Aadhi duniya ka pura sach - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

आधी दुनिया का पूरा सच - 3

आधी दुनिया का पूरा सच

(उपन्यास)

3.

तीसरे दिन शाम को रानी ने अपनी बाल-बुद्धि से सोची गई युक्ति को क्रियारूप देने का दृढ़ निश्चय किया। चूँकि रानी कई दिनों तक वहाँ रहते हुए वहाँ पर होने वाले अधिकांश क्रिया-कलापों से संबंधित अनुमान कर चुकी थी, इसलिए अपनी सफलता के लिए वह पर्याप्त आशान्वित भी थी । अब उसके समक्ष योजनानुसार साहस और सावधानीपूर्वक अपनी युक्तियों को क्रियान्वित करने की चुनौती थी ।

अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार शाम को भोजन लेकर आने वाले व्यक्ति की आहट सुनकर रानी सावधान होकर दरवाजे के निकट दीवार से चिपककर खड़ी हो गयी । ज्यों ही भोजन देने के लिए बाहर से दरवाजा खोला गया, रानी चुपके से बाहर निकल गई। रानी अपने विद्यालय की सबसे तेज गति की धावक थी। दौड़ने का वही अभ्यास उस विषम परिस्थिति में उसका साथी बन गया। दरवाजे से बाहर निकलते ही वह तेज गति से दौड़ी। जब तक भोजन लेकर आने वाले डरावनी शक्ल के उस व्यक्ति को रानी के बाहर निकलने का आभास हुआ, तब तक वह उसकी पहुँच से दूर जा चुकी थी। कुछ दूर तक वह "पकड़ो-पकड़ो" चिल्लाता हुआ उस दिशा में दौड़ा, जिस दिशा में रानी दौड़ रही थी । उसकी पुकार सुनकर सहायता के लिए उस परिसर में उपस्थित उसके अन्य साथी जब तक कुछ समझ पाते, तब तक तीव्र गति से दौड़ती हुई रानी परिसर से बाहर सड़क पर आकर उनकी दृष्टि से ओझल हो चुकी थी। सड़क पर आकर भी उसने दौड़ना बंद नहीं किया था । वह तब तक बदहवास दौड़ती रही, जब तक उसमें दौड़ने की शक्ति शेष रही ।

जब रानी दौड़ते-दौड़ते थक गयी, दौड़ने में सहयोग करने वाले हर एक अंग ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और उसकी साँस फूल गयी थी, तब दौड़ना बंद करके वह सड़क के किनारे पेट पकडंकर बैठ गयी । उस समय रानी ने स्वयं को एक ऐसी जगह पर पाया, जहाँ पर कुछ फल विक्रेता ठेली लगाकर फल बेच रहे थे और कुछ लोग फल खरीद रहे थे। रानी वहीं पर खड़ी हो गयी । तभी वहाँ एक कार आकर रुकी। रानी ने देखा, एक युवती गाड़ी से उतरकर गाड़ी को लॉक किये बिना ही फल खरीदने के लिए निकट खड़े फल विक्रेता के ठेले की ओर बढ़ रही थी । उसी क्षण रानी ने धीरे से कार का दरवाजा खोला अगली सीट के पीछे खाली स्थान में सिमट कर छिप गयी । पाँच-सात मिनट में युवती फल लेकर पुनः गाड़ी में आ बैठी । पकड़े जाने के भय से इस समय रानी ने अपनी साँसो के स्वर को पूर्णतः संयत कर लिया और आँखें बंद करके ईश्वर से प्रार्थना करने लगी । जब युवती गाड़ी स्टार्ट करके ड्राइव करने लगी, तब रानी ने राहत की साँस ली और अपनी साँसों के उतार-चढ़ाव को सामान्य करने लगी।

अभी रानी की साँसें सामान्य भी नहीं हो पाई थीं, इससे पहले ही युवती ने गाड़ी किसी निश्चित स्थान पर रोककर उसका इंजन बंद कर दिया। गाड़ी बंद होने पर रानी को एहसास हुआ कि अब वह अवश्य पकड़ी जाएगी। अगर पकड़ी नहीं गयी, तो बंद गाड़ी में भूखी-प्यासी दम घुट कर मर जाएगी। बचने का कोई उपाय नहीं था। दोनों में से कौन-सी स्थिति उसके लिए कम हानिकारक और कौन-सी अधिक घातक है, बाल-बुद्धि निर्णय नहीं कर पा रही थी। अतः सब कुछ प्रभु के ऊपर छोड़ कर उसने अपनी आँखें बंद कर ली।

उसी क्षण उसके शरीर पर कोमल स्पर्श के साथ कानों में रचनात्मक स्वर सुनाई पड़ा है - "ए ! कौन हो तुम ? मेरी गाड़ी में कब ? कैसे आए ? बाहर निकलो !"

प्रश्न स्पष्ट था । रानी उसका भाव-अर्थ समझ चुकी थी । किंतु, उत्तर देना इतना सरल नहीं था, जितने सरल प्रश्न थे। अतः रानी चुपचाप गाड़ी से बाहर निकली और दयनीय मुद्रा में उस युवती के समक्ष खड़ी हो गयी ।

युवती ने पुन: प्रश्न किया - "कौन हो तुम ? और मेरी गाड़ी में क्यों छिपी हुई थी ?"

"वे लोग मुझे पकड़ने के लिए मेरे पीछे पड़े थे। उनसे बचने के लिए आपकी गाड़ी में छिप गई थी !" युवती को रानी का उत्तर सुनकर जिज्ञासा बढ़ी, कि आखिर कौन लोग इस अबोध बच्ची को पकड़ने के लिए इसके पीछे पड़े थे ? अपने प्रश्न का उत्तर पाने और अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए उसने बात को आगे बढ़ाया -

"कौन थे वे लोग ? क्यों पकड़ना चाहते थे वे तुम्हें ?" युवती की सहानुभूति पाने और आश्रय पाने की आशा से प्रेरित होकर रानी ने आरंभ से अब तक अपने साथ घटित सारा घटनाक्रम युवती को बता दिया। सारा घटनाक्रम सुनकर युवती के हृदय में दया स्रोत फूट पड़ा । उसने संकटग्रस्त रानी पर वात्सल्यपूर्ण दृष्टि डाली और नम्रतापूर्वक स्नेहमयी शैली में बोली-

"अब कहाँ जाओगी?"

"पता नहीं !" क्षणभर की चुप्पी के पश्चात् रानी ने उत्तर दिया।

"चलो, आओ मेरे साथ !" युवती ने अपने साथ आने का संकेत करके स्नेहपूर्वक कहा । रानी युवती के साथ चल दी। उस समय रानी के मन में संतोष का भाव था। वह अनुभव कर रही थी कि उसके लिए इससे सुरक्षित जगह इस रात में कोई नहीं हो सकती। रानी बार-बार भगवान का धन्यवाद कर रही थी कि भगवान ने ही युवती को उसकी सहायता के लिए भेजा है !

अपने घर पहुँचकर युवती ने रानी को हाथ-मुँह धोने के लिए कहा और स्वयं उसके लिए भोजन परोसने लगी । जब रानी हाथ-मुँह धो कर बाथरूम से बाहर निकली, तभी घर में युवती के पति का प्रवेश हुआ। घर में प्रवेश करते ही एक नितान्त अपरिचित बच्ची- रानी को देखकर युवती के पति ने पूछा -

"यह बच्ची कौन है ?" युवती ने संक्षेप में बता दिया कि किस प्रकार रानी उसकी कार में मिली थी । युवती के पति को रानी का कार में मिलना और युवती द्वारा उसको घर में लाना एकदम असामान्य और किसी संकट को निमंत्रण देने वाला मूर्खतापूर्ण निर्णय लग रहा था । अतः गृहस्वामी होने के नाते उसने युवती पर प्रश्नों की बौछार कर दी -

"तुम यह कैसे कह सकती हो कि जो कुछ इस बच्ची ने तुमसे कहा है, वह सब-कुछ सत्य है ? और एक पल के लिए मान लेते हैं कि यह सच कह रही है, तो तुम मुझे बताओ कि किसी के पीछे बदमाश पड़े हों, तो तुम उसको अपने घर में रखोगी ? तुम्हें लगता है, तुम उसकी सुरक्षा कर सकोगी ? अरे, यदि बदमाशों को पता चल गया कि तुमने उनके शिकार को अपने घर में छिपाकर रखा है, तो इसकी छोड़ो, तुम्हें अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा करना भारी पड़ जाएगा ! तुम्हें क्या लगता है, तुम उन बदमाशों से लड़कर जीत सकती हो ? जब यह बच्ची तुम्हें तुम्हारी कार में मिली थी, तभी तुम्हें इसके बारे में पुलिस को सूचना नहीं देनी चाहिए थी ?"

युवती के पति की भाव-भंगिमा देखकर और उसके प्रश्नों को सुनकर रानी को शंका होने लगी थी कि उसको अभी रात में ही वापिस सड़क पर जाना पड़ेगा ! इस आशंका मात्र से ही वह भयभीत हो गई कि सड़क पर से वे लोग उसे ढूँढकर पुन: कोठरी में बंद कर देंगे ! रानी का बाल-मन माँ की सुनी हुई अनेक कहानियों को आधार बनाकर विविध काल्पनिक कहानियाँ गढ़ने लगा, जिनका केंद्र बिन्दु आज वह स्वयं थी ।

क्रमश..

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