दरवाज़ा Priya Vachhani द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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दरवाज़ा



अलार्म की आवाज से नीना चौक कर उठी और झट से अलार्म बंद किया ताकि ललित की नींद खराब हो जाए । धीरे से उठ वह कमरे से बाहर चली गई

ललित और नीना की शादी को पंद्रह साल बीत चुके थे। उनके आंगन में दो पुत्र रत्न खिले। पढ़ाई के लिए दोनो को शहर के अच्छे हॉस्टल में दाखिला करवा लिया था। घर पर अब सिर्फ मियां बीवी थे। ललित सुबह ऑफिस चला जाता तो सीधी शाम को ही घर आता। नैना को नौकरी करना पसंद न था वह घर पर ही रहती और ललित भी औरतों के घर से बाहर काम करने के पक्ष में न था। नीना का कभी सहेलियों के साथ गपशप तो कभी शॉपिंग में दिन निकल जाता था

तैयार होकर ललित डाइनिंग टेबल पर आकर अखबार लेकर बैठ गया
"क्या बात है !आज इतनी सारी वैरायटी नाश्ते में!

"हां बड़े बुजुर्ग कहते हैं अगर सुबह का नाश्ता अच्छा हो तो पूरा दिन अच्छा बीतता है। वैसे भी तुम्हारे खाने का आजकल तो कोई भरोसा रहता नहीं, इतना काम बढ़ा लिया है कि खाना भी याद नहीं रहता। कभी-कभी तो पूरा टिफिन ही वैसे का वैसा ही वापस लेकर आते हो। अपना ध्यान रखा करो ललित इस तरह समय से खाना नही खाओगे तो कमजोरी आ जायेगी "
"कहां कमजोरी आयी है नीना! देखो तो मोटा हो रहा हूं ... वैसे थैंक्स डार्लिंग, तुम कितना ध्यान रखती हो मेरा, सच बहुत सीधी हो तुम" कह ललित ने नीना के गाल पर प्यार किया और अपना टिफिन उठा ऑफिस के लिए चल दिया

आज दोपहर को नीना ने अपनी सहेली अर्चना को खाने पर बुलाया था। काफी दिनों से दोंनो की मुलाकात न हुई थी तो आज यही लंच का प्रोग्राम बना

"क्या बात है नीना! आज तो बड़ी खुश लग रही है ?"
"हां यार आजकल मन बड़ा खुश रहता है "
"इस खुशी की वजह जान सकती हूं ! कहीं कोई गुड न्यूज़ तो नहीं?" अर्चना ने चुटकी ली
"धत पगली, अब काहे की गुड न्यूज़ ! वैसे हां गुड न्यूज़ तो है, पर वह नहीं जो तू समझ रही है "
"तो फिर क्या है? बता जल्दी"
" आजकल ना ललित का स्वभाव काफी बदल गया है। वो आज कल बहुत खुश रहने लगे हैं, मेरा भी पहले से ज्यादा ध्यान रखते हैं। खुद तो अपडेट रहते ही हैं साथ ही अबमेरे लिए भी अलग-अलग गिफ्ट लाते हैं। अच्छा लग रहा है यार, लगता है जैसे सब सही हो गया है। छोटी छोटी बातों पर जी जलाने वाला ललित अब खो गया है । पहले वाला ललित वापस आ गया है"
"पहले वाला ललित मतलब?" अर्चना ने जैसे आँखों ही आँखों मे कुछ भांपना चाहा
"वह पहले की तरह ही बिहेव करता है जैसे शादी के पहले दिनों में करता था । गिफ्ट लाना, सरप्राइज देना, समय से पहले घर अचानक आना"
"एक बात बता थोड़ी पर्सनल है, क्या उस बदलाव को तूने उन पलों में भी महसूस किया है ! क्या अब वह पहले से ज्यादा रोमांटिक हो गया है? "
"हां यार! पर तुझे कैसे पता चल ?"
अर्चना ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, "पता कैसे ना चलेगा!! आखिर जिंदगी का तजुर्बा लिए बैठी हूं। सुन, मैं तुझे डराना तो नहीं चाहती, ना ही तेरे घर में फूट डालने का मेरा कोई मकसद है। पर एक अच्छी सहेली होने के नाते बता रही हूं, ललित पर थोड़ा ध्यान दें, मुझे लगता है उसका कहीं कोई अफेयर चल रहा है "
"क्या बकवास कर रही है तू !! ऐसा हो ही नहीं सकता। बल्कि आजकल तो ललित और ज्यादा बिजी हो गए हैं , इतने कि कभी-कभी तो खाना खाने तक का भी समय नहीं मिलता तो अफेयर क्या करेंगे !"
"मतलब वो टिफिन वापस लाते हैं ?"
"हां कई बार कहते हैं काम में समय ही ना मिला "
"क्या आकर कहते हैं! जोर की भूख लगी है !! आज जल्दी खाना खाना खाते हैं"
"नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं कहते । बस कहते हैं चाय ज्यादा हो गई आज "
"तेरी बातों से मेरा शक पक्का होता जा रहा है नीना !"
"चल पगली, कुछ भी बोलती है। मेरा ललित ऐसा नहीं "
"भगवान करे तेरा विश्वास कभी ना टूटे ...."

कहते हैं खरपतवार हो या शक का बीज एक बार उग गया तो बड़ी तेजी से फलता फूलता है। नीना के मन में अर्चना की बातों में जगह बना ली थी। अब वह ललित की हरकतों पर नजर रखने लगी।
एक दिन नीना अचानक लंच टाइम पर ललित के दफ्तर जा पहुँची । पर ललित अपने केबिन में नही था। प्यून ने बताया साहब कैंटीन में गए हुए हैं
"अरे टिफिन तो यही पड़ा है!! ललित कैंटीन में खाएंगे क्या!" यह सोच नीना ने टिफिन लेकर कैंटीन की तरफ रुख किया। मगर वहां का नज़ारा देख उसे अपनी आंखों पर यकीन ही ना हुआ। ललित अपनी कुलीग के साथ बैठा खाना खा रहा था। नीना ने एक बार अपने हाथ में थामे टिफिन की और देखा फिर ललित की तरफ । वो सन्न रह गई थोड़ी देर के लिए । इतने में न जाने क्या सूझी उसने झट से अपना मोबाइल निकाल ललित और उसकी कलीग की तस्वीर ले ली और चुपचाप वहां से जाकर टिफिन को वापस वैसे ही कैबिन में दिया। उसने प्यून से कुछ बात की और वापस आ गई

शाम को जैसे ही ललित ने आकर नीना को टिफिन थमाया नीना ने अनजान बनते हुए कहा
"अरे !!आज तुम फिर खाना जस का तस वापस लाए हो! क्यों आज भी काम ज्यादा था क्या! और खाने का समय नहीं मिला ?"
"हां यार !आज कुछ क्लाइंट के साथ मीटिंग थी ,वह लंबी चली तो खाना खाने का समय ही ना मिला। सॉरी डार्लिंग, तुमने इतनी मेहनत से खाना बनाया पर मैं खा ही ना सका"
"कोई बात नहीं! अब तुम्हें जोर की भूख लगी होगी । एक काम करो जल्दी हाथ मुंह धो लो मैं सीधे खाना लगाती हूं "
"अरे नहीं! अभी नहीं!अभी तो तुम चाय चढ़ा दो । अभी खाना खाने का मन नहीं "
"क्यों मन नहीं ! जब खाना नहीं खाया तो पहले खाना खा लो। या कहीं बाहर से खा कर आए हो ?"
नीना के अचानक ऐसे सवाल से ललित सवालिया नजरों से नीना को देखने लगा
"हां जब सुंदर कलीग साथ हो और वो अपने हाथों से खाना खिलाये तो बीवी के हाथ का खाना कैसे भाएगा !"
कहते हुए उसने अपने मोबाइल से ली हुई तस्वीर ललित को दिखाई
ललित तस्वीर देख सकपका गया फिर खुद को संयत करते हुए कहा
"यह तो रश्मि है! मेरे साथ काम करती है ।आज उसका जन्मदिन था तो इसलिए पार्टी दी थी"
"पर अभी तो तुमने कहा क्लाइंट आए थे। खाना खाया ही नही "
"तुम मुझ पर जासूसी कर रही हो?" खुद को फंसता हुआ देख ललित ने तेवर बदले
"जासूसी करने की जरूरत ही न पड़ी । बस नौकरी खोने का डर दिखाने से ही तुम्हारे स्टाफ नें तुम्हारा और रश्मि का कच्चा चिट्ठा मेरे आगे खोल दिया। "
"क्यों ललित! क्या कमी है मुझमें जो तुम्हें बाहर मुंह मारने की जरूरत पडी?"
"अपनी हद में रहो नीना! अगर कुलीग के साथ खाना खा लिया थोड़ा हंस बोल लिया तो क्या आफत आ गयी !मैंने तुम्हें घर, पैसा, अच्छा लाइफस्टाइल सारे सुख के साधन दिए हैं और क्या चाहिए तुम्हें ! मुझे भी अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है । अगर मैं थोड़ी देर खुश हो लेता हूं तो तुम्हें क्या तकलीफ होती है ! तुम्हें तो किसी चीज की कमी नहीं रखी?"
"सारी सुख सुविधाएं, पैसा क्या यही चीजें रिश्तो की नींव होती है ललित! और अगर यही सब मैं करूं तो ?"
"जबान संभाल कर बात करो ! मैं मर्द हूं , कमाता हूं , तुम्हारी व इस घर की हर जरूरत पूरी करता हूं। घर के बाहर क्या करता हूं इससे तुम्हें कोई लेना-देना नहीं रखना चाहिए । और यह सब बर्दाश्त नहीं तो जा सकती हो तुम अपने मायके वापस" कह ललित कमरे में चला गया नीना आंखों में आँसू लिए ललित की बेशर्मी पर सोचती रह गयी।
***

पिछले कुछ दिनों से ललित नीना के व्यवहार में बदलाव महसूस कर रहा था। नीना ने अब ललित पर ध्यान देना कम कर दिया था। वो ज्यादा सवाल भी न पूछती अब बस दिन भर अपने मोबाइल से चिपकी रहती। जरा सी टोन बजने पर झट से मोबाइल उठा लेती। और मुस्कुराते हुए उसमें कुछ करती रहती। ललित को खटका सा होने लगा।
नीना के मोबाइल को कभी हाथ न लगाने वाला ललित अब रात में नीना के सोने का इंतजार करने लगा ताकि वह उसका मोबाइल चेक कर सके। आखिर वो इसमें में करती क्या है!!
जैसे ही नीना की आंख लगी ललित ने झट से नीना का मोबाइल उठाया। मगर मोबाइल में देखते ही ललित के होश फाख्ता हो गए। नीना किसी संजय नाम के आदमी से ऑनलाइन चैटिंग करती है। प्रेम भरी बातें व अगले हफ्ते मिलने का प्लान भी बनाया था। यह सब देख ललित के तन बदन में आग लग गई। उसने आव देखा न ताव नीना को हाथ से पकड़ कर उठाया
" यह क्या घटिया हरकत है?"ललित ने मोबाइल दिखाते हुए पूछा
मगर नीना ने बजाय जवाब देने के सवाल पूछा
"मेरे मोबाइल को क्यों छेड़ा तुमने ! अपने मोबाइल को हाथ लगाने देते हो कभी ?"
"मैं जो पूछ रहा हूं उसका जवाब दो!कौन है यह संजय ! ये क्या वाहियात बातें करती हो तुम उसके साथ! ये क्या घटिया हरकतें कर रही हो ?"
"संजय ! मेरा दोस्त है , और वाहियात बातें! प्रेम भरी बातें वाहियात कब से हो गई ! वैसे तुम करो तो प्रेम, मैं करूं तो घटिया हरकत ! ऐसा क्यों ललित ?"
"देखो नीना मैं आदमी हूं "
"तो ... तो तुम्हें कुछ भी करने का अधिकार है ?" नीना ने बीच मे ही उसकी बात काटी
"और मैं औरत हूं, तो मेरा कोई अधिकार नहीं ! मेरा फ़र्ज़ सिर्फ इतना है कि मैं अपने सपनों को, अपनी खुशियों को, यहां तक कि खुद को भी मार कर जीती रहूं !और तुम्हारी हर सही गलत बात बर्दाश्त करती रहूं ! नहीं ललित बाबू... जितना तुम्हें जीने का अधिकार है उतना ही मुझे भी है। जितनी तुम्हें अपनी खुशी प्यारी है, उतनी ही मुझे भी है"
"मतलब खुश होने के लिए तुम खानदान की इज्जत को दांव पर लगा दोगी ?"
"मेरे खुश होने से खानदान की इज्जत कम होती है ! और तुम्हारी खुशियां देखकर बढ़ रही थी ?"
ललित को नीना से ऐसे जवाबो की उम्मीद न थी। वो अपना आपा खो बैठा
"नीनाआआआ..."जोर से सीखते हुए ललित ने हाथ उठाया मगर नीना ने उसका हाथ वही रोकते हुए कहा
"यह गलती मत करना ललित! वरना डोमेस्टिक वायलेंस के केस में अंदर भी जा सकते हो ...याद रखना, अगर तुम इंसान हो तो मैं भी इंसान हूं "
"तुम इन हरकतों के साथ मेरे घर में नहीं रह सकती। तुम अभी इसी वक्त यहां से निकल जाओ "ललित चीख पड़ा
"तुम्हारा घर ! यह घर सिर्फ तुम्हारा कब से हो गया ! इस घर पर मेरा भी उतना ही अधिकार है जितना तुम्हारा और यह बात कानून भी कहता है। मैं नौकरी भले न करती हूं ललित मगर इतनी पढ़ी लिखी तो हूं कि अपने अधिकार जानती हूं "
तकिया लेकर नीना कमरे से बाहर जाने लगी फिर अचानक रुक कर पलटी
"एक बात जिंदगी में हमेशा याद रखना ललित बाबू !! अगर आदमी के लिए एक दरवाजा खुलता है ना तो औरतों के लिए चार दरवाजे खुलते हैं "
कह वो कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर चली गई।