एपीसोड ---७
विकेश अपने उसी ढीठ अंदाज़ में उसके दरवाज़े आ खड़ा हुआ था , “भाभीजी मैं ऑफ़िस से सीधा चला आ रहा हूँ । भाई साहब के प्रमोशन की खबर मैं सबसे पहले आपको देना चाहता था।”
“बैठिए ।” वह अपने रोष को नियंत्रित नहीं कर पा रही थी ।
“आप को बहुत बहुत बधाई !”
“धन्यवाद ।” उसने पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा था ।
“वैसे भाई साहब का प्रमोशन हो ही गया चाहे दो वर्ष बाद ही क्यों नहीं हुआ ।”
“पैसे के हिसाब से हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ा । अभय इस पोस्ट पर ऑफ़िशियेट करते रहे हैं . तो दो वर्ष के इन्क्रीमेंट मिल ही जायेंगे ।”
“हाँ, फिर भी...।”
“फिर भी क्या....?”
अपने को अभय से श्रेष्ठ साबित करने आया विकेश अपना वार ख़ाली जाते देख खिसिया गया था। विकेश समिधा के तेवर देखकर खिसियाया उठ खड़ा हुआ था, “एक दिन प्रतिमा के साथ मिठाई खाने आऊँगा ।”
“ज़रूर आना । आपके बेटे साहब कैसे हैं ? उनकी दूसरी कम्पनी कब ला रहे हैं ?”
“प्रतिमा की नौकरी के कारण यही पल जाये वही बहुत है । जब नर्सरी में जाना शुरू करेगा । तब अम्मा बाऊजी को आराम होगा ।”
“अच्छा है, प्रतिमा के साथ ज़रूर आइए ।”
विकेश ने नज़रे चुराते हुए कहा था, “जरुर ।”
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दीपावली की छुट्टियों से पहले अभय विकेश का प्रस्ताव लेकर आये, “देखो विकेश कितने सालों से पीछे पड़ा है कि साल में एक बार तो हम दोनों फ़ेमिलीज़ को किसी टूरिस्ट प्लेस पर घूमने चलना चाहिए । इस बार वह गोआ चलने की कह रहा है ।”
वह झुंझला उठी थीं, “देखो चीप टायप के लोग मुझे पसंद नहीं है । छल बल से अपना प्रमोशन करवा लिया । तुम्हारा प्रमोशन होने पर मेरे पास आकर मुझे भड़काने की कोशिश की कि वह तुमसे कितना लायक है ।”
“ये तो ‘ऑफिशियल मेटर्स’ व सोशल लाइफ़ अलग होती हैं ।”
“अपने स्वार्थ के लिए जिसने एक औरत के ‘करेक्टर’ पर झूठा इलज़ाम लगा दिया है मैं ऐसे व्यक्ति के साथ घूमने जाऊँगी ? कल को मेरे बारे में भी उल्टा सीधा बोल सकता है ।”
“तुम शक्की बहुत हो ।”
“शक तो झूठा भी हो सकता है । ये बातें तो तुम्हारे सामने सब स्पष्ट हैं । पता नहीं तुम क्यों नहीं इससे दूर रह पाते हो ?”
प्रतिमा के प्यार के व्यवहार के कारण वह यह रिश्ता पूरी तरह तोड़ नहीं पाती थी । जब भी वे उनके घर जाती उनका बेटा शिरीष घर पर नहीं होता । विकेश की माँ शिकायत करती रहती थीं, “बहुरानी!क्या बतायें जब से ये स्कूल जाने लगा है तब से बहुत शोर करता है ।”
समिधा की हँसी निकल जाती थी, “माँ जी ! अक्षत भी स्कूल जाने से ऐसे ही शैतान हो गया था ।”
“शिरीष तो बहुरानी के ऑफ़िस जाते ही खेलने चला जाता है । दोपहर के स्कूल में जल्दी-जल्दी तैयार होकर भागेगा । स्कूल से लौटकर बस्ता ये पटका और शिरीष बाहर ये गये, वो गये ।”
रोली व अक्षत बिना शिरीष के बैठे-बैठे उकता गये थे । अक्षत ने उठकर समिधा से पूछा, “मॉम । मैं चाची के पास जाऊँ ।”
रोली भी उठ गई, “भैया । मैं भी तेरे साथ चलती हूँ ।”
अक्षत की रसोई में से आवाज आई, “चाची जी! आप क्या बना रही हैं ?”
अंदर से प्रतिमा की आवाज आई, “हमारे अक्षत रोली बहुत दिनों के बाद चाची के घर आये हैं मैं उनके लिए ब्रेड पकौड़ा और पोहे बना रही हूँ ।”
“थैक्यू चाची जी !” दोनों बच्चों ने एक साथ कहा ।
विकेश अभय के साथ गप्पों में लगा हुआ था, “पता है डॉ. मिश्रा साइकिक हो गये हैं ।”
अभय चौंक पड़े थे, “कैसे ?”
“कभी भी रात में उठकर बाहर चले जाते हैं । उनकी वाईफ़ इतनी परेशान हैं । कभी किसी को उन्हें ढूँढ़ने भेजती है, कभी किसी को ।”
“ऐसा कैसे हो गया ?”
“क्या बतायें ? डॉक्टर भाभी भी तंग आ गई हैं । दिन में क्लीनिक में काम करो रात में उन्हें ढूँढ़ते रहो । एक बार मेरे पास रात को दो बजे उनका फ़ोन आया । मैं उन्हें ढूँढ़ने निकला तो लाल बाग की एक बेंच पर बैठे-बैठे अपने आपसे ही बातें कर रहे थे ।”
“एक दिन मैं व समिधा उन्हें देख आयेंगे ।”
“भैया ! जाना मत । डॉक्टर भाभी तो इस बात को सबसे बहुत छिपाकर रखती है ।” वह समिधा की तरफ़ मुंह घुमाकर बोला ,``आजकल तो मुझे नींद नहीं आती। साइड बिज़नेस में मुझे कभी बीस हज़ार व पचास हज़ार के चैक मिलते हैं ,वो ही सपने में आते रहते हैं। ``
जब तक प्रतिमा चाय नाश्ते की ट्रे लेकर आ गई थी। चाची के साथ अपने नन्हे हाथों में सॉस की बोतल थामे रोली भी आ गई थी। उस ने पूछा था ,``ये चैक क्या होता है चाचा जी !?``
``इस काग़ज़ के टुकड़े को बैंक में में ले जाओ तो वहां से रूपये मिल जाते हैं। अपनी रोली की शादी में मैं एक बड़ा चैक दूंगा। ``
उसकी इस बात पर हंस पड़े थे।
“ओ ऽ ऽ....।”
समिधा उलझन में है डॉ. मिश्रा के विषय में विकेश सच कह रहा है या नहीं । हदें तोड़ना उसकी फ़ितरत में हैं । रोली व शिरीष के नर्सरी में एडमिशन के लिए अक्षत के स्कूल दोनों परिवार पहुँचे थे । बच्चों का इन्टर्व्यू दिलवाने आये माँ बाप धीरे-धीरे बरामदे में इकट्ठे हो रहे थे । रंग बिरंगी पोशाकों में सजे छोटे-छोटे बच्चे शोर करने की कोशिश करते तो उनके मम्मी या पापा आँखों से इशारा करके चुप बिठा देते ।
कोई माँ फुसफुसाती सी अपने बेटे से पूछती, “ वॉट इज़ योर नेम ?”
“माई नेम इज़ पापा ।” बच्चा शैतानी से हँसने लगता ।
“वॉट ?”
तभी वहाँ खाकी वर्दी व खाकी टोपी पहने एक चपरासी आया, “आप लोगों से ‘रिक्वेस्ट’ है आप लोग व आपके बच्चे दाँयी तरफ के हॉल की तरफ नहीं जाँये । उधर टीचर्स मीटिंग चल रही है ।”
एक-एक बच्चे को उसके माता-पिता के साथ इन्टर्व्यू के लिए बुलाया जा रहा था । विकेश खड़ा हो गया । अभय से बोला था, “अपने बच्चों का इन्टर्व्यू होते होते कम से कम एक घंटा और लगेगा चलो देख आये टीचर्स मीटिंग कैसी हो रही है । ”
अभय ने आश्चर्य चकित होकर कहा था, “अभी-अभी तो चपरासी हॉल की तरफ़ जाने की मना करके गया है । ये मिशनरी स्कूल ‘डिसिप्लिनके मामले में ‘स्ट्रिक्` होते हे ।”
“होते होंगे ।” वह भौंडी लापरवाही से बोला था, “डर-डर कर जीने से क्या फायदा ?”
“डरने में और अनुशासन मानने में फर्क होता है ।” समिधा बोले बिना नहीं रही थी ।
“आप लोग अनुशासन मानिए । मैं तो चला ।” और वह जाकर हॉल की खिड़की से मीटिंग का जायज़ा लेने लगा था ।
थोडी देर बाद चपरासी प्रिंसिपल के कमरे से एक ट्रे में से खाली गिलास लेकर निकला । उसने विकेश को खिड़की से झाँकते हुए देखा । उसने ट्रे मेज पर रखी और विकेश की तरफ़ चल दिया ।
विकेश खिसियाये चेहरे से उसके पास लौट आया था, “साला ! अकड़ ऐसे रहा था जैसे वह ही प्रिंसीपल है ।”
“ग़लती तुम्हारी है जब वह मना कर गया था तो तुम्हें उधर नहीं जाना चाहिए था ।”
“वो अकड़ कर मेरा नाम पूछ रहा था ।”
पंद्रह दिन बाद ही अक्षत ने लौटकर उसे बताया था, “मम्मी! मम्मी! नर्सरी के एडमिशन की लिस्ट स्कूल के नोटिसबोर्ड पर लग गई है । रोली को एडमिशन मिल गया है । शिरीष का उसमें नाम नहीं है । अब चाचा को बहुत बुरा लगेगा न ।”
प्रतिमा ने जैसे ही ट्रे मेज पर रखी समिधा की तन्द्रा भंग हो गई ,वह वर्तमान में लौट आई,।
प्रतिमा मुस्कराते हुए बोली, “कहाँ खो गई थीं भाभी जी ।
“बस ऐसे ही ।”
रोली ने उसे इठलाते हुए बताया, “मम्मी ! देखो न चाची ने हमारे लिए ब्रैड पकौड़ा बनाया है ।”
“ओ हो! तभी चाची के घर आने की बात करें तो फ़टाक से तैयार हो जाती है ।”
अक्षत ने भी फूलते हुए कहा, “चाचा, चाची हमें प्यार भी कितना करते हैं ।”
दूसरे दिन ही समिधा ने अपनी डॉक्टर मित्र अनिला को फ़ोन मिलाया, “यार! सुन, सुना है डॉक्टर मिश्रा साइकिक हो रहे हैं । अभय के एक फ्रेन्ड के यहाँ दोनों अक्सर मिलते रहते हैं । बहुत खुशमिजाज ‘कपल’ है । ये सुनकर बुरा लगा ।”
“वॉट्स रबिश! महींनों से डॉक्टर मिश्रा की ड्यूटी मेरे साथ है । यदि वे साइकिक होते तो सबसे पहले मुझे पता लगता ।”
“तो वह साइकिक नहीं हो रहे ?”
“वह बिलकुल ठीक है । ये फ़ालतू अफ़वाह किस बदमाश ने उड़ाई है ?”
विकेश की किस किस बात से वह नफ़रत करे ? हर समय तम्बाकू का पाउच खोलकर तम्बाकू खाता फिरता है, वह ज़हर खाये तो खाये उसे अभय के लिए भय लगता है । कभी उन्हें ये लत न लग जाये । उसे आश्चर्य ये होता है सुयश जैसा इंजीनियर उसे भाई मानता है शायद इसलिए भी उसकी नौकरी की पहली पोस्टिंग है । इस शहर में नया है । विकेश ने उसकी रहने की व्यवस्था की है, सहारा दिया है ।
एक दिन शाम को विकेश उनके घर अभय के साथ चला आया था । थोड़ी देर बाद ही उसने अपनी पेंट की जेब से तम्बाकू पाउच निकाला और उसे खोलकर तम्बाकू अपने मुँह में डाल लिया । समिधा गुस्से में भरी बैठी थी । अंदर जाकर एक पत्रिका उठा लाई व उसे खोलकर एक लेख उसे दिखाने लगी, “ये देखिए तम्बाकू खाने से क्या हालत होती है....ये देखिए कटी हुई जीभ, कटा हुआ गाल ।”
विकेश का चेहरा स्याह व अपमानित हो गया था, “कितने लोग तम्बाकू खाते हैं उन्हें तो कुछ नहीं होता ।”
“जिनको कुछ हो जाता है, उनकी संख्या अधिक है । मेरे भाई को भी ये लत लग गई है, उसे पत्र डालकर मैं उसकी लत छुडाने की कोशिश कर रही हूँ ।”
“इस तरह से तो सब आपके दुश्मन हो जायेंगे । आपके घर आना बंद कर देंगे ।”
विकेश के क्रोधित चेहरे को देखकर वह कुछ जवाब नहीं दे पाई थी । उसका पहला अनुभव था किसी ‘एडिक्टेड’ व्यक्ति को आगाह करने का । क्या ऐसे लोगों को रोकने का मतलब उनसे दुश्मनी मोल लेने जैसा होता है चाहे वह ‘एडिक्शन’ छोटा मोटा ही क्यों न हो ?
क्या इसी बात का बदला उसके चोट खाये अहं ने लिया था ? सुयश की शादी के अलबम में एक फ़ोटो देखकर यह सकुचा गई थी । तो क्या वह फ़ोटो खिंचवाना पूर्व नियोजित था ? उस विवाह में अचानक विकेश उसके पास आकर कोई दिलचस्प घटना बता रहा था । वह उसके पास सोफे पर बैठी मुस्करा उठी थी तभी पास खड़े फ़ोटो ग्राफर ने कैमरा क्लिक कर दिया था । एक नज़र में तो वह फ़ोटो में भ्रम पैदा करता था, लगता है कोई बेतकल्लुफ़ दोस्त बैठे हैं ।
जब भी अभय के साथ वह घर आता हमेशा कहता, “अभय ! डर-डर कर जीने में क्या रखा है । डायबिटीज़ तो मुझे भी है । मैं तो बे बेधड़क मीठा खाता हूँ , तुम क्यों डरते हो ?”
“मैं कहाँ डरता हूँ ?” अभय प्लेट में से एक और मिठाई का टुकड़ा उठा लेते थे ।
उसके जाने के बाद समिधा अपना गुस्सा नहीं रोक पाती थी “अभय ये तुम्हारा दोस्त है, तुम इससे दोस्ती क्यों रखते हो ? हमेशा ग़लत बात सिखाता है ।”
“मैं क्या बच्चा हूँ जो उसकी बात मानूँगा ? कभी-कभी मीठी चीज़ खाने से कुछ नहीं होता ।”
“अभय! जो ग़लत बातें हमेशा करता रहता है उसका प्रभाव तो पड़ता है ।”
“सुयश भी तो उसे कितना मानता है ।”
“उसे तो नये शहर में किसी का सहारा चाहिये था ।”
“उसने सहारा भी तो अच्छी तरह दिया है । एक अच्छे परिवार की इंजीनियर लड़की से शादी करवा दी है ।”
उन लोगों से चौदह पंद्रह वर्ष छोटे सुयश के व्यक्तित्व में कोमलता है । बड़ी-बड़ी काली आँखों में मासूमियत है । पिता व माँ अपने झगड़ों के कारण अलग-अलग रहे हैं । वह मामा के यहाँ पला है । यही असुरक्षा विकेश के नकली प्यार में सहारा ढूँढ़ती रहती है । शादी से पहले सुयश अक्सर उसके यहाँ विकेश के साथ आता रहता था । आदतन समिधा उन दोनों की ख़ातिर करती रहती थी । समिधा की तेज़ नज़र से छिपा नहीं रहा था वह भी विकेश के रंग में रंगता जा रहा था । लोगों से नकली बातें करके उन्हें चढ़ाने की आदत, अपना मतलब निकालने की आदत ।
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उछलते कूदते, बढ़ते गंभीर होते बच्चों को देखकर आश्चर्य होता है समय कहाँ निकला जा रहा है । कभी विश्वास ही नहीं होता रोली का एम.बी.ए. की उसकी पढ़ाई का आखिरी वर्ष है । कितनी मेहनत करती है । सुबह आठ बजे निकल जाती है, ग्यारह बारह घंटे बाद लौटकर चाय पीयेगी, नाश्ता करेगी उसके बाद टीवी देखकर रात का खाना खाकर फिर कम्प्यूटर पर बैठ जाती है ।
समिधा की देर रात नींद खुलती है रोली के कमरे से आती रोशनी को देखकर वह कसकर आँखें बंद कर लेती है । दिमाग को नियंत्रित कर लेती है । इतनी मेहनत करती अपनी लाड़ली को देखकर उसकी साँसे बैठने को होती हैं, तो उसे ऐसा ही करना पड़ता है। ज़िंदगी में रोली क्या कर गुज़रेगी ?
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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