औरतें रोती नहीं - 22 Jayanti Ranganathan द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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औरतें रोती नहीं - 22

औरतें रोती नहीं

जयंती रंगनाथन

Chapter 22

अपने घर में किसी दूसरे का घर

कुछ इस तरह की जिंदगी रही तीनों औरतों की: सितम्बर 2010

आमना सैयद के लिए पूरा दिन बहुत तनाव भरा था। सुबह से अपना भारी किट बैग उठाकर निकल पड़ी थी वह एक अदद किराए का फ्लैट ढूंढने। बस महीने भर के लिए। बहुत हो तो दो महीने के लिए। कहीं एक कमरा नहीं मिल रहा। दोपहर को सड़क किनारे खड़े होकर उसने छोटे-कुलचे खाए। वहीं से मिनरल वॉटर की छोटी बोतल खरीद दो घूंट मार लिए। अब क्या? वापस? उसने बेमन से मोबाइल घुमाया। दूसरी तरफ पापा थे। ‘‘अब्बा, क्या करूं... कहीं जगह नहीं है। आपकी कैपिटल का ये हाल है कि हर जगह हाउसफुल। हां अब्बा, मैं गाजियाबाद में ही हूं। यहां तो और भी बुरा हाल है। सारे फ्लैट गुस्ट हाउस में तब्दील हैं। मैं सुबह से कम से कम दस बिल्डिंग में जा चुकी हँ। एक ब्रोकर को भी लगा रखा है... कुछ समझ नहीं आ रहा...!’’

अब्बा की आवाज शांत थी, ‘‘आमना, परेशान क्यों हो रही हो? वापस लौट जाओ।’’

‘‘ऐसे कैसे आ जाऊं अब्बा? कितने दिनों से कह रही थी कि मुझे कॉमनवैल्थ गेम्स कवर करने हैं। मैं ऐसे नहीं आऊंगी। भले स्टेशन पर रह लूं। बट डोंट आस्क की टु कम बैक। मैं कुछ न कुछ कर लूंगी। मेरी चिंता मत करिए। बाय अब्बा जान।’’

चौबीस साल की आमना का चेहरा धूप से लाल हो उठा था। सितम्बर महीने में इतनी गर्मी पड़ रही है। यही हाल उसके इलाहाबाद का भी है। अपने लंबे कुर्ते की जेब से टिश्यू निकालकर उसने चेहरा पोंछा और वापस ब्रोकर का नंबर घुमाने लगी।

‘‘मैडम, लक अच्छा है आपका। एक एड्रेस देता हूं, चली जाइएगा, काम बन जाएगा। बस एक रिक्वेस्ट है मैडम... वहां यह न बताइएगा कि आप मुस्लिम कास्ट की हैं।’’

आमना भड़क गई, ‘‘मुझसे कोई पूछेगा, तो आई वोंट लाई। मेरी कास्ट का इससे क्या लेना-देना?’’

‘‘जो आपको ठीक लगे मैडम... पर जिनका एड्रेस है, वो बी.जे.पी. नेता हैं। आप तो पत्रकार ठहरीं। आगे जो करना हो करिए। पर फिर मुझसे मत कहिएगा कि ये कमरा भी नहीं मिला।’’

आमना को गुस्सा आ गया। टू मच। लेकिन कोई चारा भी तो नहीं। एड्रेस ले चुकी थी। जाकर देखने में क्या हर्ज है?

एड्रेस यहीं आसपास का था। एक नए बने मॉल के बिल्कुल सामने। तंग गली। इतनी सारी गाड़ियां कि चलने की जगह नहीं। सड़क ठीक सी। लग रहा है जैसे नई बनी है। डामर की महक आ रही है अब तक। सिरे से सारे मकानों में नई-नई पुताई हुई है। तीन मंजिल के मकान। एकािर फिर पता चैक करने के बाद आमना एक मकान का गेट खोल अंदर आ गई। अंदर से कुत्ते के भौंकने की आवाज आई। सफेद रंग का पामेरियन। दौड़ता हुआ आया और उसे देखकर जोर-जोर से भौंकने लगा। आमना को कुत्तों से डर लगता था। कभी पाला नहीं पड़ा, वैसे ही। लेकिन उसने हिम्मत से काम लिया। हमेशा की तरह कुत्ते को देख भागी नहीं। दरवाजे पर बोर्ड लगा था- समरेश कुमार यादव, पूर्व बी.जे.पी. विधायक। आमना के कुछ कहने से पहले अंदर से आवाज आई, ‘‘कौन है भई?’’

आमना ने धीरे से कहा, ‘‘मैं कमरा देखने आई हूं। जॉली जी ने आपका एड्रेस दिया था... दो महीने के लिए पेइंग गेस्ट।’’

‘‘अंदर आ जाओ।’’

आमना के सामने एक छोटे कद की महिला थी। सलवार-सूट में। छोटे कटे बाल। चेहरा ठीक-ठाक। आंखों के नीचे कालापन।

आवाज अच्छी थी महिला की, ‘‘बच्ची, कैसे दूं कमरा? सब फुल हैं। बहुत मारामारी है। जॉली तो पगला गया है। जिसे देखो, यहां भेज रहा है।’’

आमना निराश हो गई, ‘‘मैम, ऐसा मत कहिए। प्लीज... अगर आज मुझे रहने के लिए कमरा नहीं मिला, तो मुझे वापस लोट जाना पड़ेगा। आपको पता नहीं कि कॉमनवैल्थ गेम कवर करने की मेरी कितनी तमन्ना है। मैंने जर्नलिज्म का कोर्स किया है मैम। स्पोटर््स जर्नलिस्ट बनना चाहती हूं। आपको पता है हम छोटे शहर से आई लड़कियों के लिए कितना मुश्किल है मेट्रोज में जग बनाना। सो प्लीज, हैल्प मी...’’

उस महिला के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई। अर्से बाद वह एक पारदर्शी लड़की से मिल रही है। आमना की हाइट अच्छी है। जीन्स और कुर्ते में वह अपनी उम्र से कुछ बड़ी लग रही है। कमर तक लंबे बाल, बिल्कुल सीधे, बालों में हल्के पूरे हाईलाइट, जैसे- नए बने हों। कानों में खूब लंबे झुमके। गले में मोमियों की तीन-चार लंबी मालाएं। आंखों में गहरा काजल। पैरों में काले रंग की मोजड़ी। कंधे पर कच्ची कढ़ाई वाला बैग। अपने से थोड़ा सा बेगानी नजर आती युवती। अच्छी लग रही है मैम को।

‘‘अच्छा बैठ जाओ... नाम क्या है?’’

आमना ने निर्भीकता से कहा, ‘‘आमना सैयद।’’ फिर रुककर बोली, ‘‘हालांकि जॉली जी ने मुझसे कहा था कि अपना असली परिचय आपको न दूं। मेरी कास्ट जानने के बाद शायद मुझे कमरा न मिले। पर... मैम मुझे झूठ बोलने की कोई वजह नहीं मिल रही।’’

आमना रुक गई। महिला हंस पड़ी, ‘‘जॉली सिंह सच में पगला गया है। कास्ट-वास्ट का हमें क्या करना है बच्चे? तुम कितने दिन रहना चाहोगी? देखो, मेरे पास अलग कमरा तो नहीं होगा, दो दूसरी लड़कियों के साथ शेयर करना होगा। ठीक है...? तुम दो महीने की कह रही हो ना? क्या दो महीने का रेंट एडवांस में दे पाओगी? ट्वेंटी थाउजैंड... इसमें सुबह का नाश्ता और रात का खाना शामिल है। नीचे ऑफिस में तीन कंप्यूटर हैं। वहां बैठकर तुम काम कर सकती हो। ई-मेल, नेट वगैरह भी यूज कर सकती हो।’’

ट्वेंटी थाउजैंड... कुछ ज्यादा है... आमना ने सोचा। फिलहाल तो वह सिर्फ दस हजार ही दे पाएगी। अब्बा से कुछ और पैसे बैंक में ट्रांसफर करने को कहना होगा।

‘‘मैम... क्या मैं आपको रेंट दो किस्तों में चुका सकती हूं? फिलहाल आई एम शॉर्ट ऑफ मनी...’’

उस महिला ने कुछ सोचकर हां कह दिया। आमना एकदम से रिलैक्स्ड हो गई। ओह... रहने का ठिकाना तो मिला।

तीसरी मंजिल। कमरा ठीक था। तीन पलंग पास-पास लगे थे। अटैच्ड बाथ्रूम। बैठने के लिए दो कुर्सियां और दो मोढ़े। एक बड़ी सी अलमारी। एक छोटा सा फ्रिज।

आमना ने फौरन अपना किट बैग कमरे में एक तरफ रखा और पलंग पर पसर गई। कितना अच्छा लग रहा है।

अचानक उसका ध्यान कोने में सो रहे एक कुत्ते पर गया। वह सतर्क हो गई। कुत्ते ने उसकी तरफ देखा और मुंह फेरकर लेट गया। देखने वह उस छोटे कुत्ते जैसा ही था, पर बिल्कुल वैसा नहीं। थोड़ा ढला हुआ और सुस्त।

आमना उठकर कमरे से बाहर आ गई। नीचे उसे वही महिला नजर आ गई। वहीं से कुछ जोर से आमना ने कहा, ‘‘मैम... यहां कमरे में एक कुत्ता है...।’’

‘‘कुछ नहीं कहेगा... बीमार है। उसका कमरा है न, वह छोड़कर कहं नहीं जाता। अच्छा... मैं आकर देखती हूं।’’

वह महिला हांफती हुई सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आ गई। उसे देखते ही कुत्ता उठ खड़ा हुआ और दुम हिलाता हुआ उसके पास चला आया। महिला ने उसे दुलारते हुए कहा, ‘‘क्यों टुटू... नीचे रहोगे मेरे साथ? लड़कियों के बीच तुम्हारा क्या काम?’’

टुटू की आंखों में नमी थी। आमना ने देखा, वह सिर झुकाए उस महिला के साथ सीढ़ियां उतरने लगा है। एक बार भी उसने आमना की तरफ नहीं देखा। आमना ने एक बार फिर पीछे से आवाज दी, ‘‘मैम... आपको मैं क्या बुलाऊं? आपका नाम... या मैडम...’’

महिला रुकी, पीछे मुड़कर बोली, ‘‘आंटी कहो। यहां सब लड़कियां यही कहती हैं।’’

‘‘थैंक्स आंटी...’’ आमना के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कार आ गई। अच्छी लगीं उसे आंटी। यहां रहने में उसे मुश्किल नहीं आएगी।

सोनिया छोटा-मोटा मॉडलिंग असाइनमेंट करती थी और जाह्नवी जोशी एम.बी.ए. कर रही थ्ज्ञी। आमना की रूम पार्टनर्स। आमना को देखते ही सोनिया का पारा चढ़ गया, ‘‘हद है। पहले इस कमरे में एक से दो पलंग लगवाए और अब तीन... कितने लालची हैं ये लोग...!’’

तीन महीने पहले तक सोनिया अकेली रहती थी कमरे में। फिर जाह्नवी आई। अब शायद कॉमनवैल्थ गेम की जरूरतों की वजह से हर कमरे में पलंगों की संख्या बढ़ा दी गई थी। जाह्नवी किसी से भी बात करने की ख्वाहिशमंद नहीं लगती थी। आमना को देखते ही अपना लैपटॉप लेकर वह बालकनी में चली गई।

दोपहर तक आमना चुपचाप अलमारी में अपने कपड़े लगाती रही। अलमारी का एक शेल्फ आंटी ने उसे दे दिया था। उस पर भी सोनिया खफा हुई, अब तक वह शेल्फ उसके पास था। आंटी ने सोनिया से दो टूक कहा, ‘‘अगर तुम्हें एडजस्ट करने में दिक्कत हो रही है, तो तुम कहीं और जा सकती हो। पर ये लड़की रहेगी यहीं। बस... अब मैं तुम्हारी कोई बकबक नहीं सुनना चाहती।’’

दोपहर को आमना आंटी के साथ ही नीचे आ गई। लंच का इंतजाम नहीं था। कुछ देर टीवी देखने के बाद वह सामने बने मॉल के फूड कोर्ट पहुंच गई। एक मसाला डोसा- साठ रुपए। आलू का परांठा- अस्सी रुपए। नूडल्स- पचहत्तर रुपए। आमना सन्न रह गई। कैसे गुजारा चलाएगी राजधानी में वो दो महीने। अब्बा हर महीने पंद्रह हजार रुपए से ज्यादा नहीं देने वाले। दस हजार तो कमरे का लग जाएगा। बाकी आना-जाना, लंच... शुक्र है घर के बिल्कुल पास मेट्रो स्टेशन बन गया है। मन हुआ, आज ही मेट्रो में घूम आए।

दो साल पहले अब्बा और अम्मी ने हज जाने के लिए दिल्ली से हवाई जहाज लिया था। अम्मी दो दिन दिल्ली रहकर घूमीं। मेट्रो में सफर किया, कनॉट प्लेस का नया रूप देखा। अम्मी बताती थीं कि छब्बीस साल पहले वे अपना हनीमून मनाने दिल्ली आई थीं। तब की दिल्ली कुछ और थी। 1984 का अक्टूबर का महीना। उन्हें आए बस दो ही दिन हुए थे कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजधानी का नजारा बदल गया। हर तरफ कत्लेआम। दो दिन तो नव ब्याहता कपल होटल से निकल ही नहीं पाया। अम्मी हंसकर कहा करती थीं, ‘‘मैंने तो सोच रखा था कि शादी के शुरू के तीन-चार साल बच्चे नहीं चाहिए। तुम्हारे अब्बा की ठीक से नौकरी भी नहीं लगी थी। लेकिन मजबूरन हमें जो दो दिन होटल में कैद रहना पड़ा तो...!’’

नौ महीने बाद आमना का भाई फैजल हुआ और उसके साल भर बाद आमना। अम्मी ने इसके बाद तौबा कर ली। आमना को उन्होंने ही पत्रकार बनने के लिए उकसाया। उन्हें ऐसी लड़कियां पसंद नहीं जो जवान होते ही शादी का इंतजार करने लगती हैं और इसके बाद बस शौहर, घर और बच्चों में डूब जाती हैं। अम्मी की ख्वाहिश थी कुछ बनने की, खुद बस एक टीचर बनकर संतुष्ट रह जाना पड़ा, पर आमना के लिए बड़े-बड़े ख्वाब पाल रखे हैं। मां-बेटी में पटती भी खूब है! एक तरह से आमना को अकेले दिल्ली भेजने के लिए अपने शौहर को उन्होंने ही तैयार किया।

अकेली लड़की क्या करेगी... वाली सोच से ऊपर हैं अम्मी... इस तरह अगर अकेले मॉल में कॉफी शॉप में बैठकर कैपेचीनो पीते उसे देखेंगी, तो निहायत खुश होंगी। आमना के चेहरे पर मुस्कराहट तिर गई। बस इस बात का थोड़ा सा गम था कि पूरे दो महीने वह अम्मी से अलग होकर रहेगी। अम्मी ने खुद कहा, ‘‘यह न सोचना आमना कि मैं पूंछ की तरह तेरे पीछे-पीछे चली आऊंगी। तुझे जो करना है, अपने बल पर करना होगा। मैं बस तेरी हौसला अफजाई करती रहूंगी।’’

गर्म कैपेचीनो के हल्के-हल्के घूंट भरती हुई आमना ने एक बार फिर दोहराया कि उसे करना क्या है। पहले तो उसे प्रेस कार्ड हासिल करना होगा। उसने इलाहाबाद में हिंदुस्तान टाइम्स में कुछ दिन काम किया है। भले स्पोटर््स डेस्क न सही, जनरल डेस्क का अनुभव है उसे। छह महीने वॉइस टुडे न्यूज चैनल में भी बतौर रिपोर्टर काम किया है। राजधानी में कुछेक लोगों से पहचान भी है। उसके साथ के दो-तीन लोग आज तक और दूसरे चैनलों में चले गए हैं। उनका मोबाइल नंबर है, आज ही उनसे बात करेगी। आने से पहले मंदिरा से बात हुई थी। वह नोएडा में रहती है। उसने कहा था कि वह इतवार को घर आ जाए, वह उसे गाइड कर देगी।

आमना कॉफी खत्म कर बाहर निकल आई। इतनी जल्दी अपने कमरे पर वापस आने का मन नहीं हो रहा था। यूं ही वह सड़कों पर चलती रही। भीड़ भरी सड़कें। गाड़ियां चलाती उस जैसी युवतियां। केप्री के साथ लंबी कुर्ती और गले में स्कार्फ। तो क्या यह नया फैशन है? पिछले साल तक तो लड़कियां स्कार्फ की जगह स्टोल पहना करती थीं। आमना ने देखा अधिकांश लड़कियों के बाल काले और बिल्कुल सीधे हैं। उसे तो लगा था कि कलर्ड बाल और हाईलाइट अब भी चलन में है। यहां आने से एक दिन पहले ब्यूटी पार्लर जाकर उसने हाईलाइट करवाए थ्ज्ञे। वेैस वह फैशन में नहीं उलझती, पर स्मार्ट दिखना अच्छा लगता है।

आमना ने मन ही मन सोचा- मैं यहीं रह कर अपना कैरिीयर बनाऊंगी। मुझे कुछ करना है जिंदगी में। मैं मेहनत करूंगी... वही करूंगी जो करना चाहती हूं।

क्रमश..