बदनाम राखी Singh Srishti द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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बदनाम राखी

बेहद खूबसूरत लगता है ना रात के वक़्त सफर करना और इन ठंडी हवाओं से ना जाने कितनी बातें करना , इन तारों का जगमगाना और आसमान से चांद का हमारा पीछा करना सब इतना ख़ूबसूरत लग रहा था मानों अब स्वर्ग ही मिल गया हो पर कहते हैं ना कि बिना मरे स्वर्ग कहां मिलता है ठीक वैसे ही अगर ज़िन्दगी में दुःख न आए तो ये कुदरत को भला कौन देखता है इसकी खूबसूरती को कौन समझता है ?

और शायद ज़िन्दगी में पहली बार दुःख या यूं कहे धोखा हमको भी मिला था । पहली बार किसी से इश्क़ हुआ था है। हां पहली बार!

वो सबसे अलग इसलिए लगता था क्योंकि वह खुद लड़कियों के लिए आवाज़ उठता था। अगर इस दुनिया में सच में द्रौपदी के श्री कृष्ण कही होते तो मुझे उस में ही दिखे इसलिए मैं उससे काफी प्रभावित हो चुकी थी। उसे मैं कब और क्यों पसंद आयी ये मैंने उससे कभी नहीं पूछा । मुझे लगता था कि जो इंसान लड़कियों के साथ गलत होते नहीं देख सकता है वह खुद क्या कभी गलत करेगा ।

और अब हम साथ नहीं है । क्योंकि हमारा इश्क़ तो शायद उसी दिन ख़तम हो गया था । हां उसी दिन जिस दिन वो………

क्या सोच रही है बैठ के अकेले अकेले?

"कुछ नहीं" मैंने ट्रेन की खिड़की की ओर से मुंह शीला की तरफ करके जवाब दिया।

शीला मेरी दोस्त है और आज हम दिल्ली से लखनऊ वापस जा रहे हैं।

"तूने कुछ खाया?"

"हां " मैंने जवाब दिया और शीला अपने फ़ोन को चलाने लगी । फ़िर मैं एक बार फ़िर से अपने अतीत के पलों में ख़ुद को झकझोरने लग गई।

तो मैं क्या बता रही थी? हां तो मुझे उससे बेहद गहरा इश्क़ हो गया उसे भी मुझसे उतना ही था । हम साथ में मिलकर अब एक दूसरे का साथ देते थे । भरोसा इतना की शायद ही कभी एक दूसरे पर शक हुआ होगा। उसके सारे दोस्तों की अब मैं बिना शादी किए ही भाभी थी और वो मुझे प्यार से भाभी ही बोलते थे मुझे थोड़ा अजीब जरूर लगता था पर मैं उनकी भावनाओं को समझ जाती थी। उसका एक भाई भी था। जो अब मेरा भी भाई बन चुका था। मैं उसे अपने सगे भाई की तरह ही मानती थी। वो भी शायद बहन ही समझता था। रक्षा बंधन के दिन मैं उससे मिलने उसके घर गई क्योंकि उसके और अपने भाई के लिए राखी जो बांधनी थी हमने भईया को राखी बांधी और उससे मिलने के बाद अपने घर के लिए निकलने ही वाली थी तभी अचानक से " अरे बेटा कहां जा रही हो?" पीछे से आंटी की आवाज़ अाई। "आंटी घर जा रही हूं टाइम से पहुंचना भी जरूरी है ना वैसे भी बहुत लेट हो गई हूं।" मैंने जैसे ही बोला उन्होंने गुस्से में आकर मेरा हाथ पकड़ कर अन्दर की तरफ खींचते हुए मेरी मां के अंदाज़ में बोली " बेटा समझ नहीं आता क्या की शाम हो गई है और घर पहुंचने में रात हो जाएगी? मैं अभी तुम्हरे घर पर बात कर लेती हूं तुम आज यही रुक जाना।" जैसा कि आंटी ने पापा से बात की और आज मैं यही रुकने वाली थी सब बेहद ख़ुश थे । रात का खाना सबने प्यार से खाया और आज तो मैं ही महेमान थी तो सबने हमको खूब प्यार और सम्मान दिया । सब सोने चले हम भी अकेले रूम में सोए थे । रात के क़रीब 2 बजे होंगे मैंने अपने बिस्तर में किसी की आहट महसूस की पर शायद गहरी नींद और थकावट के कारण मैंने उठना ज़रूरी नहीं समझा दूसरे ही पल मेरे साथ कुछ अजीब अजीब हरकतों को अहसास होने लगा जिसके कारण अब मेरी नींद का दूर दूर तक पता नहीं था । मैं ज्यों ही पीछे मुड़ी तो एकदम से दंग रह गई। कुछ बोल पाती उससे पहले मेरे मुंह पर हाथ लगाकर मुझे चुप कराने की बहुत कोशिश हुई पर जैसे तैसे मैं ख़ुद को आज़ाद कराकर बाहर की तरफ़ भागी । आंगन में शोर मचाते हुए मैं हर किसी को आवाज़ दे रही थी कि उसने मुझे चुप कराने की और रोकने की तमाम कोशिशें, और मुझे न जाने कितनी धमकियां देना फ़िर से शुरू कर दी तभी अचानक से कार्तिक (मेरा प्यार) भी बाहर आ गया। उसने अपनी पूरी जिम्मेदारी को समझते हुए मुझे उससे छुड़ाकर अपने पास दूर खड़ा कर लिया उसी पल मुझे ऐसा अहसास हुआ कि अब मुझे अपने लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं है । कार्तिक ने मुझसे बड़े प्यार से सहानुभूति के अंदाज़ में पूछना शुरू किया।

"ठीक हो अब? और क्या हुआ?" उसके इतना मात्र बोल देने भर से मेरी अब तक की हिम्मत टूट गई और मेरी आंखों से सावन की बरसात की तरह आंसू बहने लगे। उसने जैसे तैसे मुझे समझकर चुप कराकर पूरी बात पूछी तो मैंने अब तक जो हुआ और भैया ने जिस तरह मेरे साथ गलत हरकत की उसको बताया। उसने भैया की तरफ देखते हुए बहुत ही गुस्से में उनको जलील किया और मारने के लिए भी गया पर सबने उसको पकड़ लिया। मैंने ये उम्मीद कर रखी थी की अब ये भैया को आसानी से तो नहीं छोड़ेगा और मैंने इसलिए उससे पुलिस में शिकायत की बात कही ही की उसने मेरे होंठो पर अपनी उंगली रखकर कहा पागल हो क्या इतनी सी बात को कहा से कहां ले जा रही हो। मुझे उसके इस अंदाज की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी और मैं उसी पल उसकी तरफ देखती रह गई। मुझे लगा कि जो इंसान दूसरों के लिए आवाज उठाता है वह मेरे लिए क्यों नहीं ?और मैं उससे कुछ सवाल करती इससे पहले ही मैंने उसकी आंखों में मेरी फिकर से कहीं ज्यादा उसके भाई के लिए प्यार और अपने घर के लिए इज्जत नज़र आ रही थी ।उसने कहा कि "पागल हो क्या इससे हमारी और तुम्हारी दोनों की बदनामी होगी इसीलिए अच्छा ही होगा कि तुम यह सब भूल जाओ और भैया से दूरी बनाकर रहो। हम अब इससे बिल्कुल मतलब नहीं रखेंगे प्लीज भूल जाओ।" उसी पल मेरी दुनिया उजड़ गई ।जिस बात के लिए मुझे वो पसंद था उसने मुझसे ज्यादा अपनी फैमिली और को ध्यान दिया। मैंने उसी पल घर जाने का फैसला कर लिया और मैं रात को ही घर आने के लिए अपने पापा को फोन कर दिया और मैं वापस आ गई। उस दिन के बाद से हमने कभी उससे कॉन्टैक्ट आज तक नहीं किया उसने बहुत बार कोशिश की पर मेरे मन में अब उसकी वो छवि उतर चुकी थी मैंने जिससे प्यार किया था वह इतना कमजोर और छोटी सोच रखेगा ये मैंने कभी सोचा नहीं था ।इसलिए मैंने उसी पल सब खत्म कर दिया। मैंने बस उसके भाई से इतना ही कहा कहा कि अगर तुम्हारे मन में मेरे लिए कुछ ऐसा था तो राखी नहीं बंधवानी चाहिए थी , भाई बहन के रिश्ते को बदनाम नहीं करना चाहिए था। तुम्हारी इस हरकत ने राखी को बदनाम कर दिया है और शायद अब दुनिया में किसी को भी भाई बनाने के विश्वास को भी कमजोर कर दिया है।