आधी दुनिया का पूरा सच - 26 Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आधी दुनिया का पूरा सच - 26

आधी दुनिया का पूरा सच

(उपन्यास)

26.

रानी को चन्दू की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था । उसे उस समय की घटना याद हो आयी, जब उसने पहली बार चन्दू और नन्दू कौ देखा था । उस दिन वह मौसी की दुकान में बर्तन धो रही थी और अचानक उसका ध्यान उन अभद्र-अश्लील शब्दों पर जा टिका था, जो उसको लक्ष्य करके कहे जा रहे थे । अब रानी के मनःमस्तिष्क में बार-बार एक ही प्रश्न उठ रहा था कि जिनको मौसी ने नितान्त अपरिचित राह चलते बिगडैल आवारा लड़कों की भाँति हरामी ! कुत्ते ! आदि गालियाँ देकर उनके ऊपर पत्थर फेंका था और जलती लकड़ी से जलाने की बात कही थी, वह मौसी आज उन लड़कों को मेरे पास क्यों और कैसे भेज सकती हैं ? यह सोचते हुए उसने चन्दू की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा और बोली -

"तुम वही हो न ? जिन्हें मौसी ने गालियाँ देते हुए अंगीठी की जलती हुई लकड़ी मेरे हाथ में थमाकर उन्हें मारने के लिए कहा था और खुद भी उनके ऊपर पत्थर का टुकड़ा फेंका था !"

"हाँ ! पर तू हमें नहीं जानती है ! हम तुझे बता देते हैं कि तेरी तरह ही हम भी मौसी के ही बेटे हैं !"

"अच्छा ! मेरी तरह कैसे ?" रानी ने चन्दू से कहा ।

रानी का प्रश्न सुनकर चन्दू कुछ क्षणों तक मौन रहा और वह चाहे-अनचाहे अपने गुमनाम अतीत में विचारने लगा था । उस समय चन्दू की आँखों में मौसी के प्रति कृतज्ञता स्पष्ट देखी जा सकती थी । रानी को अतीत के झरोखे से मौसी के विशाल मातृत्व का दर्शन कराते हुए चन्दू ने कहा -

"सड़क पर भीख मांगते थे हम दोनों। एक राक्षस था, जो हम दोनों को भीख मांगने के लिए मजबूर करता था और भीख में मांगे हुए सारे पैसे हमसे छीन लेता था । हमारे पैसे छीननै के बाद भी वह हमें भर-पेट खाना नहीं देता था । तब मौसी ने हमें सड़क से उठाकर उस जल्लाद के अत्याचारों से मुक्त कराया, माँ जैसा प्यार दिया और कमाकर पेट भरना सिखाया !"

"चूँकि मौसी के स्वभाव से रानी भली-भाँति परिचित थी, इसलिए चन्दू की बातों में उसे सत्य का अंश प्रतीत हो रहा था । फिर भी वह भोजन की ओर हाथ नहीं बना सकी । यह देखकर चन्दू ने नन्दू से कहा -

"नन्दू, चल यहाँ से ! शायद यह हमसे शरमा रही है ! जब हम यहाँ से चले जाएँगे, तब ही यह खाना खाएगी !"

यह कहकर चन्दू वहाँ से उठकर रेलवे जंक्शन की ओर चल दिया । नन्दू भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा । जाते-जाते एक बार दोनों पुन: वापिस मुड़े और बोले -

"घबराना नहीं ! हम दोनों यहीं आस-पास ही रहेंगे और थोड़ी देर बाद आकर तुझे टिकट घर पहुँचा देंगे !"

उनके जाने के पश्चात् रानी ने उनका दिया हुआ भोजन खा लिया। किन्तु अभी भी उसके अंतःकरण से अनेकों विरोधाभासी स्वर उभर रहे थे। भोजन करने के कुछ ही समय पश्चात् उसमें नई ऊर्जा का संचरण होने लगा। ज्यों-ज्यों उसमें ऊर्जा का संचार हो रहा था, उसी अनुपात में चन्दू और नन्दू के प्रति उसके दृष्टिकोण में परिवर्तन हो रहा था।

शाम के लगभग सात बजे दोनों युवक वापस लौट आये । उनके आते ही रानी के मुख से अनायास निकल गया -

"मौसी की तबीयत कैसी है ?"

रानी का प्रश्न सुनकर चन्दू और नन्दू दोनों एक दूसरे की ओर देखने लगे। दोनों में से किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि रानी के प्रश्न का उत्तर दें, या ना दें ? यदि उत्तर दें, तो क्या दें ? अन्त में चन्दू ने उसके प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही कहा -

"चल जल्दी कर ! हम दोनों तुझे टिकट-घर पर छोड़ दें !" रानी उठकर खड़ी हुई और उनके साथ-साथ चलते हुए बोली -

"मौसी कल भी नहीं आयी थी ! पूरे दिन दुकान बन्द रही थी ! मैं रात तक दुकान पर बैठकर मौसी कि राह देखती रही थी !"

"अब मौसी इस दुकान पर कभी नहीं आएगी !" नन्दू ने कहा।

"क्यों ?" रानी ने मासूमियत से पूछा।

"क्योंकि मौसी हम सबको यहाँ नरक में छोड़कर स्वर्ग चली गयी है !"

चन्दू-नन्दू के शब्द सूनकर रानी एक क्षण के लिए जड़ हो गयी । उनके कहने का का तात्पर्य समझने के पश्चात् उसके मन:मस्तिष्क में यह दुविधा भी हुई कि उनके कथन पर वह विश्वास करें या न करें ? फिर भी मौसी के स्वर्गवास की कल्पना करते ही उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह चली और मुख से निकल पड़ा -

"कैसे ? कब ?"

"जहाज में बैठकर ?" नन्दू कहकर हँस पड़ा। चन्दू ने उसकी कमर में एक हल्का सा घूँसा मारकर उसे डाँटा -

"यह मजाक करने का टाइम है ! दिखाई नहीं देता रानी रो रही है !"

"अरे, तो यह कोई पूछने वाली बात है, स्वर्ग में कैसे गयी ?" नन्दू ने सफाई देते हुए कहा।

चन्दू ने रानी को समझाते हुए कहा -

"हमें नहीं पता मौसी कैसे मरी ! बस इतना सुना है कि रात को ठीक-ठाक सोई थी और सुबह मरी हुई मिली ! पर हमें इतना पता है कि मौसी को आँसुओं से सख्त नफरत थी ! उसने हमें हँसना सिखाया है, रोना नहीं ! तुझे भी नहीं रोना चाहिए !"

"तुम दोनों मौसी के साथ रहते हो ?" रानी ने पूछा ।

"रहते हो या रहते थे ?" नन्दू ने उत्तर देने के बजाय रानी के प्रश्न पर प्रश्न उठाते हुए हँसकर कहा। चन्दू ने रानी के प्रश्न का गंभीरतापूर्वक उत्तर दिया -

"नहीं ! हम यहाँ रेल में चाय बेचते हैं और रात में प्लेटफार्म पर ही सो जाते हैं ! कल सुबह मौसी के मरने की खबर देने के लिए हमारे पास उनको जानने वाला एक आदमी आया था ! तब हम दोनों वहाँ गए थे !"

"मौसी का परिवार ? मौसी के परिवार में कौन-कौन लोग हैं !"

रानी अपना प्रश्न पूरा कर पाती इससे पहले ही चन्दू बोल उठा -

"कौन-सा परिवार और कैसा परिवार ?" मौसी का कोई परिवार है, तो वह हम तीनों हैं ! हमारे अलावा मौसी का कोई परिवार नहीं था !"

चन्दू की बातें सुनकर रानी की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी, इसलिए वह प्रश्नात्मक मुद्रा में एकटक चन्दू की ओर देखे जा रही थी। मौसी के बारे में जानने की रानी की जिज्ञासा देखकर चन्दू ने पुनः कहना आरम्भ किया-

"मौसी ने ही एक दिन हमें बताया था - वह बहुत छोटी थी, जब उसके माँ-बाप ने चंद रुपयों की खातिर उसे एक बूढ़े के हाथों सौंप दिया था। उस खूसट बुड्ढे के पोते-पोती मौसी की उम्र के थे। कहने को तो वह बुड्ढा अपने अकेलेपन के जीवन से तंग आकर मौसी को ब्याहकर लाया था, पर उसने एक पल के लिए भी कभी मौसी को पत्नी का दर्जा नहीं दिया। दूसरी ओर बेटे-बहू को अपने बाप का बुढ़ापे में ब्याह रचाकर एक जवान लड़की को घर में लाना रास नहीं आया। दो मंजिले मकान में नीचे बुड्ढे के बहू-बेटे और पोते-पोती रहते थे, ऊपर मौसी को लेकर वह खुद रहता था। मौसी के आने के बाद बुड्ढे के बहू-बेटे और पोते -पोती ने ऊपर जाना बिल्कुल बन्द कर दिया था। इधर बुड्ढा न दिन देखता था, न रात, वह हमेशा मौसी पर चीखता-चिल्लाता रहता था ; बात-बे-बात मौसी को गालियाँ देता और जानवरों की तरह मारता-पीटता था। मौसी के रोने की आवाज सुनकर भी बुड्ढे के बहू-बेटे उसकी सहायता के लिए ऊपर नहीं आ सकते थे, क्योंकि वह उन्हें पहले ही धमकी दे चुका था कि बीच में आकर बोलने की गलती करने पर उन्हें घर से निकाल कर बाहर कर देगा ! दो वर्ष तक मौसी उस जल्लाद बुड्ढे के साथ नारकीय जिंदगी भोगती रही। बुड्ढे की सेवा करना और बदले में उससे गालियाँ और मार खाना, बस यही मौसी की जिंदगी बन गयी थी। मौसी के पास उससे छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं था !"

"फिर... ?" रानी ने पूछा ।

"फिर एक रात को बुड्ढे ने मौसी को बहुत मारा । इतना मारा कि मार खाते-खाते मौसी बेहोश हो गयी । मौसी को मरा मानकर बुड्ढा भी छत के पंखे से रस्सी बांधकर फाँसी के फंदे पर झूल गया। सुबह दिन चढ़े तक बुड्ढे की गाली-गलौच, मारने-पीटने और मौसी की रोने-चीखने की आवाज नहीं सुनायी पड़ी, तो बुड्ढे के बहू-बेटे ऊपर आये । वहाँ उन्होंने बुड्ढे को पंखे से लटका हुआ और मौसी को अधमरी हालत में धरती पर पड़े पाया। बुड्ढे के बहू-बेटों ने पड़ोसियों को बुलाकर उनकी सहायता से दोनों को अस्पताल में पहुँचाया । अस्पताल के डॉक्टरों ने बुड्ढे को मरा हुआ बता दिया और मौसी का इलाज करना शुरू कर दिया । मौसी को डॉक्टरों ने मरने से तो बचा लिया, पर वह अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद घर नहीं जा सकी। बुड्ढे के बेटे-बहू ने मौंसी को घर में नहीं घुसने दिया। उसके बाद मौसी अपना पेट भरने को इधर-उधर भटकती फिरती रही !"

"मुझे मौसी ने बताया था, वह अभी भी छोटे-से एक कमरे के घर में अपने दारूबाज आदमी के साथ रहती है !" रानी ने प्रश्नात्मक शैली में चन्दू से कहा।

"सच बताया था मौसी ने तुझे ! एक-एक टुकड़े के लिए दर-दर भटकती हुई मौसी फिर एक दुष्ट के हाथ में पड़ गयी ! उस दुष्ट ने मौसी की जवानी-भर मौसी से धन्धा कराया ! पेट भरने का कोई दूसरा रास्ता न होने से मौसी भी उस धन्धे में लगी रही। लेकिन, जब मौसी बूढ़ी होने लगी, तो उसने मौसी पर दवाब बनाया कि वह भोली-भाली मजबूर लौंडियों को बहला-फुसलाकर लाए और उसके धन्धे को चलाए ! मौसी ने ऐसा करने से मना कर दिया, तो उस दुष्ट ने मौंसी पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। अपनी आखिरी साँस तक मौसी उस दुष्ट का अत्याचार सहती रही, पर हम दोनों के बहुत कहने पर भी वह कभी उसे छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं हुई ! कहती थी - "इस दुष्ट ने मुझे तब सहारा दिया था, जब मैं भूख से तड़पती हुई दर-दर की ठोकरें खाती फिरती थी ! अब, जब इसको मेरे सहारे की जरूरत है, मैं इसको बेसहारा छोड़कर चली गयी, तो भगवान इस अपराध की सजा मुझे अगले जन्म में देगा !"

पूरी कहानी सुनने के बाद रानी के ह्रदय में मौसी के प्रति श्रद्धा उमड़ रही थी तथा चेहरे पर पीड़ा का भाव परिलक्षित हो रहा था ।

चन्दू ने रानी की जिज्ञासा शान्त करने के बाद कहा -

"रानी ! तू चाहे, तो मौसी की चाय की दुकान को तू चला सकती है ! पेट भरने के लिए अच्छा रहेगा ! अंगीठी मौंसी की है ही, बाकी थोड़ा-कुछ सामान दुकान शुरू करने के लिए एक बार हम दोनों लाकर दे सकते हैं ! उसके बाद तुझे दुकान से जो आमदनी होगी, उसी पैसे से अगले दिन दुकान चलाने के लिए सामान खरीद लिया करना !"

"मौसी भी तो ऐसे ही चलाती थी अपनी इस दुकान को !" नन्दू ने चन्दू का समर्थन करते हुए कहा ।

रानी ने भी चन्दू-नन्दू की सहमति में गर्दन हिला दी।

क्रमश...