एपीसोड --- ८
कविता रोली की दिनचर्या के बारे में सुनकर अपनी काजल भरी आँखें व्यंग से नचाकर कहती है, “बिचारी कितनी मेहनत कर रही हैं यदि किसी छोटे शहर में शादी हो गई तो ये डिग्री रक्खी की रक्खी रह जायेगी ।”
समिधा उसकी बात से चिढ़ उठी, “जब हम उसे अच्छी डिग्री के लिए पढ़ा रहे हैं तो उसकी शादी भी सोच समझकर करेंगे ।”
“फिर भी लड़कियों की किस्मत का क्या ठिकाना ? सोनल का न आगे पढ़ने का मन था, न हमें उसे पढ़ाने का । होटल मैनजमेंट के सर्टिफिकेट कोर्स के लिए पता करने गई तो उसकी किस्मत देखो थ्री स्टार के होटल का एजेंट उसे मिल गया । उसे वहीं रिसेप्शिनस्ट की नौकरी मिल गई।”
“और इतनी जल्दी जी.आर.ई. भी बना दी गई हमारी मिठाई का क्या हुआ ?”
“घर आइए न, सोनल स्वयं खिलायेगी ।”
“ज़रूर आयेंगे । जो बच्चे पढ़ना नहीं चाहते नौकरी करना चाहते हैं उनके लिए अच्छा है कि वह नौकरी कर लें ।”
“वह बहुत मेहनत कर रही है । रात को दस बजे तक लौटती है ।”
“इस लाइन में ये तो होता हीहै । उससे कहना दूसरी नौकरी भी तलाशती रहे । घर देर से आने में ‘इट्स नॉट ए मैटर ऑफ़ कैरेक्टर’ लेकिन शादी के बाद बच्चे कैसे पालेगी ?”
कविता बात बदल देती है, “हम लोग भी इसकी इस नौकरी के कारण कितने लोगों को ‘ओबलाइज़’ कर रहे हैं । हम लोगों ने फ़्रेन्ड्स को, बच्चों ने अपने टीचर्स को होटल शामियाना का प्रिविलेज मेम्बर बना दिया है । आप भी बन जाइए न !”
“सोचेंगे ।”
सोनल का होटल से अभय के पास फ़ोन आता रहता है, “अंकल ! आप हमारे होटल के कब प्रिविलेज मेम्बर बन रहे हैं ?”
“अक्षत लंडन से वापिस आ रहा है उसका पहला वैलकम डिनर तुम्हारे होटल में देंगे ।”
“अंकल, थैंक्स ।”
कविता के पास तरह-तरह के बनावटी मुँह बनाकर आँखें नचाते हुए बात करने का यही विषय रहता है, “सोनल के होटल के जी.एम. बहुत अच्छे हैं । सोनल से बहुत इम्प्रैस्ड हैं । उन्होंने हमें भी डिनर पर बुलाया था ।”
“कल क्या तुम्हारी बिल्डिंग के सामने उन्हीं की गाड़ी खड़ी थी?”
“हाँ कल वे ‘विद फ़ेमिली’ हमारे यहाँ लंच लेने आये थे ।” उसने कहते हुए इस बार कमर को भी झटका दिया । “उनका हमारे यहाँ इतना मन लगा कि अपने घर शाम को ही गये ।
“अच्छा?”
“शनिवार को एक म्यूज़ीकल नाइट के लिए इनवाइट कर गये हैं ।” इस बार उसकी नाक तन गई ।
समिधा कविता की शक्ल देखती रह गई । कम पढ़ी लिखी समिधा(कविता) अपनी बेटी की छोटी सी नौकरी से कैसी संतुष्ट है ? पिछले वर्ष बच्चों के कैरियर के लिए समिधा ने चिंतित होकर गुज़ारे हैं । हाँ, दस पंद्रह दिन में एक चटकीली साड़ी में बन संवर कर प्रसाद देने के बहाने आना उस के घर आना नहीं भूलती ।
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कुछ वर्षो पूर्व प्रतिमा का ट्रांसफ़र सूरत हो गया था । विकेश ने नौकरी के साथ निजी व्यवसाय करने की नींव डालने के उपलक्ष में पार्टी दी थी ।
पार्टी से लौटकर समिधा ने हाथ की चूड़ियाँ उतारते हुए अभय से कहा था, “प्रतिमा का ट्रांसफ़र हो गया है तो विकेश को शिरीष की ओर और ध्यान चाहिए । वह अपना बिज़नेस आरम्भ कर रहा है ।”
“वह जाने और उसका काम ।” अभय लापरवाही से बोले थे ।
वह क्यों नहीं अभय जैसी बन पाती ? वह मिलते सबसे हैं लेकिन उतना ही कि स्वयं के व्यक्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़े । तभी वह निश्चिंत सोते हैं । एक वही है जो हर रिश्ते को भावनात्मक रूप में लेती है ।
“उनका एक ही बेटा है और उसकी भी परवरिश के लिए वह गंभीर नहीं है ।”
“हमें क्या मतलब?”
एक रात विकेश के घर के पास शॉपिंग करते-करते रात के नौ बजे गये थे । अभय ने ही कहा था, “चलो विकेश से मिलते चलें उसकी माँ हम लोगों को याद करती रहतीं हैं ।”
“टाइम बहुत हो गया है ।”
“उससे कोई फ़ॉर्मेलिटी नहीं है ।”
प्रतिभा उन दोनों को देखकर खुश हो गई थी । अक्षत व रोली रोमा व विकेश से लिपट गये थे, “चाचा ! चाचा !”
“चाची! चाची !”
रोली आदतन इठलाते हुए बोली थी, “चाची ! आप गंदी हो...हमारे घर क्यों नहीं आतीं ?”
“बेटी !मैं दूसरे शहर नौकरी करने जाती हूँ, थक जाती हूँ । तुम आ जाया करो ।”
अक्षत ने कहा था, “इसलिए तो हम आ गये हैं ।”
विकेश ने उसके सिर पर हाथ फेरा था । “ये तो मेरा प्यारा बेटा है ।”
“आप भी तो मेरे प्यारे चाचा हैं .``
समिधा ने पूछा था, “शिरीष नहीं दिखाई दे रहा ?”
“दोस्तों में खेल रहा होगा ।”
“तुम इतनी देर से घर आती हो वह इंतजार देखते-देखते(करते-करते) दुखी हो जाता होगा ।”
“बिलकुल नहीं, आप देख नहीं रही रात के नौ बज रहे हैं, अभी भी वह खेल रहा है, घर ही नहीं आना चाहता ।” प्रतिमा ने गर्व से कहा था ।
समिधा विकेश व रोमा का चेहरा देखती रह गई बेटा नौ बजे भी घर नहीं लौट रहा और उनके चेहरे पर शिकन नहीं है । उसने बात बदल दी थी, “विकेश जी ! बताइए बिज़नेस कैसा चल रहा है ?”
“ठीक चल रहा है पहले दाल रोटी खाते थे अब सब्ज़ी भी साथ में खाने लगे हैं ।”
समिधा व अभय हँस पड़े थे, “ आपको तो पहले से ही लच्छेदार बातें बनानी आती थीं । बिज़नेस में और क्या चाहिए ।”
“हाँ, आपको तो पता है मुझसे चाहे जितना जूठ बुलवा लो । मैं सारे दिन झूठ बोल सकता हूँ ।” वह गर्व से ऐंठकर कहता जैसे झूठ बोलना एक पुण्य का काम है ।
“कल तो मैं सारी रात जागता रहा ।”
“क्या तबियत ख़राब थी ?”
“अरे नहीं, कल ज़िंदगी में पहली बार पचास हज़ार रुपये का चैक देखा था इसलिए।”
चलते समय समिधा ने प्रतिमा को याद दिलाया था, “याद है न ! पंद्रह तारीख को करवा चौथ है । हमारे यहाँ पूजा करने आना ।”
“ये दिन मैं कैसे भूल सकती हूँ ? साल भर मैं इसी दिन तो साथ में हम लोग डिनर ले पाते हैं ।”
समिधा हर वर्ष करवाचौथ के मान के रुपये विकेश की माँ को देती है । विकेश व प्रतिमा इस दिन उनके यहाँ डिनर के लिए आते हैं । प्रतिमा के यहाँ ये पूजा नहीं होती वह उसके साथ बैठकर पूजा करती है ।
अभय की माँ ने सुना था तो वह समिधा से गुस्सा हो गई थी, “हमारे ख़ानदान में करवाचौथ की पूजा किसी के घर जाकर नहीं की जाती । न कोई बाहर की औरत अपने यहाँ पूजा कर सकती है ।”
“जी !” समिधा ने कोई टिप्पणी नहीं दी थी । ये तो बरसों गुज़र जाने के बाद समझ पाई कि सुहाग की इस पूजा में क्यों बाहर का परिवार वर्जित रखा जाता था । यदि कोई स्त्री पूजा करने आयेगी तो उसका पति भी साथ होगा ही और वह सोलह श्रृंगार किये दूसरी स्त्री को देखेगा ही । समिधा इन दकियानूसी परम्पराओं पर विश्वास नहीं करना चाहती ।
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विकेश को जब हार्ट अटैक आया था तो उससे जुड़े कितने ही परिवार आतंकित हो गये थे। इतनी कम उम्र में ये अटैक ! प्रतिमा का घबराया चेहरा देखकर ही वह उसके स्नेह में दो रातें उसके साथ अस्पताल में रुकी थीं । दिन भर कुछ ज़रूरत की चीज़ें अस्पताल पहुँचाती रही थीं ।
बरसों बाद अभय जब इस बीमारी की चपेट में आये । उसे दो महीने बाद उन्हें दिल्ली ऑपरेशन के लिए ले जाना था । विकेश ने जैसे मखौल सा बना लिया था ।हर दूसरे-तीसरे इतवार को फ़ोन करता, “भाभी जी ! मैं बिज़नेस के काम के कारण आज आ नहीं पाऊँगा लेकिन प्रतिमा भाई साहब से मिलने आज शाम को आ रही है ।”
“ठीक है मैं इंतज़ार करूँगी । आप तो उनसे ऑफ़िस मे ही मिल लेते हैं ।”
इतवार के दिन अपने बाहर जाने का कार्यक्रम रद्द करके प्रतिमा का इंतज़ार करते थे । वह आ नहीं पाती थी ।
गुस्सा अभय पर उतरता, “उसकी मुसीबत में मैं हॉस्पिटल में रात में भी रुकी और उस महारानी को हमारी मुसीबत में इतनी फ़ुर्सत भी नहीं है कि हाल-चाल पूछ जायें।”
“ऑफ़िस में व्यस्त होगी ।”
“और क्या मैं ही फ़ालतू हूँ ।” देहली की ट्रेन के लिए वे निकलते उससे एक घंटे पहले विकेश व प्रतिमा ढेर से फल, नमकीन व बिस्किट्स के पैकेट्स लेकर आ गये । समिधा फट पड़ी, “प्रतिमा ! हम लोग इनका इतना बड़ा ऑपरेशन करवाने जा रहे हैं, तुम्हारी सहानुभूति की हमें कितनी ज़रूरत है और तुम अब आई हो ?”
“सॉरी भाभी ! क्या करूँ समय ही नहीं मिला ।” गुस्से में समिधा ने एक बिस्कुट का पैकेट लेकर सब सामान वापिस कर दिया था
इस ऑपरेशन के भय से घर की नींव तक थर्रा गई थी । अभय व उसे सम्भलते छः महीने लग गये थे ।
इस बार उसने करवाचौथ की पूजा में प्रतिमा को नहीं बुलाया । अभय नाराज़ हो उठे, “विकेश बुरा मानते हैं, तुम उन लोगों को पूजा में क्यों नहीं बुला रहीं ?”
“किसी को घर की पूजा में बिठाने का अर्थ होता है उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानना। तुम्हारे ऑपरेशन की बात सुनकर दूर-दूर से परिचित आकर तुम्हारा हाल-चाल ले गये हैं लेकिन इन्हें फ़ुर्सत नहीं मिली ।”
“वे लोग हमारे दिल्ली जाने वाले दिन आये तो थे ।”
“सिर्फ रस्म अदायगी करने आये थे ।”
“देखो विकेश कहता है प्रतिमा ने पूजा भी तुम्हारे कारण आरम्भ की थी ।”
“मैं ऐसे स्वार्थी लोगों को घर की पूजा में नहीं बिठाऊँगी ।”
वे लोग अपनी व्यस्ताओं में व्यस्त होते चले गये थे । विकेश चैक पर बढ़ती बिंदियों से अपनी नींद उड़ाने में लग गया था । समिधा बच्चों व ट्यूशन्स में व्यस्त होती चली गई । वह अपने बच्चों को पढ़ाती, कभी वाद विवाद प्रतियोगिता, कभी ड्राइंग कॉम्पीटीशन या फ़ैन्सी ड्रेस कॉम्पीटीशन के लिए तैयार कर रही होती ।
रोली कभी उसको थोड़ी हिलाकर पूछती, “हमारे अक्षत भैया तो मोटे ताज़े हैं लेकिन प्रतिमा चाची के शिरीष भैया इतने दुबले-पतले क्यों हैं ?”
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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