फ़रवरी का महीना और सर्द की विदाई शुरू हो चुकी थी अब सर्दी को लोग बस एक लंबे समय से झेल रहे मेहमान की तरह ही नापसन्द कर रहे थे । अब तो ना ही उसके लिए कोइ उत्साह था और ना ही उसका कोइ भय । एक तरफ सर्दी की विदाई हो रही थी तो दूसरी तरफ़ किसी नए चंद दिनों के महमनो के आने का स्वागत । बाजारों में भी हर तरफ़ उसके आने के ही संकेत नजर आ रहे थे। कहीं गुलाबों से सजी दुकानें तो कहीं दुकानों में सजे रखे गुलाब बस हर तरफ़ श्रंगार रस की फुहार दिख रही थी। बात ही कुछ ऐसी है या यूं कहें ज़माना बदल गया है । ये फ़रवरी का महीना अब साधारण महीनों की तरह नहीं रहा इसका एक नया रूप भी समाज में सूर्य ग्रहण की ही तरह प्रभावित हो रहा है। जो रहता तो बेहद कम समय के लिए ही है पर अपना प्रचंड रूप दिखा जाता है। हां जी ये महीना है प्यार का , मोहब्बत और इश्क न जाने कितने ही और नाम है इसके । ये भारतीय संस्कृति में एक नया त्योहार और शामिल हो गया है ख़ास कर युवाओं में इसका उत्साह जोरो से देखने को मिलता है। हर तरफ बस वेलेंटाइन का माहौल था । बाहर की तो बात ही छोड़ो हर घर में अब इसका खुमार नज़र आ रहा था। आज रमेश भी ऑफिस से आते हुए रास्ते में एक बच्चे से फूल ख़रीद कर लाया । घर में घुसते ही वो बाबू ..... बाबू..... कहकर पुकारने लगा । घर में कोइ नज़र ही नहीं आ रहा था। शांत और साफ पड़े घर में एक तस्वीर दीवाल पर लगी है जो
एक खुशहाल और बड़े परिवार का परिचय दे रही थी। टीवी पर डोरेमॉन नोबिता की आज फ़िर से मदद करने से मना कर रहा है और हमेशा की ही तरह नोबिता आज भी डोरेमॉन को इमोशनली ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया है। रमेश वहां से बाहर निकलते हुए फ़िर से ज़ोर ज़ोर से बाबू…. बाबू…. कहते हुए निकला आंगन से होते हुए वो दलान की तरफ़ बढ़ा तो उसे आंगन में कपड़े फैलाते हुए मयूरी मिली बोली "क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो और किससे ढूंढ रहे हो?" दरसअल मयूरी रमेश की पत्नी हैं और उसने बड़े ही प्यार और संस्कारों से अपने परिवार को बांध रखा है। पर रमेश वहां से बिना जवाब दिए आगे बढ़ गया । मयूरी फ़िर से अपने काम में लग गई । बाबू… बाबू.. कहां हो ? रमेश आखिरकार पीछे वाले कमरे में पहुंचा जहां उसे उसकी बाबू मिल ही गई और वो बोला " तो यहां हो तुम! मैं कब से तुम्हें ढूंढ रहा हूं। पता है आज तुम्हरे लिए क्या लाया हूं ?
"क्या लाए हो?" एक धीरे से बड़ी प्यार भारी आवाज़ आई। रमेश ने सिर हिलाकर "कहा तुम भी न" फ़िर सामने से धीरे से मुस्कुराते हुई मयूरी हांथो में चाय की प्याली देते हुई बोली " ये लो दादी जी आप यही पर बैठकर आराम से चाय पीते पीते इनसे बात करो तब तक मैं रात के खाने की तैयारी करती हूं।" ये दादी जी हैं जिनका नाम कांताबाईं हैं दरसअल ये रमेश के घर पर सालो से काम करती थीं रमेश ने अपना पूरा बचपन इनके साये में बिताया हैं और उनकी इस उम्र मे इनके प्रति उनके बहू बेटों का दुरव्यहार रमेश से सहन न हुआ तो वो इन्हे अपने घर ले आया और घर में अपनी मां की तरह सम्मान देता है और अपनी मां से भी ज्यादा प्यार करता है।
रमेश: बाबू आज पता है क्या है?
कांता: क्या है लल्ला?
रमेश : आज वेलेंटाइन डे है
कांता: ये क्या है लल्ला
रमेश: आज प्यार का दिन है सब अपने अपने प्यार को कुछ न कुछ उपहार देते है जिसे वो सबसे ज्यादा प्यार करते हैं न और जिसे खोना नहीं चाहते है उससे आज I love you बोलकर गुलाब देते हैं।
कांता : अच्छा ये सब तो हमारे जमाने में कभी न हुआ आजकल पता नहीं क्या क्या होने लगा है।
रमेश : हां मेरी बाबू आज मेरे लिए तो तुम ही सब कुछ हो। यह बोलते हुए रमेश कांता को गुलाब का फूल पकड़ाने लगा।
कांता बड़े असहज भाव से हाथ जोड़ते हुए बोली" नहीं नहीं लल्ला ये क्या कर रहे हों हमको अपने घर पर रखा है और चारों बखत का खाना देते हो वो ही काम है क्या। ये सब तो मयूरी को दो वो बहुत खुश होगी"
इतने में ही मयूरी अंदर टेबल पर कुछ दवाइयां और पानी का गिलास रखते हुए बोली "क्या बात है दादी जी आजकल आप बड़े नखरे करने लगी हो"
इतने में सारे घर वाले कांता को समझाने लगे " अरे नहीं तुम पर कोइ अहसान नहीं कर रहा है जब तक तुममें समर्थ था तब तक तुमने मेरे घर वाले के काम किए हैं अब तुम्हारी बारी है तो तुम्हारी भी तो सेवा होनी चाहिए न"
यह सब सुनकर कांता के आंखो में आंसू आ गए और वो बोलने लगी साहब आप सब बड़े ही नेक दिल हो वरना दुनिया आजकल तो अपनों के लिए तो करती नहीं हैं दूसरों को क्या बोलूं मेरे सगे बेटे बहुओं से तो मेरा खयाल रखा नहीं गया।
रमेश: अरे मेरी कांता बाबू इस टाइम सेंटी क्यों होती हो मैं हूं न तुम्हारा खयाल रखने के लिए । अब जल्दी से ये नई सारी पहनकर आओ मैं भी तो देखूं मेरी जान आज कितनी बिजलियां गिराती है। कांता: हट बेशर्म कहीं का
सब हसने लगे और कांता को प्यार से वो सारी और गुलाब रखने के लिए मनाने लगे ।