रोबोट वाले गुण्डे-6 राज बोहरे द्वारा कल्पित-विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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रोबोट वाले गुण्डे-6

रोबोट वाले गुण्डे

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

6

उधर से प्रो. दयाल की आवाज़ थी।

अंदर से घबराते हुये भी उन्होंने बड़े इत्मीनान से दयाल साहब से बातं की और रिसीवर बन्द कर दिया। जब वे फिर खिड़की से बाहर ताकने लगे थे।

उन्हें पृथ्वी से दूर एक चित्र-परिचित यान दिखा - भारती। वे उसे गौर से देखने लगे। एक यात्री बाहर आकर अंतरिक्ष में तैर रहा था, फिर अचानक वह लौटा और यान में प्रविष्ट हो गया। अजय-अभय ने देखा कि एक विशाल पक्षी अपनी चौंच फैलाये उस यान की ओर बढ़ रहा है। उसकी चौंच खुली थी, और ऐसा लग रहा था कि पास आते ही एक क्षण में वह यान को निगल जायेगा।

लेकिन उस पक्षी का प्रयत्न व्यर्थ हुआ। वह पक्षी एक लम्बा चक्कर लगा कर लौट रहा था “गड़प” अबकि बार वह विशाल पक्षी भारती यान को निगल गया और उसका मुँह बन्द हो गया।

वह तेज गति से लौट रहा था, और उसका लक्ष्य वह लाल ग्रह था, जिसके उपर अनेक उपग्रह दिख रहे थे। अभय और अजय भौचक्के होकर यह सब देख रहे थे। उनके हृदय जोरो से धड़क उठे थे। वह आँख मुंदकर लेट गये। जाने कितना समय बीता, वे वैसे ही लेटे रहे। फिर उन्हें नींद आ गई एक तीखी घर-घराहट ने उनकी नींद तोड़ी अभय उत्साह से उठा। खिड़की से चिपक कर वह बाहर का नजारा देखने का प्रयास करने लगा, मगर उसे घबरा कर पीछे हट जाना पड़ा क्योंकि भारती को निगलने वाला वह पक्षी अब उनकी हवाई मोटर के ऊपर मड़रा रहा था।

अभय की घबराहट देखकर अजय ने आप देखा न था अपनी ओर की खिड़की खोली और बाहर छलांग लगा दी। आश्चर्य ! कि वह अधर में तैरने लगा था।

दूसरी ओर की खिड़की खोलने का प्रयास करके अभय को उतरने का अवसर ही नही मिला, वह विशाल पक्षी मुँह फैलाये आया और अभय उसके मुँह में हवाई मोटर सहित चला गया।

अजय इस दृश्य को देखकर सन्नाटे में रह गया था। उधर पक्षी एक लम्बा चक्कर लगाकर लौट रहा था। एकाएक अजय को जाने क्या सूझा कि वह उस दिशा में बढ़ने लगा जिधर से वह वक्षी लौट रहा था। चूंकि यह सारा घटना-क्रम अंतरिक्ष में गुजर रहा था, जहा कि हर चीज का बजन न के बराबर होता है ( पृथ्वी और दूसरे उपग्रहों से काफी दूर, जिसे सही अर्थ में शून्य कहा जा सके ) सो अजय आराम से बढ़ा रहा था।

वह पक्षी बिल्कुल निकट आया। अजय ने काफी दूर से ही देख लिया था कि पक्षीके फैले पंखो के नीचे उसके मजबूत पंजे भी है। पक्षी के पास आते ही अजय उछला और उसके एक पंजे को पकड़ लिया।

पंजा पकड़ने पर उसे पता लगा कि वह पंजा, धातु का बना है, और वह पक्षी जीवित पक्षी नही एक अंतरिक्ष यान है-“धातु का बना अंतरिक्ष यान ।” कुछ आगे जाकर पक्षी यान ने अपने पंजे पेट में सिकोड़े तो उसके साथ अजय भी यान के भीतर चला गया।

अंदर अनेक छोटी- छोटी मशीनें घरघराट के साथ चल रही थी। पक्षी की चाल काफी तेज हो चुकी थी।

काफी देर बाद प्रोफेसर दयाल को होश आया। उन्हंने अपने आप को अस्पताल में पाया। उनके पलंग के चारो ओर उनके सारे पड़ोसी जमा थे, एक ओर पुलिस कोतवाल भी खड़े थे।

ठाकुर केदारसिंह उनके बिल्कुल पास खड़े थे, पास ही उनकी पत्नि भी मौजुद थी। डरते-डरते दयाल साहब ने “ठाकुर केदारसिंह से पुछा ठाकुर साहब अजय ओर अभय नही दिख रहे” दयाल साहब वे स्कुल गये है अभी आते होगें काश की एसा सच हो दयाल साहब धीमे से बोले जिसे कोई दूसरा न सुन सका।

वे अपने आप को अब काफी स्वस्थ मेहसूस कर रहे थे। उन्हें जागा व बोलता हुआ देखकर डॉक्टर साहब पास आए और उनके सीने पर अपना आला रखकर उनकी धड़कने जांचने लगे।

डॉक्टर जब जाँच कर चुके, तब दयाल साहब बोले-” कृपया मुझे घर जाने दीजिये अब में बिल्कुल ठीक हुँ।

“प्रो. दयाल अब आप जा सकते है” डॉक्टर बोले और इतना सुनकर प्रो. दयाल एकदम अपले पलंग से उठ खड़े हुये।

ठाकुर केदारसिंह की जीप में ही दयाल साहब अपने घर पहुँचे। वे रास्ते भर चुप रहे थे। ठाकुर साहब की जीप के पीछे ही पुलिस की गाड़ी थी, जो धमाके रहस्य जानने के लिये प्रो. दयाल के पास आई थी।

दयाल साहब अपनी प्रयोगशाला में पहुचे और जल्दी से अपना रेडियो उठा लिया। इस रेडियो से उस रेडियो मशीन का सीधा संबंध था जो हवाई-मोटर में रखा था।

रेडियो चालू करके वे उसके उपर झुक गये और जल्दी-जल्दी बोले “हैला-हैलो,” हवाई मोटर में कौन है जल्दी जवाब दो।

उनके चुप होते ही रेडियो से आवाज आनी शुरू हो गयी । “हैलो दयाल अंकल नमस्ते ! हम अजय और अभय अंतरिक्ष से बोल रहे है। हवाई मोटर में बैठकर बड़ा मज़ा आ रहा है।”

रेडियो मे से सचमुच अजय और अभय की आवाज आ रही थी, जिसे सुनकर ठाकुर केदारसिंह और उनकी पत्नि चौंक उठी थी।

प्रोफेसर दयाल को शुरू से आशंका थी कि हवाई मोटर के बारे में उनके अतिरिक्त नौकर और अजय अभय जानते हैं पॉचवा व्यक्ति इस बारे में नही जानते हैं।

एक बार फिर प्रो. दयाल की आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा था वे सोनचे लगे थे कि ठाकुर साहब को में क्या जवाब दूँगा ? लोगो ने उन्हें संभाला।ं

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मड़राता हुआ वह यान एक ग्रह से उतर रहा था। उसके पंजे बाहर निकल रहे थे, तभी अजय ने होशियारी की ओर यान के भीतर ही एक कोने मे दुबक गया।

हवाई अड्डे जैसे विशाल मैदान में वह पंक्षी यान पक्षी की तरह एक दम से जाकर अपने पंजो पर बैठ गया और चौंच खोल दी।

जहाँ पक्षी यान की आँखे थी दो दरवाजे खुले ओर उसमें दो आदमी उतरे। अपनी हवाई मोटर में से झांकता अभय चौंका, नीचे उतरे आदमी जीते जागते आदमी न होकर मशीनी आदमी थे उनके ढ़ेरो नट बोल्टों से कसे हुये पुर्जो के बने हाथ पैर, आँखे, सिर आदि बड़े विचित्र से लग रहे थे।

उन मशीनी आदमियों ने खिड़की से झांकते अभय को इशारा किया तो वह डरते-डरते हवाई मोटर से बाहर निकला और पक्षी यान की चौंच मे से होकर बाहर कूद गया।

एक मशीनी आदमी की जलती बुझती पीली सी आँखे अभय पर टिक गयी, जबकि दूसरे मशीनी -आदमी ने हवाई मोटर खोलकर भीतर झांका और वहां किसी ओर को न पाकर वह चुपचाप बाहर निकल आया था। उसको क्या पता कि जिसको वह देखना चाहता था, वह उसके ठीक पीछे ही मशीनो के बीच दुबका हुआ एक पतली सी दरार में से मशीनी आदमी को जाते देख रहा था।

कुछ देर तक वहा खड़े रहकर मशीनी आदमी अपने बीच में अभय को घेरकर वहाँ से चल दिये।

अभय मन ही मन डर तो रहा था, मगर उसे यह नया ग्रह बड़ा विचित्र लग रहा था। उसको यह भी विश्वास था कि अजय कही पास ही मौजूद है।

मैदान में काफी दूर एक विचित्र सी कार खड़ी थी। दोनो मशीनी आदमियो ने अभय को उसमें बैठने का आदेश दिया था और उसके बैठते ही खुद भी उसमें बैठ गये।

एक मशीनी आदमी ने कार स्टार्ट की और पूरी गति से दौड़ा दी। सड़क बड़ी, और सूनी थी। सड़क के दोनों ओर खुब ऊचे और विशाल मकान बने हुये थे।

लगभग दो किलोमीटर चलने के बाद कार रूकी और अभय को लेकर दोनो आदमी उतरे।

सामने एक नीले रंग का बड़ा सा बंगला बन था। दोनो मशीनी आदमी उसी मकान के दरवाजे तक अभय को लाये और किबाड़े के उपर लगी एक चरखी को घुमाने लगे।

आश्चर्य !

दरवाजे में लगा किबाड़ एक ओर को सरक गया था और दूसरे मशीनी आदमी ने अभय को भीतर धकेल दिया था।