ये दिल पगला कहीं का - 4 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 4

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-4

कुछ क्षण के मौन उपरांत सुनंदा बोल-" चन्द्रशेखर की प्रताड़ना और शोषण में अगर कोई मेरे साथ खड़ा रहा तो आनंद वो आप थे। आपने ही मेरे दोनों बच्चों को कभी पिता की कमी होने नहीं दी। आपके लिए मेरे हृदय में बहुत सम्मान है। मगर•••।" सुनंदा कहते-कहते चुप हो गयी।

"मगर क्या? बोलो सुनंदा!" आनंद ने जोर देकर कहा।

"बच्चें बड़े हो रहे है और समझदार भी। चन्द्रशेखर से भले ही उन्हें पिता समान दुलार कभी नहीं मिला! मगर अपने पिता का स्थान वो आपको भी नहीं देना चाहते।" सुनंदा बोलकर जा चूकी थी।

आनन्द ने सुनंदा और उसके दोनों बच्चों का निर्णय स्वीकार कर लिया। यहां तक की लोकलाज के भय से उन्होनें सुनंदा के घर जाना भी छोड़ दिया। आनन्द का ह्रदय दुःखी कर सुनंदा भी दुःखी थी। बच्चों के हितार्थ उसने चन्द्रशेखर से विच्छेद स्वीकार किया। और अब बच्चों की ही खातिर चन्द्रशेखर से भी उसने दुरी बना ली। आनन्द के छोटे भाई पुनीत ने प्रेम विवाह किया था। घर आई नव वधु मालिनी सास-ससुर के प्रति शुष्क थी। सास निर्मला ने मालिनी का विरोध किया तो उसने अपने पति से अलग चूल्हा-चौंका करने की डिमांड रख दी। आनन्द ने पुनीत और मालिनी को प्रेम से समझाने की कोशिश की। लेकिन मालिनी नहीं मानी। क्रोध में आकर पुनीत ने मालिनी पर हाथ उठा दिया। इसके परिणाम गंभीर हुये। मालिनी के कहने पर पुनीत पर घरेलू हिंसा का प्रकरण दर्ज किया गया। इससे अधिक कुछ ओर बुरा घटित होता उससे पुर्व ही आनंद ने अपने माता-पिता को साथ लेकर अन्यत्र घर बसा लिया। मालिनी की प्रताड़ना से दुःखी होकर आनंद विवाहित होने से डरने लगा था। बुढ़े माता-पिता को इस उम्र में कोर्ट-कचहरी दिखना उसे गंवारा नहीं था। यही कारण था कि उसने इतने वर्षों तक शादी नहीं की। सुनंदा के संपर्क में आने से महिलाओं के प्रति उसकी नकारात्मक राय बदली। धीरे-धीरे सुनंदा और आनंद एक-दूसरे से प्रेम करने लगे।

रंजीता नवविवाहिता थी। अपने विवाह से अप्रसन्नचित वह फैक्ट्री में भी सदैव चिढ़-चिढ़े स्वभाव लिए रहती। सुनंदा ने रंजीता से बातचीत शुरू की। आरंभ में उसने सुनंदा को उपेक्षित किया। फिर जब सुनंदा ने विवाहित जीवन को अभिशाप बताकर इस रिश्ते को कौसना आरंभ किया तब जाकर रंजीता सामान्य होकर उसके रंग में रंग पाई।

रंजीता आरंभ से ही विवाह नहीं करना चाहती थी। परिवार के दबाव में आकर उसने वरूण से विवाह कर लिया था। मगर ससुराल जाने के नाम से वह बिफर जाया करती थी। ससुराल में भी वह अधिक दिनों तक नहीं रही। सास-ससुर और ननद को वह बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। पति वरूण से उसका व्यवहार अति शुष्क था। वरूण कई बार उसे लेने रंजीता के घर आया मगर हर बार कोई ना बहाना बनाकर वह ससुराल जाने से इंकार कर देती। सामाजिक दायरे में रहकर सभी उसे ससुराल जाने की सलाह दे देते। इसलिए वह उन सभी के विरूद्ध थी, जो उसे वैवाहिक जीवन पर सकारात्मक व्याख्यान देते थे। अनुभवी सुनंदा एकमात्र ऐसी महिला थी जो पुरी तरह रंजीता के रंग में रंग कर उसके हर उचित-अनुचित व्यवहार पर साथ दे रही थी।

सुनंदा द्वारा रंजीता के अनुचित व्यवहार पर सहयोगात्मक रवैये से फैक्ट्री के सभी लोग आश्चर्यचकित थे। कुछ ही समय में सुनंदा, रंजीता की सर्वाधिक प्रिय सहेली बन गयी थी। सुनंदा के असफल वैवाहिक जीवन के उपरांत भी वह गले में मंगलसूत्र और मस्तक सिंदूर लगाया करती थी। इस कारण का प्रतिउत्तर सुनंदा ने उसे यह कहकर बताया कि ये दोनों चिन्ह पृथ्वी पर सौभाग्यवती स्त्री की एकत्व पति और उसकी पवित्रता की पुनीत निशानी है। मंगलसूत्र जहां उसे पुरूषों की दूषित दृष्टि से बचाता है वहीं माथे का सिन्दूर उसके परिवार के प्रति त्याग, समर्पण और कर्त्तव्यनिष्ठा को प्रदर्शित करता है। यह दोनों ही चिन्ह जब महिला पर शुशोभित होते है तब वहीं साधारण महिला असाधारण व्यक्तित्व को प्राप्त करती है। सुनंदा ने अपना उदाहरण देकर और भी सुस्पष्ट किया कि वह और उसका पति दोनों अलग हो चूके है तथापि सुहाग की यह निशानियां आज भी उसे सुरक्षा प्रदान कर रही है। कोई भी पुरूष विवाहित सुनंदा को प्रारंभिक अवलोकन पर ही कुविचार की भावना को तुरंत त्याग देता था। संक्षेप में इतना की पति कैसा भी हो? पति, पति होता है। इसके आगे फैक्ट्री के मालिक का उदाहरण देकर सुनंदा ने रंजीता को समझाया कि करोड़पति शिवराम परमार उसकी एक आंह पर अपना सबकुछ समर्पण करने को तैयार थे। किन्तु विवाहिता स्त्री की इच्छा के बगैर उससे कोई कार्य नहीं करवा सकता। देश और दुनिया घुम चूके उसके सबसे करीबी मित्र आनंद, क्या उन्हें कोई लड़की नहीं मिली होगी? अवश्य मिली होगी। किन्तु वो सुनंदा की एक हां के लिए वर्षों से प्रतिक्षा कर रहे है। यहां तक की आनन्द आना और कर्तव्य के पिता बनने को भी तैयार है। इन सबके बाद भी जब तक सुनंदा की सहमती नहीं होगी, आनन्द उसे छु भी नहीं सकते। यह अदृश्य मगर अचूक शक्ति एक विवाहिता स्त्री के पास ही होती है।

सुनंदा ने यह भी बताया की सास-ससुर बहु के दुसरे माता-पिता होते है। ससुराल में अपना विरोध अवश्य दर्ज करना चाहिए किन्तु पुर्ण मर्यादित तौर-तरीकों के साथ। सास-ससुर का जीवन अधिक लम्बा नहीं होता। उनकी सेवा ठीक उसी तरह होनी चाहिए जैसे कि हम अपने जनक और जननी की करते है। यह बहु का धर्म भी है और कर्तव्य भी। उनके न रहने पर बहु ही घर की एकाधिकार स्वामिनी होती है। पति और बच्चें उस पर आश्रित हो जाते है। इतना की एक दिन अगर वह घर पर न रहे तो सारा घर कबाड़ खाना बनकर रह जाता है। ससुराल में परिस्थिति कितनी भी विपरीत क्यों न हो! अपने कर्तव्यों से कभी विमुख नहीं होना चाहिए। हर विवाद का हल बातचीत से संभव हो जाता है। इसलिए संबंधों में मौन रहकर नहीं अपितु अपनी पसंद और नापसंद दोनों से सदस्यों को अवगत कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही परिवार सदस्यों की रूचि और अरूचि का समुचित ज्ञान होकर यथोचित कार्य करना भी दीर्घामी सुखद परिणाम का परिचायक सिध्द होता है।

रंजीता का हृदय परिवर्तित हो रहा था। विवाहिता स्त्रीयों की गौरवगाथा सुनंदा के मुख से सुनकर वह अचभिंत थी। स्वयं को सामान्य समझ रही रंजीता को अपने विवाहित होने पर गर्व होने लगा। अबकी बार वरूण को उसने स्वयं फोन लगाया। फैक्ट्री के कार्य से इस्तीफा देने में उसने विलंब नहीं किया। वरूण उसे लेने एक बार फिर आया। अबकी बार रंजीता ने वरूण से क्षमादान मांगते हुए उसके साथ सहर्ष चलने की सहमती दे दी। वह फैक्ट्री भी आई। अंतिम बार सभी से मिलने। सुनंदा के साथ-साथ अन्य उपस्थित महिला सहकर्मीयों की आंखें रंजीता को विदा करते समय नम हो गयी।

आना और कर्तव्य रविवार के अवकाश पर बोर रहे थे। बहुत दिनों से आनंद अंकल घर नहीं आये थे। वे दोनों आनंद को मिस कर रहे थे।

"माॅम! आनंद अंकल अब हमारे घर क्यों नहीं आते?" छोटी बेटी आना ने पुछा।

सुनंदा ने कर्तव्य की ओर देखा। कर्तव्य भी यह जानना चाहता था। मगर यह पूछने का साहस वह स्वयं नहीं कर सका। इसलिए आना को आगे आना पड़ा।

"बेटी! तुम दोनों भाई-बहन ही तो कहा करते थे न कि तुम्हारे दोस्त तुम्हें ताना मारते है। यह कहते है कि आनंद अंकल किस रिश्तें से तुम्हारे यहां आते-जाते है? वगैरह-वगैरह। इसलिए मैनें तुम्हारे आनन्द अंकल को मना कर दिया और कह दिया कि अब से वो यहां न आया करे।" सुनंदा बोली।

वह सुबह का नाश्ता बना रही थी।

आना ने कर्त्तव्य की और देखा।

"तब क्या वो यहां अब कभी नहीं आयेंगे?" कर्तव्य कुर्सी से उठकर सुनंदा के पास आकर बोला।

"हां अब वो यहां कभी नहीं आयेंगे।" सुनंदा ने स्पष्ट कह दिया।

दोनों बहन-भाई मिलकर कुछ चर्चा करने लगे। सुनंदा कुछ समझ न सकी। मगर वह इतना अवश्य समझ चूकी थी की आनन्द की कमी उन दोनों को बहुत खल रही थी।

"माॅम! आप आनंद अंकल से शादी कर लो।" आना ने सुनंदा से कहा।

"हां माॅम! जब वह ऑफिसियली हमारे डैड बन जायेंगे तब कोई कुछ नहीं कहेगा।" कर्तव्य बोला।

बच्चें सचमुच बड़े हो रहे थे। उनके छोटे मुंह से इतनी बड़ी बात का निकलना यह प्रत्यक्ष प्रमाण था कि वे अब सामाजिक रिश्तों को समझने लगे है। और उनका महत्व जानकर उन रिश्तों को बचाने हेतु अपना योगदान देना चाहते थे।

आनंद बागवानी कर रहे थे। अवकाश के दिन पेड़-पौधों की समुचित देखरेख उनकी प्राथमिकताओं में था। टैक्सी से आना और कर्तव्य पहले उतरे फिर सुनंदा। आना और कर्तव्य की नज़रे आनंद पर पड़ी। वे दौड़कर उनकी ओर भागे। आनन्द भी बच्चों को अपने यहां देखकर प्रसन्नता से खिल उठे। सुनंदा यह दृश्य देखकर भावविभोर हो गयी। दोनों बच्चे आंनद की गोद में जा बैठे थे। आनंद बना किसी ऐतराज के उन्हें अपने दोनों हाथों में उठाये हुये थे।

मां-बाबुजी को प्रणाम कर सुनंदा किचन में चली गई।

आनन्द के माता-पिता पुर्व में ही सुनंदा को बहु के रूप में स्वीकार कर चूके थे। सुनंदा के बच्चों से भी उनका आत्मीय रिश्ता बन चूका था। आना और कर्तव्य अपने धर्म के दादा-दादी का लाड-प्यार पाना चाहते थे।

"अंकल! क्या आप हमारी माॅम से शादी करना चाहेंगे? आना ने आनंद से पुछा।

"हम अपनी माॅम के लिए आपके बेटे आनन्द अंकल का हाथ मांगने आये है?" कर्तव्य ने आनन्द के माता-पिता से कहा।

दोनों की बातों में प्राकृतिक भोलापन समाहित था।सभी हंस रहे थे।

सुनंदा और आनंद ने एक साथ पैर छूकर मां-बाबुजी का आशिर्वाद लिया। सुनंदा ने आनंद के पैर छूये--

"अरे यह क्या कर रही हो सुनंदा!" आनंद ने सुनंदा को कंधों से उठाते उठाते हुए कहा।

"आनन्द! यह आपका ही विश्वास था जो पिछले आठ वर्षों में एक पल के लिए भी डिगा नहीं। आपकी सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास से मुझे सदैव आत्मबल मिलता रहा है। मुझे और मेरे बच्चों को स्वीकार कर आपने पुरूषार्थ को नई ऊंचाइयां दी है।" इतना कहकर सुनंदा आनंद के प्रति आत्मसमर्पित हो गई।

आनन्द के माता-पिता अपने नवागत पोते-पोती के साथ खेल खेलने में व्यस्त हो गये। आनन्द और सुनंदा यह दृश्य देखकर प्रसन्न थे। अब जाकर उनका परिवार पुर्ण हुआ था।

रियलिटी शो को दर्शकों का अच्छा प्रतिसाद मिल रहा था। सत्तारूढ़ पार्टो पर दबाव बन रहा था। सरकार आवश्यक कदम उठाने के मुड में थी।

'अभय और डिम्पल की शादी' रियलिटी शो की अगली कहानी बंगलुरू से आयी थी। इस कहानी में दो कपल थे। शिरिष वेड्स दीपिका और आदित्य वेड्स कविता---

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क्रमश..