उर्वशी
ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘
11
फिर वे लोग कालका माता के मंदिर की ओर चल दिये। वहाँ जाकर विशेष पूजा करवाई गई। पूजा के उपरांत उर्वशी का हाथ लगवाकर गरीबों को भोजन बाँटा जाने लगा। इन सब मे काफी समय हो गया। जब वे लोग घर लौटे तो सुबह के दस बज गए थे। वह प्रसाद देने के लिये शौर्य को ढूँढने लगी, तो मालूम हुआ कि वह ऑफिस जा चुका है। यह देखकर उर्वशी ने स्वयं को बहुत आहत महसूस किया। ये क्या बात हुई, उसका पहला जन्मदिन और उन्होंने उसे बधाई भी नहीं दी ! न उसकी वापसी की प्रतीक्षा की और न ही कुछ और, की वह कुछ खास महसूस करे। अगर आज ऑफिस न जाते, उसके साथ पूरा दिन गुज़ारते तो उसे कितना अच्छा लगता ! अगर रुक नहीं सकते थे तो कम से कम उसके घर आने के बाद ही ऑफिस चले जाते, कौन सी आफ़त आ जाती। यह सोचकर उसकी आँखें गीली हो गईं। आहट होने पर पलटकर देखा तो शिखर खड़े थे। उन्होंने गौर से उसे देखा
" शौर्य …."
" ऑफिस चले गए। " उसने स्वयं को संयत करके कहा।
वह उसे देखते रहे फिर वहाँ से चले गए। थोड़ी देर में शिखर का एक नौकर आया और बोला कि बड़ी बहू उसे बुला रही हैं। वह हैरान रह गई, कि भाभी को उससे क्या काम पड़ गया ? उनके पोर्शन में गई तो देखा ऐश्वर्या व शिखर नाश्ता करने बैठे हैं।
" आइये जी छोटी बहुरानी, जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयाँ, आप खूब खुश रहें। दूधों नहाएं, पूतों फलें। ऐसे ही कहा जाता है न ? ऐश्वर्या ने यह कहते हुए शिखर की ओर देखा।
" आइए उर्वशी, आज हमारे साथ नाश्ता लीजिये। " शिखर ने उसे बैठने का इशारा किया।
" थैंक्स ए लॉट, पर मुझे भूख नहीं। " बैठते हुए उसने खिन्न मन से कहा।
" क्यों भई, भूख क्यों नहीं ? आज तो आपको और ज्यादा खाना चाहिए।" कहते हुए ऐश्वर्या ने एक प्लेट में उत्तपम और सांभर डालकर उसकी ओर बढ़ा दिया। शिखर ने प्रशंसा के भाव से पत्नी को देखा।
उसने विवशता में प्लेट लेकर रख ली और थोड़ा थोड़ा कुतरने लगी। शिखर बार बार उसकी ओर देखकर उसके आंतरिक भाव पढ़ने की कोशिश करने लगे। नाश्ता समाप्त होने के थोड़ी देर बाद वह अपने कमरे में आकर लेट गई। आज उसका मूड बहुत खराब हो गया था। कुछ देर वह सोच विचार में लगी रही तभी थोड़ी देर बाद सुर्ख गुलाब का एक बड़ा सा गुलदस्ता आ गया, जिसमें लगे कार्ड में जन्मदिवस की शुभकामनाओं दी गई थीं और नीचे शौर्य का नाम लिखा था। उसने गुलदस्ता देखा और और उसकी आँखें सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं । फिर उसने कार्ड निकाल कर एक ओर रख दिया।
* * * * *
शाम को पार्टी के लिए जब वह तैयार हो गई तो माँ सा के बुलाने पर वह बाहर आयी। सबने उसे पुनः शुभकामनाएं दीं ।
" उर्वशी बेटा, आपके लिए हम सबकी तरफ़ से जन्मदिन का तोहफ़ा है, आपकी अपनी गाड़ी । " कहते हुए उन्होंने एक ओर इशारा किया। उसने देखा सिल्वर कलर की चमचमाती ऑडी खड़ी है।
" अहा, क्या जबरदस्त गिफ़्ट मिला है आपको जन्मदिन का, बहुत किस्मत वाली हैं देवरानी सा। " ऐश्वर्या ने आश्चर्य व ईर्ष्या मिश्रित स्वर में कहा।
उसने माँ सा का आभार व्यक्त किया तो उन्होंने कहा कि ये सब तो शिखर ने किया है। उसने शिखर की ओर देखा तो उन्होंने एक प्यारी सी मुस्कान दी।
उसने एक निगाह उनपर डाली, फिर स्वयं में ही खो गई। क्यों करते हैं आप इतना कुछ मेरे लिए ? क्या रिश्ता है मुझसे आपका ? कितनी कोशिश करती हूँ, की आपको न सोचूँ, पर आप एक भी अवसर नहीं छोड़ते मेरे लिए कुछ करने का। मुझे हर खुशी देने की कोशिश करते हैं। पर किस नाते से ? क्या हक़ है आपका मुझपर ? मैं आपसे कुछ नहीं चाहती। प्लीज़ छोड़ दीजिए मेरे लिए कुछ भी करना। मेरी अपेक्षा सिर्फ शौर्य से है। जिसने आज मेरे लिए इंतजार करना भी मुनासिब नहीं समझा। काश, की ये सब मेरे लिए शौर्य करता, तो मुझे और ज्यादा अच्छा लगता । मैं आपको सोचना नहीं चाहती। आपसे दूर रहना चाहती हूँ।
पार्टी शुरू हुए थोड़ी देर हो चुकी थी, पर शौर्य का पता न था। वह बेसब्री से इंतजार कर रही थी, मुस्कुरा रही थी, बात कर रही थी। परंतु चेहरे पर बार बार मायूसी के बादल छा जा रहे थे। दो तीन बार उसकी शिखर पर दृष्टि पड़ी, हर बार उनकी निगाह उस पर ही थी। तभी वह उसके पास आये और अपना मोबाइल उसकी ओर बढ़ा दिया, उसने देखा शौर्य की कॉल थी। अपना मोबाइल वह अपने कमरे में ही छोड़ आयी थी।
" हैलो "
" उर्वशी, रूम में आइए। "
" अभी थोड़ा बिज़ी हूँ। " उसने नाराज़गी से कहा
" प्लीज़ तुरंत आइए। "
जब जोर देकर कहा गया तो उसने फोन काटकर शिखर को पकड़ा दिया और जाने को विवश हो गई। अब उसे लग रहा था कि सुबह का दबाया हुआ गुबार फट पड़ेगा। कमरे में आयी तो देखा वह पार्टी के लिए तैयार हो रहा है
" हैप्पी बर्थडे । " उसे देखकर वह मुस्कुराया
" बहुत बहुत शुक्रिया, की आपने आज ही विश कर दिया । " उसने नाराज़गी से कहा।
" जन्मदिन आज है तो विश भी आज ही तो करना पड़ेगा। "
" जी, मैं सदैव आपकी आभारी रहूँगी। "
" यह फूल किसने भेजे ? बड़े सुन्दर हैं। " उसने सुबह आये हुए गुलदस्ते की ओर इशारा किया।
" जिसे हमारी सबसे ज्यादा परवाह है। "
" अच्छा ! जानकर हैरानी हुई कि किसी को आपकी हमसे भी ज्यादा परवाह है।"
" और हमें यह जानकर हैरानी हुई कि आप हमारी परवाह भी करते हैं। " वह व्यंग्य से बोली।
" इतनी नाराज़गी ? " शौर्य ने दोनो हाथों में उसका चेहरा थाम लिया और उसकी आँखों मे देखने लगा। उसने दूसरी ओर चेहरा घुमा लिया।
" हमें माफ कर दीजिए, सुबह चाहकर भी हम रुक नहीं पाए। " उसने मनाने की कोशिश की।
" उसके बाद पूरे दिन आपको इतना समय नहीं मिला कि एक कॉल भी कर सकें ? शाम को भी इतनी देर में आये, सब आपके विषय मे पूछ रहे थे। " न चाहते हुए भी उसका स्वर भीग गया।
" तौबा, आप तो बेहद नाराज हो गईं।" उर्वशी ने अपने चेहरे से उसके हाथ हटा दिए और कमरे से बाहर निकल आयी। उसे बहुत नाराज देखकर शौर्य घबरा गया और उसके पीछे भागा। बाहर आकर उसका हाथ पकड़ लिया और बाहों में भर लिया।
" रियली वेरी सॉरी। " उसने मनाने कोशिश की तो वह कसमसाई। बन्धन अब और दृढ़ हो गया। उसके चेहरे की ओर झुका ही था कि उसने झट से मुँह दूसरी ओर कर लिया
" रहने दीजिए, मेकअप बिगड़ जाएगा। बहुत समय लगाकर नैन्सी ने तैयार किया है। " एक पल को वह अचकचा गया, फिर पूरी बात समझकर जोर से हँस पड़ा।
" बिगड़ने दीजिये, आप बिना मेकअप के भी बहुत खूबसूरत लगती हैं। " कहकर उसने उर्वशी की पलकों पर अपने अधर रख दिये। इसके बाद उसके मस्तक, कपोल पर चुम्बन लेता हुआ होंठो पर झुक गया।
आहट सुनकर उन दोनों ने चौंक कर देखा तो शिखर सामने दिखाई दिए। उर्वशी ने एक झटके से स्वयं को उसकी गिरफ्त से छुड़ा लिया, और तेजी से कमरे में चली गई, शौर्य सकपका गया।
" आप सुबह से कहाँ गायब हैं शौर्य ? जब आपने उठकर देखा की वह घर पर नहीं थी, तो क्या रुकना आपका फ़र्ज़ नहीं था ?" शिखर ने कुछ नाराज़गी से पूछा।
" वो, भाई सा …. एक ज़रूरी … क .. काम आ गया था। " वह हड़बड़ा गया।
" ऐसा कौन सा ज़रूरी काम था जो आप थोड़ा इंतज़ार नही कर सकते थे ? आपकी पत्नी का जन्मदिन था। क्या आपने उन्हें सुबह विश किया ?" जवाब में शौर्य ने सर झुका लिया।
" वह अपना घर परिवार छोड़कर यहाँ आपके लिए आई हैं, अगर आप ही उनका ख्याल नहीं रखेंगे तो वो किससे शिकायत करेंगी ?"
" हमसे गलती हो गई भाई सा। " उसने सर झुकते हुए कहा।
" मनाइए उन्हें, और जल्दी से तैयार होकर आ जाइये। " शिखर ने कहा तो शौर्य अपने कमरे की ओर चल दिया। शिखर पलट कर गार्डन की ओर चल दिये।
थोड़ी देर पहले जो प्रफुल्लता उनके चेहरे पर थी, अब वह गायब हो गई थी। उनकी आँखों के सामने एक ही दृश्य चल रहा था। शौर्य की बाहों में जकड़ी हुई उर्वशी का। उन्होंने हृदय में अजीब सी जलन महसूस की । कितने प्रसन्न थे वह उर्वशी के जन्मदिन के लिए पार्टी का आयोजन करते हुए ! कितना सोच समझकर उसके लिए शानदार गाड़ी खरीदी थी। वह उसके कदमों में दुनिया की एक से एक बेहतरीन चीजें लाकर डाल देना चाहते थे। उनका वश चलता तो उसके आगे हर नायाब वस्तु का ढेर लगा डालते । पर किस अधिकार से ?
यह प्रश्न अक्सर उनके सामने उठता और वह उसके लिए कुछ करने से पहले रुक जाते। सुबह भी कितनी जल्दी उठकर उसके लिए भागे थे। पूजा से लौटकर जब देखा कि शौर्य घर मे नहीं है तो समझ गए कि वह उदास हो गई होगी, अब शायद कुछ खाए भी न। तो ऐश्वर्या से कहकर उसे नाश्ता करने के लिए बुलवाया। वह नही चाहते थे कि आज के दिन वह उदास रहे। उसका चेहरा देखकर वह समझ गए कि वह इस समय बहुत आहत है। फिर उसके लिए शौर्य के नाम से फूल भी भेजे।
कितनी खुश हुई होगी वह, फूल देखकर। पर शौर्य ने सब किया धरा बेकार कर दिया। पार्टी शुरू हो गई और उसका पता ही न था। तब उन्होंने फोन करके नाराज़गी जताई और उसे तुरंत आने को कहा। उर्वशी का मूड देखकर उन्हें डर लगा की कहीं दोनो में झगड़ा न हो जाए। इसीलिए उन लोगों के पीछे आ गए थे। पर जब उन दोनों को प्रणय बन्धन में देखा तो बर्दाश्त करना मुश्किल लगा। वह समझ नहीं पाए कि उन्हें ईर्ष्या क्यों होनी चाहिए। वह दोनो पति पत्नी हैं, अगर उनके मध्य अंतरंगता होती है तो इसमें गलत क्या है ? उन्हें क्यों बुरा लग रहा है ?
* * * * *
आजकल ग्रेसी शौर्य को बहुत परेशान कर रही थी। जब देखो तब उनका झगड़ा हो जाता। उसकी चाहतें पूरी करने के चक्कर मे वह अपने काम पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था। अब ग्रेसी का दबाव उस पर बढ़ता जा रहा था । वह हमेशा कहती कि वह बिल्कुल बदल गया है। वह उससे प्रेम करके पछता रही है, आखिर उसे हासिल क्या हुआ ? न उसने उससे विवाह किया और न ही अब प्रेमी रहा। वह तो हर तरह से घाटे में रही। कई बार वह उर्वशी को बहुत बुरा भला कहती, जिसे शौर्य बर्दाश्त न कर पाता। जबसे उसे पता लगा कि उर्वशी को जन्मदिन पर उपहार में ऑडी मिली है तबसे वह भी किसी कीमती उपहार की अपेक्षा करने लगी थी।
अब शौर्य को कोफ़्त होने लगी थी कि किस बुरी घड़ी में वह ग्रेसी के सम्पर्क में आया। उसे महसूस हुआ कि भाई ने सही कहा था कि वह लड़की बिल्कुल भी डिज़र्व नहीं करती है कि उनके खानदान की बहू बने। उस वक़्त तो उसे भाई पर बहुत क्रोध आया था । उसे लगा था कि वे हर चीज़ को पैसे के तराजू पर तोलते हैं। उनकी सोच उसे बहुत घटिया लगी थी। पर अब लग रहा था कि वह कहीं भी गलत नहीं थे। उनकी पसन्द लाजवाब थी। आज तक उन्होंने जीवन मे सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव किया था। मामूली चीजें तो वह देखते भी नहीं थे। जबकि वह हर स्तर पर उनसे हीन ही साबित हुआ। वे पूरे परिवार का हित सोचते थे जबकि वह केवल स्वहित ही सोचता है। वह बेमतलब के पचड़ों में उलझकर रह गया है। ग्रेसी उसके जीवन को नरक बनाने को तुली हुई है। वह उर्वशी की खुशियाँ भी सोखती जा रही है। पुराने दिनों की खातिर वह ग्रेसी के साथ कुछ गलत नहीं करना चाहता था। उसे लगता था कि उसके साथ बहुत सारा वक्त अच्छा गुज़ारा है, तो उसकी भावनाओं को चोट न पहुंचाए। पर वह कुछ समझने को तैयार ही न दिखती थी।
क्रमशः