ये दिल पगला कहीं का - 8 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 8

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-8

दोनों व्यवसायी सहभागिता रखते थे। पांच वर्ष पूर्व ऑफिस के कर्मचारी वंश कुमार की हत्या में संग्राम सिंह को संदिग्ध अपराधी के रूप जेल जाना पड़ा। वह प्रकरण न्यायालय में लम्बीत था। हत्या के सभी प्रमाण संग्राम सिंह के विरूद्ध थे। लोग आश्चर्यचकित थे कि कृष्ण देव आनंद ने अपने मित्र संग्राम सिंह को बचाने में कोई प्रयास क्यों नहीं किये? रचना इसी बात से आहत थी। उसे अपने पिता पर पुर्ण विश्वास था कि वे किसी का खून नहीं कर सकते। कृष्ण देव आनंद के प्रति रचना के मन में बहुत क्रोध था। संग्राम सिंह ने कृष्ण देव आनंद के बिजनेस को नई ऊंचाइयां दी थी, इसमें संदेह न था। फिर भी कृष्ण देव आनंद ने संग्राम सिंह के पक्ष में गवाही नहीं दी। यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण बना संग्राम सिंह को जेल पहूंचाने में। रचना प्रतिशोध लेना चाहती थी। वह मूल जड़ तक पहूंचने के लिए प्रयास कर रही थी। जिससे यह पता लगे कि कृष्ण देव आनंद ने अपने सबसे अच्छे दोस्त से गद्दारी क्यों की?

"पापा! आप आज भी उस आदमी को बचा रहे है जिसने आपको जेल तक पहुंचाया दिया।" संग्राम सिंह से जेल में भेंट करने आई रचना झल्लाकर बोली।

"नहीं बेटी! अवश्य ही इसमें देव की कोई न कोई विवशता होगी?" संग्राम सिंह अभी भी कृष्ण देव आनंद के प्रति मित्रता का भाव रखते थे। रचना के मन में कृष्ण देव आनन्द के प्रति नफ़रत थी। वो अपने पिता से अत्यधिक प्रेम करती थी। घर में सबसे छोटी बेटी होने के कारण रचना अपने पिता की लाड़ली थी। रचना अपने पिता के जेल जाने से अत्यधिक दुःखी जरूर थी मगर वह सच जानना चाहती थी। 'आखिर आनन्द अंकल ने उसके पिता की मदद क्यो नही? क्या वे सच में चाहते थे कि उसके पिता को जेल हो या फिर उनकी कोई मजबुरी थी?' रचना इन्हीं उलझनों के कारण अपने विवाह के लिए कोई निर्णय नही ले पा रही थी। वह एक निजी कम्पनी में नौकरी करते हुये परिवार का आर्थिक बोझ वहन कर रही थी। उसकी दोनों बहनों का जीवन नर्क से बत्तर हुवा जा रहा था। रचना की बड़ी बहन मान्यता अक्सर रचना के पास आकर रोया करती। क्योंकि रचना और मां भानुमति के सिवा मान्यता को कोई नही समझ सकता था। मां भानुमति मान्यता को समझा-बुझाकर बुझा कर हिम्मत देती। रचना कुछ पैसे बचाकर मान्यता की आर्थिक सहायता किया करती। एक रात रचना ने सपना देखा। मगर उसे ठीक से कुछ याद नहीं था। बस इतना ही याद रहा कि उसके माता-पिता और दोनों बहनें सभी एक साथ एक स्थान पर बैठे है। सभी खुश थे। अगले सुबह वह दिनभर रात के स्वप्न के बारे में सोचती रही। ऑफ़िस से घर आकर उसने एफ एम पर गाने लगा दिये। 'हँसते-हँसते कट जाए रस्ते, जिंदगी युंही चलती रहे, खुशी मिले या गम बदलेंगे ना हम•••' गीत के बोल जैसे ही रचना के कान में पड़े उसे पुरानी दिन याद आ गये। उसे याद आया कैसे वह अपनी बहनों के साथ बाज़ार जाया करती थी। सभी कितने आनंद से एकसाथ रहा करते थे। घर में मानो प्रतिदिन कोई त्यौहार जैसा प्रतित होता था। लेशमात्र भी दुःख नहीं था। फिर दोनों बड़ी बहनों की शादी हो गई और वे अपने-अपने ससुराल चली गई। शादी के बाद सभी के जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव आया। खुशी कब ग़म में बदल गयी पता ही नहीं चला! रचना और उसकी दोनों बहनों के घर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। एक-एक कर उसके परिवार पर जो बिता उसकी आंखों के सामने आने लगा। यह सब सोचते-सोचते रचना की आँख लग गई। सुबह जब वह उठी तो जैसे एक नई उर्जा का संचार उसने अपने अंदर अनुभव किया। शरीर में उसे एक अलग ही चूश्ती-फुर्ती का एहसास हो रहा था। उसने एक संकल्प लिया। वह अपनी बहनों का घर-संसार खुशियों से भर देगी और अपने पिता के मान-सम्मान के लिये लड़ेगी। उन्हें अदालत से न्याय दिलाकर ही रहेगी। जब तक वो अपना यें प्रण पुर्ण नही कर लेती वह शादी नहीं करेगी। रचना तैयार होकर घर से निकल पड़ी। ऑफिस से पहले वह

मान्यता के घर गई। रचना के घर आते ही मान्यता ने उसे गले लगा लिया।

"रचू! क्या लेगी? चाय या काॅफी?" मान्यता ने पुछा।

रचना बोली- "कुछ नहीं दी! आप बस मेरे पास बैठो।"

दोंनों बहनें बैठकर बतियाने लगीं। बहुत दिनों के बाद मान्यता इतना खुलकर हँस रही थी। रचना ने उसे बिते दिनों की याद दिलाई। उसे ढेर सारी हिम्मत दी और कहा कि उन्हें वहीं दिन पुनः लौटा लाना है। जब पुरा परिवार एकसाथ हंसी-खुशी के साथ रहता था। रचना ने मान्यता को समझाया कि वह अपने पति माणिक से सामान्य व्यवहार करें। वह उसे ऐसा जताएं की उसे माणिक के किसी अन्य स्त्री से सम्बन्ध से कोई ऐतराज नहीं है। वे दोनों सरिता से जाकर मिलेंगे। सरिता को समझा-बुझाकर माणिक से दुर रहने की हिदायत देगें। मान्यता ने सहमति जताई। उसने माणिक से झगड़ा करना बंद कर दिया। माणिक, मान्यता के इस व्यवहार से अचंभित तो था पर खुश भी था। क्योंकि अब माणिक को रोकने-टोकने वाला कोई नही था। अब रात को और भी देर से आने लगा।कभी-कभी तो वह घर लौटता ही नही था। मान्यता भी बिना उससे कुछ सवाल किए उसका टिफिन पैक कर दे दिया करती। कभी-कभी तो माणिक के उकसाने पर भी वह बिलकुल शांत ही रहती। रचना ने सरिता के घर का पता ढूंढ निकाला। सरिता किसी भी तरह से समझने को तैयार नहीं थी। उसे माणिक से पर्याप्त आर्थिक लाभ हो रहा था। सो वह माणिक को छोड़ने के लिए फिलहाल तैयार नहीं थी।

"देखो सरिता! मैं चाहती हूं कि तुम अपनी इच्छा से माणिक जीजू से दूरी बना लो। नहीं तो तुमने सोशल मीडिया पर सौतन की पिटाई करती हुई पत्नी के वीडियो तो देखे होंगे न? कहीं तुम्हारी दशा भी वैसी ही न हो जाए? माणिक जीजू तो मर्द है उन्हें आज नहीं तो कल हम अपना ही लेंगे! सोचो तुम्हें कौन अपनायेगा?" रचना बोली।

सरिता को यह रचना की खुल्लम-खुल्ला धमकी प्रतित हो रही थी। उसके चेहरे पर ग्लानि के भाव नहीं थे। तभी मान्यता वहां पहूंच गई।

"सरिता! तुम जवान हो! खुबसूरत हो! तुम्हें बहुत से यंग लड़के मिल जायेंगे किन्तु यदि तुम मेरी बनी बनाई ग्रहस्थी बिगाड़ोगी तब क्या मैं यूं ही हाथ पर हाथ रखकर बैठी रहूँगी?" मान्यता ने रचना की बात को आगे बढ़ाकर सरिता से कहा।

सरिता को इस बात ने सोचने पर विवश कर दिया की अब माणिक के पास कुछ शेष नहीं बचा। उसके पास जो भी था वह सरिता पर पहले ही उड़ा चूका है। सरिता ने अपना निश्चय दोनों बहनों को बता दिया। वह माणिक से दुरी बनाये रखने के लिए तैयार हो गई। रचना की यह पहली विजय थी।

मान्यता का अपनत्व देखकर माणिक भी कुछ-कुछ सुधरने लगा था। वह खुश थी। रचना भी यह सब देखकर प्रसन्नता से खिल उठी। रचना ने दीप्ती का हौसला बढ़ाया। अदालत में चल रहा केस दीप्ती के पक्ष में था। दीप्ती को अपने बेटे की कस्टडी मिल गयी। दीप्ती के पिता ने जो गहने आदि उसे दहेज में दिये थे, अपने ससुराल से उसने सबकुछ वापस ले लिया। दीप्ती, मान्यता और रचना ने मिलकर अपने पिताजी के केस को अपने पक्ष में लाने के लिए जी-जान लड़ा दी। अपने पिता संग्राम सिंह की बेगुनाही साबित करने के लिये तीनों सबुत जुटाने में लग गई। उनकी मेहनत रंग लाई। अदालत के समक्ष अमित को अपराधी के रूप में प्रस्तुत किया गया। वास्तविकता जानकर हर किसी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आये। हत्या वाले दिन की घटना कुछ युं सामने आई- 'वंश कुमार ने कृष्ण देव आनंद और उनकी पर्सनल सैकेट्री शोभना को आपत्तिजनक स्थिति में देखकर उन दोनों का वीडियो बना लिया था। वंश कुमार शोभना से प्रेम करता था। मगर शोभना उसे धोखा दे रही थी। वह वंश कुमार और कृष्ण देव आनंद दोनों के साथ समय बिता रही थी। वंश कुमार ने कृष्ण देव आनंद को ब्लैक मेल करना शुरू कर दिया, जिससे वे अक्सर परेशान रहने लगे थे। जब यह बात उनके बेटे अमित को पता चली तो उसने वंश कुमार को नौकरी से निकाल दिया। शोभना को वह पहले ही अपने ऑफिस से निकाल चूका था। वंश कुमार प्रतिशोध लेने को आतुर था। उसने वह वीडियो वायरल करने की धमकी दे दी। इसके बदले में वह एक मोटी रकम कृष्ण देव आनंद से चाहता था। अमित समझौते के लिए तैयार था। उसने वंश कुमार को अपने ऑफिस बुलवाया। संग्रामसिंह को भी वही रूकने को कहा गया। वंश कुमार उस एमएमएस वीडियो के बदले बीस लाख रूपये मांग रहा था। अमित को संदेह था कि रूपये लेने के बाद भी वंश कुमार उन्हें धोखा दे सकता है। फलस्वरूप उसने संग्रामसिंह को विश्वास में लेकर उसे पकड़कर पुलिस के हवाले करने की योजना बनाई। शुरूआती बातचीत में नरमी बरत रहे अमित को तब क्रोध आ गया जब वंश कुमार ने कृष्ण देव आनंद के पुर्व अन्य स्त्रीयों से अनैतिक संबंध के चलते व्यंग्य बाण छोड़ दिये। एक पुत्र को अपने पिता का यह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर वंश कुमार पर तान दी। वंश कुमार डर गया। तभी संग्रामसिंह ने मौके पर आकर अमित को संभालने की कोशिश की। अवसर पाकर वंश कुमार भागने लगा। अमित ने दौड़कर उसे पकड़ लिया। दोनों में जमकर हाथापाई हुई। गुत्थम-गुत्थी में अमित के हाथों में रखी रिवाल्वर की ट्रिगर दब गई। गोली वंश कुमार के पेट में धंस चूकी थी। मौके पर ही उसने दम तोड़ दिया। संग्रामसिंह ने अमित के हाथों से रिवाल्वर लेकर अपने हाथ में थाम ली। पुलिस ने यह सब देखकर प्रथम दृष्टियां संग्रामसिंह को वंश कुमार की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया। संग्रामसिंह ने अमित को विश्वास में लेकर उसके अपराध को अपने सिर ले लिया। कृष्ण देव आनंद भी अपनी और संग्रामसिंह की मित्रता की कसम के आगे नतमस्तक होकर मौन धारण कर बैठ गए।' अदालत में संग्रामसिंह के बलिदान पर हर कोई कायल था। कृष्ण देव आनंद और संग्रामसिंह की दोस्ती फिर एक बार मिशाल बनकर संसार के लिए प्रेरणा बनी। अमित पर मुकदमा चलाया गया। उसे सात वर्ष की सजा सुनाई गई। संग्रामसिंह चाहते थे कि रचना और अमित की शादी हो। इसलिए रचना ने अमित से विवाह करने की सहमति दे दी। वह अमित की जेल से लौटने की प्रतिक्षा करने लगी। संग्रामसिंह का परिवार एक बार फिर हरी-भरी बगियां के समान खिल उठा। रचना ने अपनी हिम्मत और सूझ-बूझ के बल पर अपने परिवार की खोई हुई खुशियां को पुनः प्राप्त कर लिया था।

अभय और डिम्पल को जनता का भारी समर्थन मिल रहा था। प्रशासन पर दबाव बड़ता ही जा रहा था। एक अन्य कहानी गुजरात प्रदेश के वडोदरा से आयी थी--

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*उ* स भीषण सड़क दुर्घटना की यादें आते ही संजना सिहर उठती। वह दिन संजना के लिए कभी न भूलने वाली दुखांत घटना बन गई थी। हर रोज की तरह वह उस दिन भी ऑफिस जाने के लिये निकली थी। नीजि ऑफिस में क्लर्क का कार्य कर रही संजना ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बस पकड़ी। हाइवे पर आते ही बस हवा से बातें करने लगी। तभी एक जोर का झटका लगा और बस हाइवे किनारे खड़े एक अन्य भारी वाहन से जा टकराई। भीड़ंत इतनी जोरदार थी की बस के केबिन में बैठै यात्री कांच तोड़कर बाहर गिर पड़े। कुछ यात्री गंभीर रूप से घायल हुये थे। संजना भी उन्हीं में से एक थी। एक माह के निरंतर उपचार के बाद वह स्वस्थ हो सकी। संजना ने नोट किया कि हॉस्पिटल सभी उससे मिलने, आये सिवाए धीरज के। धीरज और संजना की सगाई छः माह पुर्व ही हुई थी। अगले साल दोनों का विवाह होना तय हुआ था। दुर्भाग्य से सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल संजना के प्राण बचाने के लिए डाक्टर्स को उसका यूट्रस निकालना पड़ा। जिससे संजना की जान तो बच गई थी किन्तु अब वह कभी मां नहीं बन सकती थी। धीरज को जब इस बात का पता चला तब उसने संजना से अपना सभी तरह का संबंध तोड़ लिया। संजना के ऊपर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा था। उसे विश्वास था कि उसका मां न बन सकने का दुःख भुलाने में धीरज उसका सहयोगी होगा। क्योंकि जितना प्रेम संजना धीरज से करती थी उससे कहीं अधिक प्रेम धीरज संजना से करता था। किन्तु धीरज द्वारा संजना से किनारा कर लेने की घटना ने उसे अंदर तक तोड़ दिया। किसी तरह उसने स्वयं को संभाला। वह पहले की तरह ऑफिस जाने लगी थी। कुछ ही समय में वह उस एक्सीडेंट को भूल गई। किन्तु धीरज को वह भूल न सकी। दुर्घटना के बाद धीरज ने संजना की कोई खैर-खबर नहीं ली। संजना अवश्य धीरज के संबंध जानकारी जुटा लिया करती। धीरज की जिन्दगी में अब कैटरीना थी। दोनों बहुत खुश थे। जल्दी ही दोनों शादी करने वाले थे। कैटरीना बहुत प्रैक्टिकल थी। उसे धीरज द्वारा संचना को छोड़ने के विषय में पता था। यह बात कैटरीना ने स्वंय धीरज के मुंह से उगलाई थी।

"यह तुम क्या कह रही हो कैट? मुझे पोटंसी टेस्ट करवाना होगा?" धीरज नाराज था।

"हां! इसमें इतना नाराज होने की क्या जरूरत है धीरज। तुम अकेले टेस्ट थोड़े ही कराओगे? मैं भी अपने सभी जरूरी टेस्ट कराऊंगी।" कैटरीना बोली।

"मगर इसकी क्या जरूरत है कैट?" धीरज झल्लाकर बोला।

"जरूरत है धीरज। शादी से पहले मेन्टली और फिजिकली स्ट्रोंग होना बहुत जरूरी है। अगर कुछ कमी हो या बिमारी हो तो उसे ट्रीटमेंट से ठीक किया जा सकता है।" कैटरीना बोली।

धीरज यह जानता था कि कैटरीना ने जो एक बार निश्चय कर लिया वह उसे पुर्ण करके ही दम लेती थी। उसने अपने सभी मेडीकल टेस्ट कराने की सहमती दे दी। दोनों ने एक साथ हॉस्पीटल में जाकर टेस्ट दिये। अगले दिन मेडीकल रिपोर्ट आने वाली थी। धीरज कामकाज में व्यस्त होने के कारण हॉस्पीटल न जा सका। कैटरीना ने उन दोनों की रिपोर्ट डाॅक्टर को दिखाई। रिपोर्ट में अच्छी और बुरी दोनों तरह की बातें सम्मिलित थी। कैटरीना पुर्णता स्वस्थ्य थी और वह धीरज का वंश बढ़ाने के सर्वथा योग्य थी। किन्तु धीरज के स्पर्म में बलिष्ठ शुक्राणुमों की कमी थी। इनकी अनुपस्थिति में वह पिता नहीं सकता था।

क्रमश..