आधी दुनिया का पूरा सच - 4 Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आधी दुनिया का पूरा सच - 4

आधी दुनिया का पूरा सच

(उपन्यास)

4.

रानी को लेकर युवती और उसके पति के बीच बहस छिड़ गई थी । पति- पत्नी दोनों ही संवेदनशील थे । दोनों ही बच्ची की सहायता करना चाहते थे, किन्तु पति का तर्क था -

"किसी अनजान बच्ची को हम अपने घर नहीं रख सकते हैं ! हमें पुलिस को सूचना देनी चाहिए ! बच्ची को सुरक्षित उसके परिजनों तक पहुँचाना पुलिस की ड्यूटी है !"

"हम इतने संवेदनाहीन नहीं हो सकते कि इस नन्ही-सी बच्ची को यह कहकर असहाय हालत में छोड़ दें कि यह पुलिस की ड्यूटी है !" युवती ने अपने पति को समझाते हुए कहा । युवती का पति उसकी बात से सहमत नहीं था। वह बार-बार यह दलील दे रहा था

"तुम्हें समझ क्यों नहीं आता है कि यह दिल्ली है । पुलिस को सूचना दिये बिना इस बच्ची को अपने घर में रखकर उल्टे हम ही इसका अपहरण करने के अपराध में फँस सकते हैं ! पुलिस ने हमें अपराधी घोषित करके अरेस्ट कर लिया, तो आगे का सारा जीवन जेल और कचहरी में बीतेगा !

जेल और कचहरी का नाम सुनकर युवती चुप हो गयी । वह रानी की सहायता करना चाहती थी, किन्तु स्वयं जेल जाने की कीमत पर नहीं । पत्नी की मौन संवेदना को महत्व देने के उद्देश्य से युवती के पति ने रानी से मुखातिब होकर पूछा -

"तुम्हारा घर कहाँ है ? कुछ अता-पता मालूम है ?"

"छतरपुर !" रानी ने कहा।

"अरे तो, छतरपुर तो यहीं पास में ही है ! पुलिस से बात करके कल सुरक्षित तुम्हारे माता-पिता के पास भिजवा दिया जाएगा !"

"दिल्ली में है, तो दूर होगा, तब भी डरने की कोई बात नहीं हे ! पुलिस से संपर्क करके कल हम तुम्हें तुम्हारे माता-पिता के पास सुरक्षित भिजवा देंगे !"

"दिल्ली में नहीं है, एम.पी. में है !" रानी ने अपने घर का पूरा पता बताते हुए कहा।

"तब तो हमारे लिए कठिन होगा !" युवती के पति ने कहा ।

रानी मौन होकर बारी-बारी से युवती और उसके पति को देखती हुई उनके निर्णय की प्रतीक्षा करने लगी । अंतिम निर्णय युवती के पति ने दिया-

"आज रात इसको यहाँ रख लो ! कल सुबह होते ही पुलिस को सूचित कर देना ! सारी स्थिति स्पष्ट कर देना, कैसे यह तुम्हें तुम्हारी गाड़ी में मिली थी !"

युवती ने सहमति में गर्दन हिला दी। रानी ने भी चैन की साँस ली कि कम-से कम यह रात तो यहाँ कट ही जाएगी और सुबह पुलिस को सूचना हो जाएगी। रानी को पूरा विश्वास था कि पुलिस द्वारा उसको सुरक्षित उसके माता-पिता के पास पहुँचा दिया जाएगा।

प्रातः आठ बजे युवती ने रानी को स्वादिष्ट नाश्ता कराया। नाश्ता कराते समय युवती ने उसको बताया कि वह अपने ऑफिस जाने से पहले ही उसको पुलिस के सुपुर्द करेगी और उसके बाद पुलिस उसको सुरक्षित उसके माता-पिता के पास पहुँचा देगी । रानी ने युवती से विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया -

"आंटी, आप मुझे रेल में बिठा दीजिए, मैं अकेली अपनी मम्मी-पापा के पास चली जाऊँगी !"

रानी का प्रस्ताव सुनकर युवती और उसका पति दोनों ठठाकर हँसने लगे -

"बच्ची ! तुम अभी बहुत छोटी हो ! हम ट्रेन में तुम्हें अकेले जाने के लिए नहीं छोड़ सकते ! यह पुलिस की जिम्मेदारी है कि तुम्हें तुम्हारे घर पर पहुँचाए ! उनका उत्तर सुनकर रानी थोड़ी-सी मायूस हो गयी, लेकिन कहीं ना कहीं उसके मन में यह विश्वास भी था कि अकेले जाने की अपेक्षा निश्चित रूप से वह पुलिस की देखरेख में ही अपने घर अधिक सुरक्षित पहुँचेगी । इसलिए रानी ने फिर कुछ नहीं कहा।

नाश्ता करने के पश्चात् जिस समय रानी ने युवती और उसके पति के साथ कार में बैठकर थाने जाने के लिए प्रस्थान किया, उस समय वह स्वयं को सुरक्षित हाथों में अनुभव कर रही थी और आश्वस्त थी कि शीघ्र ही वह अपने घर पहुँच जाएगी। कुछ दूर चलकर कुछ तकनीकी खराबी आने के कारण गाड़ी बंद हो गयी । बार-बार प्रयास करने पर भी गाड़ी स्टार्ट नहीं हो सकी । दम्पति को शान्त और परेशान देखकर रानी ने युवती से एक बार पुनः: कहा -

"आंटी, मैं एक चिट्ठी लिखकर मम्मी-पापा को भेज दूँगी, तो वह मुझे यहाँ से ले जाएँगे, तब तक मुझे आप अपने घर में रख लो ! जब तक मैं आपके घर में रहूँगी, घर का सारा काम करूँगी !"

रानी का प्रस्ताव सुनकर युवती के हृदय में मातृत्व उमड़ आया । उसके सिर पर वात्सल्य भरा हाथ रखते हुए पति से मुखातिब होकर मुस्कुराते हुए कहा -

"कितनी प्यारी बच्ची है ! रख लेते हैं, कुछ दिन अपने घर में ! आज ही इसके माता-पिता को खबर भेज देंगे कि उनकी बेटी हमारे पास सुरक्षित है, आकर उसको ले जाएँ !"

"तुम्हें क्यों नहीं समझ में आता है कि इस काम के लिए पुलिस है ! और तुम्हारा ऑफिस भी तो है ! इसको सम्हालने और इसके माता-पिता को तलाशने के चक्कर में तुम्हारी नौकरी जाती रहेगी !"

"समझ गयी !" युवती ने गर्दन हिला कर उत्तर दिया।

बहुत प्रयास करने पर भी कार के स्टार्ट नहीं होने पर उन्होंने रानी को लेकर पुलिस स्टेशन तक मेट्रो से जाने का निश्चय किया। मेट्रो स्टेशन में स्वचालित सीढ़ियाँ देखकर रानी उनका संबंध सुनी-सुनायी हुई भूत-प्रेत की कहानियों से स्थापित करते हुए अत्यधिक भयभीत हो गयी और रुककर वहीं खड़ी हो गयी । युवती ने भयग्रस्त रानी की मनःस्थिति को समझकर उसे समझाया कि ये स्वचालित सीढ़ियाँ विज्ञान और नये तकनीकी विकास का परिणाम हैं, किसी भूत-प्रेत की शक्ति का नहीं ! रानी का भय दूर करने के लिए युवती ने रानी का हाथ पकड़कर उसको अपने साथ सीढ़ियों पर चढ़ाया। ऊपर प्रथम तल तक पहुँचते-पहुँचते उसका भय दूर हो चुका था। युवती का स्नेह पाकर वह उत्साह में भरी हुई उछलकर बोली- "मैया री ! यह तो कमाल है ! ऊपर आने के लिए हमें बिल्कुल भी चलना नहीं पड़ा ! सीढ़ियाँ खुद ही चलती हैं ! घर जाकर मैं माँ को बताऊँगी, तो माँ को भरोसा नहीं होगा !" प्रत्युत्तर में युवती ने मुस्कुराकर रानी के गाल पर हाथ रख दिया। युवती की सकारात्मक क्रिया-प्रतिक्रिया देखकर रानी ने पुनः कहा -

"मैं एक बार नीचे जाकर दुबारा चढ़कर आ सकती हूँ ?"

"हाँ, बिल्कुल ! लेकिन संभल कर जाना !" युवती की अनुमति पाकर रानी स्वचालित सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने का आनंद लेने लगी । कुछ समय के लिए वह माता-पिता से बिछुड़कर भोग रही पिछले एक सप्ताह के कष्ट को भूल गयी थी। तत्पश्चात् वह दोनों के साथ आश्चर्य और उत्साह से मेट्रो में बैठी। मेट्रो के दरवाजे बंद होने पर "दरवाजों से हटकर खड़े हों !" सुनकर वह फिर प्रसन्नता से उछलकर बोली- "मैया री ! इस रेल के तो दरवाजे भी कैसे बोलते हैं ! और अपने आप ही बंद भी हो गए !"

रानी की बाल-सुलभ जिज्ञासाओं-चेष्टाओं से अब तक युवती का सुसुप्त वात्सल्य जागृत हो चुका था । अब वह उसे पुलिस के हाथों में सौंपने की बजाय तब तक साथ रखना चाहती थी, जब तक उसके माता-पिता उसको लेने के लिए आएँ, लेकिन पति की असहमति, पुलिस-कचहरी का डर और नौकरी की विवशता उसके ऐसा करने में अवरोध उत्पन्न कर रही थी ।

लगभग दस बजे युवती और उसका पति रानी को लेकर पुलिस स्टेशन में पहुँच गये । युवती ने थानाध्यक्ष के समक्ष पिछले दिन शाम की घटना का यथातथ्य वर्णन करके निवेदन किया -

"सर, बच्ची बहुत समझदार और बहादुर है ! आप सुनेंगे, तो दाँतो तले उंगली दबा लेंगे कि स्वयं अपनी सूझ-बूझ और साहस के बल पर यह बच्ची कितनी बड़ी विपत्ति से निकल कर आयी है ! अब आप कृपा करके बस इसको इसके परिवार से मिला दीजिए !"

"मैडम, अब आप निश्चिंत होकर अपने काम पर जाइए ! आपने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है, अब आगे हमारा काम है !"

थानाध्यक्ष का आश्वासन पाकर रानी को वहीं पर छोड़कर युवती अपने पति के साथ वापिस लौट गयी । उनके जाने के पश्चात पुलिस ने रानी के समक्ष प्रश्नों की झड़ी लगा दी। पुलिस के प्रश्नों के उत्तरस्वरूप रानी ने पुलिस को अपनी सारी आपबीती सुना दी, जो उसने पिछले एक सप्ताह में भोगी थी । सारी घटना का वर्णन करने के बाद रानी ने अपने मम्मी-पापा का नाम और घर का पता बताकर उनसे घर भेजने की प्रार्थना की । शाम होने तक उन्होंने रानी को थाने में बिठाये रखकर उससे संबन्धित लिखा-पढ़ी की औपचारिकताएँ पूरी की गयी और शाम को उसे एक अनाथ आश्रम में भिजवा दिया गया।

क्रमश..