औरतें रोती नहीं
जयंती रंगनाथन
Chapter 21
उस रात की सुबह नहीं
शायद दुबई से वह इतनी जल्दी न निकलती, अगर उस रात अलीशा उससे मिलने के बजाय अपने एक कमरे के स्टूडियो में खुदकुशी न कर लेती। उस दिन शाम तक वह इंतजार करती रही अलीशा का। फोन पर ऑनी ने बता की थी उससे। न जाने किस बात पर नाराज थी वह उससे। ऑनी ने फोन रखने के बाद कहा था, ‘‘बहुत लालची हो गई है अलीशा। तुम उससे न मिलो, तो अच्छा है। तुमको पसंद नहीं करेगी।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘तुम यंग हो। अट्रैक्टिव हो। उसके धंधे में उतर रही हो। उसका काम तो सफर होगा न...’’
पद्मजा को झुरझुरी सी हो आई। उसका धंधा...
रात वह नहीं आई, ऑनी के फोन का जवाब भी नहीं दिया। अगले दिन सुबह खलीज टाइम्स पढ़कर पता चला कि पुराने दिनों की एक कैबरे डांसर ने फ्रस्ट्रेशन में आकर खुदकुशी कर ली है। पुलिस को उसके घर की तलाशी से काफी राज मिले हैं।
ऑनी गायब है। दो दिन पद्मजा बिल्कुल खाली बैठी रही। तीसरे दिन ऑनी का मलेशिया से फोन आया, ‘‘बस कुछ दिनों की बात है डॉल, एक बार पुलिस ठंडी बैठ जाए, तो वापस आ जाऊंगा। उस बिच ने मुझे फंसाने का पूरा उपाय कर रखा था, लेकिन आई हैव कनेक्शन्स। दोबारा लौटूंगा। तुम वहीं रहना।’’
सुबह उपमा और मट्ठा। दोपहर को रोटी के साथ आलू-टमाटर की पतली सब्जी, मिर्चदार। साथ में कच्ची प्याज और खीरे का सलाद। कूलर की हवा में कोई दम नहीं। पद्मजा ने बस घुटने तक का एक पारदर्शी गाउन डाल रखा है। लंच से पहले नहाकर आई थी, फिर से पसीना-पसीना हो रही है।
मन्नू ने नाइटी पहन रखी है, जमीन पर लोट सी गई है। भूरे-छितरे बाल जमीन पर फैले हैं। वजन कम कर लिया है, स्किन भी पहले से अच्छी हो गई है। उज्ज्वला बैठी है बिस्तर पर। बालों को ऊपर बांधे। जीन्स और ढीला सा कुर्ता। शायद व्योम का हो। सामने चक्र सा बना हुआ है। आंखों में गहरा फैल आया काजल।
तीनों चुप हैं।
पद्मजा के पैरों के बिल्कुल नीचे टुटू है, उसने सुबह से कुछ नहीं खाया। गर्मी ने दम निकाल दिया है बेचारे कुत्ते का।
उज्ज्वला ने धीरे से अपनी बंद आंखें खोली, ‘‘चाय बना लाऊं?’’
कहीं से कोई जवाब नहीं आया। कुछ मिनटों पर पद्मजा की आवाज आई, ‘‘क्या तुम दोनों को नहीं लगता कि हमने जहां से शुरू किया था, वहीं आ पहुंचे हैं? ...वही मिडिल क्लास रोना। नाश्ता, खाना, चाय-पानी... रबिश! क्या ये सब करने के लिए हम तीनों इकट्ठा हुए थे, सपने देखे थे...?’’
मन्नू धीरे से बोली, ‘‘क्या करें? मेरा पॉलीटिक्स में जाना बीच में रह गया। जो कुछ था, वो भी चला गया। उज्ज्वला ने नौकरी छोड़ दी। तुम्हारे पैसे से कितने दिन ऐश करेंगे पद्मा?’’
‘‘मेरा-तुम्हारा पैसा क्या होता है? देखो मन्नू... हम तीनों आज ऐसी स्थिति में नहीं कि कोई पैसेवाला आदमी हमसे शादी करे और जिंदगी भर हमें एक आलीशान जिंदगी दे। मैं किसी आदमी से ऐसी उम्मीद करती भी नहीं। बोलो उज्ज्वला, क्या तुम्हारा व्योम तुम्हें ऐसी जिंदगी दे पा रहा है? तुम क्या बन गई हो? सोचती हो कि खुश हो। पर क्या वाकई? क्या हमारे पास और कोई ठीक सी जगह नहीं है रहने को? क्या हम तीनों बेहतर जिंदगी नहीं जी सकते?’’
मन्नू ने उज्ज्वला का चेहरा देखा, उज्ज्वला ने पद्मजा का। वे दिन फ्लैश की तरह जहन में कौंध गए- हवाई यात्रा, अच्छे होटलों में खाना, आवारागर्दी करना।
उज्ज्वला पद्मजा की बातें सुन रही थी। उसे डर था इस बात का। मन्नू बहुत जल्दी किसी की सुन लेती है, मान भी जाती है। जब उज्ज्वला के पास रहने आई, तो पूरी तरह उसकी हो गई। व्योम के साथ भी घुल-मिल गई। कहने लगी कि मैं तुम लोगों के साथ काम करूंगी, असली जिंदगी यही है। पद्मजा को शुरू से व्योम और उसके संबंधों पर शक है। ‘ऐसे संबंध बहुत दिनों तक नहीं चल पाते उज्ज्वला। अपने लिए कुछ सोच...!’ न जाने कितनी बार कहा होगा पद्मजा ने।
‘‘मुझे इस जिंदगी से शिकायत नहीं’’, उज्ज्वला ने जोर से कहा।
मन्नू धीरे से बोली, ‘‘पद्मजा, तुम देखो तो सही, ये लोग क्या काम कर रहे हैं। बहुत जमीनी है... आम आदमी के लिए...’’
‘‘पर मैं आम आदमी नहीं हूं मन्नू...’’ बहुत गहरी थी पद्मजा की आवाज, ‘‘मुझे सिर्फ रोज ब रोज की जिंदगी नहीं चाहिए। मैं ऐसे जी नहीं पाऊंगी। मुझे कुछ बड़ा चाहिए।’’
‘‘कैसे?’’
पद्मजा उठकर बैठ गई, कुछ उत्साह के साथ बोली, ‘‘है मेरे पास एक आइडिया। पर तुम दोनों को इसमें मेरा साथ देना होगा। मैं अकेले कुछ नहीं कर पाऊंगी।’’
‘‘अरे, बता तो...’’ मन्नू बेसब्र हो गई।
‘‘सुनो... दुबई में मुझे ऑनी मिला था... वह नया बिजनेस शुरू कर रहा है। मुझे पार्टनर बना रहा है।’’
‘‘क्या बिजनेस? मेरी समझ में क्या आएगा पद्मजा? मैं क्या कोई वेल एजुकेटेड हूं?’’ मन्नू खीज गई।
पद्मजा चुप रही। दोनों के चेहरे पढ़ती रही। फिर धीरे से कहने लगी, ‘‘अच्छा, तुम दोनों को याद है वो दिन? हम तीनों इंडिया गेट गए थे... पिकनिक मनाने...’’
‘‘गोल मार्केट से बिरयानी पैक करवा के...’’ मन्नू ने तुरंत जोड़ा।
‘‘हां। मेरे गाड़ी में पेट्रोल बहुत कम था, लेकिन उज्ज्वला का मन था इंडिया गेट जाने का।’’
‘‘बहुत हसीन था वो दिन... शायद हम तीनों की जिंदगी का सबसे हसीन दिन। उस दिन के बाद हम तीनों एक दूसरे से और ज्यादा जुड़ गए थे। मैं बहुत खुश थी, बहुत ज्यादा।’’ मन्नू बड़बड़ाई।
‘‘तुम ही नहीं, हम तीनों। हमने कहा था कि हमेशा ऐसे ही रहेेंगे। जो भी करेंगे एक साथ करेंगे और... और कभी नहीं रोएंगे। है ना?’’
तीनों चुप हो गईं। पद्मजा कुछ क्षण रुकने के बाद बोली, ‘‘तुम दोनों की तो नहीं पता, पर मैं इसके बाद भी बहुत रोई हूं। कई-कई बार। कई-कई वजहों से। कभी मन्नू को सोचकर, तो कभी उज्ज्वला को सोचकर। कभी टुटू के लिए, तो कभी बेवजह यूं ही...। सोचती हूं कि हमने उस दिन फिर तय क्यों किया था? क्या पागल हो गए थे हम?’’
उज्ज्वला ने पद्मजा का हाथ पकड़ लिया, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो? उस दिन हमने जो भी निर्णय लिया था, हम तीनों उस पर कायम हैं। तीनों वैसी ही जिंदगी जी रहे हैं, जैसी चाहते हैं। फिर रोने या हंसने से तो जिंदगी को नहीं तौला जा सकता न? हो सकता है मैं एक छोटे से बच्चे को हंसता देखकर रो पड़ूं। पर हां... हम एक बात नहीं निभा पाए... एक दूसरे का साथ न छोड़ने का। पता है क्यों? हम एक-दूसरे पर इतना हावी होते चले गए कि खुद के लिए स्पेस ही नहीं बचा। देखो न... व्योम के साथ जाने के लिए मुझे कितना लड़ना पड़ा तुम दोनों से। ...और मन्नू जिस दिन टीवी चैनल के सामने रातभर भाषण देकर आई, उस पर सबसे ज्यादा मैं बिगड़ी। मैंने न जाने उससे क्या-क्या कहा। फिर जब वह सुशील के साथ जाने लगी, तो तुमने उस पर कितने ताने कसे। यहां तक कहा कि मन्नू अपना फ्रस्ट्रेशन उतारने के लिए सुशील के साथ जा रही है। उज्ज्वला की जिंदगी में एक आदमी आ गया है, तो मैं क्यों नहीं...’’
मन्नू कुछ दयनीय स्वर में बोली, ‘‘मुझे सुशील से सच में प्यार हो गया था। यह जानते हुए भी कि वह आदमी शादीशुदा है और अस्मिता से पहले और बाद में भी न जाने कितनी औरतों के साथ सो चुका है, मैं उसके साथ जिंदगी बसर करने के सपने देखने लगी थी। कोई शिकायत नहीं उज्ज्वला... कैंने इस रिश्ते में बहुत कुछ पाया भी... खोया भी।’’
बारी थी पद्मजा की। वह कुछ और कहना चाहती थी। लेकिन फिर भी उसने उसी सुर में पूछ लिया, ‘‘तुम दोनों के बीच एक सूर्यभान थे, उनका क्या हुआ? जहां तक मुझे याद है, उज्ज्वला उस आदमी को लेकर संजीदा होने लगी थी। मन्नू तुम भी... वो तुम दोनों की जिंदगी में ऐसा पुरुष बनकर आया, जिसने तुम्हें अहसास दिलाया कि तुम औरत हो। है ना? सच कहूं तो मुझे वो आदमी कम पसंद था।’’
सूर्यभान से मन्नू की बाद में भी कुछ मुलाकातें हुईं। उज्ज्वला चुप रही। उस आदमी के साथ उसके शारीरिक संबंध थे। सूर्यभान ने उसके अंदर की औरत को जगाया था... सही कह रही है पद्मजा।
फिर क्या हो गया? जिस दिन उसे पता चला कि सूर्यभान मन्नू से भी कुछ ऐसा ही रिश्ता बनाना चाहता है, उज्ज्वला ने किनारा कर लिया। मन्नू को बस इतना पता है कि सूर्यभान ने लंबे समय तक उससे उज्ज्वला की शिकायत की। व्योम से उज्ज्वला को उन्होंने ही मिलाया था। वे ही लेकर गए थे उसे पेंटिंग एक्जीबिशन में।
उज्ज्वला को याद नहीं करने वे दिन। अब जो हो रहा है जिंदगी में, वो ठीक है। पर पद्मजा कहना क्या चाहती है?
‘‘तुम दोनों मेरे साथ काम करोगी?’’ पद्मजा ने सीधे ही पूछ लिया।
‘‘कैसा काम?’’ मन्नू और उज्ज्वला एक साथ सतर्क हो गई। बिजनेस? उसके लिए अक्ल भी चाहिए और पैसा भी।
पद्मजा ने समझाना शुरू किया, ‘‘काम कोई बहुत मुश्किल नहीं। हमारे यहां ऐसी कई लड़कियां हैं, जो जल्दी पैसा कमाना चाहती हैं आसान तरीके से। हम उन्हें रास्ता बताएंगे... ऑनी उन्हें काम देगा और हमें कमीशन...’’
मन्नू उछल गई, ‘‘क्या काम देगा? देख पद्मजा, अगर लड़की कम पढ़ी-लिखी है और ज्यादा कमाना चाहती है, तो मेरे ख्याल से तो बस एक ही तरीका है- क्या ऐसा ही कुछ काम है? बता...?’’
उज्ज्वला ने अटकलें लगाईं, ‘‘होटल में रिसेप्शनिस्ट? मॉडलिंग? एयर होस्टेस?’’
‘‘इससे हमें क्या? हम लड़कियों से झूठ थोड़े ही न बोलेंगे। बस हमें सही और जरूरतमंद लड़कियों की पहचान करनी होगी।’’ पद्मजा उसी स्वर में बोली।
अचानक उज्ज्वला उठ खड़ी हुई। मन्नू ने टहोका तो उसने शांत स्वर में कहा, ‘‘मुझे रात के खाने की तैयारी करनी है। घर में बस मूली है और लौकी है।’’
पद्मजा भड़क गई, ‘‘मैं यहां लाखों-करोड़ों की बात कर रही हूं और तुम लौकी और मूली में अटकी हो। नॉनसेंस।’’
‘‘तुम मेरा सेंस नहीं समझीं तो मैं क्या करूं पद्मा? मैं अपनी जिंदगी में मूली और लौकी से संतुष्ट हूं। सॉरी... मैं तुम्हारा साथ नहीं दूंगी। एक बात और... अगर तुम दोनों यही करना चाहती हो, तो मुझे अपनी जिंदगी से अलग कर दो। मुझे नहीं बनना तुम दोनों की जिंदगी का हिस्सा।’’
‘‘उफ उज्ज्वला, तुम अपनी मिडिल क्लास सोच कब बदलोगी? कभी तो इससे ऊपर उठो। मैं तुमसे कोई गलत काम करने को नहीं कह रही। तुम बैंक में काम कर चुकी हो। तुम रुपए-पैसे का तो हिसाब रख सकती हो न। उसमें तो कोई बुराई नहीं...’’ पद्मजा ने लपककर उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
‘‘बुराई तो किसी में नहीं। मैं अच्छा-बुरा कहने वाली कौन होती हूं? पर अपनी जिंदगी में क्या करना है, यह तो तय कर सकती हूं न! मुझे पता है, मैं तुम्हारे जैसी अच्छी दोस्त खो दूंगी। हो सकता है मन्नू को भी खो दूं। इसके बाद मैं बिल्कुल अकेली रह जाऊंगी। मां से क्या उम्मीद रखना? व्योम भी जब तक है, तब तक है... पर शिकायत नहीं करूंगी... मुझे इस तरह रहने की आदत है। बहुत जरूरतें नहीं हैं मेरी। वैसे भी पिछले कुछ दिन जो तुम दोनों के साथ इतने अच्छे से बिताए, वे यादें बहुत हैं।’’
मन्नू चुप रही। उसे उन दोनों की बातें कम समझ में आती थीं। पर इस समय लग रहा था कि पद्मजा की बात मानने में बुराई ही क्या है? वह बिजनेस की ही तो बात कर रही है। खुद सुशील उसे बताते थे कि काम करवाने के लिए वे मंत्रियों और बड़े अफसरों के पास लड़कियां भेजते हैं। वैसी कुछ लड़कियों से मिली है मन्नू। आम सी दिखने वाली लड़कियां। मन्नू ने पूछा था सुशील से, ‘‘क्या इन लड़कियों को आपत्ति नहीं?’’ वे हंसकर बोले थे, ‘‘एक रात के इन्हें इतने पैसे मिल जाते हैं कि सारी आपत्तियां धरी रह जाती हैं।’’ रुपए के साथ इतने सारे शून्य कि र्मन्नू खुद भरमा गई। अगर इतने बड़े पैमाने पर यह काम हो रहा है, तो कोई तो कर रहा होगा!
उज्ज्वला एकदम से कमरे से उठकर चली गई। पद्मजा चुपचाप सैटी पर लेटी रही। शाम हो चली थी। कमरा थोड़ा सा बेहतर होने लगा था। मन्नू बहुत कुछ पूछना चाहती थी पद्मजा से, पर उसका मूड देखकर वह चुप रही। दोनों यूं ही बैठी रहीं, देर तक।
उज्ज्वला नहीं आएगी। यह तय था। मन्नू से कुछ मदद मिल सकती है, यह लग रहा था। पद्मजा ने पूरी शाम और रात यही सोचने में गुजार दी। क्से करेगी वो?
अब यह सोचने का वक्त नहीं था कि क्यों कर रही है वो?
मन को वह समझा चुकी थी कि सीधे रास्ते चलना उसने कब का छोड़ दिया।
क्रमश..