उर्वशी - 5 Jyotsana Kapil द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उर्वशी - 5

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

5

नाटक को देखने के पश्चात घर आये तो मदालसा बनी हुई ऐश्वर्या से उन्हें विरक्ति हो उठी। अभी वह क्लब से लौटी थी और नशे में चूर थी। उनका जी चाहा कि उसका गला दबा दें और अपनी हृदयेश्वरी को जीवन मे ले आयें। वह बेड़ियों में जकड़े कैदी से फड़फड़ा कर रह गए। इस जीवन मे वह अपनी जीवनसंगिनी से छुटकारा नहीं पा सकते। अपने खानदान की मर्यादा के साथ वह कोई खिलवाड़ नहीं कर सकते। उन्होंने मुट्ठियाँ भींचकर कसकर दीवार पर मारी। यह जीवन व्यर्थ हो गया। क्या उनके निमित्त यही था ? वह उर्वशी पर बुरी तरह आसक्त हो उठे थे। उसका अभिनीत कोई नाटक नहीं छोड़ते। जब भी वह रंगमंच पर उतरती तो वह सौ काम छोड़कर उसे देखने जाते। हर बार उसके लिए सुंदर सा गुलदस्ता भी तैयार करवाते। वह दिन रात उसके लिए तड़प रहे थे, पर ऐसा कोई नहीं था जिससे अपने मन की बात कह पाते। उन्हें दुख इस बात का भी था कि जिसके लिए वह इस कदर बेचैन हैं उसे तो ख़बर भी नहीं। काश वह उनकी बेचैनी, उनकी उनींदी रातों की व्यथा जान पाती !

उस दिन जब ट्रेड फेयर में वह अकस्मात सम्मुख आ गई तो लगा आज ईश्वर उन पर बहुत कृपालु हो उठा है । उनके किसी पुण्य की सौगात दी है। बहुत मुश्किल से स्वयम पर नियंत्रण कर पाए थे। उसे देखकर हृदय में बस एक ही कामना जगी, की काश वह भी उन्हें चाहे। इसके बाद एक विवाहोत्सव में अचानक उससे मुलाकात। उन्हें लगा ईश्वर सचमुच उनपर मेहरबान हो रहा है। अब उसकी आँखें देखकर उन्हें यह भी महसूस हुआ कि सम्भवतः वह भी उनकी ओर आकृष्ट है।

कुछ ही दिन गुज़रे थे कि एक सूचना ने उनके हृदय को विदीर्ण कर दिया। समाचार पत्र में छपा था की दीपंकर घोष उसे अपनी आगामी फिल्म में साइन कर रहे हैं। वह विचलित हो उठे। उन्हें लगा उनके मन की इकलौती प्रसन्नता अब उनसे रूठ रही है। जब तक वह रंगमंच पर काम करेगी, उनकी पहुँच में रहेगी। पर एक बार मुम्बई चली गई तो उनसे बहुत दूर हो जाएगी। हालाँकि मुम्बई जाना इतना कठिन भी नहीं उनके लिए, जब इच्छा हो मुम्बई की फ्लाइट लेकर वह जा सकते थे, पर बार बार अपने काम का नुकसान करके जाना सम्भव नही हो पाएगा। फिर वह उसे देखने को तरस जाएंगे। नहीं, वह ऐसा नहीं होने देंगे। उसे खुद से दूर नहीं जाने देंगे। वह कुछ भी करेंगे, पर उसे रोक लेंगे।

लेकिन क्या करें ? कैसे रोकें उसे ? विवाहित न होते तो उसे अपनी संगिनी बना लेते, पर उनके पाँव में बेड़ियाँ पड़ी हैं। शौर्य … तभी छोटे भाई का नाम उनके मस्तिष्क में आया और वह चौंक गए। यह बात पहले दिमाग मे क्यों नहीं आयी ? इस तरह वह हमेशा उनकी नज़रों के सामने रहेगी। कुछ दिन पहले ही उनके विश्वस्त सहयोगी ने उन्हें सूचना दी थी कि शौर्य अपने ऑफिस में काम करने वाली एक गैर सम्प्रदाय की लड़की ग्रेसी जोन्स के आकर्षण में फँस चुका है। जो स्मार्ट तो थी पर रंग रूप में लगभग साधारण ही थी। उन्हें समझ मे न आया कि वह उस लड़की के चंगुल में कैसे फँस गया ? उसमे ऐसा क्या है जो उसे असाधारण लगा। एक भिन्न सम्प्रदाय की लड़की के साथ उसका सम्बन्ध सम्भव नहीं था। उन्होंने उस लड़की का स्थानांतरण दूसरी शाखा में करवा दिया, पर उन दोनों का मिलना जुलना नहीं रुका। शौर्य को उन्होंने फटकार भी लगाई की उस लड़की से दूर रहे। बड़े भाई के सम्मान में वह कुछ बोला तो नहीं, पर ग्रेसी से नज़दीकी ज्यों की त्यों बनी रही।

अब उन्हें लगा कि उनकी दोनो समस्याओं का समाधान मिल गया है। ग्रेसी नाम की फाँस, छोटे भाई के जीवन से भी निकल जाएगी, और उर्वशी भी उनकी आँखों के सामने रहेगी। बेशक उसका सामाजिक स्तर उनलोगों के समक्ष कुछ भी नहीं था, पर सबसे बड़ी बात की वह समान धर्म और जाति की है। उस पर अप्सरा सी सुंदर, जिसे इनकार किया ही नहीं जा सकता। शौर्य के फरिश्ते भी उसके प्रेम पाश में ऐसे बन्धेंगे की सब चौकड़ी भूल जाएगा । कुछ ही दिनों में उसे याद भी न रहगा कि कौन ग्रेसी और कहाँ की ग्रेसी। यह विचार आते ही उन्होंने अपना मन फूल सा हल्का पाया।

अगले दिन उन्होंने डिनर के समय परिवार के सभी सदस्यों से उपस्थित रहने का अनुरोध किया। संयोग से उस समय शिप्रा भी मायके आयी हुई थी। हल्की फुल्की बातों के पश्चात उन्होंने शौर्य के विवाह की चर्चा छेड़ी और उर्वशी के विषय मे सबको बताया। उनकी पत्नी ने उसकी साधारण पृष्ठभूमि की बात उठाई, जिसे उन्होंने उसके सौंदर्य की चर्चा करके दबा दिया। ततपश्चात मृच्छकटिकम ' की टीम के कुछ महत्वपूर्ण लोगों को उन्होंने डिनर पर बुलाया। ताकि उन पर कोई उँगली न उठा सके। उस डिनर में उन्होंने अपनी माँ, बहन और पत्नी को भी सम्मिलित किया। ताकि वे लोग चुपचाप लड़की को देखकर अपने विचार बता दें। माँ को लड़की बहुत पसंद आई थी। उन्हें उसके मध्यमवर्गीय होने से कोई समस्या नहीं हुई। बल्कि इसका वह राजनीतिक लाभ ले सकती थीं। अपने बेटे का विवाह एक मध्यमवर्गीय लड़की के साथ करके वह एक ऊँचा उदाहरण प्रस्तुत करतीं। उन्होंने पुत्र के प्रस्ताव पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी। अब किसी और के विरोध का तो प्रश्न ही नहीं उठता था।

शौर्य को जब यह पता लगा कि उसका सम्बन्ध तय किया जा रहा है तो उसने विरोध किया और अपनी नाराजगी भी जताई, पर उसका कोई लाभ न हुआ। बड़ों की सम्मति के सम्मुख उसे झुकना ही पड़ा। उसके पश्चात सबकी राय से वह उर्वशी के घर गए और अपना प्रस्ताव उसके पिता के सम्मुख रखा। माँ को एक राजनीतिक दौरे पर उदयपुर जाना था। ऐश्वर्या ने ज़रूरी मीटिंग का बहाना बना दिया। इतने कुलीन परिवार का प्रस्ताव उस परिवार के लिए आश्चर्य का बायस बन गया। उन्होंने कहा कि यदि उनकी पुत्री की सहमति हुई तो वे बड़ी प्रसन्नता से इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेंगे। हाँ यदि उर्वशी की ही इच्छा न हुई तो कुछ न कर पाएंगे।

अब गोट उर्वशी के पाले में थी। उसका एक इनकार सब कुछ बदल सकता था। उन्हें यह तो महसूस होता था कि वह सम्भवतः उनकी ओर आकृष्ट है, पर शौर्य के साथ सम्बन्ध के लिए राजी होगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता। उन्हें आशंका थी कि शौर्य के साथ सम्बन्ध की बात सुनते ही वह तुरंत इनकार कर देगी। इस बाधा को कैसे पार किया जाए, वह सोच में पड़ गए। न जाने कितनी मनौतियां मना डालीं की वह अपनी स्वीकृति दे दे। शायद ईश्वर ने उनकी सुन ली और उसने स्वीकार कर लिया। उसकी हाँ सुनकर उन्हें थोड़ा झटका सा भी लगा। यह क्या हुआ ? बेशक सब कुछ उनके अनुसार ही हो रहा था पर यह बात न जाने क्यों अच्छी नहीं लगी। उसका अपलक उनकी देखना क्या महज दिखावा था, या उनकी गलतफहमी ? यदि वह उन्हें पसन्द करती थी तो शौर्य के साथ विवाह को तैयार क्यों हुई ?

एकदम खिला हुआ उनका मन जैसे बुझ सा गया। क्या वह उनके धन ऐश्वर्य पर फिसल गई ? बहुत भारी मन से उन्होंने शिप्रा से कंगन निकालने का इशारा किया। जैसे ही शौर्य को कंगन पहनाने को कहा गया उसके चेहरे पर हतप्रभ रह जाने का भाव आया। इसका अर्थ है कि उसे इस बात की खबर नहीं थी कि उसका प्रस्ताव शौर्य के लिए आया है। पर यह तो सम्भव ही नहीं, कि उसके पिता ने इस विषय मे उसे बताया ही न हो। शायद उसने ठीक से समझा ही नहीं था। वरना इतनी बुरी तरह चौंकती नहीं। इसका अर्थ है कि वह गलत नहीं थे। वह सचमुच उन्हें चाहती है। उनके मन को तसल्ली मिली। इसके बाद अचानक उसकी तबियत बिगड़ जाना, परिचायक था कि वह इस बात को आसानी से पचा नहीं पाई है।

अब कहीं वह इनकार न कर दे। वह फिर चिंतित हो उठे। उसकी खैरियत जानने को उसके कमरे में गए तो गहरी निगाह से उसे देखा । उसके चेहरे पर दुःख के भाव नज़र आ रहे थे। यानी वह खुश नहीं है। यह देखकर जैसे मन को बहुत सुकून मिला। पर चिंता भी बढ़ गई। कहीं अब न मना कर दे। उसका मन टटोलने के लिए उन्होंने उसकी शौर्य से बात करवाने को पूछा जिस पर उसने इनकार कर दिया। वह कुछ आशंकित मन से चल दिये।

* * * * * * *

विवाह का मुहूर्त दो माह बाद का निकला। थोड़े थोड़े अंतराल के पश्चात राणा परिवार में हर कोई उर्वशी से बात कर लेता था। पर शौर्य ने एक बार भी उससे बात नहीं की। वह बाकी सबसे उसके स्वभाव व रुचि अरुचि के विषय मे जानकारी हासिल करती रही। इस बीच उसने अपने मन को साधने का काम किया। जबरन शिखर के विचारों को उसने धो पोंछकर बाहर निकाल दिया। अब उसने अपने हृदय में शौर्य के लिए स्थान बनाना शुरू किया। उसमे ऐसा कुछ न था कि उसे नापसन्द किया जाए । उच्च शिक्षित, देखने मे सुदर्शन, शालीन,गुणवान, और क्या चाहिए एक लड़की को अपने जीवनसाथी से। उसकी बहुत इच्छा हुई शौर्य से बात करने की, पर वह पहल नहीं करना चाहती थी। न जाने वह उसे लेकर क्या धारणा बनाए । बाकी सबसे पता लग चुका था कि वह व्यवहार में अच्छा है। पर फिर भी यदि वह उससे समय समय पर बात कर लेता तो उसे आसानी होती उसके प्रति अपने मन मे कोमल भाव जगाने में। एक दो बार शिखर ने उससे बात करनी चाही, पर उसने कोई रुचि नहीं दिखाई । हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाल दिया। अब वह उनसे दूर रहना चाहती थी।

उसका विवाह तय हो जाने का समाचार उसके मित्र परिचितों, और सभी के लिए एक ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह था। हर कोई चमत्कृत रह गया, उस कुलीन परिवार से उसका रिश्ता जुड़ जाने पर। कितने ही लोग उसकी किस्मत पर फुँक गए । नाते रिश्तेदारों में उन लोगों का कद बहुत ऊँचा हो गया। बड़ा भाई उत्कर्ष भी विवाह से चार दिन पूर्व आ गया था । आखिर इकलौती बहन का विवाह था, आता कैसे नहीं। विवाह के भव्य आयोजन का सारा प्रबंध शिखर ने, उनके परिवार की प्रतिष्ठा के अनुरूप किया । उसके लिए एक से बढ़कर एक दामी वस्त्र, आभूषण व उपहारों का ढेर लग गया। उसकी मम्मी उन सब वस्तुओं की सुरक्षा की चिंता में ही बावली हुई जा रही थीं। दिल्ली के एक शानदार फार्म हाउस में विवाह का आयोजन था। जहाँ शहर के गणमान्य राजनेताओं, व्यवसायियों तथा इष्ट मित्रो को ही आमन्त्रित किया गया था। सौंदर्य प्रसाधिका ने उसे तैयार किया तो लगा जैसे आभूषणों के वजन से उसकी देह दोहरी होती जा रही है। वह उन सब वस्तुओं से मुक्ति पाने को व्याकुल हो उठी।

प्रसिद्ध ड्रेस डिज़ाइनर संदीप खोसला के कलेक्शन से आया उसका गुलाबी रंग का लहँगा, जिसमें सोने के तारों बारीक काम, और कई तरह के स्टोन्स जड़े थे। पारम्परिक आभूषण, जिसमे नाभि तक का रानी हार, फिर वक्ष तक का हार उसके बाद कंठ से लगा हुआ हार, कमरपेटी, हाथों में कंगन, हथफूल, पैरों में सोने की पायलें, बिछिये। नाक में बड़ी सी नथ, माँग टीका, यह सब पहनकर लगा जैसे किसी अपराध के दंड के रूप में उसे वजनी हथकड़ी, बेड़ियाँ पहना दी गई हैं।

क्रमशः