कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 8 Neena Paul द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 8

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

8

यह बहुत पुरानी बात है। मॉम की शादी से पहले की। जब मेरी मॉम का छोटा भाई पैदा हुआ था तब उनकी माँ को तीन महीने हस्पताल रहना पड़ा था। उनकी मॉम यानी मेरी नानी के पेट में रसोली थी जिसे बच्चा पैदा होने के पश्चात ही निकाला जा सकता था। अपनी माँ को इतनी पीड़ा में देख कर मेरी मॉम डर गईं। कितने समय तक तो उन्होंने अपने भाई को भी प्यार नहीं किया यही सोच कर कि इसी के कारण मेरी मॉम को इतनी तकलीफ हो रही है। उन्होंने तभी तय कर लिया था कि जिस बात में इतना दर्द हो वह उसे कभी नहीं करेंगी।

मॉम माँ नहीं बनना चाहती थी और डैड को बच्चों का बहुत शौक था। मॉम के मना करने पर भी डैड ने उन्हें गर्भवती बना दिया। एक डर दूसरा अनचाहा गर्भ... मॉम की तबियत काफी खराब रहने लगी। हारमोनस में बदलाव आने से मॉम के मूड्स भी बदलने लगे।

डैडी पिता बनने के ख्याल से ही बहुत खुश थे। खुश मॉम भी थीं किंतु वह दर्द से डरती थीं। जब उन्हें उल्टियाँ आतीं कहीं दर्द होता तो वह डैडी पर बरस पड़तीं।

यह सब आपका ही कसूर है जॉर्ज... मना करती थी ना कि मैं अभी माँ बनने के लिए तैयार नहीं हूँ। देख ली आपने अपनी जिद।

कुछ ही महीनों की बात है डार्लिंग... जब नन्हीं सी जान को अपनी बाँहों में लोगी तो सारा दर्द भूल जाओगी जॉर्ज आगे बढ़े पत्नी को प्यार करने के लिए तो वह पीछे हट कर बोली... प्लीज अब आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए। अच्छा यही होगा कि आप... और वह दूसरे कमरे में चली गई।

जॉर्ज जानते थे कि ऐसे में मूड्स बदलते रहते हैं। एक बार बेबी आ गया तो सब ठीक हो जाएगा। किंतु... कुछ भी ठीक नहीं हुआ...। मॉम चुपचाप सी अपने में ही रहने लगीं। डैडी को पास भी नहीं आने देती थी। वह बहुत उदास रहने लगीं थी। अधिकतर ऐसे में महिलाएँ बच्चे से मुँह मोड़ लेती हैं किंतु मेरे पैदा होने के पश्चात मॉम ने मुझे सीने से लगाया और डैड को दूर कर दिया।

दूर भी ऐसा किया कि वह मुझे छू तक नहीं सकते थे। डैड भी आखिर खुद्दार इनसान थे। कब तक अपने ही घर में अजनबियों की तरह रहते और अपना अपमान सहते रहते। एक दिन उन्होंने गुस्से में आ कर घर छोड़ दिया।"

"लिंडा क्या तुम्हारे डैडी ने फिर घर आने की कोशिश नहीं की। यह उनका भी घर था। मॉम ने भी कभी उन्हें मनाने का प्रयत्न नहीं किया।"

"नहीं निशा... मॉम शायद अपने अपराधबोध के नीचे दबी हुईं थी। वह डैड को बुलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं और डैड आने की। दरार ऐसी बनी कि फिर भर नहीं पाई।"

"हूँ..." निशा भी उदास हो गई... "तुम कितने वर्ष की थी लिंडा जब तुम्हारे डैड ने दोबारा शादी कर ली..."

"डैड एक घरेलू किस्म के इनसान हैं। उन्हें परिवार से बहुत प्यार है। डैड ने करीब दो साल तक मॉम की प्रतीक्षा की कि शायद वह अपना इरादा बदल लें। उस समय तक बारबरा डैड के जीवन में आ चुकी थी। जब मॉम ने कोई कदम नहीं बढ़ाया तो डैड ने बारबरा से शादी कर ली। आखिर वह भी कब तक इंतजार करते। उस समय मैं लगभग तीन वर्ष की थी।

कई साल तो मॉम को यह भी डर लगा रहा कि कहीं मैं भी उन्हें छोड़ कर डैड के पास न चली जाऊँ। जानती हो बडी मुश्किल से मैंने उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि मैं उन्हें छोड़ कर कहीं जाने वाली नहीं हूँ। डैड के चले जाने के पश्चात मॉम बिल्कुल बदल गई। वह डिप्रेशन में चली गईं। घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। हर समय मुझे सीने से लगा कर रोती रहती।"

निशा चुप चाप सारी बातें सुनती रही। उसे लिंडा के घर में जाना कुछ अजीब सा लगने लगा... "लिंडा तुम्हारी मॉम मुझे देख कर नाराज तो नहीं होंगी यदि ऐसी कोई बात है तो तुम मुझे नोट्स लाकर दे दो मैं यहीं से चली जाती हूँ।"

"अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मेरे और भी दोस्त आते हैं।"

और दोस्तों में और निशा में अंतर था... निशा को देखते ही लिंडा की मॉम के चेहरे का रंग बदल गया जिसे लिंडा ने भी महसूस किया। निशा का जी चाहा कि अभी उठ कर यहाँ से चली जाए। उसे बहुत अटपटा सा लग रहा था। वह अपने दोनों हाथों की उँगलियों को दबाते हुए कभी लिंडा की ओर देखती और कभी नजरें झुका लेती। लिंडा सब समझ रही थी किंतु खामोश थी। वह निशा के सम्मुख माँ से कुछ कहना नहीं चाहती थी।

लिंडा को मॉम से अपनी दोस्त के साथ ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। निशा ज्यादा वहाँ न बैठ पाई और शरम के मारे लिंडा ने भी उसे न रोका।

निशा तेज कदम उठाती हुई घर की ओर बढ़ रही थी कि अचानक ख्याल आया कि वह लिंडा से अपने नोट्स लेना तो भूल ही गई जो उसे बहुत जरूर चाहिए। निशा न चाहते हुए भी उल्टे पाँव फिर लिंडा के घर की ओर चल पड़ी। लिंडा के घर की खिड़की खुली हुई थी। खुली खिड़की से लिंडा की माँ के जोर जोर से बोलने की आवाजें आ रहीं थीं। उनके हाथ में एक बोतल थी जिससे वह पूरे कमरे में छिड़काव कर रही थी...

"न जाने यह लड़की किन एलियंस को ले कर घर आ जाती है। उफ... सारा घर बदबू से भर गया है। क्या किसी अपने जैसे से दोस्ती नहीं कर सकती। न जाने कितने किटाणु छोड़ गई होगी वो ब्लैकी...।"

लिंडा की नजर खिड़की में से निशा पर पड़ी। "शी... मॉम..." और उसने जल्दी से भाग कर दरवाजा खोला।

"निशा... क्या बात है?"

"लिंडा मैं नोट्स ले जाना भूल गई हूँ जरा जल्दी से ला दो प्लीज।"

"हाँ अंदर तो आओ।"

"नहीं मैं यहीं ठीक हूँ।"

लिंडा के चेहरे से शर्मिंदगी साफ झलक रही थी। "देखो, तुम मेरी दोस्त हो मेरी मॉम की नहीं..." और उसने बढ़ कर निशा को गले लगा लिया।

सबसे अच्छी बात तो यह हुई कि निशा और लिंडा को एक ही जगह डीमॉटफर्ट युनिवर्सिटी लेस्टर में दाखिला मिल गया...।

दाखिला ही नहीं उन्हें कमरा भी इकट्ठा ही मिला। युनिवर्सिटी का यह नियम है कि प्रथम वर्ष में छात्रों को होस्टल में रहना पड़ता है। यहाँ सब हमउम्र होते हैं। भिन्न शहरों से आए हुए होते हैं। कुछ छात्रों का घर से बाहर रहने का यह पहला अनुभव होता है। इस तरह छात्र आपस में जल्दी घुल मिल जाते हैं।

लिंडा बहुत खुश थी। उसके जीवन का यह पहला अवसर था जब कि वह अकेली घर से बाहर इतने दिन के लिए आई थी। वह भी एक युवा लड़की है। अपने हमउम्र लोगों में आ कर वह घर की परेशानियाँ भी भूल गई।

बचपन से ही मॉम उसे स्कूल ट्रिप्स पर भी बड़ी मुश्किल से भेजती थी। एक अजीब सी घबराहट उनके मन में घर कर गई थी...। डर था कि कोई लिंडा को उनसे छीन कर ना ले जाए... वह जब तक स्कूल से घर ना आ जाती माँ खिड़की के सामने खड़ी हो कर लिंडा की राह देखती रहती। लिंडा माँ की भावुकता में कैद हो कर रह गई थी।

निशा को आज लायब्रेरी में थोड़ा अधिक समय लग गया था। कमरे में आई तो लिंडा वहाँ नहीं थी। लिंडा की मेज पर टेबल लैंप के नीचे एक चिट्ठी मिली...

निशा माफ करना तुम्हारे आने तक रुक नहीं पाई। हमारी पड़ोसन का फोन आया था कि मॉम की तबियत अचानक खराब हो गई है। मॉम हस्पताल में हैं। मैं जा रही हूँ। पता नहीं लौट पाऊँगी कि नहीं। मेरी डिग्री मॉम से बढ़ कर नहीं है..." - लिंडा

लिंडा ऐसी गई कि फिर पलट कर नहीं आ पाई। उसके जाने के पश्चात निशा के कमरे में एंजी नाम की एक लड़की को भेज दिया गया। एंजी भी चाहे हमउम्र थी किंतु हर किसी से तबियत मिलना आसान नहीं होता। एंजी एक ऐसे इंगलिश परिवार से थी जो एशियंस से घृणा ही नहीं उनकी परछाईं से भी दूर भागते थे। उनकी नजर में भारतीय गुलाम थे और सदा रहेंगे। चाहे उनके बच्चे कितना भी पढ़-लिख जाएँ लेकिन वह गोरे बच्चों का मुकाबला करने का सपना भी नहीं देख सकते।

एंजी की स्वयं तो पढ़ाई में कोई रुचि थी नहीं उसकी अकसर निशा से झड़प हो जाती...।

"देखो निशा मुझे तुम्हारा रात देर तक पढ़ना कतई पसंद नहीं। तुम मेरी नींद डिस्टर्ब करती हो।"

"डिस्टर्ब होती है तो मुँह दूसरी ओर करके सो जाया करो। तुम कई बार रात को इतनी देर से आती हो, चीजें इधर से उधर पटकती हो। मैंने तो कभी शिकायत नहीं की।"

"लेकिन मैं शिकायत कर रही हूँ...। जब तक मैं कमरे में हूँ तुम रात देर तक बत्ती नहीं जला सकती।"

"देखो परीक्षा सिर पर हैं किसी को तो पढ़ाई करनी है।"

"तुम्हें जीनियस बनने का इतना ही शौक है तो अपना कमरा बदल सकती हो। वैसे भी तुम जैसों के साथ एक ही कमरे में रह कर मेरा दम घुटता है।"

निशा एक पल उसे देखती रही फिर मुँह बना कर बोली "प्राब्लम तुम्हे है मुझे नहीं। यह कमरा पहले मेरा है फिर तुम्हारा। तुम चाहो तो कहीं और जा सकती हो।"

एंजी को निशा से ऐसी उम्मीद नहीं थी। वह तो उसे एक दब्बू और कमजोर लड़की समझती थी। यू ब्लैक बास्टर्ड कहती हुई वह आँखें तरेर कर और नथुने फुला कर आगे बढ़ी निशा को चाँटा मारने के लिए। निशा ने बीच रास्ते में ही उसका हाथ पकड़ कर पीछे की ओर मरोड़ दिया। वैसे भी वह जब से इस कमरे में आई है निशा को उसके तेवर ठीक दिखाई नहीं दे रहे थे लेकिन वह इस हद तक गिर जाएगी ऐसी उसे उम्मीद न थी।

एंजी अपना हाथ सहलाते हुए उसकी शिकायत करने के लिए पैर पटकती हुई कमरे से बाहर चली गई।

ऐसी घटनाएँ तो अब निशा के लिए कतई मायने नहीं रखतीं थीं। बचपन से अब तक वह ऐसे ही हादसों से तो गुजरती आ रही है। वह कंधे झटक कर पढ़ने बैठ गई।

***

पढ़ते हुए निशा को कँपकँपी लगी तो उसने पास पड़ी शॉल उठा कर अपने चारों ओर लपेट ली। सोचने लगी अभी तो अक्तूबर शुरू ही हुआ है और इतनी ठंड...

अक्तूबर का महीना... यानी शीत ऋतु का आगमन। ठंडी तेज हवाओं का महीना।

अक्टूबर से ही शीत ऋतु के त्यौहारों का भी आगमन आरंभ हो जाता है। उन में से हैलोवीन भी एक है जो ब्रिटेन का एक बहुत ही प्रसिद्ध त्यौहार है। हैलोवीन को लेकर पूरी युनिवर्सिटी में बहुत चहल-पहल है। फैंसीड्रेस पार्टी जो होने वाली है। निशा का यह युनिवर्सिटी में दूसरा वर्ष है। लड़कियों को इस बात की चिंता है कि वह इस पार्टी में क्या पहनेंगी और लड़कों को इस बात की चिंता कि वह लड़कियों को पहचानेंगे कैसे।

निशा के मिलनसार स्वभाव के कारण उसके बहुत से दोस्त बन गए जिनमें से सायमन कुछ खास ही है। निशा और उसके साथियों का पाँच लोगों का ग्रुप है।

सायमन एक आइरिश लड़का है। वह यहाँ इतिहास की डिग्री लेने आया हुआ है। वैसे तो आइरिश लोग जुबान खुलते ही अपने एक्सेंट से पहचाने जाते हैं परंतु सायमन बचपन से ही इंग्लैंड के एक शहर लिवरपूल में रहता है इस लिए उसकी भाषा पर आइरिश लहजे का अधिक प्रभाव दिखाई नहीं देता।

जैकलीन... जिसे प्यार से सब जैकी बुलाते हैं एक फ्रेंच लड़की है जो सायकॉलोजी में डिग्री कर रही है। अलका पंजाबी है और मॉनचैस्टर से लेस्टर युनिवर्सिटी में पढ़ने आई है और पाँचवाँ साथी किशन कारडिफ... वेल्स से है। इन सब के पढ़ाई के विषय चाहे अलग हैं किंतु यह हमेशा साथ देखे जाते हैं और एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते हैं।

देखा जाए तो ब्रिटेन चार टापुओं में बटा हुआ है... इंग्लैंड, आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स। जैसे इंगलिश लोगों को आइरिश, स्कॉटिश और वैल्श लोग पसंद नहीं वैसे ही यह लोग भी इंगलिश लोगों को दूर ही रखते हैं। खेल के मैदानों में चारों की अपनी टीम आती हैं जिनका आपस में मुकाबला भी होता है। इन चारों टापुओं को इकट्ठा मिला कर ही बनता है ग्रेट-ब्रिटेन। कोई भी पढ़ने के लिए किसी भी युनिवर्सिटी में जा सकता है जहाँ बच्चे शीघ्र ही एक दूसरे से घुल-मिल जाते हैं...

शाम की हैलोवीन पार्टी को लेकर पूरी डीमॉटफर्ट युनिवर्सिटी के छात्र उत्सुक हैं...

"निशा आज शाम की पार्टी में कौन सी ड्रेस पहनने वाली हो?" चलते चलते अलका ने पूछा जिसे सुन कर सायमन के कान खड़े हो गए।

"यार... यदि बता दिया तो पार्टी का सारा आकर्षण ही खत्म हो जाएगा।"

"मुझे तो ठीक से यह भी नहीं मालूम कि हैलोवीन मनाते क्यों है..." अलका ने अपनी अज्ञानता को छुपाने का बिल्कुल भी प्रयत्न नहीं किया।

"चलो इस इतिहास के जीनियस से पूछते हैं कि हैलोवीन क्यों मनाई जाती है रास्ता भी अच्छे से कट जाएगा।" किशन की पीछे से आवाज आई।

"हैलोवीन के विषय में तो यहाँ का बच्चा बच्चा जानता है किशन। यह बता कर कौन सा तीर मार लेगा..." निशा ने सायमन को छेड़ा...।

"ऐसी बात है तो चलो तुम ही बताओ..." सायमन तुनक के बोला।

"क्या यह तुम्हारा चैलेंज है या... " निशा ने सायमन के सुर में ही पूछा।

"चैलेंज ही समझ लो...।"

"ऐसी बात है तो सुनो... तुम भी क्या याद रखोगे... निशा सिर ऊँचा करके बताने लगी... हैलोवीन सदैव 31 अक्टूबर को ही आती है। दुकानें कुछ समय पहले से ही खास इस त्यौहार की चीजों से भर जाती हैं जैसे चेहरे पर लगाने वाले भिन्न-भिन्न मुखौटे, पोशाकें, बच्चों को आकर्षित करते हुए खिलौने आदि। यह त्यौहार केवल ब्रिटेन में ही नहीं अमरीका के साथ-साथ और भी बहुत से देशों में मनाया जाता है। त्यौहार कोई भी हो बच्चे उसका भरपूर मजा उठाते हैं फिर ये त्यौहार तो है ही खास सायमन जैसे बच्चों के लिए।"

"हाँ... आगे बोलो... सहायता की आवश्यकता हो तो बता देना।" सायमन चिढ़ कर बोला।

निशा को सायमन को चिढ़ा कर बड़ा मजा आ रहा था। सायमन की ओर देखते हुए उसे जीभ दिखा कर वह आगे बताने लगी... "सायमन अगर तुम्हें ना मालूम हो तो बता दूँ कि करीब हर त्योहार उस समय की फसल से संबंधित होता है। अक्तूबर के महीने में छोटे बड़े पीले रंग के कद्दुओं की फसल तैयार हो जोती है। उस दिन लोग बच्चों के लिए कद्दू खरीदते हैं। इन कद्दुओं में तेज चाकू से मनुष्य के मुखाकार के छेद किए जाते हैं। कद्दू के ऊपरी भाग से एक गोलाकार टुकड़ा काट कर उस के अंदर का सारा गूदा बाहर निकाल लेते हैं जो पकवान वगैरह बनाने के काम आता है। जब कद्दू अंदर से खोखला हो जाता है तो अँधेरा होते ही उसमें दिया या जलती मोमबती रख कर ऊपर से यह कटा हुआ गोलाकार टुकड़ा रख देते हैं जो तेज चलती हवा से मोमबती बुझ न जाए। कद्दू को घर के अंदर नहीं दरवाजे के बाहर रखते हैं। जो मनुष्य के मुखाकार के छेद उस पर किए होते हैं मोमबती की रोशनी उन में से छन कर बाहर निकलती है और देखने में वह कद्दू बड़ा भयानक लगता है। ऐसे जगमगाते हुए कद्दू हैलोविन के दिन करीब हर घर के बाहर मिलते हैं जिसका अभिप्राय होता है घर में सुख शांति होना और बुरी आत्माओं को बाहर निकालना।"

"तुम एक बात भूल गई निशा घर से बाहर तो बच्चे निकलते हैं उस दिन अँधेरा होते ही चेहरों पर मुखौटे लगा कर लोगों को डराने के लिए।"

"हाँ सायमन घर-घर में दस्तक दे कर बच्चे पूछते हैं "ट्रिक या ट्रीट"। यानी आप हमें कुछ देंगे या हम अपनी शैतानियों से आपको डराएँ या उल्लू बनाएँ। लोग प्रसन्नता पूर्वक बच्चों को चॉकलेट, बिस्कुट, पैसे आदि देते हैं। इस दिन आतिशबाजी भी खूब चलती है और पार्टी का दौर भी होता है। कभी-कभी कुछ शैतान बच्चे मस्ती के लिए बड़े बुजुर्गों को डरा कर मजा लेते हैं। इस प्रकार शीत ऋतु के आगमन का स्वागत किया जाता है...।"

सायमन बड़े ध्यान से निशा की बातें सुनते हुए बोला... "कमाल है निशा... हैलोवीन के विषय में इतने विस्तार से तो मुझे भी नहीं मालूम था जब कि यह हमारा ही त्यैहार है जिसे मैं बचपन से मनाता आ रहा हूँ। हम तो केवल यही जानते हैं कि इस दिन लोगों को डरा कर मजा किया जाता है।"

"जी हाँ... यह बताने के लिए कि हम भी इसी देश के नागरिक होने के नाते यहाँ की हर चीज में रुचि व उसका ज्ञान रखते हैं।"

"हूँ... मान गए देवी जी। अब आज्ञा हो तो युनिवर्सिटी की ओर प्रस्थान करें।"

"हैलोवीन तो बहुत कुछ हमारे पंजाब के त्यौहार लोहड़ी से मिलता है..." चलते हुए अलका बोली जो पंजाबी है।

"अच्छा लोड़ी में क्या करते हैं अलका...?"

"लोहड़ी भी सर्दियों का त्यौहार है। इस में भी बच्चे घर-घर जा लोहड़ी गा कर माँगते हैं। शाम को सारा घर परिवार पड़ोसी रिश्तेदार एक स्थान पर इकट्ठे होते हैं। लकड़ियाँ जला कर अग्नि पूजा होती है। क्यों कि यह भी शीत ऋतु का त्योहार है इस लिए तिल, रेवड़ी, मूँगफली आदि जो सर्दियों की चीजें हैं खाई जाती हैं। अग्नि के चारों ओर गाना-बजाना एवं खाना-पीना रात देर तक चलता है।"

"क्या बात है अलका... हैलोवीन दीवाली से भी तो मिलता है जो भारत का अहम त्यौहार है। दीवाली से पहले नर्क-चौदस आता है जिसमें घर की साज-सज्जा करके एक जलता दीपक घर के बाहर रखते हैं। जो कि अंधकार पर उजाले का प्रतीक है।"

"देखा जाए तो यह सब त्यौहार कितने मिलते जुलते हैं।" बातें करते हुए सब युनिवर्सिटी तक पहुँच गए।

यहाँ डीमॉटफर्ट युनिवर्सिटी के विद्यार्थियों में भी हैलोवीन का उत्साह देखने वाला है। शाम को एक फैंसीड्रेस पार्टी है जिसका सब को बहुत समय से इंतजार था। तरह तरह के कपड़ों और मुखौटों से पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ है। हर कोई एक दूसरे को पहचानने की कोशिश कर रहा है। सब लोगों ने मुखौटा ही नहीं लगाया हुआ बल्कि आवाज बदलने का भी प्रयत्न किया जा रहा है। यही आज की प्रतियोगिता है। अंत तक जो नहीं पहचाना जाएगा वह विजेता होगा।

नजरें मिलते ही सायमन निशा को पहचान कर अपनी खुशी ना रोक पाया और जोर से चिल्लाया, "निशा..."

"ऊँ... सायमन... सारा मजा किरकिरा कर दिया।" इस प्रकार निशा और सायमन दोनों प्रतियागिता से बाहर हो गए।

निशा जाकर दोस्तों का हाथ बँटाने लगी। मेज पर खाने-पीने के पकवानों से मेज सजी हुई है। चारों ओर बस मस्ती का माहौल है। निशा अपने दोस्तों के साथ मिल कर सबको खाने पीने का सामान परोसने लगी। सायमन दूसरे दोस्तों के साथ मिल कर खाने में जुट गया।

जैसे शीत ऋतु अपना रंग दिखा रही थी वैसे ही पढ़ाई भी जोर पकड़ रही थी। बहुत से विद्यार्थी दूसरे देशों से भी पढ़ने के लिए आए हुए हैं जिन्हें यहाँ की भाषा, तौर-तरीके समझने में थोड़ा समय लग रहा है। प्रत्येक देश का अपना रहन-सहन व भाषा होती है। चाहे अंग्रेजी भाषा सब पढ़ कर आते हैं किंतु जिस देश के लोग बोलते ही नहीं सोचते भी अंग्रेजी में हों तो उन का ऐक्संट समझने में थोड़ी मुश्किल तो होती है।

***