आधी दुनिया का पूरा सच
(उपन्यास)
19
जब मन्दिर के प्रांगण में कार आकर रुकी और उसमें से अर्द्धचेतन रानी को कार से उतारा गया, तो वहाँ पर पास पड़ोस से कई लोग आकर खड़े हो गये । उस समय वहाँ पर खड़े सभी स्त्री-पुरुषों की जासूसी निगाहें पुजारी जी पर टिकी थी और उनके होंठों पर उनकी छिद्रान्वेषी सोच के मिश्रण से उत्पन्न एक ही प्रश्न था -
"क्या हुआ है इस लड़की को ?"
पुजारी जी ने किसी के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। उन्होंने चुपचाप रानी को कार से उतारा और उसको सहारा देते हुए लेकर अपनी कोठरी की ओर चल दिये । रानी को विश्राम हेतु कोठरी में बिछे बिस्तर पर लिटा कर लगभग पाँच मिनट पश्चात् जब पुजारी जी बाहर आये, तब तक वे सभी लोग भी कोठरी के बाहर आकर एकत्र हो चुके थे। अभी भी उनके होठों पर वही प्रश्न था -
"क्या हो गया इस लड़की को ?
"बिटिया का स्वास्थ्य थोड़ा-सा खराब हो गया है ! भगवान की कृपा रहेगी, तो शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएगी !"
यह कहते हुए पुजारी जी मंदिर में जाकर भगवान जी की सेवा में भजन गाने लगे। पुजारी जी को मन्दिर में भगवान जी की सेवा में रत देखकर धीरे-धीरे भीड़ छंट गई। भीड़ छंटने के बाद पुजारी जी मन्दिर से बाहर आये और मन्दिर के प्रांगण में बरगद के वृक्ष के चारों ओर बने चबूतरे पर चिन्तित मुद्रा में सिर पकड़ कर बैठ गये । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ? क्या नहीं करें ?
चिन्ता के समुद्र में गोते लगाते हुए पुजारी जी विचारों की अपनी दुनिया में इतने खो गये कि अपने आसपास की दुनिया से कहीं दूर निकल गये । समय कितना बीत गया उन्हें यह भी आभास नहीं रहा। अपनी विचार-यात्रा से उनकी वापसी तब हुई, जब रात को लगभग एक बजे रानी ने आकर उन्हें झिंजोड़ते हुए कहा -
"काका ! मुझे क्या हुआ है ? आप मुझसे कुछ छिपा रहे हैं ?"
अपने समक्ष रानी को खड़ी पाकर पुजारी जी चौंककर उठ खड़े हुए -
"क्या हुआ बिटिया ? तू ठीक तो है !"
ऐसा लग रहा था कि उस समय पुजारी जी अपने दोनों हाथों को रानी के कंधों को पकड़कर उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए स्वयं को आश्वस्त करने का असफल प्रयास कर रहे थे।
"काका ! बताइए ना ! मुझे क्या हुआ है ? मैं जानती हूँ, आप मुझसे कुछ छिपा रहे हैं !" रानी ने पुन: रोते हुए कहा।
"बिटिया ! यह डॉक्टर अज्ञानी थी ! लोभ के कारण ज्ञान उससे मीलों दूर है ! हम कल किसी दूसरी डॉक्टर से परीक्षण कराने के लिए जाएँगे, तभी हम अपनी बिटिया के सारे प्रश्नों का उत्तर दे सकेंगे !"
"काका, उस डॉक्टर को हमारी बीमारी ही नहीं पता चली, तो उसने हमें इंजेक्शन किस बीमारी का दिया था ? इंजेक्शन लगते ही हमें ऐसा लगा कि सारी धरती हिल रही है ! उसके कुछ पलों में बाद पता नहीं क्या हुआ !"
"बिटिया, इसीलिए तो हम तुम्हें वहाँ से उसी समय लौटा लाये थे ! अभी तुम्हें कैसा लग रहा है ?"
'काका, अब हम कुछ ठीक हैं ! लेकिन अभी भी सिर में हल्का सा भारीपन है !"
"यह सब उसी इंजेक्शन का रिएक्शन है, जो उस लोभी-अज्ञानी डॉक्टर ने तुम्हें लगाया था ! धीरे-धीरे उसका प्रभाव कम होगा, तभी तुम्हारे सिर का भारीपन ठीक हो जाएगा ! तुमने कुछ खाया-पिया ?
"नहीं काका ! अभी कुछ नहीं खाया ! रसोई में खाने को कुछ था ही नहीं !"
"चल, मैं तैरे खाने के लिए कुछ बनाता हू्ँ।" कहते हुए पुजारी कोठरी की ओर बढ़ गये । रानी भी पुजारी जी के पीछे-पीछे चल दी।
अगले दिन प्रातः काल नित्य समय से पूर्व ही पुजारी जी ने बिस्तर छोड़ दिया। समय से पहले ही नित्य-कर्मों से निवृत्त होकर मन्दिर की सफाई में लग गये । रानी की नींद टूटने से पहले ही सफाई का कार्य कर लिया और प्रसाद तैयार करके भगवान जी को भोग भी लगा दिया। जिस समय रानी की नींद टूटी, उस समय उसने पाया कि पुजारी जी उसके बिस्तर के निकट रखी कुर्सी पर बैठे हुए उसके जागने की प्रतीक्षा कर रहे थे । उसकी आँखें खुलते ही पुजारी जी बोलो उठे-
"बिटिया प्रसाद तैयार है ! नित्य-कर्मों से निवृत्त होकर प्रसाद ग्रहण कर ले ! इसके पश्चात् शीघ्र ही किसी डॉक्टर से तुम्हारा परीक्षण कराने के लिए चलना है !"
"आज फिर डॉक्टर के पास चलना है ?" रानी ने इस प्रकार कहा जैसेकि वह डॉक्टर के पास जाते-जाते ऊब चुकी है।
"हाँ, बिटिया ! आज डॉक्टर मधुलिका सिन्हा से तुम्हारा परीक्षण कराने के लिए जाएँगे ! सुना है, वह योग्य डॉक्टर है ! बीस वर्ष का अनुभव है उन्हें !" पुजारी जी ने गंभीर मुद्रा में कहा।
"ठीक है !" कहकर रानी ने बिस्तर छोड़ दिया और तैयार होने लगी ।
लगभग दस बजे पुजारी जी रानी को लेकर स्त्री-रोग-विशेषज्ञ डॉक्टर मधुलिका सिन्हा के समक्ष उपस्थित हो गये ! डॉक्टर ने कुछ क्षणों तक रानी को भाव शून्य दृष्टि से घूरने के बाद अपने निकट पड़े स्टूल पर बैठने को संकेत किया। रानी चुपचाप स्टूल पर बैठ गयी । पुजारी जी ने रानी के विषय में डॉक्टर से कुछ बताना चाहा, लेकिन डॉक्टर ने पुजारी जी को बीच में टोककर कहा -
"यह गूँगी है क्या? बोलने दीजिए उसे !"
"हाँ तो, बताओ बेटी ! क्या समस्या है !" रानी से डॉक्टर ने पूछा।
"कई दिन हो गये, बार-बार मेरे पेट में कुछ अजीब-सा होता है ! मुझे डर लग रहा है कि मेरे पेट में कैंसर हो गया है !" रानी ने भोलेपन से डॉक्टर को अपनी समस्या बतायी, तो डॉक्टर मुस्कुराने लगी । बोली -
"तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि कैंसर हो सकता है ?"
"बस ऐसे ही ! मेरी नानी के पेट में भी कैंसर था ! और फिर मेरी नानी कैंसर से ही मरी थी !"
"अच्छा ! चलो देखते हैं !" यह कहकर डॉक्टर मधुलिका अपनी कुर्सी छोड़कर खड़ी हो गयी और रानी को अपने पीछे आने का संकेत किया -
"आओ ! तुम्हारा चेकअप करके बताएँगे, कैंसर है या नहीं !"
रानी भी डॉक्टर के पीछे-पीछे परीक्षण-कक्ष की ओर चल दी। परीक्षण करते हुए डॉक्टर मधुलिका ने रानी से पूछा -
"कब से हो रहा है तुम्हारे पेट में यह अजीब-सा ?"
"पाँच-छह दिन से !"
"यह तुम्हारे पापा हैं ?"
"नहीं, काका है !"
"तुम्हारी मम्मी तुम्हारे साथ क्यों नहीं आयी ?"
रानी चुप रही। कुछ उत्तर नहीं मिलने पर डॉक्टर ने पुनः पूछा -
"कहाँ रहती हो ?"
"काका के साथ ! काका के घर में !"
"मम्मी-पापा के साथ नहीं रहती हो ?"
"नहीं !"
"क्यों !" डॉक्टर ने पूछा। रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया।
"मम्मी-पापा कहाँ रहते हैं ?" रानी ने इस बार भी कोई उत्तर नहीं दिया, तो डॉक्टर ने स्नेहपूर्वक कहा -
"मम्मी-पापा के बारे में कुछ बोलो बेटी ! तुम्हारे बारे में तुम्हारी मम्मी से बातें करना बहुत जरूरी है !" इस बार रानी की आँखों से आँसू बह निकले -
"अभी मम्मी-पापा नहीं मिले हैं ! काका ने और मैंने बहुत ढूँढा, पर ... !"
"बहुत ढूँढा, पर मम्मी-पापा मिले नहीं ? मतलब ... ?"
डॉक्टर ने रानी की आँखों से बहते हुए आँसुओं को पोंछते हुए पूछा । अब तक के अपने व्यवहार से डॉक्टर मधुलिका ने रानी के हृदय में सुरक्षित स्थान बना लिया था। अतः डॉक्टर के पूछने पर रानी ने अपने माता-पिता से बिछड़ने से लेकर अब तक की अपनी सारी आप-बीती डॉक्टर को सुना दी। रानी की सारी कहानी सुनने के पश्चात् डॉक्टर मधुलिका की सुप्त संवेदना जागृत हो उठी थी। उसने रानी को सांत्वना देते हुए कहा -
"घबराओ नहीं ! सब-कुछ ठीक हो जाएगा !" कहते हुए परीक्षण-कक्ष से बाहर निकल आयी और परामर्श-कक्ष में आकर अपनी कुर्सी पर बैठकर पुजारी जी से बोली -
"आपकी बेटी को पाँच माह का गर्भ है !"
"मैं जानता हूँ, मैडम जी !"
"आप पहले से यह सब जानते हैं ?"
"हाँ जी, मैडम जी ! इस अभागी का काका हूँ मैं ! मैंने इसको अपनी बेटी माना है ! अबोध बच्ची के जीवन से इस काले धब्बे को साफ कराने के लिए इसको आपके पास लेकर आया हूँ ! आज यह अपने माता-पिता के साथ होती, तो शायद वह भी यही करते ! जब यह बच्ची मुझे मिली, तब ... !"
"मैं समझ सकती हूँ ! मुझे इस विषय में बच्ची से जानकारी मिल चुकी है !" डॉक्टर मधुलिका ने पुजारी जी को टोकते हुए कहा।
"मैडम जी, तब आप यह भी समझ सकती हैं कि इस बच्ची के लिए इस हालत में समाज में जीना कितना कठिन होगा !"
"हाँ, मैं यह भी समझ सकती हूँ ! पर जो आप चाह रहे हैं, वह भी संभव नहीं है ! बच्ची के आंतरिक-बाह्य अंग अभी परिपक्व नहीं है ! हमारे कुछ भी करने पर उसके प्राण भी जा सकते हैं !"
"तब आप ही बताइए, हम क्या कर सकते हैं ?"
"सर, मैं डॉक्टर हूँ ! समाज के डर से मैं सब-कुछ जानते हुए इस अबोध बच्ची को मौत के मुँह में नहीं धकेल सकती !"
"तब ... !"
"मैं तो केवल इतना कह सकती हूँ, आप इस बच्ची को मानसिक रूप से इस विषम परिस्थिति से मुकाबला करने के लिए तैयार कीजिए ! जहाँ अभी आप रह रहे हैं, वहाँ रहना कठिन हो तो बिटिया को लेकर कुछ दिन के लिए अपने परिचित समाज से दूर चले जाइए !"
"जी ! डॉक्टर मैडम जी !" पुजारी जी ने डॉक्टर का परामर्श स्वीकार करते हुए अपनी गर्दन हिलाकर सहमति व्यक्त की ।
"सर, मैं आपको एक बार फिर चेता रही हूँ कि अपनी बेटी को बचाना चाहते हैं, तो इस बच्चे को दुनिया में आने देना होगा !"
"जी मैडम जी, मैं आपकी चेतावनी का पूरा-पूरा ध्यान रखूँगा ! यह कहकर पुजारी जी ने रानी को उठने का संकेत किया -
"चल बेटी !" रानी उठकर पुजारी जी के साथ-साथ चल दी । वह डॉक्टर द्वारा बतायी गयी सत्तर प्रतिशत बातों का अर्थ समझ चुकी थी । उनकी तीस प्रतिशत बातें उसके लिए अभी तक पहेली बनी हुई थीं । अब वह उन तीस प्रतिशत बातों का अर्थ पुजारी जी से पूछने-जानने का अनुकूल अवसर खोज रही थी ।
क्रमश..