ये दिल पगला कहीं का - 14 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 14

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-14

किन्तु आशा के व्यवहार में आये आश्चर्यचकित परिवर्तन देखकर सभी हतप्रद थे। सपना के बेटी के उपचार में दिन-रात एक देने वाला आनंद अब भी सपना को स्वीकार करने को तैयार था। यह सपना भी भलि-भांति जानती थी कि आनंद उसे अब तक नहीं भुला है। वह अपने उस निर्णय पर शर्मिंदा थी जिसने उसे आनंद जैसे सुयोग्य वर से दूर कर दिया। वह आशा से भी मिली, जो आनंद से असीम प्रेम करती थी। आनंद सर्वाथा आशा के योग्य था। वह दोनों के बीच आना नहीं चाहती थी। इसलिए उसने जो निर्णय लिया वह अपने आप में कठोरतम था। उसने विवेक को पुनः अपना लिया। तन्वी अब ठीक थी। सो उसने तन्वी का भविष्य बनाने के लिये पुर्ण ऊर्जा से कामकाजी महिला बनना स्वीकार किया। तन्वी के लिए विवेक के हृदय में पितृत्व जागा। उसने न केवल बुरी संगत से तौबा की अपितु आनंद से बैर भाव त्यागकर सद्ममार्ग पर चलने का निश्चय किया। आनंद यह देखकर प्रसन्न था। उसने सबके सामने आशा से कहा-"वील यू मेरी मी?" आशा को जैसे सब कुछ मिल गया हो। वह दौड़कर आनंद से लिपट गई। दोनों ने जल्द ही विवाह कर लिया।

अगली कहानी पंजाब शहर के मोहाली से आई थी--

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*स* ड़क किनारे चंदन अपनी बाइक सुधार रहा था। तब ही वहा से एक कार गुजरी, जो पुनः पलट कर चंदन के पास आकर रूकी। कार के कांच खुले। कार में से एक सुन्दर महिला ने बाहर झाका। देखने से लगा मानो वह महिला चंदन को पहचानती थी। चंदन ने कार की ओर देखा। मीना को देखकर उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आये।

"कैसे हो चंदन?" कार से उतरकर मीना ने पुछा।

"ठीक हूं।" चंदन ने औपचारिकता वश कहा।

"तुम अभी भी इस बाइक के साथ हो! तुम बिलकुल नहीं बदले?" मीना ने पूछा।

"मुझे यह बाइक पसंद है।" चंदन ने उत्तर दिया। चंदन की स्पष्ट वादिता से मीना परिचित थी। दोनों स्कूल में साथ थे। फिर काॅलेज भी साथ-साथ गये। मगर दोनों ने एक-दुसरे के प्रति प्रेम के भाव कभी उभरने नहीं दिये। मीना एक बहुउद्देशीय कम्पनी में सीए का कार्य करने शहर से बाहर चली गई। जबकी चंदन अधबीच में काॅलेज की पढ़ाई छोड़ इलेक्ट्रीशियन का कार्य करने लगा। मीना आगे और आगे निकलती गयी। मगर चंदन जहां पहले था वहीं आज भी है। मीना ने अपने परिवार के विरोध के बावजूद चंदन से विवाह करने की इच्छा जताई थी। किन्तु स्वयं से अधिक सफल मीना को स्वीकारने में चंदन का स्वाभिमान आड़े आ जाता। आज इतने वर्षों के बाद अचानक अपने गृह शहर में मीना को पुनः देखकर चंदन पुरानी यादों से बाहर नहीं आ पा रहा था। चंदन बार-बार कुछ ढुंढ रहा था। उसने कार में ताक-झांक कर देखा। मगर वहां ड्राइवर के अलावा कोई नहीं था। चंदन बचते-बचाते मीना के मस्तक और गले पर नज़र दौड़ा देता। उसे कहीं कोई चिन्ह दिखाई नही दिये। जिससे यह निश्चित हो सके की मीना विवाहित है। चंदन की व्याकुलता मीना भांप चूकी थो। उसे आभास हो गया कि चंदन क्या खोज रहा है?

"तुमने अब तक शादी क्यों नहीं की?" चाय की चुस्कियां लेते हुये मीना ने चंदन से पुछा। पढ़ाई के दिनों में अक्सर सड़क से सटी टी-स्टाॅल पर दोनों चाय पीया करते थे। बहुत सालों के बाद आज पुनः वे चाय पी रहे थे। वह भी एक साथ।

"तुम्हें कैसे पता कि मैंने शादी नहीं की?" चंदन ने पुछा।

"जैसे तुम्हें पता चल गया कि मैंने भीअब तक शादी नहीं की।" मीना ने जवाब दिया।

चंदन का संशय निश्चय में परिवर्तित हो गया था। उसे मन ही मन प्रसन्नता भी थी। मगर अब इस प्रसन्नता का क्या अर्थ? चालिस वर्ष की आयु में पुनः उन्हीं परिस्थितियों को सजीवता से जीना बहुत ही कठिन कार्य था। मीना जहां सफलता के शिखर पर थी, वही चंदन अब भी इलेक्ट्रिसीटी फीटींग का कार्य कर रहा है। अपने चेहरे को बाइक के कांच में देखकर चंदन पुनः गंभीर हो गया।

"चंदन! मुझे ज्ञात है कि तुम्हारे और मेरे बीच जो दुरी है वह मात्र हम दोनों के जाॅब को लेकर है। यदि हम दोनों अपने-अपने कार्यों को किनारे रखकर सोचे तब!" मीना बोली।

"सोचने का समय अब कहां है मीना? वह समय अब नहीं। तुम बहुत बेहतर की अधिकारी हो। मुझे अपने आप से कोई शिकायत नही है।" चंदन नपे-तुले वाक्यों में कितना कुछ कह गया।

"निश्चित ही तुम सही हो। मुझे बहुत से प्रस्ताव मिले जो मुझसे भी अधिक सफल थे। किन्तु उन सभी में आगे और आगे बढ़ने की होड़ थी। किसी भी परिस्थिति में उन्हें आगे निकलना था। मुझसे भी आगे।" मीना बोली।

"इसमें गलत क्या है?" चंदन ने पुछा।

"सही और गलत के फेर में मैं उलझना नहीं चाहती थी। इसीलिए किसी को स्वीकार नहीं किया।" मीना बोली।

एक बार फिर पुनः वही स्थिति स्वतः निर्मित हो गयी, जिससे दोनों बहुत पहले गुजर चूके थे। मीना अब भी चाहती थी कि चंदन उसे स्वीकार ले। बालों में सफेदी की चमक चंदन से कुछ न कुछ कह जाती। मीना जानती थी कि अविवाहित चंदन अब भी उसे प्रेम करता है। चाय पीकर दोनों लोटना चाहते थे। किन्तु कोई भी इतनी जल्दी विदा होने को तैयार नहीं था। चंदन दोनों के रिश्तें को लेकर अब भी दुविधा में था जबकी मीना हमेशा की तरह निडर और सुलझी थी। चंदन को अपनाने में उसे कोई परेशानी नहीं थी। मगर वह यह भी जानती थी कि पहल उसे ही करनी होगी।

"चंदन! हम दोनों अकेले-अकेले चल रहे है। आगे का सफर यदि हम मिलकर तय करे तो सफ़र सरलता से कट जायेगा। तुम स्वयं को कम मत आंको।" मीना ने चंदन का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा।

"वे लोग जो किसी भी परिस्थिति में सिर्फ अपना लाभ चाहते है, उनके समतुल्य तुम्हारे नैतिक कर्तव्य अधिक मुल्यवान है। तुम्हारे पास असीम धैर्य और गज़ब का संतोष है। जो उनके पास नहीं। तुम सभी के हितार्थ सोचते हो। निरंतर कर्म पर विश्वास और अपनो के प्रति अपनत्व की प्रबल भावना तुम्हे और भी अधिक शक्तिशाली बनाती है। रिश्तों में तुम्हारी गहरी आस्था है। कार्य कैसा है, इसकी परवाह करना तुम्हारे स्वभाव में नहीं। नि:स्वार्थी स्वभाव तुम्हारा आकर्षण है। जबकी कुछ मात्र स्वयं को लाभार्थी बनाने के कार्यों में अनवरत लगे है।" मीना बोली। चंदन द्रवित हो उठा। मीना उसे कितना प्रेम करती थी उसे अब आभास हो गया था। वर्षों तक वह चंदन की प्रतिक्षा कर रही थी। चंदन स्वयं भी मीना की प्रतीक्षा कर रहा था।

"मगर मीना...अब इतने सालों बाद...?" चंदन बोला।

" हा चन्दन! अभी नहीं तो कभी नहीं। सौभाग्य से हमारा मिलना दौबारा हुआ है। इस अवसर को अब हमें युं ही जाने नहीं देना चाहिये।" मीना बोली। चदंन की दुविधा समाप्त हो चूकी थी। मीना ने उसे अंतरात्मा तक प्रेम किया था जो अन्य कहीं से उसे मिलना सरल नहीं था। चंदन ने अपने अंतरमन की आवाज सुन ली। उसने मीना को अपनी बाइक पर बिठाया। वह मीना को अपने घर ले जाना चाहता था। दोनों के विवाह की प्रथम बातचीत चंदन के घर से ही आरंभ होना थी।

अगली कहानी उत्तराखंड के देहरादून से आई थी---

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*दी* पक ने आज भी कुछ नहीं कहा। हमेशा की तरह वह आज भी हंसता और हंसाता रहा। शाम के चार कब बजे पता ही नही चला। स्कूल की छुट्टी का समय हो चूका था। अवन्तिका बुझे मन से अपना सामान समटने लगी। मगर वह निराश नहीं थी। उसे विश्वास था कि दीपक आज अपने दिल की बात बता देगा। वह अवन्तिका से मिला भी किन्तु उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। दीपक ने अभी छः माह पुर्व ही स्कूल ज्वाइन किया था। यहां तीस से अधिक शिक्षकों का स्टाॅफ था। दीपक को अनुभव और पद के अनुरूप अपनी लाॅबी की शिक्षकों में सम्मिलित होने हेतु आमंत्रण मिला। दीपक इसके लिये कतई तैयार नहीं था। वह मिलनसार था। उसकी प्रत्येक गुट में घुसपैठ थी। सभी शिक्षक उसे पसंद करते। उससे किसी शिक्षक का कभी मनमुटाव नहीं हुआ। दीपक सर्वप्रिय था। अवन्तिका के साथ भेदभाव का व्यवहार देखकर दीपक को अप्रसन्नता हुई। अवन्तिका अपने सफेद दाग छुपा रही थी। दीपक को समझते देर न लगी। लंच हो चूका था। उसने अपना टीफीन उठाया और अवन्तिका की टेबल के पास जा पहुंच। अन्य शिक्षक यह देखकर हतप्रद थे।

"दिपक! तुम पढ़े लिखे होकर अनपढ़ जैसी हरकते कर रहे हो। अवन्तिका संक्रमण की चपेट में है।" कुछ दुरी पर अन्य शिक्षकों के संग बैठी अनुराधा पंढारकर धीरे से बोली।

दीपक कुछ न बोला। उसने अपना टीफीन खोलते हुये पुछा।

"आप अपना उचित उपचार करवा रही है?" दीपक ने अगला प्रश्न पुछा।

"जी हां।" अवन्तिका ने कहा।

"अनुराधा मैडम! व्हाइट स्पॉट एक संक्रामक रोग नहीं है। इसमें सिर्फ स्किन के पिगमेंट खत़्म हो जाते हैं। जिसे लुकोडर्मा कहते हैं। जिसके कारण सफेद दाग़ उभर आते है। ये उपचार के उपरांत ठीक होकर पुनः आ सकते है?" दीपक ने अनुराधा की बोलती बंद कर दी थी। अवन्तिका के पक्ष में स्कूल का सबसे चर्चित और आकर्षक युवक खड़ा था। अपने नाम को किसी अन्य पुरूष के मुख से सुनकर अवन्तिका भाव-विभोर थी। अब तक उसे 'अवन्तिका जी' या 'मैडम' ही संबोधन सुनने को मिला था। दीपक ने अवन्तिका को बिना किसी औपचारिकता के सीधे अवन्तिका नाम से संबोधित कर अपनत्व प्रदान किया था। दीपक अब प्रतिदिन अवन्तिका के साथ ही लंच करता। वह अवन्तिका के हृदय में प्रवेश कर चूका था। सफेद दागों की वजह से अवन्तिका को वैवाहिक सुख अप्राप्य था। उससे विवाह करने के लिये कोई भी युवक तैयार नहीं था। अवन्तिका की आयु भी कुछ अधिक हो चली थी। दीपक भी अविवाहित था। मगर दीपक जैसा होनहार और आकर्षक नवयुवक अवन्तिका को क्यों चूनेगा? यही सोचकर अवन्तिका, दीपक से अपने मन की बात कहने में डर रही थी। दीपक ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति से अवन्तिका का हृदय जीत लिया था। उसका कहना था कि कल हमारे हाथ में नही है किन्तु आज का समय हमारी मुठ्ठी में है। अतएव जो हमारा मन कहे और अगर वह उचित भी है तब उसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। आज अगर शरीर सुन्दर है तो कल ढलती आयु के साथ कुरूप भी हो जायेगा। इसलिए आन्तरिक सौन्दर्य भी देखा जाना चाहिये। यही नहीं ! दीपक के लिए आन्तरिक प्रेम भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। इन्हीं कारणों से प्रभावित होकर अवन्तिका के मन में आशा की किरण जागी थी। धीरे-धीरे उसने दीपक से बात करने की हिम्मत जुटा ही ली। स्टाॅफ रूम में आजकल इसी बात की चर्चा हो रही थी। क्या दीपक, अवन्तिका को स्वीकार करेगा? या अन्य पुरूषों की भांति वह भी उसका हृदय तोड़ देगा?

"अवन्तिका! मुझे खुशी है कि तुमने अपने हृदय की बात बताई। किन्तु मैं तुमसे विवाह करने के लिये तैयार नहीं हूं।" दीपक ने कहा। स्टाॅफ रूम में शिक्षक दोनों के बीच की बातों का साधा प्रसारण देख रहे थे।

क्रमश..