Urvashi - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

उर्वशी - 10

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

10

तभी सुना कि उसका विवाह निश्चित हो गया है। यह खबर ग्रेसी को बहुत भारी लगी। उसे यकीन था कि शौर्य नहीं मानेगा, और सचमुच वह मानसिक रूप से इस विवाह के लिए तैयार नहीं हो पाया। उसने गृहत्याग का निर्णय लिया। वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार था। पर ग्रेसी ने ऐसा कब चाहा था। शौर्य के गृहत्याग का अर्थ था सारे ऐश्वर्य का भी परित्याग। ऐसा ग्रेसी ने कब चाहा था ? वह तो चाहती थी कि पूरे अधिकार के साथ राणा परिवार की बहु बनकर जाए और ऐश आराम की ज़िंदगी जिये। इस कदम से उसे कोई लाभ न था।

उसने शौर्य से उसके परिवार की मान प्रतिष्ठा की बात की और उसे उनके आगे समर्पण के लिए बोल दिया। वह उसके त्याग को देखकर भावुक हो उठा, और उससे कभी दूर न होने का इरादा कर लिया। विवाह हो गया, यह जानकर ग्रेसी को बहुत सुकून मिला कि उसने अपनी पत्नी को अपनाने से इनकार कर दिया है। वह फूली न समाई। उसे विश्वास हो गया कि यह स्थिति उसकी पत्नी ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं कर पाएगी और उसे छोड़ जाएगी। बस फिर तो शौर्य पर उसका ही अधिकार रह जाएगा।

परन्तु उसके परिवार ने हिम्मत न हारी और पति पत्नी को कुछ समय साथ गुज़ारने के लिए जोर जबरदस्ती करने लगे। फिर अचानक वह बदलने लगा। जहाँ पहले एक दिन भी उसे देखे बिना नहीं रह पाता था अब कई कई दिन निकल जाते। शिकायत करने पर बहाने बनाने लगा। उसपर यह हनीमून ट्रिप, ग्रेसी के अरमानों पर बिजली बनकर गिरी। उसे शौर्य अपने हाथों से फिसलता हुआ सा लगा। इन पन्द्रह दिनों में वह इतना मस्त था कि एक बार भी उसे फोन न किया। वह सोच विचार में पड़ी थी कि अब क्या किया जाए ? कैसे उसे वापस लाया जाए ?

खुश शिखर भी नहीं थे। एक तो विवाह तय होने के बाद से उर्वशी उनसे दूर रहती थी। वह उनसे बात करना तक गवारा नहीं करती थी। सामने पड़ जाने पर उनकी ओर दृष्टि उठाकर देखती तक न थी। उसकी इस उपेक्षा से वह बहुत आहत होते। उस पर पति से उसकी नजदीकी उन्हें और परेशान कर रही थी। वह समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर वह चाहते क्या हैं ? एक तरफ उसकी खुशी की चाहत, दूसरी तरफ उसकी खुशी से ही कष्ट। बड़ी मुश्किल से यह पन्द्रह दिन गुज़रे और वह दोनो घर लौट आये। इस प्रवास ने उन पर मानो जादू की छड़ी फेर दी थी। दोनो के ही खिले निखरे चेहरे, छलक छलक उठता उल्लास, यह सब देखकर शिखर का मन बुझ गया । उन्हें सब कुछ बहुत अजीब, अनचाहा सा लगा।

ग्रेसी को यह बात बहुत आहत कर गयी। उसे लगा कि अब शौर्य को और छूट देने का अर्थ होगा हमेशा के लिए उसे खो देना। अब वह शौर्य पर शिकंजा कसने लगी। जब देखो तब उसे ताने देती रहती, की वह बहुत बदल गया है। अब वह उसका ज्यादा समय चाहने लगी थी। उससे उम्मीद करने लगी थी कि वह उसे पहले की तरह ही पैम्पर करे और पत्नी से दूर रहे। वह अब बहुत असुरक्षित महसूस कर रही थी। कहीं ऐसा न हो कि वह उसे छोड़ दे और सारा प्रेम पत्नी पर लुटाने लगे।

दूसरी तरफ शौर्य तेजी से पत्नी की ओर खिंच रहा था। इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण उसका सौंदर्य व दैहिक आकर्षण भी था, पर जब भी अकेला होता तो उसका अंतर्मन उसे प्रताड़ित करने लगता। उसे लगता जैसे वह ग्रेसी के साथ बेईमानी कर रहा है। वह ग्रेसी को कभी छोड़ना नहीं चाहता था। उसका मन यह मानने को तैयार नहीं था कि वह अब अपनी प्रेमिका से दूर हो गया है। वह अब भी वफादार प्रेमी का तमगा लगाए रखना चाहता था। पर अब उसकी मुश्किलें बढ़ रही थीं।

अब ग्रेसी की माँग थी कि वह उसके साथ ज्यादा समय बिताए। वह दोनो कुछ दिनों को कहीं घूमकर आयें।

शौर्य संकट में पड़ गया। वह न तो जाना चाहता था और न ही उसे दुख पहुँचाना चाहता था। अगर जाएगा तो घरवालों से क्या कहकर निकलेगा ? शिखर के स्रोतों से वह अनजान नहीं था। उन्हें सब पता लग जाएगा कि वह कब, कहाँ और किसके साथ गया। अब वह रिस्क लेने की स्थिति में नहीं था। उसे समझ मे न आ रहा था कि वह क्या करे। उधर ग्रेसी कुछ समझने को तैयार ही न थी। वह अपनी जिद पर अड़ी थी। अब अक्सर उन दोनों के बीच बहस हो जाती।

इन विवादों का असर अब उसके स्वभाव में पड़ने लगा। उसका दिमाग कहता कि वह इस प्रसंग को यहीं समाप्त कर दे और पत्नी के साथ शांतिपूर्ण ढंग से जीवन बिताए। लेकिन उसका अहम यह गवारा नही करता। उसे लगता कि यह उसकी हार होगी। उसने तो बड़ी दृढ़ता से कहा था कि उसके जीवन में ग्रेसी की जगह कोई नहीं ले सकता। अब वह कैसे, कल की आयी हुई एक स्त्री के सम्मुख झुक जाए।

ग्रेसी उस पर बेवफाई का इल्जाम लगा रही थी। कह रही थी कि उसने उसका जीवन खराब किया है। जब लोग उसकी किस्मत को सराहते कि उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली है तो कई बार वह चिढ़ जाता। कई बार उसे लगता कि अगर कोई दोषी है तो बस उर्वशी। यदि वह इतनी सुंदर न होती तो शायद उसका विवाह भी अभी कुछ समय न होता। कई बार वह सोचता कि वह किस झंझट में पड़ गया है। काश ग्रेसी न होती तो जीवन मे कोई उलझन न थी।

उसकी जिद से विवश होकर शौर्य ने अपने एक मित्र के रिसॉर्ट में दो दिन ग्रेसी के साथ गुज़ारने की योजना बनाई। हुआ यह कि उसका मित्र अभय अपने रिसॉर्ट में एक पार्टी कर रहा था। पार्टी की सूचना सुनकर उसके दिमाग में ग्रेसी के साथ समय गुज़ारने का आईडिया आया। उसने अभय को विश्वास में लिया और पार्टी के बाद अगले दो दिन अपने वहाँ रहने की बात की। अभय मान गया। इसके पश्चात शौर्य ने भाई और माँ के कान तक यह खबर पहुँचाई की वह अभय की पार्टी में जा रहा है। इसके बाद दो दिन अभय के साथ वहीं रुकेगा । अभय किसी समस्या में है और उसका भावात्मक सहयोग चाहता है। किसी ने कोई ऐतराज़ नहीं किया।

आखिर वह समय आ ही गया और शौर्य अपना बैग पैक करके अभय के रिसॉर्ट में पहुँच गया। पार्टी बहुत शानदार रही थी। रात में ग्रेसी भी वहाँ आ गई। अब पूरे दो दिन उनके थे, जो बहुत क़वायद के बाद आये थे। ग्रेसी का उत्साह छलका पड़ रहा था। पर शौर्य के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे और मुस्कान नकली लग रही थी। कई बार वह गुमसुम हो जाता। अक्सर न चाहते हुए भी एकांत पलों में उसका शरीर ग्रेसी के पास होता पर मन उर्वशी के पास भटक रहा होता।

अब ग्रेसी उसे बहुत साधारण लगने लगी थी। उसे स्वयं पर हैरानी हो रही थी कि वह क्या देखकर उसका इतना दीवाना हो गया था ? उसे धीरे धीरे यह भी महसूस होने लगा था कि ग्रेसी ईर्ष्यालु व लालची है। वह उससे सिर्फ उसकी अतुल सम्पत्ति देखकर जुड़ी है। अपने इस बदलाव पर वह स्वयं भी आश्चर्य चकित रह गया। उसने कल्पना भी न की थी, की कभी ग्रेसी के साथ होते हुए वह उसकी कमियाँ ढुँढ रहा होगा। न ही कभी यह सोचा था कि वह दूसरे नज़रिए से सारी वस्तुस्थिति पर गौर करेगा। सच तो यह था कि अब वह दोहरी उलझन में फ़ँस गया था। न वह ग्रेसी को छोड़ पा रहा था और न ही उर्वशी से दूर रह पा रहा था।

* * * * *

वह लौटकर आया तो भी उसे वह खुशी महसूस नही हुई जो होनी चाहिए थी। भीतर ही भीतर वह उदास था। उसके भीतर का अपराधी मन उसे ताड़ना दे रहा था, उसे लग रहा था कि उसने बहुत गलत किया है। उर्वशी जैसे हुलसकर उसके पास आयी और लिपट गई, उसने सैकड़ों बार खुद को कोसा। उसका बन्धन क्षीण ही रहा। उर्वशी ने सवालिया निगाह से उसे देखा तो वह नज़र चुराता हुआ बाथरूम में चला गया। आईने के सामने खड़ा हुआ स्वयं को वह देर तक देखता रहा, फिर गहरे सोच में डूब गया।

" तबियत तो ठीक है आपकी ? " उसे बाथरूम से निकलता देखकर उर्वशी ने पूछा।

" थोड़ी गड़बड़ लग रही है, सरदर्द भी है। " उसने सवाल जवाब से बचने के लिए कह दिया।

" लेट जाइए, मैं सर दबा देती हूँ। "

" रहने दीजिए, हम थोड़ा सोना चाहते हैं। " उसका स्वर रूखा हो गया था। उर्वशी हैरानी से उसे देखती रही फिर दूसरे कमरे में जाकर बैठ गई। उसे वह बदला हुआ लग रहा था। ऐसा क्या हो गया जो इतना बदलाव आ गया उसमें ? वह देर तक सोचती रही। इसके बाद दो तीन दिन तक वह उससे नज़र बचाता रहा। कई बार फोन आने पर उठकर बाहर भी चला जाता। उर्वशी हैरान थी कि यह सब क्या हो रहा है। पहले तो वह कभी यह छुपाने की कोशिश नहीं करता था कि किससे और क्या बात हो रही है। अब वह अक्सर क्रोध में भी दिख जाता। बहुत बार देरी से भी लौटता। जब भी उसने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो वह बात बदल देता।

अगले दिन उर्वशी का जन्मदिन था। माँ सा ने उसे आदेश दिया था कि वह उस दिन ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर स्नान करके तैयार हो जाए। क्योंकि माँ सा ने उसकी मंगल कामना हेतु कुलदेवी कालका माता की विशेष पूजा उनके मंदिर में रखवाई है और शाम को शिखर के द्वारा घर मे एक शानदार पार्टी का आयोजन किया गया था । उसी रात शौर्य देर से घर लौटा और काफ़ी परेशान दिख रहा था। उसने कोई बात न की और कपड़े बदलकर सोने लगा। उर्वशी बस उसे देखती रही। उस समय उसने मौन रहना ही उचित समझा । वह काफ़ी देर तक करवटें बदलता रहा। जब उससे न रहा गया तो पूछ ही बैठी।

" क्या बात है, आजकल काफी परेशान दिखते हैं ? अक्सर देर से भी लौटते हैं । "

" कुछ खास नहीं । "

" जबसे आप अभय की पार्टी से लौटे हैं, तबसे ही आप में बदलाव दिख रहा है। "

" नहीं, बस थोड़ी ऑफिस की परेशानी है। सब ठीक हो जाएगा, आप परेशान न हों । " कहते हुए उसने बात टालने की कोशिश की।

" किस तरह की परेशानी है ?" वह अब भी उलझन में थी।

" घर मे ऑफिस की बातें करना मना है, और ये समय इन बेकार बातों में बर्बाद करने का नहीं है। " कहकर उसने उसे बाहों में जकड़ लिया और उसके हाथ उसकी देह पर फिसलने लगे। वह समझ गई कि कुछ ऐसा है जिसे वह उससे छुपाना चाह रहा है ।

सुबह वह जल्दी उठी और स्नान करके तैयार हो गई। देखा शौर्य अभी गहरी नींद में है। उसकी नींद गहरी देखकर उसे उठाने का दिल नहीं किया। वह अकेली ही माँ सा के पास आ गई। देखा वह तैयार हो चुकी हैं। उसने उनके चरणस्पर्श करके उनका आशीर्वाद लिया। उन्होंने इधर उधर देखा और फिर उसकी ओर मुड़ीं

" शौर्य कहाँ हैं ?"

" जी वो तो सो रहे हैं माँ सा। "

" पर उन्हें आपके साथ आना चाहिए था उर्वशी, पत्नी के जन्मदिन की विशेष पूजा में कम से कम पति को तो अवश्य शामिल होना चाहिए। "

" जी, रात में काफी लेट आये थे, फिर किसी परेशानी मे लग रहे थे। तो बहुत देर में सोए हैं। इसलिए मेरा उठाने का दिल नहीं हुआ। "

" हूँ, चलिये फिर हम लोग चलते हैं। " कहकर वह बाहर की ओर चल दीं। उर्वशी भी उनके पीछे चलने लगी। तभी शिखर भी आते हुए नज़र आये। वह भी तैयार दिख रहे थे। उन्होंने भी माँ के चरणस्पर्श किये।

" खुश रहिये, आप भी जल्दी उठ गए ?" माँ सा ने उनसे प्रश्न किया।

" जी माँ सा, हमारे यहाँ उर्वशी के पहले जन्मदिन की पूजा है। जल्दी उठना तो बनता था।" फिर उन्होंने शौर्य को न देखकर उसके विषय मे पूछा। उर्वशी ने उसके न होने का कारण पुनः बताया। पर माँ सा व शिखर के चेहरे के भाव देखकर लगा कि उनदोनो को उसका सोते रहना अच्छा नहीं लगा है।

क्रमशः

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