ जाता है। कुछ छात्रों के माता-पिता की इतनी सामर्थ्य नहीं कि वह उन्हें और पैसा भेज सकें। कुछ मजबूरी में ऐसा काम करती हैं जिसे कॉल गर्ल कह लो या वैश्यावृति कह लो मतलब एक ही है और कुछ मन बहलाने के लिए करती हैं। बस सोच लो कि यह काम चोरी छुपे होता है।"

"यह सब करना जरूरी है क्या... लेस्टर में और भी तो कितने काम हैं छात्रों के लिए...," अलका ने बुरा सा मुँह बना कर कहा।

हमें अपने काम से मतलब रखना चाहिए अलका। इस काम में उन्हें पैसा दिखाई देता है, तो करने दो। बस थोड़े दिन की ही तो बात है। डिग्री मिलते ही सब अपने रास्ते चल पड़ेंगे।

***

युवा लोगों के पास तो काम की कमी नहीं थी परंतु पचास वर्ष से ऊपर के लोगों के पास कोई काम नहीं था। जब काम करने के लिए युवा लोग मिल रहे हों तो यह ढलती आयु वालों को कौन काम देगा। अब तो लोग अपनी छोटी दुकानें भी नहीं खोल सकते थे। सारे ग्राहक खुलती हुई सुपर मार्किट्स ने जो खींच लिए थे। अधेड़ आयु के लोगों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही थी।

मरता क्या न करता। लोगों ने खुले बाजार में स्टाल लगाने प्रारंभ कर दिए। इधर से सरकार का भी जोर था कि नौकरी ढूँढ़ो नहीं तो सरकार की ओर से जो हर सप्ताह भत्ता मिल रहा है वो बंद कर दिया जाएगा।

पास ही सुपर मार्किट खुल जाने पर भी घबरा कर निशा के पापा सुरेश भाई ने अपनी कोने की दुकान बंद नहीं की। अब इस आयु में नौकरी के लिए दर दर भटकने से तो अच्छा है कि थोड़े में गुजारा कर लें। किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाने पड़ेंगे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि घर में ही दुकान होने के कारण दुकान का भाड़ा भी नहीं देना पड़ता था।

सुरेश भाई और सरोज को बड़ा धक्का उस समय लगा जब सर रिचर्ड टाऊल्स के आखिरी कारखाने के बंद होने का समाचार मिला...।

सरोज कारखाने से घर आई। चेहरा लटका हुआ, साफ उदासी झलक रही थी। पति को देखते ही मुस्कुराने के प्रयत्न में आँखों में ठहरे हुए आँसू बह निकले।

"सरोज... क्या बात है...सब ठीक तो है ना।"

"कुछ भी ठीक नहीं है जी। एक महीने में हमारा कारखाना भी बंद हो जाएगा। माइनर्स की हड़ताल के कारण समय पर आर्डर्स पूरे ना होने से वह लोग कारखाना कब तक नुकसान पर चालू रख सकते थे। आज सर रिचर्ड टाउल्स स्वयं वहाँ आए और बड़े अफसोस से सब से माफी माँग कर यह ऐलान किया कि एक महीने के पश्चात यह टाउल्स टैक्स्टाइल का आखिरी कारखाना भी हमेशा के लिए बंद हो रहा है। वैसे भी उनका कोई बेटा नहीं है जो इस काम को आगे बढ़ाएगा। ले देकर एक बेटी है जिसे सुना है इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं है।"

"कोई बात नहीं सरोज आप चिंता क्यों करती हैं। हम कुछ ना कुछ कर लेंगे।"

"क्या कर लेंगे जी। अभी जितेन की पूरी पढ़ाई पड़ी है। हाथ पर हाथ धर कर तो बैठ नहीं सकते। दुकान का काम तो आप जानते ही हैं। वैसे मैं काम पर किसी महिंदर सिंह के धागा बनाने वाले कारखाने के विषय में सुन कर आ रही हूँ। इस कारखाने में पगार कम है फिर भी लोग खुश हैं कि उनके पास काम तो है।"

"धागा फैक्टरी... अरे मेरा दोस्त गिरीश वहीं तो काम करता है। आप चिंता मत करो। मैं अभी गिरीश भाई से मिल कर आता हूँ। वह नजर रखेगा आपको जरूर वहाँ कोई काम मिल जाएगा।"

एक अंग्रेज सरकार से भत्ते के लिए हाथ फैला लेगा लेकिन कम वेतन पर कभी काम नहीं करेगा वह भी एक ऐशियन के लिए। जहाँ दूसरे कारखाने बंद हो रहे थे वहाँ इस धागा बनाने वाले कारखाने के पास भरपूर काम था। यह अपने में ही एक ऐसा कारखाना है जिसमें बना धागा पूरी दुनिया में आज भी जाता है। सरोज के काम के इतने लंबे अनुभव को देख कर उन्हें वहाँ काम मिल गया।

***

अरे लॉफ़्बरो टाउन के शॉपिग सेंटर के बीचो बीच यह स्टेचु कहाँ से आ गया कुछ लोग हैरानी से स्टेचु को देखते हुए बातें कर रहे थे...

यह पत्थर का बना हुआ एक लड़के का स्टेचु है जिसने एक पैर में जुराब पहनी हुई है और दूसरे में पहनने का प्रयत्न कर रहा है। स्टेचु के नीचे लिखा हुआ है... यह जुराबें लॉफ़्बरो के सुप्रसिद्ध कारखाने मेरेथन की बनी हुई हैं। मेरेथन जहाँ हर मौसम, हर नाप, बच्चे बूढ़े सब की पसंद को ध्यान में रख कर जुराबें तैयार होती थीं। सर्दियों की विभिन्न प्रकार की ऊन जैसे अक्रलिक, असली ऊन, लैम्स वूल आदि से बनी जुराबें व गर्मी के लिए सूती धागे की जुराबें यहाँ बनाई जाती थीं जो ब्रिटेन ही नहीं पूरे योरोप में भी प्रसिद्ध थीं। माइनर्स की हड़ताल ने इस कारखाने को भी मजबूरन ताला लगाने पर बाध्य कर दिया।

कारखाने को ताला जरूर लगा परंतु उसकी याद सबके दिलों में आज भी ताजा हैं। जब भी कोई जुराबें खरीदता तो मेरेथन की जुराबों को जरूर याद कर लेता है। लोग बड़े गर्व से इस स्टेचु के साथ खड़े हो कर तसवीरें उतरवाते हैं।

ये तसवीरें ही तो हैं जो नई पुरानी यादों को ताजा रखती हैं। दीवार पे टँगी पुराने घर की तसवीर को देखते हुए सरला बेन किन्हीं खोई हुई यादों में गुम हो गईं। सरला बेन आज तक अपना युगांडा का घर नहीं भूलीं। वो भी क्या समय था। सोचा भी नहीं था कि कभी ऐसा समय भी आएगा जब अपना बसा बसाया घर छोड़ना पड़ेगा।

घर तो छूटा सो छूटा लेकिन अब यह दर्द क्यों नहीं छोड़ रहा। सरला बेन जब से अपनी सहेली के घर से आई हैं कुछ बुझी-बुझी सी रहती हैं। अक्सर वह पेट में दर्द होने की शिकायत करती हैं...।

"सरोज बेटा... पेट में हल्का सा दर्द है... जरा एक गिलास पानी में एक चाय का चम्मच सोंफ, एक चम्मच अजवाइन और एक टुकड़ा अदरक का डाल कर गैस पर चढ़ा दो। जब पानी आधा रह जाए तो एक कप में डाल कर मुझे दे देना।"

"बा... इन सब से कुछ नहीं होगा मैं कल ही आपको डाक्टर के पास ले कर चलती हूँ। वैसे भी देखिए न आपका चेहरा कितना उतरा हुआ है।"

"डाक्टर के पास जाने से कुछ नहीं होगा दिकरा। थोड़ी गैस पेट में कहीं अटक गई होगी या बादी हो गई होगी सोंफ अजवाइन सब ठीक कर देगी।"

"आप की तो हर बीमारी का ईलाज घरेलू नुस्खे हैं जो सदैव काम नहीं आते बा," कहते हुए सरोज किचन की ओर चल दी।"

अभी दो दिन भी नहीं बीते थे कि आधी रात को सरलाबेन को पेट में असहनीय दर्द हुआ। वह बिस्तर पर छटपटा रहीं थीं। सरोज को बा के कमरे से कुछ आवाज आई।

वह जल्दी से उन के कमरे की ओर भागी। उन को ऐसी अवस्था में देख कर वह घबरा गई और पति को बुलाने लगी...।

"सुनिए जी... देखिए बा को क्या हो रहा है। जल्दी से उठिए और एंबुलेंस को बुलाइए।"

एंबुलेंस आई पता चला कि बा के गॉलब्लेडर में पथरी है जिसका शीघ्र ही ऑपरेशन करना पड़ेगा। बा को इंजेक्शन दिए गए जिसके कारण वह आधी बेहोशी की हालत में थीं। दूसरे दिन कुछ टेस्ट करने के पश्चात बा का ऑपरेशन करके उनका पूरा गॉलब्लैडर ही बाहर निकाल दिया गया। जिस में तीन बड़े पत्थर थे। यही पत्थर उन्हें परेशान कर रहे थे जो बा के घरेलू नुस्खों से कभी ठीक न होते।

बा हस्पताल से घर आ गईं। सुरेश भाई कुछ सोचते हुए पत्नी से बोले... "सरोज देखो कहीं निशा को बा के ऑपरेशन के विषय में मत बता देना। उसकी परीक्षा सिर पर हैं। तुम तो जानती हो वह नानी के लिए सब कुछ छोड़ छाड़ कर भागी आएगी।"

"नहीं जी मैंने भी यही सोचा है। अभी क्रिसमस की छुट्टियों में वह घर तो आएगी ही। तब तक बा भी काफी ठीक हो जाएँगी मिल लेगी उस समय वह नानी से।"

उनकी बात वहीं रुक गई जब फोन की घंटी बज उठी। इस समय कौन हो सकता है।

"हैलो... जी मैं हरभजन सिंह बोल रहा हूँ उधर से आवाज आई। नाम सुनते ही सुरेश भाई ने बुरा सा मुँह बनाया। उधर से फिर आवाज आई... सुरेश भाई मुझे पता चला है कि माँ जी का ऑपरेशन हुआ है। अब वह कैसी हैं। मैं उनसे मिलने आना चाहता हूँ।"

"शुक्रिया हरभजन जी। माता जी अब काफी ठीक हैं। इस समय कुछ दोस्त आए हुए हैं बा से मिलने। मै थोड़ा बिजी हूँ बाद में बात करेंगे कह कर सुरेश भाई ने मुँह में ही एक गाली दे कर फोन पटक दिया।"

सुरेश भाई को कभी गुस्सा नहीं आता मगर इस आदमी की आवाज सुनते ही इनका खून खौल उठता है। वह पत्नी की ओर देखकर बोले... "माँ ने इसका नाम कितना अच्छा रखा है हरभजन। हरी का भजन करने वाला। देखो न बुजुर्ग आदमी हैं। अच्छी खासी पेंशन मिलती है। दो बेडरूम का काउंसल का मकान मिला हुआ है। और क्या चाहिए जीने के लिए। इसकी ऐसी हरकतें देख कर तो बीबी ने भी घर से बाहर निकाल दिया है। भई वह अच्छे घर की औरत है। आखिर कब तक इसके कारनामों की शिकायतें सुनती रहेगी। इसकी एक बेटी भी है जिसके लिए यह दावा करता है कि उसे बहुत प्यार करता है परंतु वह बेटी भी कभी इसके साथ नहीं देखी गई।"

"बेचारे को कुछ चाहिए होगा। दे दीजिए दुकान से आपका क्या जाता है।"

"पहले मैं भी यही सोचता था लेकिन कब तक। हर चीज की एक सीमा होती है न। मैं सबका पेट भरता रहूँगा तो हम सबका पेट कौन भरेगा सरोज। अगर घोड़ा घास से ही यारी करने लगेगा तो खाएगा क्या।

एक शराबी जुआरी का घर कौन भर सका है। कहने को यह इनसान बहुत ही सुशिक्षित और बुद्धिमान है। चार भाषाओं का मालिक है। हिंदी, उर्दु, पंजाबी और अंग्रेजी। पर जिसको एक बार शराब और जुए की लत लग जाए वह हमेशा भूखा ही रहता है। उसकी मुट्ठी कभी बंद दिखाई नहीं देती हाथ सदैव फैले हुए ही मिलते हैं।

एक ऐसा इनसान जिससे सभी कतरा कर चलते हैं। दो पल भी पास खड़ा हो जाए तो नाक सड़ जाए। हाथ में लंबा छाता। कंधे से लटकता हुआ एक मटमैला थैला। पेंट से पेशाब की बू। सिर पर ढीली ढाली पगड़ी जो सिर घुमाने से पहले ही घूम जाए। आँखों और नाक से बहता पानी... यह है हरभजन सिंह की पहचान जो रोज नए मुर्गे फाँसने की ताक में रहता है।"

"यह सब करने के पीछे उसकी कोई मजबूरी भी तो हो सकती है," सरोज दबी आवाज में बोली।"

"मजबूरी बस एक ही है उसके पास कि शाम की शराब कहाँ से आएगी... कुछ सीधे साधे लेखकों को बड़े सब्जबाग दिखा कर उनसे सैंकड़ों पाउंड ऐंठ चुका है यह आदमी...। एक लेखक या कवि तो वैसे ही भावुक होता है। हरभजन को किसी की कमजोरी पता चल जाए फिर तो यह उसे ऐसे बातों में उलझाएगा कि वह लेखक बेचारा अपनी कहानियाँ या कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद करवाने को तैयार हो ही जाता है।

इसकी चालाकी भी तो देखो हर किसी के सामने उसकी बस एक ही शर्त रहती है कि वह कभी भी चेक नहीं लेता और पैसे हमेशा पेशगी ही लेता है। शुरू में चारा डालने के लिए कुछ काम भी कर के देता है। जिस नए लेखक से पैसे लिए उसकी आधी कहानी उसे अंग्रेजी में अनुवाद करके देदी जिससे वह देख कर खुश हो जाए कि अनुवाद तो अच्छा करता है। बस फिर उसे भूल कर हरभजन दूसरे मुर्गे की ताक में चल पड़ता है।

*****