रोबोट वाले गुण्डे
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
1
भोर हो रही थी।
रात समाप्त हो चुकी थी, दिन निकल रहा था।
फौजी जासुस केदार सिंह के घर में हलचल थी। केदार सिंह खुद तथा उनके दोनों
बेटे अजय और अभय बहुत जल्दी जाग गये थे,एवं बार-बार- आसमान की ओर देख रहे थे। वे दोनों झटपट नहा-धोकर निपटे और प्रोफेसर सर्वेश्वर दयाल के घर की ओर दौड़ पड़े, जबकि केदार सिंह ने अपना टेलीविज़न शुरू कर लिया था।
सुबह के छह बजे थे।
सारे भारत वर्ष में खुशी का महौल था।
आज भारत अपने अन्तरिक्ष-इतिहास के सुनहरे पन्ने लिख रहा था।
ठीक साढ़े छः बजे भारत के तीन वेज्ञानिक अपने द्वारा बनाये एक यान से अन्तरिक्ष के लिये उड़ान भर रहे थे। इस घटनाक्रम का आंखों-देखा-हाल देखने के लिये लोग, अपने-अपने टेलीविज़न के पास खिसक आये थे।
“वन्दे मातरम्” राष्ट्रगान रेडियो पर बड़े मधुर स्वरो मे गाया जा रहा था। लोगो ने इस गाने के स्वर में स्वर मिलाकर गाना शुरू कर दिया। प्यारी मातृभुमि की बंदना करने वाला यह गाना सुनकर हर भारतवासी का माथा गर्व से उठ जाता हैं।
राष्ट्रगान के बाद एक महिला की आवाज टेलीविज़न पर आना शुरू हो गई ” आईये, हम आपको हैदराबाद ले चलें, वहॉ आज हमारे देश के तीन अन्तरिक्ष-वीर अपनी अन्तरीक्ष उड़ान शुरू कर रहे हैं।”
अब टेलीविज़न के पर्दे पर एक विशाल मैदान दिख रहा था जिसके बीचो-बीच एक बड़े से खम्भे से सटकर आसमान की ओर मुंह किये खड़ा नुकीला रॉकेट दिख रहा था, जो भारत के अन्तरिक्षयान “ भारती ” को ले जाना वाला था।
कुछ देर बाद एक बस उस मैदान में पहुॅची, और रॉकेट से काफी दूर रूक गयी। उसमें से तीन व्यक्ति उतरे, जिन्होंने खूब फूले-फले से चमकदार कपड़े पहन रखे थे।
इधर बस लौटी उधर वे लोग रॉकेट तक जा पहुँचे।
खम्भे से सटी एक लिफ्ट लगी थी। एक-एक करके वह तीनो लोग उस लिफ्ट के
सहारे रॉकेट के उपरी सिरे पर कसे हुये “भारती” में पहुॅच गये। ये तीनो लोग थे- जयंत कुलकर्णी, विक्रम और मुकुलनाथ चट्टोपाध्याय।
भारती में बैठकर जयंत कुलकर्णी ने माईक हाथ में लिया और बोले “हेलो डॉक्टर वर्मा, हम तीनो ठीक ठाक है, हमारा यान भी एक दम सही हालत मे हैं। ओवर।”
कितने आश्चर्य की बात है।
हैदराबाद से सैकड़ो किलोमीटर दुर बसे प्रांत मध्यप्रदेश के एक छोटे से कस्बे में, कॉलेज की प्रयोग शाला में बैठे प्रोफेसर सर्वेश्वर दयाल अपने कानो पर टेलीफोन लगाये ये सारी बातें साफ-साफ सुन रहे थे, उनके पास बैठे थे - अजय और अभय।
अंतरिक्ष भवन से बातें कर रहे, डॉक्टर वर्मा और कमल जयन्त के बार्तालाप में बाधा डालते हुये प्रो. दयाल बोल पड़े- “कर्नल जयन्त, तुम्हे देश के कोने-कोने में बैठे देश वासियों की कोटि-कोटि शुभकामनायें। आप अपने अभियान में सफल हों।”
अजय ने भी रिसीवर हाथ में लिया और बोला-“जयन्त अंकल, आपके लिये देश के तमाम बच्चों की ओर से भी शुभकामनायें।”
कर्नल जयन्त परेशान थे, ये बीच में कौन बोल उठा ? वे नही समझ पाये, की आखिर ये आवाजे कहा से आ रही हैं ? उन्होंने डॉक्टर वर्मा से पूछा तो वे भी नही बता पाये कि टेलीफोन पर कौन आदमी उनमें बात कर रहा हैं।
निराश होकर जयन्त और वर्मा पुनः अपने काम की बात करने लगे उन्हें परेशान पाकर अजय और अभय के साथ प्रो. दयाल भी हंस पड़े।
अंतरिक्ष भवन की भवन की भीड़ में एक बच्चा बहुत खुश नज़र आ रहा था, वह बच्चा अंतरिक्ष यात्री मुकुलनाथ अर्थात मुकुुलदा का बेटा सुकुल था।
वहॉ मौजूद सभी लोग उसकी बातों से बहुत प्रसन्न थें।
सुकुल ने अपनी आँखो पर दूरबीन लगा रखी थी और वह एक टक रॉकेट की औैर देख रहा था।
डॉक्टर वर्मा से जयन्त की बात पूरी भी नही हुई थी, कि वह आगे बढ़ा और डा0 वर्मा से बाला- “वर्मा अंकल, हमारे पापा से बात करने दीजिये न ?”
वर्मा जी ने रिसीवर सुकुल के हाथ में दे दिया और उसे उठाकर गोदी में ले लिया।
- “ जयन्त अंकल पापा से बात करवाईये न ? ” सुकुल बोला।
- “ हेलो बेटे ” मुकुल दा रिसीवर से बोल रहे थे कैसे हो बेटे ?
- “ हम तो ठीक है पापा, आप कैसे है ?
- “ मै भी ठीक हूॅ बेटा
- “ पापा आप असमान से भी फोन करेंगे न “
- “ हॉ बेटे ज़रूर करेंगे “
- “ पापा आप अपने साथ क्या-क्या ले जा रहे हैं ? “
- “ कैमरा है, मशीनें है, दवाईयां है, और भी बहुत कुछ हैं। “
- “ ये सब नही पापा सुकुल ने मुकुलदास की बात काटी-आप खाने की क्या-क्याचीज़ें ले जा रहे हैं ?
- “ ओ ये बात है, तो आप आसमान में पिकनिक के सामान की बात कर रहे हैं, तो सुनिये हम आम, नाशपाती, पपीता, दूध, कॉफी, विटामिन और पानी की ट्युब ले जा रहे हैं।
- “ ट्युब माने क्या पापा “
- “ यानी यह कि आसमान में यह सब चीज़ंे सीधी नही खाई जाती, बल्कि इसके रस की चटनी जैसी खाई जाती हैं। “
- “ अरे वाह पापा हमका भी खिलाईयेगा। “
- “ जरूर खिलायंेगे। हॉ, अब फोन डॉक्टर वर्मा को दीजिये “
- “ नमस्ते पापा “
डॉक्टर वर्मा को रॉकेट में सही हालत मिली, तो उन्होंने अपनी घड़ी देखी तो सवा छह बज रहे थे।
उन्होंने अपने दायी ओर बैठे वैज्ञानिक को इशार किया।
वैज्ञानिक ने उठकर अनेक बटन दबाये। सबकी निगाहे अंतरिक्ष भवन की दीवार पर लगे बड़े से पर्दे पर जम गई। पर्दे पर धीरे-धीरे नम्बर दिखने शुरू हो गये थे।
वहॉ उल्टी गिनती के नम्बर आ रहे थे, पहले तो फिर निन्यानवे, फिर अट्ठानवे फिर सत्तानवे आदि इसी प्रकार घटते हुये।
सुकुल को सारा माजरा बड़ा विचित्र लग रहा था।
जब पचास तक गिनती आई तो वर्मा जी ने रूकवा दिया और एक बार फिर कर्नल जयन्त से फोन पर बात की।यान में सबको ठीक हालत में पाकर गिनती फिर से शुरू हो गई थी।
एक बार पच्चीस पर फिर गिनती रोकी गई और सब “ओ-के“ पाकर फिर शुरू हो गई थी।
वहाँ मौजूद सभी लोग साँस रोककर प्रतीक्षा कर रहे थे।
उधर एक बार फिर वहाँ से दुर मध्यप्रदेश से बैठे प्रो. दयाल ने उन्हें अपनी शुभकामनायें दी और जयन्त से यह भी कह दिया कि वे घबरायें नही, कोई दुश्मन नही है। बोलने वाला हैदराबाद से सैकड़ो किलो मिटर दूर बैठकर भी उनसे संपर्क बना सकता हैं।
वहाँ मौजूद हरेक की आँखो से दुरबीन लग गई थी।
जबकि पर्दे पर जीरो का अंक आया तब ही रॉकेट के नीचे आग दिखना शुरू हो गई, वर्मा जी ने सबसे कान बंद कर लेने को कहा।
एक जोरदार धमाका हुआ जिससे दूर-दूर तक धरती हिल गई। आपने पीछे पीले रंग की भयानक लपटें छोड़ता रॉकेट अपने सीने पर भारतीय अंतरिक्ष यान “भारती“ को बिठा कर आसमान का सीना चीरता हुआ अंतरिक्ष की ओर बढ़ गया था।
सारे भारत वर्ष में प्रसन्नता छा गई।
जगह-जगह पटाखे छोड़े जा रहे थे, खुशियां मनाई जा रही थी। अंतरिक्ष के सकुशल आसमान में चले जाने का संदेश सारे विश्व में फैल गया। डॉक्टर वर्मा शांत बैठे अपने कान से लगे टेलीफोन के रिसीवर में लगातार “हैलो-हैलो“ कर रहे थे।
यकायक उनकी आँखो में चमक आ गई।
टेलीफोन पर जयन्त का संदेश आ रहा था - “ हम लोग सकुशल हैं, और हमारा यान भारती अब धरती के ठीक उपर स्थित हो गया है। चारो ओर अजीब सा चमकीला वातावरण है। दूर-दूर तक सैकड़ो रंग-बिरंगी गैदें तैर रही हैं, हम लोगो का वज़न एक दम घट गया है, हर चीज़ तैरती फिर रही हैं, मुश्किल में हम लोगो ने अपने औज़ार संभाले हैं। “
यह संदेश टेलिविज़न पर गया तो सारा देश हर्ष से नाच उठा।
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