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रोबोट वाले गुण्डे -4

रोबोट वाले गुण्डे

बाल उपन्यास

-राजनारायण बोहरे

4

आज अंतरिक्ष का तीसरा दिन था।

भारत वर्ष मे गर्व की ध्वजा लिये, तिरंगे रंग का झंडा फहराता भारती यान पृथ्वी के चक्कर लगा रहा था। अपने हाथो में दूरबीन और अन्य अनेक प्रकार के यंत्र लिये बैठे जयंत आदि भारतीय वैज्ञानिक अपने प्यारे भारत वर्ष की तस्वीरें खींच रहे थे।

वे परसों अर्थात पाँचवें दिन की तैयारी में लगे थे।

पाँचवे दिन इस अभियान दल के सदस्य मुकुलदा को यान से बाहर निकल कर कुछ देर हवा में चलना फिरना था।

अपने साथ लाये कम्प्युटर पर दिख रहे पहले के यात्रियों के अनुभव वाले पन्नों का वे तीनों अध्ययन भी करते जा रहे थे।

मुकुलदा एक दम तैयार थे। उन्होंने अपने हाथ में लिया गया रेडियो जैसा यंत्र सामने किया और उसका एक बटन दबाया। उसमें से जयंत की आवाज गूँजी-

“हेलो मुकुल कैसे हो ?“

-“ जयंत भाई में एकदम तैयार हूँ “ कहते हुये मुकुल दा ने चारों ओर देखा। वे इस समय भारती यान के अगले हिस्से में थे जबकि पिछले हिस्से में जयंत और विक्रम बैठे थे।

प्रातः सात बजे।

यान का दरवाजा खुला, और मुकुलदा ने अपनी पीठ पर बंधे इंजन को स्टार्ट कर दिया।

“फिट ....फिट... फिट...फिट...फिट।“ इंजन की आवाज अंतरिक्ष में तैर उठी। मुकुलदा ने दरवाजे बाहर अपना सिर निकाला और ऐसे झांका जैसे खिड़की से अंतरिक्ष के नजारे देखे हों। वे जल्दी से यान के खुले दरवाजे से बाहर कूद गये।

वे अब खुले आसमान में थे। दूर चमकीली गेंद जैसी पृथ्वी दिख रही थी और

उसके आसपास अनेक मक्खियाँ जैसी भिन्ना रही थी, ये सब देशी-विदेशी उपग्रह थे। ये उपग्रह रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस तथा भारत ने भेजे थे।

पृथ्वी के अलावा भी पृथ्वी से छोटी गैंद के आकार के अनेक ग्रह और तारे

आसमान चमकते हुये दिखाई पड़ रहे थे।

मुकुलदा ने अपनी पीठ का इंजन बंद कर दिया।

मुकुलदा के चेहरे पर कॉच का एक टॉप जैसा लगा था, जिसमें से वे दूर-दूर तक का नजारा देख रहे थे। वे सर से पॉव तक ढके हुये अधर में खड़े थे। उन्होंने अपना एक पैर उठाया और आगे रख दिया। धरती की तरह अधर में वह पॉव स्थिर हो गया तो दूसरा पॉव उठाकर वे आगे बढ़े। लगता था जैसे वे भूसे के ढेर पर चले जा रहे हों, लेकिन भूसा दिखाई न देता हो।

वे आगे बढ़ते रहे और टहलते रहे।

भारतीय यान ”भारती“ इस समय स्थिर खड़ा था और उसके चारों और मुकुलदा ने कई चक्कर लगा लिये थे। वही उन्होंने अनेकों फोटो भी खीचें थे। बीच-बीच में वे अपना रेडियो जैसा यंत्र शुरू कर भारती में बेठे अपने मित्रों से चर्चा भी कर लिया करते थे।

जयन्त और विक्रम यान में भीतर थे और उनके सामने एक टेलीविज़न रखा था, जिसका आकार काफी बड़ा था और पर्दे पर अंतरिक्ष का सारा दृश्य साफ दिखा रहा था।

अचानक ही वातावरण का सन्नाटा भंग हुआ

एक तीखी आवाज़ अंतरिक्ष में गुंज उठी

“सी”...सी..........................

एक एसी आवाज़ जैसे कोई बड़ा सा हवाई जहाज उनके उपर मंडराने लगा हो यान के बाहर और भीतर के सभी वैज्ञानिक चौंक उठे।

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