उर्वशी - 6 Jyotsana Kapil द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उर्वशी - 6

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

6

जब उसे जयमाला के लिए लाया गया तो उपस्थित अतिथिगणों की आँखें उसके सौंदर्य को देखकर नतमस्तक हो गईं। प्रत्येक व्यक्ति को मानना पड़ा कि शौर्य को इससे सुंदर दुल्हन कोई और नहीं मिल सकती थी। उधर कामदार शेरवानी में शौर्य भी किसी देवपुरुष से कम नही लग रहा था। हर एक का कहना था कि जोड़ी बहुत खूबसूरत है। मम्मी- पापा और दोनो भाई उमंग और उत्कर्ष बेहद खुश थे। उसके वैभव को देखकर वह सब फूले न समा रहे थे। सभी रस्मो के सम्पन्न होने पर वह स्वजनों से विदा लेकर राणा पैलेस में आ गई।

थोड़े विश्राम के पश्चात विवाहोपरांत की अन्य रस्मो को निबटाया गया। वहाँ के तामझाम देखकर वह वहाँ से भाग निकलने को बेचैन होने लगी। जी चाह रहा था इस सबसे दूर कहीं एकांत में चली जाए। जहाँ परिवेश बिल्कुल सादा हो। पर अब वह सब मिलना सम्भव न था। पुनः उसे तैयार करवाया गया। हर एक दृष्टि में प्रशंसा थी पर शौर्य कुछ खिंचा खिंचा से लगा। रात्रि में जब उसे सुहाग सेज तक पहुंचाया गया तो वह कुछ अजीब मनःस्थिति में थी। थोड़ी सी घबराहट, थोड़ा सा संशय, थोड़ी फिक्र, थोड़ा खिंचाव। पूरा कक्ष फूलों की महक से ग़मक रहा था। किसी फिल्मी सेट जैसी सजावट, डिज़ाइनर मोमबत्ती की मद्धिम रोशनी, हल्का बजता हुआ वाद्य संगीत। कुल मिलाकर बहुत रूमानी माहौल बना रहा था।

काफ़ी देर हो गई प्रतीक्षा करते हुए, तब जाकर आहट हुई। कुछ नारी स्वरों की खिलखिलाहट, उपहार की माँग। उन सबसे निबटकर शौर्य ने कमरे में प्रवेश किया। उसके हृदय के स्पंदन तीव्र हो गए। वह कुछ पल बेचैनी से टहलता रहा। फिर वार्डरोब खोलकर उसने नाईट सूट निकाला और डिज़ाइनर शेरवानी उतारकर नाईट सूट पहन लिया।

" आप भी चेंज कर लीजिए,और इन भारी भरकम कपड़ों से छुटकारा पा लीजिये। " उसने अजनबी स्वर में कहा।

वह किंकर्तव्यविमूढ़ सी बैठी सोचती रह गई। इतना समय व श्रम लगाकर उसे तैयार किया गया था। क्या सिर्फ इसलिए कि वह निर्मोही उसे नज़र उठाकर देखे तक नहीं। वह बेड के एक साइड बैठा मोबाइल देखने लगा और वह उसके कुछ कहने का इंतज़ार करती रही। जब लगा कि वह कुछ कहने को उत्सुक नहीं है तो वह पेशोपेश में बैठी रही। क्या करे, क्या न करे। अब शौर्य ने उसे एक बार देखा और फिर बोला

" आपको शायद हमारा व्यवहार अजीब लग रहा होगा, पर हम आपको बता देना चाहते हैं कि इस विवाह के लिए हम प्रस्तुत नहीं थे। "

" तो आपने घर मे कहा क्यों नहीं कि आपका मन अभी इस दायित्व के लिए तैयार नहीं। " उसने पूछ ही लिया। अब उसे उसकी बेरुखी का कारण समझ मे आ गया था।

" कहा था, पर सबको बहुत जल्दी थी । "

" क्या मैं आपको पसन्द नहीं ?"

" सच कहें तो इस निगाह से देखा ही नहीं। " कहते हुए वह कुछ पल को रुका। " सबका कहना है कि आप बेइंतहा खूबसूरत हैं। हम भी इस बात को मानते हैं, पर आपको अपने जीवन मे वह स्थान कभी नहीं दे पाएंगे जिसकी आपको अपेक्षा है। " उसका स्वर कुछ कड़वा हो गया था ।

" मेरा दोष ?"

" आपका कोई दोष नहीं, हमारा ही भाग्य खराब है कि जिसे चाहा, उसे अपनी जीवनसंगिनी नहीं बना पाये। " एक विस्फोट सा उसने कर दिया। उर्वशी हतप्रभ सी उसे देखती रह गई।

" आपने यह सब किसी को बताया नहीं ?"

" सब जानते हैं। पर कोई भी हमारे समर्थन में नहीं आया। क्योंकि वह अलग सम्प्रदाय की है। परिवार की प्रतिष्ठा को इससे चोट पहुँचती। "

इस रहस्योद्घाटन से वह विचलित हो गई। उसे ऐसा पति मिला है जिसके मन मन्दिर में पहले से ही कोई और विराजमान है। अब क्या भविष्य होगा इस रिश्ते का ?

" आप कम से कम मुझसे कह देते यह बात। "

" भाई सा की बात पत्थर की लकीर की तरह ही समझिए । वह जो निर्णय कर लें, उस पर कोई प्रश्न नहीं उठाता। "

" तो ? अब क्या सोचा है आपने ?"

" हम ग्रेसी को कभी नहीं भुला सकते, उसका स्थान हमारे जीवन मे कोई नही ले सकता। परिवार को एक समजतीय सुंदरी बहु चाहिए थी, ले आये, पर हमारे लिए कोई आकर्षण नहीं इस रिश्ते में। " कहकर वह मुँह फेरकर लेट गया और आँखें बंद कर लीं।

उर्वशी को लगा जैसे उसके कदमो तले से जमीन खींच ली गई हो। वह गिरती जा रही है अतल गहराइयों में। उसके नारीत्व का ऐसा अपमान ! बहुत देर तक वह ऐसे ही बैठी रही। फिर एक एक करके उसने सारे आभूषण उतार दिए, और अपनी एक नाइटी निकालकर पहन ली और लेट गई। उसकी आँखों से अश्रुओं की वर्षा होने लगी।

* * * * *

सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर वह कमरे में आयी तो देखा शौर्य वहाँ से जा चुका था। वह सोच ही रही थी कि क्या करे, तभी एक शालीन सी दिखती युवती हाथ मे एक बैग लिए आ गई, जिसने स्वयम का परिचय उसकी असिस्टेंट सीमा के रूप में दिया। उसने बैग में से उर्वशी के वस्त्र व आभूषण निकाले और तैयार होने में उसकी सहायता करने लगी। उसकी मदद से ही उसने नफ़ीस सिल्क की साड़ी के साथ सबसे हल्के आभूषण का चुनाव किया और उन्हें पहन लिया । फिर भी उसे लग रहा था कि किस मुसीबत में वह फ़ँस गई। कब इस सबसे उसे छुटाकारा मिलेगा।

उस असिस्टेंट सीमा के साथ वह भोजन कक्ष में आयी परिवार के लगभग सभी सदस्य वहाँ बैठे थे। बस शौर्य और ऐश्वर्या वहाँ नहीं थे। आकर उसने माँ सा के चरणस्पर्श करके उनका आशीष लिया। शिखर को प्रणाम किया। तभी ऐश्वर्या भाभी भी वहाँ आ गईं। उनके भी चरण स्पर्श किये। उन्होंने ध्यान से उसका चेहरा देखा। उसकी लाल और सूजी आँखें देखकर वह व्यंग्य से मुस्कुराई

" देवरानी सा, अपने घर की याद में रोती रहीं या देवर सा ने तंग ज्यादा कर दिया ?"

" ऐश्वर्या, परेशान मत करिए आप हमारी बहुरानी को। " माँ ने कोमल स्वर में कहा।

" जी माँ सा " वह चुप हो गई। शिखर गहरी दृष्टि से उसे देखे जा रहे थे, मानो उसके चेहरे को पढ़ने का प्रयास कर रहे हों। उसने एक बार उनकी ओर शिकायत भरी नजरों से देखा, फिर सिर झुका लिया। तभी तैयार होकर शौर्य वहाँ आ गया। माँ और बड़े भाई को प्रणाम करके वह भी बैठ गया। वर्दीधारी वेटर नाश्ता लगाने लगे, विभिन्न प्रकार के सुस्वादु व्यंजन। हर एक कि पसन्द के अनुसार । शिखर स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सजग लग रहे थे। अतः उन्होंने बस दूध, कॉर्न फ्लेक्स, थोड़ा सा स्प्राउट्स और फल लिये। ऐश्वर्या ने कटलेट्स, कॉफी और ढोकला लिया। माँ ने बस थोड़े से फ़ल और ग्रीन टी ली। शौर्य ने बटर टोस्ट और कॉफी ली। उर्वशी का मन बहुत खराब था। उसने सिर्फ कॉफी ली और घूँट भरने लगी।

" शौर्य बेटा, आपको उर्वशी की हर आवश्यकता का ध्यान रखना है । उन्हें हर हाल में खुश रखना है। वह यहाँ नई है। आप ही अब उनके सब कुछ हैं। आपको ध्यान रखना है कि वह कुछ खा पी रही हैं या नहीं ? वह खुश हैं या नहीं ।" माँ ने कहा तो सबकी नजरें शौर्य की ओर उठ गई, उसने हड़बड़ा कर उर्वशी की ओर देखा।

" प्लीज़ आप कुछ लीजिये न, जो भी पसन्द हो। " उसने अनुनय की।

" अभी कुछ खाने का दिल नहीं कर रहा। " वह धीरे से बोली।

" आप थोड़ा सा ओट्स, उपमा या स्प्राउट्स ट्राई कीजिए। लाइट भी है और हेल्दी भी। " शिखर ने कहा। तो उसने बेमन से थोड़ा फ्रूट सलाद अपनी प्लेट में डाल लिया। शिखर ने बारीक दृष्टि से उसे देखा। अश्रु उसकी आँखों से उमड़ पड़ने को बेकरार थे। वह चुपचाप फलों के टुकड़े कुतरती रही।

नाश्ते के बाद वह दोनो अपने कमरे में आ गए। शौर्य तैयार होने लगा और वह स्वयं में गुम बैठी थी। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। ' कम इन ' शौर्य ने कहा। अगले ही पल शिखर ने वहाँ प्रवेश किया।

" भाई सा आप ?" शौर्य अचकचा गया।

" आप कहाँ जा रहे हैं ?" शिखर ने सवाल किया।

" ऑफिस "

" शौर्य, आपकी अभी एक दिन पहले शादी हुई है। ऑफिस में आपके बिना कोई प्रलय नहीं आ जाएगी। यह समय है अपनी दुल्हन के साथ थोड़ा समय बिताने का, एक दूसरे को समझने का। "

" हम घर बैठकर क्या करेंगे भाई सा,अब जब साथ रहना ही है तो समझ जाएंगे धीरे धीरे एक दूसरे को। हमें एक दो ज़रूरी मीटिंग करनी थीं। "

" कहा न आप फिक्र मत करें ऑफिस की। एक महीने के लिए हम आपको फ्री कर रहे हैं। "

" एक महीना ? इतने लंबे समय तक हम करेंगे क्या ?"

" कल उर्वशी को पगफेरे के लिए जाना है, फिर इनके लौट कर आने के बाद आपदोनो यू एस के लिये निकल जाएंगे। आपकी पन्द्रह दिन की ट्रिप प्लान की है हमने। "

" क्या ? पर हमारे कई अर्जेंट वर्क होने हैं इस महीने। इस ट्रिप की ज़रूरत नहीं। दो महीने बाद वैसे भी हमें फैमिली ट्रिप पर जाना है। " वह झुँझला गया था।

" नादान मत बनिये शौर्य, ये आपकी हनीमून ट्रिप है। फैमिली के साथ ट्रिप फिर प्लान हो जाएगी। "

" मेरे विचार से इन दिनों इन्हें अपने ज़रूरी काम कर लेने दिए जाएं। मैं भी इस ट्रिप के फेवर में नहीं हूँ। " इस बार वह बोल पड़ी।

" आखिर हो क्या रहा है ? कोई बताएगा हमें ?" शिखर हैरान रह गए।

" यह तो अभी हमें भी समझना है । " वह अर्थपूर्ण स्वर में बोली।

शिखर ने कुछ न समझने वाले अंदाज में दोनो को देखा और फिर कमरे से बाहर निकल गए। वह दोनो किंकर्तव्यविमूढ़ से कुछ देर बैठे रहे फिर शौर्य उठकर शयनकक्ष से लगे स्टडी में चला गया। उर्वशी विचार में डूब गई, कि अब उसे क्या कदम उठाना चाहिए। काफी देर तक वह आने वाले समय की कठिनाइयों का आँकलन करती रही। अंत मे उसने निर्णय ले लिया कि कल वह भाई के साथ अपने घर चली जाएगी और फिर कभी वापस लौटकर नहीं आएगी। एक बार उसने सोचा कि वह शिखर से जवाबतलब करे, कि जब उनका छोटा भाई उससे विवाह करने को प्रस्तुत नहीं था तो उसके साथ जबर्दस्ती क्यों की गई ? फिर उसने निश्चय किया कि वह शिखर से कोई बात नहीं करेगी। जब उन्होंने उससे शुरू से हर बात छुपाई तो वह भी अपने मन की बात उनसे क्यों करे ? बल्कि अब उसे उन पर क्रोध आ रहा था कि वह उसका जीवन खराब करने के दोषी हैं। अच्छी खासी ज़िन्दगी गुज़र रही थी, उन्होंने ही उसके लिये ढेरों परेशानियाँ खड़ी की। उनका मिलना उसके जीवन मे अभिशाप बन गया।

क्रमशः