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रोबोट वाले गुण्डे -3

रोबोट वाले गुण्डे

बाल उपन्यास

-राजनारायण बोहरे

3

सुबह के आठ बजे थे।

घंटी बजाने पर दरवाजा खोला प्रो. दयाल के नौकर ने।

अजय-अभय ने नौकर से कहा कि वह प्रो. दयाल से कहे कि अजय-अभय उनसे मिलने आये हैं।

नौकर से समाचार सुनकर प्रोफेसर दयाल तत्काल वहाँ आ गये।

“हलो, भतीजों, क्या हाल हैै“

“नमस्ते अंकल हमारे हाल तो बिल्कुल खराब हैं, दोनांे एक स्वर में बोले।

“क्या भई, क्या हुआ?“

“हमारे अंकल ही हमसे अपना नया आविश्कार और प्रयोग छिपा रहे हैं तो आप ही बताइये अंकल, हमारा हाल कैसे ठीक रहेगा? “ अजय बोला ।

“अच्छा तो यह बात है, ठीक है, हम हाल ठीक कर देंगे।“

“अरे वाह अंकल ! आप कितने अच्छे हैं“ कहते हुये अभय खुशी से उछल पड़ा।

“बस रहने दो खुशामद मत करो।ा आप दोनो बड़े शैतान बच्चे हो।“

“आखिर हम भतीजे तो आपके ही हैं न अंकल, आप जैसा बनायेंगे हम वैसे ही तो बनेंगे।“

एकाएक प्रोफेसर बोले-“हाँ, भई तुम ये बताओ कि तुम लोग और मण्डल के बारे में क्या जानते हों ?

“ सौर मण्डल यानि कि एक सूर्य का परिवार यानि कि सूर्य के चारों और चक्कर लगाने वाले ग्रहों और उपग्रहों के पूरे झुण्ड को सौरमण्डल कहते हैं।“ अजय ने जवाब दिया।

“ हाँ, ठीक बताया । अच्छा यह बताओ, कि इसकी रचना कैसे हुई ?“

“ माफ कीजिये अंकल, हम इतने बड़े ज्ञानी नहीं है कि सौर मण्डल का पूरी कहानी भी जानते हों। यह नही बता सकते। “ अभय बोला।

“ तो सुनिये, सूर्य एक बहुत बड़ा आग का गोला हैं। करोड़ांे साल पहले सूर्य के पास सूर्य से बड़ा एक दूसरा तारा आया था, उसके प्रभाव से सूर्य का एक टुकड़ा टूटा और सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा । बाद में इसी टुकड़े में से कई टुकड़े हुये और वे सब आज चंद्र मंगल आदि ग्रह बनकर सूर्य चक्कर लगाते हैं, उनमें पृथ्वी भी एक ग्रह है।“

“लेकिन अंकल सूर्य तो गर्म है न, हमारी धरती तो ठंडी है।“अजय बोला

“ हाँ बेटा, उस समय यह टुकड़े गर्म थे, पर आज सब ठंडे हैं। इसके अतिरिक्त आज तो उन ग्रहों के भी टुकड़़े टूटकर अनेक उपग्रह बन गये हैं, जो उनके चक्कर लगाते हैं। गर्म से ठंडे होने में करोड़ों साल ग्रहों को लगे हैं।“

“पर अंकल, हमारी पृथ्वी से छोड़े जाने वाले यान भी तो उपग्रह कहलाते हैं, है न ? अभय ने पूछा।

“ हाँ, और मैंने उस दिन अजय को बताया था कि धरती से दो सौ किलोमीटर तक वायुमण्डल है, उसके बाद वह अंतरिक्ष है जिसमें हर चीज़ तैरती रहती है, क्योकि वहां सब ग्रहों की खीचने की ताकत समाप्त हो जाती है।“

“ तो, हमारा धरती यान अंतरिक्ष में ही तैर रहा हैं।“ अभय ने पूछा।

“ हाँ, हमारे देश का भारती इस समय अंतरिक्ष में ही तैर रहा है।“

“ तो क्या आपका प्रयोग....?“ अजय ने जान बूझ कर अधूरी बात की।

हाँ मेरा प्रयोग भी कुछ ऐसा ही है। हाँ तो सुनो, इस दो सौ किलोमीटर के वायु मण्डल में पच्चीस किलोमीटर से लेकर दो सौ किलामीटर तक वाले हिस्से में इतना ज़्यादा गर्मी रहती है कि कोई भी चीज़ वहाँ से गुजरे तो जल कर राख हो जाती है।

“ लेकिन हमारा भारती यान तो नही जला अंकल“ अभय ने पूछा।

“ हाँ, हमारे भारती यान को एक विशेष प्रकार की धातु से बनाया गया है, लेकिन वह ज़्यादा मंहगी पड़ती है। इसलिये मैं सोच रहा हूँ कि ऐसी धातु बनाई जाये जिस पर वायुमण्डल की गर्मी का कोई असर न हो, और सस्ती भी हो।“

“ आप इस प्रयोग में कहाँ पहुँचे?“ अब केवल अजय ही पूछ रहा था।

“ मेरा अविष्कार पूरा हो चुका है, और मैंने ऐसी धातु की एक हवाई मोटर भी बना ली है, जिसके अंदर वायुमण्डल की गर्मी का कोई असर नही पड़ सकेगा।

“ कहाँ है वह मोटर ? हमें दिखाइये न अंकल!“

“ ओ शैतानों, तुम एक दम जल्दी मचा देते हो । खैर आओ!“ कहते हुये प्रो. दयाल उन्हें अपनी प्रयोगशाला के एक दरवाजे मे से निकालते हुये दूसरी और आंगन में ले गये।

आंगन में एक विचित्र दृश्य था।

बीचों-बीच एक चालीस पचास फिट उँचा एक काला मोटा गोला खम्बा खड़ा हुआ था, जिसके उपर एक चमकदार रंग की कोनों वाली खूब बड़ी फुटबाल सी रखी थी।

पास रखी सीढ़ी उठाकर अंकल ने खम्बे पर लगाई और बढ़ने लगे। ऊपर पहुँचकर अंकल ने उस बड़ी सी फुटबाल में बने एक बिन्दु पर धक्का सा मारा तो उसमें जाने कहां से एक दरवाजा निकल आया और अंकल फुटबाल में अंदर भीतर चले गये। दरवाजा अभी भी खुला हुआ था। यही हवाई मोटर थी ।

हवाई मोटर उतनी बड़ी थी जितना बड़ा हेलीकॉप्टर का अगला हिस्सा होता है, उसमें दो सीट भी लगी हुई थी। आगे तमाम प्रकार के रंगीन बटन लगे हुये थे । अजय-अभय सीढ़ी पर चढ़कर झांकने लगे । उन्होंने भीतर आना चाहा तो अंकल ने मना कर दिया।

दयाल अंकल ने समझाया देखो-“अजय, इस हरे बटन के दबाते ही हवाई मोटर उड़ने लगेगी, फिर इस हैंडल से हम इसे जहाँ चाहे मोड़ सकंेगें“

फिर काफी देर तक वे यान की बारीकियां बनाते रहे। इसके बाद वे सब नीचे उतरे।

अंकल बोले-“ तुम लोग, दीवाली पर रामबाण चलाते हो न! यह भी एक बड़ा रामबाण है।“ उन्होंने खम्बे की ओर इशारा किया।

अजय-अभय ने देखा कि वह खंभा लोहे का बना हुआ था। दयाल अंकल ने कहा“ देखो बेटा इस लोहे के नीचे जमा हुआ पैट्रोल भरा है, वैसे ही जैसे रामबाण में बारूद भरी जाती है। उस दीवार की और देखो, वहाँ एक लाल बटन लगा है, उसे दबाते ही इस रामबाण में आग लग जायेेगी और एक जोरदार धमाके के साथ यह हवाई मोटर इस रामबाण के साथ अंतरिक्ष की ओर दौड़ लगा देगी।“

“अरे वाह अंकल, आप तो कमाल के वैज्ञानिक है।“।

“नही भतीजों, यह तो मेरी मेहनत का फल है। लेकिन तुम यह बात किसी को न बताना।“

“बिल्कुल निश्चिंत रहये अंकल। लेकिन एक बात समझ में नही आई कि आप इस हवाई मोटर में किसे भेजना चाहते हैं। “अजय ने पूछा।

“इस में अभी कोई नही जा रहा है, केवल यह रोबोट जायेगा।“ कहते हुये अंकल ने एक मशीन की और संकेत किया। सामने ही आदमी जैसे आकार प्रकार मशीन और लोहे का बना रोबोट यानि कि एक नकली सा आदमी यानि अधूरा आदमी पूरी तरह सिर, आंख और हाथ-पाँव वाली एक मशीन रखी थी।

“इस मशीन से क्या होगा“ अजय ने फिर पूछा।

“यह मशीन मेरा बनाया हुआ रोबोट है। जब यह अंतरिक्ष में पहुॅच जायेगी तो

काम करना शुरू कर देगी, जरा से संकेत पर इसकी भुजा चलेगी और वह हमारे बताये हुये बटन को दबा देगी। इस तरह हम हम जब चाहे इसे वापस बुला सकते है“।

“लेकिन यह दो सीटें क्यों बनी है? “

“यह तो मेरा पहला प्रयोग है न !हम यह सस्ता हेलीकॉप्टर भी बना रहे हैं।

बाद में हो सकता है हम इसे हवाई मोटर की तरह यहाँ से वहा जाने में काम में लेने लगें, इसलिये पूरी तैयारी की है।“

“इस हवाई मोटर के अंतरिक्ष में जाने तथा वहां से वापस आने के बाद आपका क्या कार्यक्रम है- अंकल?“

“यह हवाई मोटर आपने देखी है न, इसमें एक कैमरा फिट है, संकेत करते ही वह चालू हो जायेगा और अंतरिक्ष के चित्र लेने शुरू कर देगा। वे चित्र जब धरती पर वापस आ जायेंगे तो मैं खुद भी अंतरिक्ष में जाने का प्रयास करूंगा। इसकी तैयारी भी मैंने कर ली है।“

“क्या तैयारी है, हमें भी दिखाइये न ।“

प्रोफेसर दयाल उन्हें अपनी छोटी लेकिन विलक्षण प्रयोग शाला में ले आये और

एक अलमारी खोली। उसमे से उन्होंने बरसात में पहनने वाले पोलीथिन और पन्नी के बने कोट पैन्ट सिले हुए दो चोगे जैसे निकाले जिनमें सर से लेकर पॉव तक ढक जाने के लिये कोट और पेंट तथा मोजे सिले हुये थे। यह वही पौशाक थी जो अंतरिक्ष यात्री पहनते है। पोशाक बताने के बाद प्रोफेसर दयाल ने कुछ ट्युब निकालीं जो अनेक रंगो की थीं ।

प्रोफेसर दयाल ने दोनो अंतरिक्ष पोशाकें और ट्युब के बारे में विस्तार से बताया। ये ट्युब खाने के काम में लाई जाती थी । जैसे कि अंतरिक्ष यात्री मुकुल, जयंत वगैरह ले गये थे।

सारी जानकारी प्राप्त करने में पता ही न चला कि दोपहर कब हो गयी ।

अंत में बड़े संतुष्ट होकर दोनों शैतान अजय और अभय घर लौटे।

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