ये दिल पगला कहीं का - 3 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 3

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-3

दिल्ली स्थित मेडीकल कॉलेज आबंटित हुआ था। सभी के मनाने पर वह दिल्ली जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए तैयार हो गयी।

दिल्ली में जाकर आर्या व्यस्त हो गई। पढ़ाई की लगन में वह अथर्व को भी कम ही याद करती। तीन वर्ष व्यतीत हो चूके थे। एक दिन आर्या की चिठ्ठी अथर्व को मिली। जिसमें उसने अथर्व से अपने अबोध प्रेम के लिए क्षमा मांगी। उसने यह भी उल्लेख किया कि डॉ. आशुतोष ने उसे विवाह का प्रस्ताव दिया है। सक्सेना दम्पति इस विवाह के लिए सहमत थे। अतएव अथर्व, आर्या को भुलाकर अपना जीवन यथोचित तरीके से व्यतीत करने हेतु स्वतंत्र है।

अथर्व उस चिठ्ठी को लेकर मानसी के पास पहूंचा। मानसी अथर्व की इस विजय से प्रसन्न थी। तब अथर्व ने अपनी जेब से एक और चिठ्ठी निकालकर मानसी के हाथों में रख दी। अथर्व का चयन सब इंस्पेक्टर हेतु हो चूका था। यह दुसरी चिठ्ठी उसी का अपाॅईमेन्ट लेटर थी। मानसी ने अथर्व को हृदय से लगा लिया। अथर्व पुरे पांच वर्षों के वनवास के बाद मानसी से मिल रहा था। मानसी अथर्व का हाथ थामें घर के अन्दर चल पढ़ी। वह अपने पिता से अथर्व को मिलाना चाहती थी। मानसी ने अथर्व से विवाह करने का निर्णय कर लिया था।

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एंकर विवान और प्रतिज्ञा ने अथर्व और मानसी का इन्टरव्यू भी लिया। दोनों एक होने पर प्रसन्न थे। उन्होंने अभय और डिम्पल के साथ ही सामुहिक विवाह सम्मेलन में वह अपना विवाह करने की सहमती दे दी।

'अभय और डिम्पल की शादी' रियलिटी शो की दुसरी कहानी सुनंदा और आनंद की थी जो उत्तर प्रदेश के ललितपुर से आये थे। सुनंदा ने स्वयं अपनी कहानी कहना आरंभ की--

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*चा* लीस बंसत पार करने के बाद भी सुनंदा का सौन्दर्य किसी नवयुवती से कम नहीं था। उसकी भारतीय परिधान में गहन आस्था थी। तथापि आधुनिक नवाचार भी उसे प्रिय थे। फैक्ट्री में सभी असमंजस्य मेंं थे कि आज सुनंदा कौनसा परिधान पहनकर आयेगी? अन्य दिनों में सुन्दरता की प्रतिमूर्ति बनकर आने वाली सुनंदा आज अपने जन्मदिन पर क्या पहनकर आने वाली है, निश्चित ही यह फैक्ट्री में कौतुहल का विषय बनता जा रहा था। पुरूष वर्ग तो सुनंदा के प्रति अत्यधिक आकर्षित था। फैक्ट्री में कार्यरत पुरूष विवाहित हो अथवा अविवाहित, सुनंदा को मधु स्वीकार्य उसके इर्द-गिर्द मधुमक्खी के समान मंडराना नहीं भूलते। महिला सहकर्मी सुनंदा से ईष्या तो अवश्य रखती थी किन्तु उसके मित्रवत सौम्य व्यवहार पर मोहित भी थी। सुनंदा का सौन्दर्य संवारने का ज्ञान और सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री की उम्दा परख का लाभ कार्यरत अधिकतर महिला सहकर्मी लिया करती थी। इतना ही नहीं वह सहकर्मीयों की निजी परेशानियों में आगे होकर सहायता करना अपना परम कर्तव्य समझती थी। शरीर को मंदिर की तरह समझने वाली सुनंदा रूप-यौवन को सतत निखारने और आकर्षित बनी रहने का जीवंत उदाहरण थी।

सुबह नौ बजे सुनंदा फैक्ट्री में दाखिल हुई। उसने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहन रखी थी। उस पर मेंचिग स्लीवलेस ब्लाउज की छटा देखते ही बनती थी। बैकलेस ब्लाउज पर डोरी की गाठ से कमर तक लटके, ऊंचाई में छोटे-बड़े रंग-बिरंगे बहुत छोटे-छोटे घुंघरूओं की मधुर ध्वनी बरबस ही आसपास स्थित जनमानस को आकर्षित कर रही थी। आंखों पर श्याम वर्ण ऐनक, मध्यम ऊंची हील की सेन्डील, गले पर हार नुमा मखमली स्कार्फ और कन्धे पर लटकता लेडीज हैंडबैग! उक्त सभी निर्जीव वस्तुएं सुनंदा पर शुशोभित होकर सजीव प्रतित हो रही थी। गौर वर्ण की धनी सुनंदा अल्प श्रृंगारित होकर भी मन मोह रही थी। सर्वप्रथम फैक्ट्री के मालिक शिवराम परमार ने सुनंदा को जन्म दिवस की शुभकामनाएं दी। वे स्वयं सुनंदा की छरहरी काया के दीवाने थे। शिवराम परमार वही व्यक्ति थे जिन्होंने बेग निर्माण फैक्ट्री में नयी-नयी कार्य करने आई सुनंदा को प्रथम उम्मीदवार के रूप में प्रेम प्रस्ताव दिया था। सुनंदा ने शिवराम की मनःस्थिति भांपकर उन्हें सीधे विवाह के हेतु आमन्त्रित कर दिया। साथ ही उसने यह भी कहा की शिवराम पहले अपनी धर्मपत्नी को तलाक देवे तत्पश्चात वह उनसे विवाह करने सहर्ष तैयार है। शिवराम समझ गये थे कि सुनंदा कोई साधारण स्त्री नहीं थी जिसे भौतिक संसाधन के प्रलोभन से अपने हितार्थ तैयार किया जा सके। अगले ही दिन शिवराम परमार ने सुनंदा से अपने किये व्यवहार पर क्षमा मांगी तथा भविष्य में इस प्रकार की आचरण की किसी भी संभावना को अस्वीकार कर दिया।

फैक्ट्री की महिला सहकर्मी सुनंदा के जन्म दिवस का अपना-अपना गिफ्ट दे चूकी थी। अब पुरुषों की बारी थी। अन्य महिला सहकर्मीयों के साथ सुनंदा भी यह देखने को उत्सुक थी कि पुरष सहकर्मी उसके लिए जन्मदिन में क्या-क्या उपहार लाये है? पुरूष वर्ग में सर्वप्रथम सुनंदा को उपहार कौन दे? यह विकट प्रश्न खड़ा हो गया था। क्योंकी इन पुरूषों में विवाहित पुरुष भी सुनंदा के लिए गिफ्ट लेकर आये थे। कहीं उनकी पत्नी को सुनंदा को दिये गये जन्मदिन के उपहार के विषय में पता चल गया तो क्या होगा? सो सभी विवाहित पुरूष अपनी-अपनी जेबों में हाथ डाले 'पहले आप' वाली स्थिति में यहां-वहां खड़े थे।

फैक्ट्री का भोंपू बज उठा। सभी कर्मचारी बैग सिलाई मशीन पर बैठ गये। बैग सिलाई का कार्य तीव्रता से चलने लगा। पुरूष वर्ग नज़र बचा कर सुनंदा को उपहार देकर रफूचक्कर हो जाता। अविवाहित पुरूष भी में हृदय की भावना को उद्वेलित करते उपहार और ग्रीटिंग कार्ड सुनंदा के हाथों में देकर जा रहे थे। सुनंदा की बगल में उपहारों और फूलों का ढेर लग गया था। उपहार में दिये गये गुलाब की सुगंध से समुचा हाॅल सुगंधित हो गया। सभी का उपहार लेकर सुनंदा ने किसी को भी निराश नहीं किया।

अपने पति चन्द्रशेखर से परिपरित्यता की उपाधी पाने के उपरांत आना और कर्तव्य जैसे दो किशोरवय बच्चों का लालन-पालन सुनंदा कुशलता पूर्वक कर रही थी। चन्द्रशेखर अपराधी प्रवृत्ति की महिला मित्र रागिनी के प्रेम में पड़ गया था। स्वयं रागिनी ने सुनंदा को उसके घर आकर धमकाया था। रागिनी चाहती थी कि सुनंदा अपने पति चन्द्रशेखर को सरलता से तलाक देकर उन दोनों के विवाह को सुगमता से हो जाने दे। स्वैच्छिक तलाक के एवज में मासिक भरण-पोषण की व्यवस्था वह चन्द्रशेखर से कहकर करवा देगी।

सुनंदा सरलता से भयभीत होने वालों में से नहीं थी। उसने 'लेडी डाॅन' के उपनाम से शहर भर में विख्यात रागिनी की धमकी के बदले उसी पर डराने-धमकाने की एफआईआई करवा दी। जिससे पुर्व में कई कानूनी प्रकरणों में फरार चल रही रागिनी पर एक ओर कानुनी अपराध बड़ गया। चन्द्रशेखर पर भी धन लूटपाट के बहुत से प्रकरण विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज थे। सुनंदा से दुर रहने में ही उन दोनों ने अपनी भलाई समझी। क्योंकि सुनंदा ही थी जिसे चन्द्रशेखर की प्रत्येक कमजोरियाँ पता थी। वह जब चाहती उसे पुलिस के द्वारा गिरफ्तार करवा सकती थी। सुनंदा ने पति चन्द्रशेखर की उपलब्धता हो सकने वाले सभी आवश्यकत स्थलों की जानकारी पुलिस को उपलब्ध करावा दी। पुलिस सरगर्मी से रागनी और चन्द्रशेखर की थडपकड़ में जुट गयी।

गांव से शहर आकर परिवार का आर्थिक बोझ उठाने में सहयोग कर रही नम्रता के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखकर सुनंदा को समझते देर नहीं लगी। नम्रता बारम्बारता पलट-पलट कर यहां-वहां देख रही थी। सुनंदा ने नम्रता का हाथ पकड़कर उसे फ्रिडींग कक्ष में ले गयी। दरवाजा बंद कर उसने नम्रता से पुछा- "क्या प्राब्लम है नम्रता? बहुत चिचिंत दिखाई दे रही हो?"

"जीजी! वो•• जीजी वो•• महिना•••!" नम्रता ने अटक-अटक कर जवाब दिया।

"अरे! तो इसमें इतनी चिंता की कौनसी बात है? यह सब तो हर लड़की को होता है।" सुनंदा बोली।

"जीजी! मैं कपड़ा लाना भुल गयी हूं।" नम्रता ने अपनी चिंता का वास्तविक कारण अब बताया।

सुनंदा ने अपने पर्स से सेनेटरी नैपकिन पेड निकालकर उसे दिया। नम्रता को यह भी बताया की भविष्य में कपड़ा छोड़कर पेड ही उपयोग करे। पेड सुरक्षित है। जबकी कपड़े का उपयोग संकमण का खतरा बढ़ा सकता है। संक्रमण आगे चलकर बांझत्व का कारण भी बन सकता है। लड़कीयां थोड़े व्यय से इन घातक बीमारीयों से बच सकती है। नम्रता का आत्मविश्वास लौट चूका था। अब से उसने निर्णय कर लिया था कि वह सेनेटरी नैपकिन पेड ही उपयोग करेगी।

फैक्ट्री में लंच टाइम चल था था। बाइस वर्षीय नवयुवक नकुल सुनंदा के पास आया। सुनंदा अपनी सहेलीयों के संग दोपहर का भोजन ले रही थी। नकुल फैक्ट्री में बैग सिलाई का कुशल कारीगर था। उसने सुनंदा को मोबाइल पर मैसेज देकर अपनी टेबल के पास बुलाया।

"नकुल! प्रेम एक बहुत मुल्यवान चीज़ है। इसे हर कहीं, किसी पर भी मत बांटो। तुम एक अच्छे लड़के हो। तुम्हें मुझसे बहुत अच्छी लड़कीयां मिल जायेगी। अच्छा होगा आगे से तुम कभी मुझे इस तरह परेशान नहीं करोगे।" नकुल के प्रेम प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुये सुनंदा ने कहा।

आनंद यह सब देख रहे थे। नकुल के वहां से जाते ही आनंद सुनंदा के सामने उपस्थित हो गये। आनंद फैक्ट्री का तैयार माल संपूर्ण भारत में पहूंचाते थे। वे विपणन विभाग के प्रमुख थे।

"नकुल का कौनसा नम्बर है सुनंदा?" आनन्द का व्यंग्य सुनंदा समझ चूकी थी।

"कटी हुई पतंग को हर कोई लुटना चाहता है आनन्द जी। नकुल भी उन्हीं लोगों में एक है।" सुनंदा ने बड़ी ही सरलता से उत्तर दिया।

"मेरे विषय में तुम्हारी क्या राय है?" आनन्द ने पुछा।

"आप भी वहीं चाहते है जो नकुल और नकुल जैसे बहुत से पुरूष चाहते है।" सुनंदा बोली।

आनन्द अन्य के समान अपनी तुलना स्वीकार नहीं पा रहे थे।

क्रमश..