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रोबोट वाले गुण्डे-7

रोबोट वाले गुण्डे

बाल उपन्यास

-राजनारायण बोहरे

7

दयाल साहब इस बार होश में आये तो वे काफी स्वस्थ थे। फौजी जासुस केदारसिंह और उनकी पत्नि यानि की अजय-अभय की माँ उनके पास ही बैठी थी। पुलिस कोतवाल साहब भी मौजूद थे।

दयाल साहब ने कहना शुरू किया-

“सभी लोग सुनिये, मैं पिछले दिनो एक नया प्रोग्राम कर रहा था कि अंतरिक्ष में रॉकेट के खर्चिले साधनो के अलावा क्या एसा कोई दुसरा साधन है, जिससे कोई यान अंतरिक्ष में भेजा जा सके। मेने एसी ही देशी पद्धति का एक साधन खोज लिया था। मैने एक एसी धातु भी खोज ली थी जो कि अंतरिक्ष पार करते समय जलकर खाक नही होती थी। फिर मेने एक हवाई मोटर बनाई जो पुरी तरह उस अंतरिक्ष-रोधी धातु की बनी थी, मैने उस हवाई मोटर को उड़ाने और उतारने के लिये अनेक मशीन भी बनाई थी। जबकि इन सब पर बहुत कम खर्च हुआ था। आप लोग शायद न जानते हो कि मैं पहले भारत वर्ष के अंतरिक्ष अनुसंधान में काम कर चुका हुँ।”

अजय और अभय दोनों मेरे प्यारे भतीजे हैं, दोनो बच्चे काफी होनहार है, उन्होंने मुझसे अपने नये प्रयोग के बारे में पुछा, तो मेने उन्हें प्रयोग की सारी बारिकियां और अंतरिक्ष उड़ान के तरीके बताये थे, जिससे उन लोगो का ज्ञान बढ़ सके, लेकिन कैसा दुर्भाग्य कि वे दोनो बच्चे कुछ ज्यादा ही हिम्मत कर बैठे और हवाई मोटर में बैठकर अंतरिक्ष में चले गये।” उनका इतना कहना था कि तुफान आ गया। लोग दुखी होकर चौंके चीखने लगे।

“अब कोई दूसरा साधन है, उन लोगो को नीचे उतारने का ?” रोते हुये अजय-अभय के पापा ने अचानक उनसे पूछा।

“हॉ भाईसाहब एक साधन ओर है अभी, मेेरे अंदाज के मुताबिक भारतीय अंतरिक्ष यात्री मुकुलदा बगैरह इस समय अंतरिक्ष में अजय-अभय के यान के बिल्कुल निकट है, यदि उन लोगो से आग्रह किया जावे तो वे लोग इन बच्चो को सुरक्षित धरती पर उतारकर ला सकते है।

“तो वही उपाय कीजिये न”मम्मी बड़ी तत्पर थी।

“हाँ हम दोनो आज ही हैदराबाद जाते है, और वहॉ के अंतरिक्ष केन्द्र के द्वारा अंतरिक्ष यात्रियों से संपर्क साधते है।। “केदारसिंह बोले।

इसके बाद वे सब उठे और हैदराबाद की तैयारीयाँ करने लगे।

ठीक जिस समय कि प्रोफेसर दयाल आदि हैदराबाद की गाड़ी में बैठ रहे थे, उसी समय “पक्षी यान” भारत के दोनो यानो को गड़प चुका था।

अंतरिक्ष केन्द्र के द्वारा भारत वर्ष में यह समाचार दिया गया तो सारा देश सन्नाटे में रह गया।

दुसरे यान के बारे में जानकारी रखने वाले प्रो. दयाल आदि लोग उनके पास पहुँचे तो सारे देश में कोहराम मच गया। बिना साधनो के इतना बड़ा प्रयोग करके प्रो. दयाल प्रसिद्ध हो उठे। सारा देश अंतरिक्ष यात्रियों के लिये चिंतित हो गया।

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अभय को कमरे में धक्का सा लगा तो वह गिर पड़ा। उसके पीछे से दरवाजा बंद हो गया। था।

वह उठकर खड़ा हुआ और कमरे में चारों ओर देखने लगा।

एक कोने में तीन गठरीयों सी पड़ी थी, वह उधर ही बढ़ा।

उसका शक सही था।

वह तीनो बेहोश अंतरिक्ष यात्री मुकुलदा आदि थे।

अभय ने तीनों को झंझोड़ा, तो उन्होंने एक-एक कर आँखे खोल दी”।

अभय को वहाँ खड़ा देख वे चौके। एक भारतीय बालक यहाँ मौजूद है, ताज्जुब है !

अभय ने अपनी बीती सारी दास्तान उन्हेंं सुनाई/जिसे सुनकर तीनों अंतरिक्ष यात्री भी इन दोनो भाईयो के साहस की प्रशंसा कर उठे।

एकाएक मुकुलदा चौके।

उनके सीने पर बंधा रेडियों पर अंग्रजी में वार्तालाप आ रहा था, जिसे वह लोग ध्यान से सुनने लगे।

एसा लग रहा था कि पास में किसी ट्रांसमीटर पर किसी बहुत बड़े अफसर को कोई छोटा अफसर भारतीय लोगों की गिरफतारी की खबर भेज रहा था। वे लोग ध्यान से सुनने लगे।

उधर मेदान में बिल्कुल सन्नाटा था।

काफी देर तक ताका-झाँकी करके अजय पक्षीयान से बाहर निकला और चारों ओर देखता हुआ एक ओर बढ़ने लगा।

मैदान के बाहर सामने एक सीधी सड़क बनी थी। वह उसी सड़क पर चलने लगा। बड़ी सड़क के दोनों ओर मकान बने हुये थे, वैसे ही नीचे मकान वैस वर्फ के मैदानों में होते हैं।

अचानक एसा लगा जैसे कही से कोई कार या जीप दौड़ी चली आ रही हो, अजय दौड़कर पास वाले मकान की ओट में चला गया।

यह लाल रंग का मकान था, इसके दरबाजे के ऊपर एक चारखी लगी थी। अजय ने एक सेकेंड सोचा और चरखी घुमाने लगा।

भीतर झांका तो अजय ने पाया, कि वहाँ कोई हलचल नही है तो वह अंदर प्रविष्ट हो गया। अंदर पहुँचकर उपर लगी दुसरी चरखी घुमाकर उसने दरवाजा बंद कर दिया। यह एक लम्बा चौड़ा कमरा था।

अभय ने देखा कि छोटे बड़े अनेक पाईप से पडे़ थे, अजय ने एक-एक को उठाकर देखना शुरू कर दिया, लेकिन वह कुछ समझ नही पा रहा था कि इनका क्या उपयोग होता है ? अलग-अलग साईज के ढ़ेरों पाईप विखरे थे वहाँ।

वह स्थिर होकर सोचने लगा, कि उसने ऐसे पाईप कही देखे हैं ? उसे जल्दी याद आ गया कि मशीनी आदमी के हाथ-पैर-सिर आदि इन्ही पाईपों के अलग-अलग टुकड़ो के बने देखे हैं।

साहस उसके दिमाग में एक विचार आया, और उसने अपने पैर की मोटाई बराबर साईज़ का पाईप लाकर, पाँव में पहन लिया। कुछ देर बाद उसके दोनोें पैर लोहे के कल पुर्जो से जुड़े हुये मशीनी आदमी के पैर लगा रहे थे। इसी प्रकार इसने हाथ-पैर सीना तथा सिर के ऊपर भी पाईप कस लिये । उसने देखा कि जो पाईप सिर में कसा है उसमें आँखो की जगह दो छेद है जिनसे वह बाहर का दृश्य देख सकता था।

पाँच मिनिट बाद वह उस लाल मकान से निकला तो उसे कोई भय नही था। क्योंकि वह भी अब मशीनी आदमी लग रहा था।

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