आधी दुनिया का पूरा सच
(उपन्यास)
18.
रानी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दिये बिना उठकर चुपचाप पुजारी जी के पीछे-पीछे चल दी । लगभग एक घंटा पश्चात् वे दोनों एक अन्य अस्पताल में पहुँचे और वहाँ जाकर उस महिला चिकित्सक से मिले, जिससे मिलने के लिए पहली डॉक्टर ने परामर्श दिया था। पुजारी जी ने उस डॉक्टर को रानी की मानसिक और सामाजिक स्थिति से अवगत कराते हुए उससे भी सहायता माँगी, कहा -
"डॉक्टर साहिबा, किसी दुष्कर्मी के पाप का फल भुगतने के लिए कम आयु की मेरी अविवाहित बेटी को माँ न बनना पड़े, ऐसा उपचार कर दें !"
पुजारी जी को अनुभव हो रहा था कि इस डॉक्टर में पिछली डॉक्टर जैसी सहजता नहीं है ! फिर भी वे मौन खड़े हुए उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे । कुछ क्षणों तक वह डॉक्टर बारी-बारी से पुजारी जी और रानी की ओर घूरती रही । तत्पश्चात् एक विद्रूपर्ण ।
परीक्षण करने के पश्चात् डॉक्टर ने बड़े ही यांत्रिक लहजे में कहा -
"हो जाएगा ! पचास हजार रुपये लगेंगे ! दवाइयों का खर्चा अलग होगा !"
"डॉक्टर साहब, एक छोटे-से मंदिर का पुजारी हूँ ! इतनी बड़ी धनराशि जुटाना बहुत बड़ी चुनौकती है ! कुछ कम कर लीजिए !
"इससे कम नहीं हो सकता है ! आपकी वेशभूषा देखकर मैं समझ गयी थी कि आप धार्मिक वृत्ति के व्यक्ति हैं, इसलिए मैंने पहले ही कम करके बताया है ! जब पैसों का प्रबंध हो जाए, तब बेटी को लेकर आ जाइएगा !"
"जी, मैडम जी !" पुजारी जी यह कहते हुए उठ खड़े हुए और रानी को लेकर घर लौट आये ।
घर लौटकर पुजारी जी ने अपना सारा ध्यान रानी के इलाज के लिए पचास हजार रुपये जुटाने पर केंद्रित कर दिया । इसके लिए पुजारी जी ने अगले ही दिन सर्वप्रथम पत्नी द्वारा सहेज कर रखे गये आभूषण बेच डाले । चूँकि आभूषण बहुत ही कम मात्रा में थे, इसलिए उन्हें बेचकर पर्याप्त धनराशि प्राप्त नहीं हो सकी । धनराशि पूरी करने के लिए पुजारी जी ने अगले दो दिन में अपने कुछ परिचित लोगों से कर्ज ले लिया और चौथे दिन रानी को लेकर पुनः अस्पताल पहुँच गए।
जिस समय पुजारी जी अस्पताल में पहुँचे, डॉक्टर ओ.पी.डी. में किसी रोगी का परीक्षण-परामर्श कर रही थी। घंटा-भर प्रतीक्षा करने के पश्चात् पुजारी जी को डॉक्टर से भेंट करने का अवसर मिला। पुजारी जी को देखते ही डॉक्टर बोली-
"रुपयों की व्यवस्था हो गयी ?"
"हाँ जी, मैडम जी ! रुपयों की व्यवस्था करके ही आया हूँ ! बिटिया बाहर बैठी है, बुला लूँ !"
"हाँ, बिटिया को अंदर भेज दीजिए और आप काउंटर पर पचास हजार रुपए जमा करा दीजिए !"
डॉक्टर के निर्देशानुसार पुजारी जी ने काउंटर पर पचास हजार रुपए जमा कर दिये, लेकिन जब उनको पचास हजार रुपये के बदले मात्र छः हजार रुपए की रसीद प्राप्त हुई, तब वे भड़क उठे। उनके भड़कने और ऊँचे स्वर में बोलने पर अस्पताल के सभी कर्मचारी, सामान्य मरीज और उनके परिजन वहाँ पर एकत्र होने लगे। जब डॉक्टर तक इस विषय में सूचना पहुँची, तब वह तेज कदमों से चलकर काउंटर पर दौड़कर आयी और पुजारी जी को एक कोने में ले जाकर समझाने लगी -
"अंकल, आप समझने का प्रयास कीजिए कि जिस काम को हमसे कराने के लिए आप यहाँ आये हैं, वह गैरकानूनी है ! बच्ची के भविष्य को देखते हुए हम यह करने को तैयार हुए हैं !"
"लेकिन पचास हजार रुपये लेकर ... !"
"कोई डॉक्टर पचास हजार रुपये से कम में कर दे, तो हम फ्री में करने के लिए तैयार हैं। आप पूरी दिल्ली में घूमकर जानकारी कर लीजिए !" डॉक्टर ने पुजारी जी की बात को बीच में काटते हुए कहा।
"डॉक्टर साहब, जितना रुपया मैं दूँगा, उसकी रसीद तो माँगूगा ही !"
"अभी-अभी जो मैंने कहा, आपको समझ नहीं आया ? यह गैरकानूनी काम है, इसकी आपको रसीद नहीं मिलेगी !"
यह कहकर डॉक्टर ने वापस मुड़ते हुए एक नर्स को पुकारा- "रत्ना ! अंकल का फॉर्म फिल कर दो !"
"जी मैडम ! नर्स ने कहते हुए एक फार्म उठाया और पुजारी जी से पूछ-पूछ कर भरने लगी। लगभग तीन-चार मिनट में फार्म की सभी औपचारिकताएँ पूर्ण करने के पश्चात् नर्स ने उस फार्म को पुजारी जी की ओर बढ़ाते हुए कहा - "अंकल लीजिए ! इस पर यहाँ साइन कर दीजिए !"
पुजारी जी ने नर्स के हाथ से फार्म और पेन लेकर पढ़ना आरंभ कर दिया।
"अंकल, साइन करके जल्दी दीजिए !" नर्स ने पुनः निवेदन किया।
नर्स का निवेदन स्वीकार करते हुए पुजारी जी ने साइन करने के लिए जैसे ही पैन का पॉइंट फॉर्म पर रखा, उनकी दृष्टि फॉर्म पर 'सिग्नेचर' के ऊपर बारीक अक्षरों में लिखे हुए एक वाक्य पर जा टिकी और साइन करते हाथ में पकड़ा हुआ पैन जहाँ-का-तहाँ रुक गया। पुजारी जी अब शब्दों को और अधिक ध्यानपूर्वक पढ़ने लगे । वाक्य अंग्रेजी में लिखा था, जिसका अर्थ था-
"ऑपरेशन के दौरान मरीज की मौत हो जाने पर अस्पताल और डॉक्टर की जिम्मेदारी नहीं होगी !"
वाक्य पढ़कर पुजारी जी ने नर्स से कहा-
"मरीज की मौत का जिम्मेदार डॉक्टर और अस्पताल नहीं होगा, तो कौन होगा ?"
"अंकल, यह फॉर्मल स्टेटमेंट है, इसे आप सीरियस मत लीजिए !" नर्स ने कहा।
पुजारी जी फॉर्म पर हस्ताक्षर न करके तुरन्त डॉक्टर के पास गये और फॉर्म के उस वाक्य को निर्दिष्ट करके कहा -
"डॉक्टर साहिबा, आपने लिखा है, ऑपरेशन के दौरान मरीज की मौत होने पर न अस्पताल जिम्मेदार होगा, न डॉक्टर ! मैं जानना चाहता हूँ, ऐसी स्थिति में मरीज की मौत की जिम्मेदारी किस पर होगी ?"
"अरे अकल, आप इतना क्यों घबरा रहे हैं ! हर अस्पताल में ऑपरेशन से पहले ऐसी स्टेटमेंट पर मरीज के परिजनों से सिग्नेचर लिया जाता है !"
"नहीं, मैं इस पर सिग्नेचर नहीं करुँगा ! मेरे सिग्नेचर का अर्थ है कि आप अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान नहीं रहेंगे !"
"सिग्नेचर नहीं करेंगे, तो आप अपनी बेटी को यहाँ से ले जाइए ! कहीं दूसरी जगह इसका इलाज करा लीजिए !"
"ठीक है डॉक्टर साहिबा ! यही ठीक रहेगा !"
यह कहकर पुजारी जी अपने पचास हजार वापस लेने के लिए काउंटर की ओर बढ़ गये । अब तक काउंटर पर से पहला व्यक्ति घर जा चुका था और उसके स्थान पर दूसरा व्यक्ति बैठा था । पुजारी जी द्वारा रुपये वापस माँगने पर काउंटर पर बैठे उस व्यक्ति ने कहा कि रुपया वापस करने का यहाँ कोई नियम नहीं है । पुजारी जी द्वारा काफी शोर करने पर उसने किसी से फोन पर बात करके पुजारी जी से रसीद माँगी । पुजारी जी ने रसीद उसको दे दी। काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने रसीद लेकर पुजारी जी के हाथ में छ: हजार रुपए पकड़ा दिये और पुजारी जी के बार-बार यह कहने पर कि कुछ देर पहले ही उसने पचास हजार रुपये दिये थे, काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने बार-बार एक ही उत्तर दिया -
"अंकल, आपने जिसको पचास हजार रुपये दिये थे, उसीसे माँगिए ! मैं आपको उतने ही रुपये लौटा सकता हूँ, जितने रुपये की रसीद आप मुझे दे रहे हैं !"
काउंटर पर बैठे व्यक्ति से रुपये वापस न मिलने पर और उसके रूखे, कटु व्यवहार से परेशान होकर पुजारी जी अपनी समस्या लेकर चिकित्सक को बताने के लिए चिकित्सक-परामर्श-कक्ष की ओर बढे । चिकित्सक-परामर्श कक्ष की ओर जाते हुए पुजारी जी ने देखा, एक नर्स ऑपरेशन थिएटर से एक स्ट्रेचर बाहर की ओर धकेल रही है, जिस पर रानी अर्द्धचेतन अवस्था में लेटी है ! पुजारी जी तुरंत दौड़कर रानी के पास आये । बेटी को अर्द्धचेतन अवस्था में देखकर पुजारी जी क्रोध में आग बबूला हो गये । उस नर्स ने पुजारी जी को बताया -
"यह कुछ ही समय में ठीक हो जाएगी ! ऑपरेशन करने के लिए डॉक्टर साहब ने इंजेक्शन दिया था, उससे ... ।"
पुजारी जी बेटी की चेतना लौटने की प्रतीक्षा करने लगे । लगभग एक घंटा पश्चात् बेटी की चेतना आंशिक रूप से लौटी, तो पुजारी जी ने कुछ आश्वस्त होकर पुन: अपने पचास हजार रुपये लौटाने के लिए संघर्ष आरंभ कर दिया । संघर्ष करते-करते जब शाम के छ: बज गये, तब कहीं जाकर पुजारी जी को अपने पचास हजार रुपये में से चालीस हजार रुपये वापस मिले । दस हजार रुपये के लिए यह कह दिया गया कि उनकी बेटी का ऑपरेशन करने के लिए एनेस्थीसिया पर खर्च हो गये हैं, जो अब किसी भी दशा में वापस नहीं हो सकते ।
अंततः निराश होकर पुजारी जी को चालीस हजार रुपये लेकर ही संतुष्ट होना पड़ा और बेटी को लेकर वापस घर लौटने लगे । चूँकि रानी अभी भी अपनी पूर्ण चेतनावस्था में नहीं आयी थी, इसलिए पुजारी जी ने उसको लाने के लिए एक किराये की कार का प्रबंध कर लिया ।
क्रमश..