ये दिल पगला कहीं का - 1 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 1

ये दिल पगला कहीं का

उपन्यास सारांश- ‘ये दिल पगला कहीं का’ उपन्यास कहानी है अभय और डिम्पल की। जो बचपन के प्रेमी है। अभय जब अपनी बेरोजगारी के कारण डिम्पल को अपनाने से मना कर देता है तब डिम्पल गल़त रास्ते का चयन कर लेती है। वह बार गर्ल बन जाती है। एक बड़े स्कैण्डल में फंस जाने पर अभय डिम्पल को बचाने आगे आता है। तब तक वह स्वयं भी एक माफियां डाॅन बन चूका था। अभय और डिम्पल को गिरफ्तार कर लिया जाता है। दोनों की लव स्टोरी जेल में परवान चढ़ती है। जेलर इन दोनों को मिलाने का प्रयास करता है। काॅलेज स्टूडेंट विवान और प्रतिज्ञा अपने अन्य दोस्तों के साथ अभय और डिम्पल की शादी के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते है। वे इसे एक अभियान के रूप में प्रसारित करते है। श्रेष्ठा मुखर्जी जो की इंदौर की एक प्रसिद्ध वकील है, अभय और डिम्पल के प्यार को मंजिल तक पहूंचाने में मदद करती है। वे राज्य की राजपाल से मिलकर दोनों के विवाह की अनुमति हेतु प्रार्थना करती है। इसमें जेल मंत्री पारस जैन भी सकारात्मक भूमिका निभाते है। मगर मुख्यमंत्री साफ मुकर जाते है। जनमत संग्रह चलाया जाता है। देश भर से प्रेमी जोड़ो को अपनी-अपनी प्रेम कहानीयों सहित इंदौर में आमंत्रित किया जाता है। यह प्रेमी जोड़े अपनी निजी प्रेम कहानी एक प्रसिद्ध न्यूज चेनल पर इन्टरव्यू के माध्यम से बताते है। यह अभियान अभय और डिम्पल के लिये होता है। आखिरकार बात राष्ट्रपति तक पहूंचती है और वे हस्तक्षेप करते है। अभय और डिम्पल को खुली जेल में विवाह उपरांत एक साथ दाम्पत्य जीवन उपहार में मिलता है।

लेखक-- जितेन्द्र शिवहरे इंदौर मध्यप्रदेश

*****

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-1

"अभय! कुछ तो कहो! तुम्हारी ये चुप्पी अब खलने लगी है।" डिम्पल खिन्न थी।

"मैं कुछ नहीं कह सकता डिम्पल! तुम्हें जो उचित लगता है वह कर सकती हो।" हमेशा की तरह अभय निश्चिंत था। बस फिर क्या था, डिम्पल जैसे स्वतंत्र हो गई। एक अभय ही था जिसके भरोसे वह अपना पुरा जीवन काटने का दंभ भरती थी। किन्तु अभय की अस्वीकृति ने उसे अंदर तक तोड़ दिया। डिम्पल ने रीना की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया। रीना को बस्ती में अधिक पसंद नहीं किया जाता था। रीना एक बार डांसर थी। अभय ने डिम्पल को रीना से दूर रहने को कहा था। डिम्पल, अभय की हर बात मानती आई थी, लेकिन जब अभय ने ही उससे किनारा कर लिया तब डिम्पल ने वह सब करना आरंभ किया जिसके लिये कभी अभय मना किया करता था। कुछ ही समय में डिम्पल की गरीबी जाती रही। उसने अपना घर भी बदल लिया। उसका परिवार डिम्पल से प्रसन्न था। सिवाये उसकी मां माधवी के। डिम्पल ने अपने परिवार को वह सब दिया जिसके लिये वे वर्षों से वंचित थे। विलासिता संबंधी सभी तरह के प्रसाधन उसने खरीद लिये। वह शहर की प्रसिद्ध हस्तियों के बीच उठती-बैठती थी। डिम्पल की मां अभय से जाकर मिली।

"बेटा! तुमने डिम्पल को क्या छोड़ा! उसने गल़त राह पकड़ ली। उसे रोक लो। कहीं अधिक देर न हो जाये। आखिर कभी तुमने उससे प्रेम किया था।"

"मगर मां जी। मैंने उसे हमेशा गल़त रास्तें पर जाने से रोका है।" अभय बोला।

"तब तुम लोग शादी क्यों नहीं कर लेते?" माधवी बोली।

"शादी हूंss! यहाँ मेरा ही गुजर बसर नहीं हो रहा, वहां मैं डिम्पल का बोझ कैसे उठा सकूंगा।" अभय बोला।

"वो सब मैं कुछ नहीं जानती। अगर डिम्पल को कुछ हुआ तो उसके जिम्मेदार सिर्फ तुम होगे।"

इतना कह माधवी वहां से जा चूकी थी। अभय के मस्तिष्क में अनगिनत विचार कौंध रहे थे। डिम्पल के विषय में उसे अच्छा और बुरा कहने-सुनने को मिलता रहता। लेकिन वह इतनी आगे निकल जायेगी, अभय को इसका अंदाजा नहीं था।

शहर की एक फाइव स्टार होटल में अभय को बुलाया गया। वह डिम्पल ही थी। पहले-पहल तो डिम्पल ने अभय से मिलने से इंकार कर दिया। किन्तु जब अभय ने अधिक जोर दिया तब डिम्पल उससे मिलने को राजी हुई।

"यह सब छोड़ दो डिम्पल। यह अच्छा नहीं।" अभय ने कहा।

"तुम्हें क्या लगता है। मैं तुम्हारे हाथ की कठपुतली हूं! जो तुम कहोगे मैं वहीं करूंगी।" डिम्पल क्रोध में आकर बोली।

"यदि तुम चाहते हो कि मैं यह सब छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊं तो पहले मेरी बराबरी करो। फिर आना मेरे पास।" डिम्पल का निश्चय अमिट था। वह जा चूकी थी। अभय पुनः संकट में था। डिम्पल को पुर्व में अस्वीकार करना आज उसके लिए खेद का विषय था। क्योंकि डिम्पल आज जिस स्थिति में थी, उसका जिम्मेदार अभय ही था। अतएव वह डिम्पल को किसी भी मूल्य पर सद्ममार्ग पर लाना चाहता था। वह अपनी बस्ती के मित्र लल्लू से मिला। लल्लू असामाजिक जीवन से परिचित था। वह अभय को बुरे दलदल में धकेलना नहीं चाहता था। किन्तु विषय प्रेम का था जिसके आगे लल्लू ने हार मान ली। उसने अभय को माफियां डाॅन बिल्ला बाॅस से मिलवाया। चरस-गांजे की तस्करी की प्रारंभिक सफलता से अभय उत्साहित था। पुलिस के हत्थे चढ़ा भी, मगर जल्द ही जेल से छूट गया। उसका अवैध शराब का कारोबार ठीक-ठाक चल रहा था। मगर यह सब उसे पर्याप्त नहीं लगा। अब वह ज़मीन की हेरा-फेरी करने लगा। एक ही ज़मीन बहुत से ग्राहकों को बेचकर उसने अच्छा लाभ अर्जित कर लिया। महिलाओं की तस्करी में उसका नाम प्रसिद्ध था किन्तु पर्याप्त प्रमाण के अभाव में हर बार वह पुलिस के चंगूल से छुट जाता। शहर ही नहीं अपितु देश-विदेश में उसने अपने नाम की प्रॉपर्टी स्थापित कर ली थी।

"डिम्पल! क्या अब तुम मुझसे शादी करोगी?" पुरे दस वर्षों के बाद अभय डिम्पल से मिल रहा था। डिम्पल अपने पुर्व व्यवहार पर शर्मिंदा थी, जिसने एक नेक और ईमानदार आदमी को माफियां डाॅन बना दिया। वह अभय को स्वीकार करना चाहती थी किन्तु समय ने एक ऐसी करवट ली जिसने सब कुछ बदल दिया। डिम्पल, रीना और उनकी सहेली मीरा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। उन तीनों पर एक बहुत बड़े शासकीय कर्मचारी को ब्लैकमेल करने का आरोप था। तीनों सहेलीयों से सघन पूछताछ की जा रही थी। डिम्पल ने शहर की बहुत बड़ी-बड़ी हस्तीयों को अपने जाल में फंसा कर उनसे अथाह धन लुटने की बात कबूली। इस हनीट्रेप कांड ने बहुत सुर्खियों बटोरी। इस कांड पर जहां एक ओर पुलिस की चांज चल ही रही थी तो दुसरी ओर भू-माफीया अभय पर पुलिस का शिकंजा बढ़ता चला गया। अभय के निजी होटल में बहुत-सी जबरन बंदी बनाई गयी लडकियां बरामद की गई। उन्होंने पुलिस को बताया की अन्य शहरों में उन्हें सप्लाई किया जाता था। जहां वे सभी तरह के अनैतिक कार्य करती थी। बदले में बहुत अधिक धनलाभ होता था। जिसका बहुत बड़ा हिस्सा अभय रखता। जो बच जाता वो लड़कीयों और अन्य सहयोगियों में वितरित किया जाता था। अभय फरार था। पुलिस सरगर्मी से अभय को ढुंढ रही थी। जब पुलिस के वह हाथ न लगा तब पुलिस को अभय की चल-अचल संपत्ति को राजसात करने का अभियान चलाना पड़ा। एक के बाद एक अभय के शहर स्थित भवनों पर बुलडोजर चलाये गये। स्थानीय लोगों ने क्षतिग्रस्त भवनों में खूब लुटपाट की। जिसे जो हाथ लगा वह ले कर भागा। हर दिन एक नई एफआईआर अभय की विरूद्ध दर्ज की जाने लगी। शहर के विभिन्न पुलिस थानों ने अभय को मोस्ट वांटेड आरोपी का दमका दे दिया। उसका पता बताने वाले को दस लाख रूपये का नकद ईनाम देने की घोषणा कर दी गई। अभय किसी के हाथ नहीं लग रहा था। एक दिन पुलिस को एक ई-मेल मिला। जिसमें अभय ने स्वयं आत्म-समर्पिण करने की बात कही थी। इसके एवज में वह डिम्पल से भेंटवार्ता चाहता था। पुलिस ने उसकी मांग ली। अभय ने स्वयं को आत्मसमर्पित कर दिया। वह जेल में डिम्पल से मिला।

"डिम्पल! क्या अब हम एक हो सकते है?" कैदी की वेशभूषा में प्रेमी अभय कह रहा था। डिम्पल और अभय एक ही जेल में थे।

"अब ये अंभव नहीं अभय!" डिम्पल ने असमर्थता जाहिर की। वह जानती थी की अब उन दोनों का शेष जीवन जेल की काल कोठरी में ही बितेगा।

"प्रेम में कुछ भी अअंभव नहीं है। हम जल्दी ही शादी करेंगें।" अभय की बातों में कमाल का आत्मविश्वास था। डिम्पल भी यह देखकर सपने संजोने लगी थी। जेल परिसर में महिला और पुरूषों के लिये पृथक-पृथक व्यवस्था थी। सुरक्षा के इंतजाम अत्यंत ही कठोर और व्यवस्थित थे। पुरे जेल परिसर में डिम्पल और अभय की प्रेम कहानी चर्चा का विषय बन चूकी थी। जेल अधीक्षक रमाकांत जैन समझते थे कि दोनों को अधिक समय तक एक-दुसरे दूर नहीं रखा जा सकता। एक रात जेल में दिवार लांघ कर अभय डिम्पल से मिलने पहूंचा था।

"ये क्या पागलपन है अभय? दिवार लांघ कर चले आये। पता है लोहें के उन तारों में हैवी कंरट दौड़ रहा है?" आधीरात में डिम्पल नाराज थी।

"मुझे कुछ नहीं होगा डिम्पल !" अभय ने डिम्पल को गले से लगा लिया। डिम्पल ही स्वयं को रोक नहीं सकी। उसे यही तो चाहिए था। समय रहते यदि अभय उसे स्वीकार कर लेता तो आज दोनों साथ होते। अभय के हृदय से चिपककर वह सब कुछ भुल गयी। प्रेम के इन प्रिय क्षणों को अन्य महिला कैदियों ने भी देखे। तब ही रीना में वहां आकर दोनों का परस्पर मोह भंग किया। "जल्दी भागों अभय! जेल प्रहरी आ रहा है।" रीना ने कहा।

डिम्पल के गाल पर चूम्बन देकर अभय पुनः लौट गया।

अगली सुबह रीना को डिम्पल की दैनिक गतिविधियाँ संदिग्ध लगी। प्रातः स्नान कर वह मंदिर में पुजा अर्चना करने पहूंच गई। आज उसने चाय-बिस्कुट भी नहीं खाये थे। आयु में अधिक उम्र की महिला कैदी सौमती से डिम्पल की अच्छी पटती। सौमती अपने पति के हत्यारें युवक की हत्या के आरोप में सजा काट रही थी। वह अधिक धर्म-परायण नारी थी। उसने डिम्पल को हिन्दू रिती-रीवाज से संबंधित बहुत सी जानकारीयां दी थी।

"ये क्या बचपना है डिम्पल? तु कोई सोलह साल की लड़की नहीं है जो अपने प्रियतम के लिये ये सब छिछोरापन करे।" रीना नाराज थी। क्योंकि डिम्पल ने अभय के लिये व्रत रखा था करवा चौथ का व्रत।

"जब वो मेरे लिये करंट के तार फांद सकता है तब उसके लिए इतना तो मैं कर ही सकती हूं।" डिम्पल ने भोजन की प्लेट आगे खिसका दी। रीना के पास डिम्पल के जवाब का कोई प्रत्युत्तर नहीं था। अभय और डिम्पल प्रेम पत्रों के माध्यम से अपनी भावनाएँ एक-दुसरे को बताया करते। जेल प्रशासन ने इस बात की अनुमति दे दी थी। इन प्रेम पत्रों को जेल प्रहरी अवश्य पढ़ते। रमाकांत जैन स्वयं भी रूचि लेते। क्योंकि इन प्रेम पत्रों में सजीवता थी। उन दोनों के विचार पाठक को एक काल्पनिक दुनियां में ले जाते। जिसमें हर कोई जाना चाहता था। समय तेजी से बित रहा था। रमाकांत जैन की प्रार्थना सरकार के पास विचाराधीन थी। संयोग से जेल मंत्री स्थानीय जेल प्रवास पर आ पहूंचे। रमाकांत जैन ने डिम्पल और अभय के विवाह का प्रस्ताव जेल मंत्री पारस जैन के संम्मुख रख दिया। कुछ देर विचार कर उन्होंने दोनों कैदियों को मिलने बुलवाया।

"ये कैसा पागलपन है डिम्पल! तुम जानती हो की तुम दोनों का जीवन अब जेल में बितना है?" मंत्री जी ने पुछा।

"जीवन जितना भी है उतना तो हमारा है न सर?" डिम्पल बोली।

"मगर ये संभव नहीं है। जेल में कैदियों की शादी! न कभी हुई है ! न होगी!" मंत्री जी कठोर थे।

"जो कभी न हुआ वह कभी तो होता है न सर!" रमाकांत बोल पढ़े।

"मगर••• ये इतना आसान नहीं है।" पारस जैन बोले।

"प्यार में आसान कुछ होता भी नहीं मंत्री जी।" अभय बोला। अभय और डिम्पल निडर थे। उनकी परस्पर दीवानगी देखकर मंत्री पारस जैन भी प्रभावित थे।

"ठीक है हम सरकार के सम्मुख तुम दोनों की बात रखेंगे।" मंत्री जी यह बोलकर लौट गये। प्रदेश के मुख्यमंत्री और कैबिनेट तक यह बात पहूंची। जिसे पहली ही बैठक में सिरे से खारिज कर दिया गया। रमाकांत जैन निराश अवश्य हुये। किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपनी दूसरी योजना पर कार्य आरंभ कर दिया। बंधक प्रेमी जोड़े के प्रेम पत्रों का प्रकाशन आरंभ हुआ। रमाकांत जैन ने विवान से सहयोग मांगा। विवान काॅलेज स्टूडेंट था। प्रेम दिवस पर इन पत्रों का पर्याप्त प्रचार-प्रसार का उत्तरदायित्व विवान को दिया गया। विवान ने अपने अन्य काॅलेज फ्रेंड्स के माध्यम से हर व्हाटसप समूह में इन पत्रों को पहूंचाया। वालेनटाइन डे पर ग्रिटींग्स कार्ड के साथ इन लव-लेटर्स को उपहार स्वरूप दिया जाने लगा। जब पाठकों तक प्रेमीयों की परस्पर प्रेमानंदित करने वाली भावनाएं पहूंची, तब ये प्रेम-पत्र बहुत प्रसिद्ध हुये। जेल के दो कैदी जो एक-दुसरे के प्रेम में थे, उनसे मिलने और उनका साक्षात्कार लेने की प्रतियोगिता देखी जाने लगी। सामाजिक संगठनों ने दोनों को मिलाने के लिये अभियान छेड़ दिया। मानवाधिकार आयोग ने डिम्पल और अभय से मुलाकात की। आयोग ने उन दोनों को ग्रहस्थ जीवन देने की संभावनाओं पर मंथन किया। आयोग अध्यक्षा श्रेष्ठा ने सरकार के सम्मुख इस बात का पुरा समर्थन किया।

"मुख्यमंत्री जी! यह अपने आप में इक नई पहल होगी। यकिन मानिये यदि यह हुआ तब इतिहास में आपका नाम लिखा जायेगा।" श्रेष्ठा मुखर्जी बोली।

"मैं समझता हूं। किन्तु यह कदम दो-धारी तलवार है। उस पर राज्यपाल महोदया का अड़ियल रवैया। मुश्किल है।" मुख्यमंत्री जी बोले।

"आप के होते हुये कुछ मुश्किल नहीं है सर। आप प्रयास आरंभ करने की कृपा करे।" श्रेष्ठा मुखर्जी को पुर्ण भरोसा था कि अभय और डिम्पल का विवाह सरकार अगर चाहे तो हो सकता है। वह राज्यपाल महोदया फातिमा बी से भी मिली। लव मेरिज के विरूद्ध राज्यपाल महोदया के विचार बदलना सरल नहीं था। उनका अपने पारंपरिक रस्मों-रिवाजों पर अमिट विश्वास था। फातिमा बी मसलों का सूक्ष्मता से अध्ययन करती थी। समय जितना चाहे व्यय हो जाये, मगर बिना पुर्ण तसल्ली के वे कोई भी फाइल आगे नहीं बढ़ाती। सत्तारूढ़ केन्द्रीय सरकार ने उनके इसी रवैये से परेशान होकर उन्हें राज्यपाल बनाना उचित समझा। मुख्यमंत्री के रूप में फातिमा बी का कार्यकाल अधिक संतोषजनक नहीं कहा गया। अगली बैठक में राज्यपाल महोदया की सहमती पुनः लेने का विचार कर श्रेष्ठा राजभवन से लौट आई। राष्ट्रीय न्यूज टीवी चैनल्स ने अभय और डिम्पल के प्रेम विवाह को मान्यता देने को लेकर बहस छेड़ दी। काॅलेजस् का युथ फोरम जेल में बंदी इस लव स्टोरी को पुरा सपोर्ट कर रहा था। प्रेमी जोड़ों के लिये अभय और डिम्पल किसी आदर्श से कम नहीं थे।

"फ्रेंड्स! हमें अभय और डिम्पल के लिए जो बन सके वो करना होगा।" युथ फोरम लीडर विवान बोला। वह युवाओं की टोली को संबोधित कर रहा था।

"हां हम सब ऐसा ही करेंगे।" कोरस में आवाज आने लगी।

"लेकिन हम क्या कर सकते है?" प्रतिज्ञा ने पुछा।

क्रमश..