उर्वशी
ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘
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वह सम्मोहित होकर उसे आपादमस्तक देखता रहा। कपोल पर छाई एक लट, साँसों का उठता गिरता स्पंदन। शौर्य की धड़कनों का शोर बढ़ता जा रहा था। उसकी देह से उठती मदिर सुगन्ध शौर्य के होश उड़ा रही थी। नशा बढ़ता ही जा रहा था। उसने उसके गालों पर अपनी उँगली फेरी। उसके स्पर्श से उर्वशी की आँख खुल गई। उसे अपने इतने करीब बैठे देखकर वह अचकचा गई। उसकी नींद काफ़ूर हो गई। शौर्य का चेहरा उसके करीब आता गया। उसके अधरों ने उसकी पलकों को छुआ। उर्वशी की आँखें बंद हो गईं। फिर उसके मस्तक, कपोलों को छूते हुए वे अधर उसके अधरों तक आये।
वह प्रथम स्पर्श उसके हृदय के स्पंदनों को तीव्र कर गया। उसने दूर होना चाहा पर तब तक दो मजबूत बाजुओं ने उसे जकड़ लिया। पागलों की तरह वह उसके होंठ, आँखें, कपोल, गले को चूमता जा रहा था। उर्वशी ने स्वयम को छुड़ाने का प्रयास किया पर शिकंजा और कस गया। जब उसने कान की लौ चुभलाई तो वह सिहर उठी। हर चुम्बन के साथ उसमें कामना का चित्कार जागता चला गया। उसने ऐसा महसूस किया जैसे वह भीषण ज्वाला में झुलस रही हो। हर स्पर्श उसकी तृष्णा को बढ़ाता जा रहा था। तभी नाइटी उसके कंधों से सरक गई और उसकी बाहें भी शौर्य की पीठ पर कस गईं। उसके रोम रोम में मधुर संगीत सा बजने लगा।
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सुबह उसकी आँख खुली तो स्वयं को शौर्य की बाहों में पाया। उसके होंठो पर एक मधुर स्मित खेल गया । उसके नारीत्व की जीत हो गई थी, पुरूष अहम, उसकी जिद, चूर चूर हो गई थी। स्त्री की शक्ति, उसका महत्व उर्वशी में गर्व का अहसास भर गया। अब वह पूर्ण स्त्री बन गई है। उसने प्रकृति का रहस्य जान लिया है। यह घर मेरा है, यह सारा वैभव, यह पुरूष, मेरा अपना है। उसने स्वयं में स्वामित्व का भाव महसूस किया। अब उसके जीवन मे छा गए बादल छँट चुके थे। पत्नी के समक्ष किसी भी दूसरी स्त्री का कोई महत्व नहीं। ग्रेसी को शौर्य के जीवन से जाना होगा। अब इसमें अधिक समय नहीं लगेगा। उसका अधिकार, पूरे परिवार का साथ, यह सब उसमें आत्मविश्वास भर रहे थे। उसने धीरे से स्वयम पर से शौर्य का हाथ हटाया और उठकर बैठ गई। नींद में मुस्कुराते हुए वह बहुत आकर्षक लग रहा था। ऊर्वशी ने झुक कर उसका मस्तक चूम लिया।
स्नान के बाद ड्रेसिंग गाउन पहनते हुए आदमकद आईने पर उसकी दृष्टि गई तो गले, कन्धे आदि पर दन्त चिन्ह नज़र आये। एक मीठी सी सिहरन सारे शरीर मे दौड़ गई। गाउन को ठीक करके वह कमरे में आ गई। देखा शौर्य जाग चुका था और हैंगओवर से परेशान दिख रहा था। आहट सुनकर उसने उर्वशी की ओर देखा तो रात्रि की स्मृतियाँ मस्तिष्क में कौंध गईं। तभी वह मुस्कुरा दी, और न चाहते हुए भी शौर्य के होंठो पर मुस्कान खेल गई
" उर्वशी प्लीज़, थोड़ा गर्म पानी देंगी आप ?"
" ऑफकोर्स " कहते हुए वह रसोई में चली गई। गुनगुनाते हुए उसने एक तरफ पानी गर्म करने के लिए चढ़ाया और दूसरी तरफ अपने लिए कॉफी चढ़ा दी। गर्म पानी मे नींबू डालकर उसने शौर्य को दिया और स्वयं कॉफी पीने लगी। थोड़ी देर बाद देखा तो लगा कि शायद अब भी शौर्य का सिर भारी है।
" सर दबा दूँ ?"
पहले वह थोड़ा हिचकिचाया फिर उसकी गोद मे सर रखकर लेट गया। वह उसके सिर में मसाज करती रही। अब काफी आराम महसूस हो रहा था।
" कुछ ... बुरा…. तो नहीं लगा ?" उसने प्रश्न किया
" बुरा ? किस बात का ?" उर्वशी ने पूछा।
" वो हम थोड़ा …. वैसे हम ओकेज़नली ही वाइन लेते हैं। वह भी बहुत कम मात्रा में, पर कल थोड़ा …."
" कोई बात नहीं। " उर्वशी ने यह कहकर उसके दिमाग पर जो थोड़ा सा बोझ रखा था, उतार दिया। वह आँख बंद करके लेटा रहा। उसकी उंगलियों के कोमल स्पर्श, शरीर से उठती भीनी भीनी सुगन्ध, शौर्य को पुनः बेचैन करने लगी। वह खुद पर नियंत्रण रखने की कोशिश करने लगा। पिछली रात के दृश्य पुनः उसके मस्तिष्क में हलचल मचाने लगे। दिमाग पर दिल हावी होने लगा। उसने आँखें खोलकर उर्वशी की ओर देखा।
उसके गीले केशों में तौलिया बंधा था। इस समय भी वह ड्रेसिंग गाउन में ही थी। गले के खुले हुए हिस्से में प्रणय चिन्ह नज़र आ रहा था। उसका सद्यस्नाता सौंदर्य उसे वशीभूत करने लगा। तभी हाथ बढ़ाकर उसने तौलिया खोल दिया और उसके गीले बाल कन्धे पर बिखर गए। शौर्य ने उसके दोनों हाथ थाम लिए और होंठो पर ले जाकर उन पर चुम्बन जड़ दिया। उर्वशी का चेहरा गुलाबी हो उठा। गीले केश, शैम्पू, जैल और डियो की मिली जुली महक उसे फिर से पागल करने लगी। उसने ड्रेसिंग गाउन की बेल्ट खोल दी। गाउन उसके कंधों से फिसल गया। शौर्य ने उसके गले मे बाहें डालकर उसे नीचे झुका लिया और उसके अधरों पर अपने आतुर अधर रख दिये।
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ऐश्वर्या की बी एम डब्ल्यू सर्विसिंग के लिए गई थी तो वह शिखर की मर्सडीज लेकर किसी काम से चली गई। उसने पति से कह दिया था कि आज वह शौर्य के साथ ऑफिस चले जाएं। शौर्य समय का बहुत पाबन्द था। अतः वह ठीक समय पर तैयार होकर उसके बैडरूम के पास आये तो चौंक गए। अमूमन वहाँ छाई रहने वाली नीरवता उन दोनों के खिलखिलाने के स्वर से आज भंग हो गई थी। उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही न हुआ। आहिस्ता से उन्होंने बैडरूम के दरवाजे पर दस्तक दी। शौर्य की आज्ञा मिलने पर वह अंदर गए तो देखा वह अब भी बिस्तर पर पड़ा था। देखकर लग रहा था कि वह अब तक बिस्तर से उठा नहीं है। उर्वशी उनकी ओर पीठ किये वार्डरोब से कपड़े निकाल रही थी।
" अरे ! आज आप उठे नहीं ?"
" जी भाई सा, आज तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही। हम सोच रहे हैं कि आज ऑफिस न जाएं। " उन्हें देखकर वह उठकर बैठ गया औऱ आलस भरे स्वर में बोला।
" ओह, ओके, आराम करिये। "
" कोई काम था क्या ?"
" कुछ खास नहीं, बस ऐश्वर्या हमारी गाड़ी लेकर निकल गई हैं तो सोचा हम आपके साथ चले जाएं। "
" कोई बात नहीं, आप हमारी गाड़ी ले जाइए। रॉबर्ट रेडी होगा। हम उसे मना करना भूल गए थे। " कहते हुए वह ड्राइवर को फोन लगाने लगा, ताकि वह उसका इंतजार न करे।
" आपको कहीं जाना तो नहीं ?"
" नहीं, अगर जाना भी हुआ तो हम दूसरी गाड़ी से चले जाएंगे। आप आराम से ले जाइए। " शौर्य ने जवाब दिया। वह गाड़ी के मामले में ज्यादा क्रेजी नहीं था। अपनी गाड़ी न मिले तो किसी भी गाड़ी में चला जाता था। पर शिखर को हर किसी गाड़ी में बैठना नहीं भाता था। वह चुनिंदा, लक्ज़री गाड़ियों में ही बैठना पसन्द करते थे।
तभी शौर्य के कपड़े वार्डरोब में से निकाल कर उर्वशी सामने मुड़ी। शिखर की मुग्ध दृष्टि उस पर पड़ी। इस समय वह लॉन्ग स्कर्ट व खूबसूरत क्रॉप टॉप में थी। बाल खुले हुए कन्धे पर लहरा रहे थे। बिना किसी प्रसाधन के उसका सादगी भरा सौंदर्य उन्हें खींचने लगा। तभी उनकी निगाह उसके गले पर बने प्रणय चिन्ह पर अटक गई। अगले ही पल आँखें फेरकर वह कमरे से बाहर निकल गए। बाहर आकर देखा तो स्लेटी रंग की लैंड रोवर के पास खड़ा रॉबर्ट उनका इंतजार कर रहा था। उसने फुर्ती से पिछली सीट का दरवाजा खोला। शिखर गाड़ी में बैठ गए। अगली सीट में ड्राइवर के साथ उनका अंगरक्षक संजीव बैठ गया और गाड़ी आगे बढ़ गई। सीट की पुश्त पर उन्होंने हाथ फैलाए तो याद आया कि उर्वशी अपने मायके से आते हुए इसी स्थान पर बैठी थी।अप्रत्याशित रूप से उनके हाथ गाड़ी की पुस्त को सहलाने लगे। उन्हें अब भी लगा कि वह उनके साथ बैठी है। तभी उसके गले पर बना चिन्ह उन्हें याद आ गया,और वह बेचैन हो उठे। उन्होंने मन मे ईर्ष्या जैसी भावना महसूस की।
जब उर्वशी के पिता ने उन्हें फोन करके बताया था कि शौर्य ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया है, इसलिए अब वह वापस नहीं आना चाहती तो वह व्याकुल हो उठे। कितनी मुश्किल से तो वह उस घर मे आयी थी। जहाँ कम से कम प्रतिदिन वह उस पर एक दृष्टि डाल सकते थे। पर शौर्य की मूर्खता से वह नाराज होकर चली गई थी। उन्हें महसूस हुआ कि जैसे कोई अनमोल निधि उनके पास से खो गई है। वह व्याकुल हो उठे। शौर्य पर उन्हें बहुत क्रोध आया। जी चाहा कि कसकर उसे तमाचे लगाएं। मूर्ख कहीं का, उसे अहसास ही नहीं कि कैसा रत्न उसे मिला था जिसे वह अपनी बेवकूफी से गंवा बैठा है। यदि वह वापस नहीं आयी तो ? उनका सारा किया धरा चौपट हो गया। एक छोटी सी खुशी मिली थी, वह भी खो गई। आखिर उनका गुनाह क्या है ? बस यही तो चाहते हैं कि वह उनकी आँखों के सामने रहे। क्या इतनी सी इच्छा रखने का भी उन्हें हक़ नहीं ?
उन्होंने छोटे भाई को बड़ी मुश्किल से उसके साथ थोड़ा समय गुज़ारने को राजी किया। हर वो प्रयत्न किया जिससे उनदोनो के मध्य दूरी खत्म हो जाए। आज जब पता चला कि वह दूरी समाप्त हो गई है तो वह खुश क्यों नही हो रहे ? उन्हें ईर्ष्या क्यों महसूस हो रही है ? उस पर उनका कोई अधिकार नहीं। फिर यह सब क्यों ?
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अब उर्वशी व शौर्य के मध्य सम्बन्ध सामान्य दम्पति जैसे पनप गए थे। उसके माता पिता व भाई की चिंता दूर हो गई थी। उसकी अभिन्न सखियाँ मिताली व निधि बहुत खुश थीं। खासतौर पर निधि बहुत सन्तुष्ट थी कि उसका सुझाव उसकी सखी का जीवन सँवार गया। माँ सा भी बहुत खुश थीं कि उनके छोटे बेटे की गृहस्थी भी बस गई। ऐश्वर्या को इन बातों की कोई ख़बर न थी। वह वैसे भी उर्वशी को स्वयं से हेय समझती थी। क्योंकि वह उसकी तरह कुलीन खानदान की नहीं थी। जब सब उसके सौंदर्य की प्रशंसा करते तो ऐश्वर्या के भीतर हीन भावना जाग जाती। जिसका बदला वह अक्सर उसके परिवार पर छींटाकसी करके लेती थी। उसके दोनों बच्चे भी अपनी चाची के दीवाने थे। शिखर के साथ उसके सम्बन्ध बहुत बासी और उबाऊ हो गए थे। उन्हें पत्नी से ज्यादा रोचक अपना ऑफिस लगता था। उसकी बातें उन्हें ज़रा भी नहीं सुहाती थीं। दोनो पूरब और पश्चिम थे। अब उर्वशी के घर मे आने के बाद तो उन्हें पत्नी से और ज्यादा अरुचि हो गई थी।
उनदोनो के बीच सब कुछ सामान्य होते देखकर शिखर ने उन्हें पन्द्रह दिन के हनीमून पैकेज पर यू एस भेज दिया। दिन रात का साथ, एकांत और स्वछंद जीवन, उनमे काफी घनिष्टता कर गया। उनके सुखद दाम्पत्य की शुरूआत हो चुकी थी। हर कोई इस बात से खुश था, बस अगर कोई खुश नहीं था तो ग्रेसी । उन दिनों जब शौर्य उसके प्रेम में पड़ा तो वह गर्व से भर उठी कि एक ऊँचे घराने का युवक उसके लिए दीवाना हो गया है। खूब मुलाकाते होने लगी, कीमती उपहार, घूमना फिरना । सब कुछ अच्छा चल रहा था कि तभी उसके बड़े भाई तक यह सूचना पहुँच गई और ग्रेसी का तबादला दूसरी शाखा में कर दिया गया। पर शौर्य ने हार नहीं मानी, उसने अपने रिश्ते में कोई फ़र्क नही पड़ने दिया ।
क्रमशः