रोबोट वाले गुण्डे -8 अंत राज बोहरे द्वारा कल्पित-विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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रोबोट वाले गुण्डे -8 अंत

रोबोट वाले गुण्डे

बाल उपन्यास

-राजनारायण बोहरे

8

रेडियो पर बातें सुनकर वे लोग सिहर उठे। वार्तालाप से उन्होंने जाना कि भारत के वैज्ञानिको का अपहरण करने का षडयंत्र इस ग्रह पर चल रहा था, ओर छोटे अफसर ने रिपोर्ट में कहा था, कि पहली बार में भारत के चार वैज्ञानिको का अपहरण कर लिया गया है।” तो जवाब में बड़े अफसर ने कहा था कि लेसर किरण की आग से जला दिया जाये। वे चारों चौंके, अब उन्हें जल्दी ही कुछ करना था ? उन्हें तो सजाये मौत हो गई थी।

लेकिन क्या कर सकते थे वे, इस मकान में कैद रहकर ?

कुछ हल समझ में नही आ रहा था, कि अचानक ही दरवाजा खुलने लगा।

कोई कुछ करे, इसके पहले ही अभय झपटकर दरवाजे के पीछे वाली दीवार के पीछे छिप गया।

किबाड़ एक तरफ खुलने पर कमरे में एक मशीनी आदमी प्रविष्ट हुआ था, जिसके हाथ में एक विचित्र सी बंदूक थी।

अभय एक दम से झपटा और वह बंदूक मशीनी आदमी से छीन ली। अगले सैकंड मे उसने वह बंदूक मशीनी आदमी की ओर करके खटका दबा दिया था। “क्लिक” एक धीमी आवाज हुई और उसमें से एक नीली चिंगारी निकली जो मशीन आदमी से टकराई। वह रोबोट अपनी जगह पर ही खड़ा रहकर पिघलने लगा, उसमे से हल्की-हल्की नीली लपटेें निकलने लगी थी। इस सबसे अंजान एक दूसरा आदमी अभी दरवाजे के बाहर ही खड़ा था। अभय ने उसे भी स्वाहा कर डाला और इसके बाद एक जोरदार नारा लगाया-“जय हिन्द”

“जय हिन्द” तीनो वेज्ञानिक चाीखे। वे लोग मकान से बाहर निकले और शान से सड़क पर चलने लगे।

वे सब उधर ही बढ़ रहे थे, जिधर की वह पक्षीयान खड़ा था।

सामने सड़क पर एक मशीनी आदमी जा रहा था, लेकिन अभय को इसकी चाल कुछ परिचित सी लग रही थी। अभय ने लेसर किरण की बंदुक सामने कर ली।

तब जबकि, वह मशीनी आदमी लगभग सौ मीटर दुर था, एकाएक उछला और चिल्लाया “जय -हिन्द” नारा लगाकर अभय उछला, सामने से आने वाला निश्चय ही अजय था।

पास आने पर दोनो भाई गले मिले, और पक्षीयान की और चल पड़े। उन्हें फिर रूक जाना पड़ा।

आसमान में घर घरहट हो रही थी काई हवाई जहाज बहुत नीचा उड रहा था।

अजय ने, हवाई जहाज के पास आते ही, लैसर बंदूक उठाई, और उसका बटन दो-तीन बार दबा दिया।

पलक झपकते ही नीली किरणो ने हवाई जहाज में आग लगा दी, और वह जलता हुआ नीचे अर गिरा।

जय - हिन्द, का नारा झुलंद कर वे फिर आगे बढ़े।

अभय अपनी उत्सुकता दबा नही पा रहा था। वह मुकुलदा से बोला “मुकुलदा इस ग्रह पर मैने अभी तक एक भी अपने जैसा आदमी नही देखा। क्या बात है ?”

मेरी समझ से इस ग्रह पर ज्यादातर मशीनी आदमी ही रहते हैं, और वे ही काम संभालते हैं। हाँ यह पता नही लग सका है कि ये मशीनी आदमी कौन ने बनाये हैं ? इस ग्रह पर किसका कब्जा है”

“और कौन बनाएगा ? हमारे देश का सदा से शत्रु रहने वाले देश ने बनाये होगे । “जयंत ज बोले।

“हाँ यही शक मुझे हो रहा है” मुकुलदा बोले”

अजय और अभय को इन बातों से मतलब न था, वह उन दोनो को बहस में उलझा कर, आगे बढ़े जा रहे थे।

यह क्या दुर से ही वे एक दृश्य देखकर वे घबरा उठे।

मैदान के बाहर सत्तर मशीनी आदमी खड़े थे लेसर बंदुको से यह सबके सब कांप गये।

अभय धीमे से बोला “अजय भय्या तुम धीमे से दायी ओर खिसको और उन लोगों के पीछे लाकर उन पर हमला कर दो।”

”लेकिन“----- अजय हिचकिचाया।

“आप सोचिये मत भईया, यह मशीनी आदमी है। इनमें दिमाग नही होता। इन्हे जो भी आदेश दो यह लोग बिना सोचे वही काम करते है।”

“इनको आदेश होगा कि सामने हमला कीजिए और यह पुतले केवल सामने देखेगें इन्हे दाये-वाये से कोई मतलअ नही होगा।”

“फिर भी यदि इन्होने देख लिया तो“

“आप इन्ही जैसे भी तो लग रहे हो।”

अजय हाथ में लेसर बंदूक लेकर दायी ओर खिसक गया था, जबकि धीमे-धीमे चलते हुए, चारों भारतीय बीर आगे बढ़ रहे थे।

अजय ओट में आकर दौड़ ही पड़ा था। उन मशीनी आदमियों के ठीक पीछे पहुँच कर उसन अपनी बंदूक का बटन दबाना शुरू कर दिया।

मुश्किल से पाँच मिनिट के भीतर सभी मशीनी मानव पानी होकर बहने लगे थे, और उनके गिरते ही शेष चारों भारतीयो ने उनकी लेसर बंदुके उठाने के लिये दोड़ लगा दी।

आनन-फानन में वे सब पंक्षीयान के पास पहुँच गए थे। जिसके पास ही हवाई मोटर और भारतीय यान रखे थे।

अभय बोला-“जयंत अंकल क्या आप इस पक्षीनुमा अंतरिक्ष यान को चला सकेगें। क्यों न हम इसे भारत ले चलें।”

-क्यों नही, आओ देखता हुँ, तुम लोग तब तक सामने से रखवाली करो” इतना कहकर जयंत उस यान के पायलट के केबिन में चढ़े।

लगभग पाँच मिनिट बाद वह उसके हैण्डिल बटन आदि को देखते रहे और खुशी से बोले “बधाई हो मुकुलदा हम इसे चला सकते है। आईये हम चलें।”

जयंत ने एक लीबर दबाया तो पक्षी के मुह फैला दिया और उसमे से निकली एक पट्टी सीधी भारतीय यान से टकराई तो भारतीय यान उस पर से घिसटता हुआ भीतर जा पहुँचा। इसी प्रकार हवाईमोटर रखी गई और यह सब अपने आप हो रहा था।

जब भी लोग ठीक तरह से यान में बैठ गये, तो जयंत ने यान को चालू किया।

लाल ग्रह की धुंध से निकलकर वे लोग अंतरिक्ष में आगे बढ़े और उन्होंने अपने यान का रूख उधर किया जहाँ कि रंग बिरंगी पृथ्वी अपनी धुरी पर घुमती हुई सूर्य के चक्कर लगा रही थी। पृथ्वी के वायुमण्डल में आकर वायर लैस से भारत से संपर्क जोड़कर मुकुलदा ने सुचना दी कि एक अज्ञात यान पर विजय करके वे, भारतीय बच्चो अजय और अभय के साथ धरती पर लौट रहे हैं। टेलीविज़न पर तुरंत यह समाचार प्रसारित हुआ।

धरती पर हैदराबाद में बैठे प्रो. दयाल और ठाकुर केदारसिंह का माथा गर्व से तन गया, उनके बच्चे आज देश भर में विख्यात हो रहे।

समुद्र किनारे विशाल जहाजों पर खड़े होकर जल सेना ने पक्षीयान का स्वागत किया। पक्षीयान धीरे-धीरे उतरने लगा।

एक और करिश्मा हुआ, जब पक्षीयान ने आहिस्ता से हवा में तैरते हुये पानी को छुआ तो डूबा नही बल्कि एक नाव की तरह तैरने लगा।

उधर सैनिक लोग अपनी नौका ये पक्षीयान के पास ले आए थे। पक्षीयान में से नौका तक जाने के लिये लकड़ी के तख्ते रख दिये गये, तो यान में से चार लोग नाव पर चढ़ आये।

नाव चलने का ही थी कि सब चौंके। पक्षीयान मे से एक रोबोट बाहर आ रहा था। पत्रकारो ने अपने कैमरे संभाले और उसके कई फोटो लिये। मशीनी आदमी को भी मजा आ रहा था, वह नाचने लगा था। लोग हैरान थे। जबकि अभय का हँसते-हँसते बुरा हाल था।

वह बोला, ”बस करो अजय। अब यह लोहा लंकड़ उतार के फैंक दो।” सचमुच मशीनी आदमी ने अपने हाथ पैरों के नट-बोल्ट निकालना शुरू किया और कुछ देर बाद वहाँ मुस्कुराता हुआ अजय खड़ा था, जो पत्रकारों से कह रहा था, ”मैं आप सबको छकाना चाहता था।”

इसके बाद जयंत और मुकुलदा तो पत्रकारों से घिर गये पर अजय-अभय मौका पाकर भाग निकले।

अगले दिन अखबारों में राबोट के रूप में अभय के कई फोटो छपे थे। लोग उन दोनों को ढ़ू़ढ रहे थे। जबकि वे दोनों अपने घर पहुँच चके थे।

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