औरतें रोती नहीं
जयंती रंगनाथन
Chapter 19
सुबह कल होगी
चरण ने ठीक घर के सामने उतार दिया। मन्नू ने उससे फिर कुछ नहीं कहा, घर तक छोड़ने के लिए धन्यवाद भी नहीं। मन बेचैन था। हाथ कांप रहे थे, शरीर थरथरा रहा था। अब गुस्सा भी नहीं आ रहा था उसे। बस समझ नहीं आ रहा था कि इस चक्र से निकले कैसे? सुशील से नाता तोड़ दे या अपने आपको उन सबके रंग में रंग ले?
घर के हर कोने में सुशील का अहसास अब भी मौजूद है। उनके आने से पहले मन्नू हर कमरे में चंदन की अगरबत्ती जलाती है। बीच कमरे में एक कांच के मर्तबान में पानी डाल ताजे फूल और मोमबत्ती सजाती है। कल दिन में सजाया था कमरा, अब भी खुशबू बसी है। पीली चादर पर अब भी सिलवटें हैं सुशील के बैठने की गावतकिया खिसका हुआ है अपनी जगह से। यहीं बैठकर दोनों ने चाय पी थी। सुशील के कंधे पर सिर टिकाए मन्नू ने कहा था, ‘‘मेरा सबसे बड़ा सहारा हो तुम।’’
सुशील के हाथों का स्पर्श गर्म था। अर्से बाद मन्नू ने पुरुष का सान्निध्य इतनी निकटता से महसूस किया अंदर तक, रोम-रोम तक। किसने कहा कि उसके अंदर की औरत मर चुकी है। वो तो जिंदा है, भरपूर। किसने कहा कि एक उम्र के बाद औरत को पुरुष के शरीर की दरकार नहीं होती? पहले से कहीं ज्यादा होती है। पहले से ज्यादा शिद्दत से होती है। एक हाथ से मन्नू ने सुशील के कुर्ते की तह पकड़ रखी थी और दूसरा हाथ उनकी गोद में था।
मन्नू के रंग हुए भूरे बाल सुशील के कंधे पर बिखरे पड़े थे। तिना सुख, कितना रोमांचक अनुभव है ये।
मन्नू की आंखों से फिर आंसू बह निकले। तो वह सब दिखावा था? झूठ था? सच वही है जो अस्मिता कहती है। रखैल...
मन्नू चिहुंककर खड़ी हो गई। फौरन सुशील का बोबाइल मिलाने लगी। लंबी रिंग जाती रही, जाती रही... जाती रही...
सुबह फोन की चीत्कार से नींद खुली। पता नहीं किसका फोन था। बदतमीज सी आवाज।
‘‘सुशील जी कहां हैं?’’
मन्नू को समझने में वक्त लगा।
फिर वही आवाज, पहले से ज्यादा अक्खड़, ‘‘बताती क्यों नहीं... पापा जी कहां हैं?’’
मन्नू को होश आया। सुशील का बड़ा बेटा होगा। लेकिन उससे क्यों पूछ रहा है?
‘‘मुझ कैसे पता होगा?’’ मन्नू झल्ला गई।
फोन कट गया। वह सुन्न सी बैठी रही। क्या हो गया सुशील जी को? बेटा इस तरह से क्यों पूछ रहा है?
चाय बना लाई मन्नू और टीवी खोलकर बैठ गई। ब्रेकिंग न्यूज। विधायक सुशील कुमार कल रात अपनी पार्टी से गायब। कोई सुराग नहीं।
न्यूज के साथ पार्टी की क्लिपिंग चलने लगी। सुशील, उनकी पत्नी, बेटे, पोते-पोती केक काटते हुए। फिर सबसे मिलते हुए।
दूसरी क्लिपिंग अस्मिता की। हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए।
तीसरी मन्नू की। आवाज - माना जा रहा है कि मंत्री जी के इस महिला के साथ खास संबंध हैं। कल रात भी मंत्री जी की गाड़ी ही इन्हें छोड़ने घर गई थी।
चरण गाड़ी का पिछला दरवाजा खोल रहा है, मन्नू पीछे बैठ रही है।
कब-किसने खींच ली तस्वीर?
मन्नू का चेहरा गर्म होने लगा। यह क्या हो गया? सारी दुनिया के सामने बताया जा रहा है कि उसके सुशील से संबंध थे, वो भी अंतरंग।
मन्नू आगे देख नहीं पाई। आंखों के आगे अंधेरा छा गया। इस तरह के एक्सपोजर के लिए तो सुशील ने उसे कभी तैयार नहीं किया था। कहां हैं सुशील?
दस मिनट बाद उसके घर का फोन और मोबाइल बजना शुरू हो गया। न्यूज चैनल और अखबार वाले। सब जानना चाहते थे सुशील कहा हैं, उसका सुशील से क्या संबंध है?
मन्नू डर गई। क्या बताए? किसे बताए?
फोन की घंटी बजती रही और वह अंदर कमरे में दरवाजा बंद करके कोने में दुबक गई। संजुक्ता को कह दिया- अगर कोई उससे मिलने आए, तो कह देना, कहीं चली गई हैं, पता नहीं कहां।
घंटे, दो घंटे बीत गए। मन्नू उसी तरह सहमी सी बैठी रही। अनजाना खौफ तारी होने लगा। लगा कि तनाव से दिमाग की कोई नस ही न चटक जाए।
कब कमरे में उज्ज्वला आई और उसे झकझोरने लगी, उसे पता न चला। उज्ज्वला कह रही थी, ‘‘मन्नू, होश में आओ। ...मैं हूं उज्ज्वला। मेरी बात तो सुनो...’’
मन्नू ने आंखें कसकर बंद कर रखी थीं। उज्ज्वला ने धीरे से उसके बालों को सहलाया, ‘‘डरों मत, मन्नू मैं हूं। तुम्हारी उज्ज्वला। आंखें खोलो।’’
पत्रकारों और चैनल वालों की भीड़ को चीरते हुए जब उज्ज्वला घर के दरवाजे पर आई थी, तो संजुक्ता ने पहले तो दरवाजा ही नहीं खोला। उज्ज्वला ने आधे घंटे तक दस्तक दी, तब कहीं जाकर संजुक्ता ने चिल्लाकर कहा, ‘‘मैडम घर में नहीं है, अभी जाओ।’’
उज्ज्वला ने उतनी ही जोर से कहा, ‘‘संजुक्ता, मैं हूं, दरवाजा खोल...’’
उज्ज्वला ने मन्नू से कोई जवाब-तलब नहीं किया। उसकी सबसे बड़ी चिंता थी मन्नू को यहां से कैसे ले जाए। सुबह-सुबह ही व्योम ने उसे बता दिया था कि मन्नू मुसीबत में है। सुबह से चैनल उसका चेहरा दिखा रहे हैं। सुशील के गुम होने के सिलसिले में पुलिस उससे पूछताछ कर सकती है।
उज्ज्वला ने एक घंटे में मन्नू को तैयार कर लिया। पुलिस के सामने क्या बयान देना है, कितना बोलना है, कितना नहीं। मन्नू हालांकि अब भी पूरी तरह ठीक नहीं थी।
पुलिस नहीं आई, लेकिन खबर आ गई कि फरादाबाद से सौ किलोमीटर आगे सुशील की लाश मिल गई है। कल रात वो अस्मिता के साथ गाड़ी में गए थे, इसके भी सुबूत मिल गए। चरण पुलिस हिरासत में था।
सुशील नहीं रहे। सोचना मुश्किल था, विश्वास करना असंभव।
उज्ज्वला ने लंबी सांस ली, ‘‘यही राजनीति है मन्नू। तुम कुछ समझ ही न पाईं।’’
आगे के दो-तीन दिन तनाव में बीते। पुलिस पूछताछ और खबरों ने तोड़ दिया मन्नू को। अस्मिता और उसका बॉडीगार्ड भाई पकड़े गए। सुर्खियां और खबरें बड़ी चौंकाऊ थीं। मन्नू को अस्मिता की सौतन बताया जा रहा था।
दूसरी तरफ सुशील की पत्नी का बयान- कि मेरे पति के किसी महिला से संबंध नहीं थे। अस्मिता उनकी बहन जैसी थी, ये मन्नू कौन है, मैं तो जानती तक नहीं।
सुशील के बड़े बेटे का फोन उज्ज्वला ने उठाया, वह धमकी दे रहा था कि मन्नू सुशील से अपने संबंधों के बारे में किसी को कुछ ना बताए। पिता की छवि को अगर किसी ने दागदार किया, तो वह उसे छोड़ेगा नहीं।
उज्ज्वला ने मन्नू को कुछ बताया नहीं। बेकार में और टेंशन पाल लेगी। वैसे ही इस समय मीडिया में हर तरफ मन्नू है, एक खलनायिका के रूप में...
फिर एक गुनाह मेरे सिर
मैंने तो चाही थी बस थोड़ी सी जिंदगी
मन्नू ने सिर उठाया। बाहर अंधेरा था। कमरे में उज्ज्वला ने जीरा वॉट का साइड लैंप जला रखा था। बाहर से धीमी-धीमी आवाज आ रही थी। कोई और भी था कमरे में उज्ज्वला और व्योम के अलावा। मन्नू ने सुनने की कोशिश की, कुछ समझ न आया, फिर आंखें बंद कर लीं। कोई भी आए, क्या फर्क पड़ता है। वह रातों को सो नहीं पा रही। सिर हमेशा दर्द से फटा जाता है। चेहरा सूज गया है, आंखें खोलो तो किरकिरी सी लगती है। दोपहर को व्योम गर्म पानी के साथ रम दे गया था उसे। चुस्की ली, फिर गटागट पूरा पी गई। इसके बाद उसे नींद आई। पता नहीं किन-किन सपनों में गोते खाती रही। पता नहीं कितनी देर तक सोती रही।
उज्ज्वला ने शायद धीरे से कमरे में झांका है और बोली है, ‘‘सो रही है। अच्छा है। उठेगी तो और परेशान होगी।’’
मन्नू की आंखें धीरे-धीरे खुल रही हैं। कौन है? जानी-पहचानी आवाज। जैसे कोई करीबी। एक झटके में उठ बैठी मन्नू। तो क्या पद्मजा आ गई?
उसने धीरे से पुकारा, फिर जरा जोर से, ‘‘पद्मा... पैडी।’’
उज्ज्वला दौड़कर आई, ‘‘किसे बुला रही हो मन्नू? पद्मजा यहां कहां है? वह तो दुबई में है।’’
‘‘ओह...’’ मन्नू ने आंखें बंद कर लीं मायूसी से।
‘‘मन्नू,’’ उज्ज्वला ने प्यार से उसके तपते माथे पर हाथ रखा, ‘‘तुम्हें हो क्या गया है? सोच लो कि एक बुरा सपना था। आंख खुल गई, तो बीत गया। इतना बिखरने लगोगी, तो अपना ही नुकसान करोगी न?’’
न जाने क्यों मन्नू की आंखों में आंसू आ गए। बिन बुलाए। वह धीरे से बोली, ‘‘सब कुछ तो चला गया उज्ज्वला। क्या रह गया? अब तो लगता है जीने की कोई वजह ही नहीं रही।’’
‘‘क्या कहती हो मन्नू? मैं कैंसर से निकलने के बाद अगर फिर से जीने लगी हूं, तो तुम इतना डिप्रेशिंग क्यों सोच रही हो?’’
‘‘तुम अलग हो उज्ज्वला। बहुत ताकत है तुम्हारे अंदर। मजबूत हो, मेरी तरह खोखली नहीं। मुझे देखो... नई मिली आजादी को बांधकर रखना आया ही नहीं। कदम पता नहीं कहां-कहां रखती चली गई। इन कदमों को घर से बाहर जाने की आदत न थी, बाहर क्या गई, भटक गई। चलना भुल, उड़ने लगी। मेरे साथ ऐसा ही होना था। ...देखो, हर तरफ मेरी थू-थू मची हुई है। कैसी-कैसी बातें हो रही हैं? मैंने अपना क्या कर लिया उज्ज्वला।
उज्ज्वला ने बिलखती मन्नू को अपनी बांहों में भर लिया। चार दिन में बेतहाशा कमजोर हो गई थी मन्नू। आंखों के नीचे गहरे काले गड्ढे। बालों में सफेदी और भुरभुरापन। शरीर से आती पसीने और बासी कपड़ों की गमक। यह तो वही मन्नू लग रही है, जो पद्मजा के उनकी जिंदगी में आने से पहले उज्ज्वला के साथ रहा करती थी। बेखकर, बेलौस और लापरवाह, जिसकी जिंदगी का कोई मकसद नहीं था।
लेकिन तब उज्ज्वला और मन्नू में किसी किस्म की आत्मीयता नहीं थी। अब मन्नू का यह हाल उज्ज्वला देख नहीं पा रही। कैसे भूल सकती है कि इस औरत ने उसकी बीमारी और कीमोथेरेपी के दौरान कितनी ही रातें जागकर काटी हैं। मन्नू हमेशा होती थी उसकी आंखों के सामने। दपदप आंखें लिए और यह कहती हुई कि उज्ज्वला तुम्हें कुछ नहीं होगा।
उज्ज्वला की बांहों का कसाव और बढ़ गया। मन्नू को वह इस तरह नहीं छोड़ सकती। किसी भी हाल में उसे मन्नू को इस जंजाल से निकालना होगा।
‘‘पद्मा की याद आ रही है? पद्मा को बुला लें? वो माफ कर देगी हमें। हमारे लिए अच्छा सोचा है उसने। बता, बुला लूं?’’
मन्नू ने आंखें बंद करते हुए सिर हिलाया। कुछ देर बाद बुदबुदाई, ‘‘वह नहीं आएगी उज्ज्वला। मैंने उससे जो बात कही थी, उसके बाद वो कतई नहीं आएगी।’’
उज्ज्वला लेकिन कुछ और ही सोच रही थी।
मन्नू खिड़की के पास चास का कप लेकर बैठी थी। बाहर कमरे में व्योम किसी अखबार वाले को इंटरव्यू दे रहा था। उसकी आवाज तेज थी, ‘‘एच.आई.वी. कहते ही आप लोगों के दिमाग में बस एक बात कौंधती है सेक्स, वो भी असुरक्षित और अवांछित सेक्स। मैं हर बार यही कहता हूं कि हमें सेक्स से अलग करके बेशक न देखें, पर सेक्स के प्रति अपना नजरिया बदलें।’’
मन्नू ने लंबी सांस ली। लंबे कद और बलिष्ठ बदन का व्योम पेशे से सिविल इंजीनियर है। उसके पिता महाराष्ट्र के किसान थे, मां वहीं बच्चों को पढ़ाती थीं। व्योम ने उसे तफ्सील से बताया था कि उसे इंजीनियर के रूप में देखना मां की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। व्योम इंजीनियर बनता, उससे पहले मां गांव में ही बीमार पड़कर चल बसीं। पिता ने दूसरी शादी कर ली, तो व्योम का परिवार और गांव से नाता टूट सा गया। पढ़ाई पूरी कर उसने बिल्कुल छोटे से कस्बे में नौकरी कर ली। फिर वहां से चला गया मणिपुर।
‘‘मैंने कभी सोचा न था कि सिर्फ एक संबंध की वजह से मेरी जिंदगी इस तरह बदल जाएगी।’’ मणिपुर में व्योम की मुलाकात शेषपर्णा गुरंग से हुई। दोनों ने शादी कर ली। शेष मां बनने वाली थी। उसी दौरान ब्लड चैकअप में पता चला कि वह एच.आई.वी. पाँजिटिव है। कैसे हुआ? कब हुआ? व्योम तो उसकी जिंदगी का पहला पुरुष था?
शादी से पहले शेष का एक्सीडेंट हुआ था और उसे तुरंत खून की जरूरत थी। छोटी सी डिस्पेंसरी में उस समय जो भी खून था, उसे दे दिया गया। यहीं से शेष की देह में पहुंचा एच.आई.वी. वायरस। व्योम को अपनी चिंता कम थी। पता था कि शेष से संपर्क में आने के बाद वह भी एच.आई.वी. वायरस का वाहक हो गया है। शेष इसके बाद सालभर जिंदा रही। जीने के प्रति उसकी लालसा जाती रही। बल्कि अंत तक उसे इस बात का भी दुख रहा कि उसकी वजह से व्योम भी इस वायरस के चंगुल में आ गया।
शेष को टीबी हो गई। अपनी बेटी के जन्म के फौरन बाद ही वह चल बसी।
‘‘मेरी बेटी नाना-नानी के पास पल रही है। अभी तक तो स्वस्थ है। लेकिन उसे बहुत सार-संभाल की जरूरी है। शेष के परिवार वाले उसे मेरे साथ भेजते डरते हैं, कहते हैं शहरों में पॉल्यूशन बहुत ज्यादा है, इम्युनिटी कम हो सकती है। हमारे पास कम से कम स्वस्थ हवा में सांस तो ले पाएगी।’’
इसके बाद व्योम की जिंदगी पूरी तरह बदल गई।
‘‘तुम इंजीरियर से एक पेंटर कैसे बन गए व्योम?’’ मन्नू ने पूछा था उससे।
व्योम हंसा, धीरे से। फिर कुछ रुककर और सोचकर बोला, ‘‘एक तरह से मेरा पुनर्जन्म हुआ है मन्नू दी। मां के रहते हुए मैं अलग ढंग से सोचता था। मैं उनके सपने को पूरा करने के लिए जी रहा था। वे नहीं रहीं, फिर सोचा जिंदगी जैसे जीने का मौका देगी, जिऊंगा। शेष से मिला, तो लगा अब जिंदगी में ठहराव आ गया है। वहां भी वही... उथल-पुथल। जब सब कुछ बदल गया, खत्म हो गया, तो लगा कि मैं भी क्यों न अपना पुराना चोला उतार फेंकूं? ऐसे ही एक दिन कैनवस उठा लिया। मैंने पाया कि जब भी कैनवस के सामने होता हूं, मुझे अपनी परवाह नहीं होती। ठान लिया कि यही करना है अब। मैं कोई ग्रेट पेंटर नहीं हूं, पर जब पेंट करता हूं तो लगता है बस यही जिंदगी है...’’
व्योम ने आंखें बंद कर लीं।
मन्नू को पहले डर लगता था इस फक्कड़ पेंटर से। अब नहीं। जिस व्यक्ति के साथ उज्ज्वला इतना सहज रह सकती है, उसके साथ उसे डरने की क्या जरूरत?
‘‘एक रिश्ते ने तुम्हें पेंटर बना दिया। अब उज्ज्वला के साथ बने नए रिश्ते में तुम क्या बनोगे?’’ मन्नू ने कहा।
व्योम ने आंखें खोलीं, मन्नू की तरफ देखा और जोर से हंसने लगा, ‘‘मेरी जगह आपने ले ली है। आप बन गई हैं नेता...’’
पुरानी बातें, पुराने दिन। उन दिनों वाकई मन्नू पर जुनून था नेता बनने का।
देख लिया वो भी। बस चार दिन... राजनीति में घुसने से पहले अगर इतनी थुक्का-फजीहत है, तो बाद में क्या हाला होगा?
आज सुबह ही व्योम ने कहा था, ‘‘आपने अपना क्या हाल कर लिया है मन्नू दी? या तो आप अपने को पूरी तरह तैयार कीजिए कि चाहे जो हो आपको यहीं रहना है और राजनीति करनी है... या फिर निकल जाइए इस चक्रव्यूह से। ये सब शुरुआती दिक्कतें हैं, टीदिंग प्रॉब्लम्स। दूर हो जाएंगी। वैसे भी किसी कुर्ती में दाग नहीं पड़ते मन्नू दी? सिर्फ राजनीति थोड़े न गंदी है। हर जगह है गंदगी। आपको बचकर चलना पड़ता है। बीच में चलेंगी, तो छींटे पड़ेंगे, कीचड़ में गिरेंगी और चोट भी लगेगी। साइड में चलिए या ऐसा कुछ पहनकर चलिए कि दाग न लगे, तो साफ बचकर आगे निकल जाएंगी सड़क से।’’
मन्नू चुपचाप सुन रही थी। ध्यान से। व्योम गलत नहीं कह रहा। वैसे भी उसने चुना था आसान रास्ता। दिल्ली बम विस्फोटों के दौरान उसे पब्लिसिटी मिल गई। दो-चार बार टीवी पर आ गई, तो सोचा कि समाज सेवा करने लगेगी। इसी बीच मिल गए सुशील। उनके साथ पटरी बैठ गई, तो वाकई लगा कि अब राजनीति में एंट्री मुश्किल नहीं। उसने अपनी तरफ से किया क्या? नीरजा के साथ दो दिन गोविंदपुरी की झोपड़पट्टी में बच्चों को पढ़ाने क्या गई, तीसरे दिन बीमार पड़ गई। धूल, गंदगी और बीमारी से डर लगता है उसे। भूखे और बीमार बच्चे देख दहशत होती है। अपनी देह पर लगातार मातृत्व का भार सहती औरतों को दूख मन्नू को गश आने लगत है।
यही सब सोच रही थी आज सुबह से मन्नू।
एक बार फिर से व्योम की तेज आवाज आई, ‘‘आप मुझसे क्या जानना चाहते हैं? कि मैं कितनी औरतों के साथ सोया हूं? कितनी बार वेश्याओं के पास गया हूं? आपको मेरा जवाब पसंद नहीं आएगा। आप शायद मेरा इंटरव्यू लेने इसलिए आए हैं कि आपको एक जूसी स्टोरी मिल जाए। आप अपने पाठकों को यह बता सकें कि देखिए अवैध रिश्ते या सेक्स का यह नतीजा होता है। आप एच.आई.वी. पॉजिटिव न लिखकर एड्स लिखेंगे। यह बताएंगे कि एड्स कितनी भयंकर बीमारी है, आदमी तिल-तिलकर मरता है। यह भी शायद जोड़े देंगे कि एड्स आपके बुरे कर्मों का फल है। जो आदमी संयमित जीवन नहीं जीता, उसके साथ ऐसा ही होता है। शायद आप ड्रग्स और शराब को भी इसके साथ जोड़ दें...। बस माई डियर फ्रेंड, आयम गोइंग टु डिस्पपॉइंट यू। हां, मैं एच.आई.वी. पॉजिटिव हूं, पर हूं आपकी ही तरह हैल्दी और फिट। वो सब कुछ खाता हूं, जो आप खाते हैं। मैं एक सिंपल जिंदगी जीता हूं। हां, मेरे शरीर में एच.आई.वी. पॉजिटिव वायरस हैं, जैसे आप में से कोई डाइबिटिक पेशेंट है, किसी को ब्लडप्रेशर है, किसी को शुगर है, तो सब अपना ख्याल रखते हैं, दवाई खाते हैं, अनुशासन में जीते हैं। वैसे ही हम भी अपना ख्याल रखते हैं, इम्यूनिटी लेवल कम न हो, इसके लिए दवा लेते हैं।’’
व्योम रुका। फिर धीरे से बोला, ‘‘मेरी कहानी में मजा नहीं आया न? जाइए किसी ऐसे आदमी के पास अपनी स्टोरी ढूंढिए, जो बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाने के बाद उनका कत्ल कर उनकी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर अपने घर के सामने फेंक देता हो।’’
पत्रकार शायद चला गया था। व्योम की आवाज धीमी पड़ गई थी। मन्नू ने फिर से आंखें बंद कर लीं। उससे तो भली उज्ज्वला है। जिसने सोच-समझकर व्योम के साथ रहने का फैसला किया।
मन्नू ने न जाने कितनी बार उसे टोका, डांटा और यहां तक कहा कि वह पगला गई है। उज्ज्वला मुस्कराती रही, ‘‘मन्नू, मेरे पास खोने के लिए बचा क्या है? अर्से तक फालतू सी जिंदगी जीती रही। कब सुबह हुई, कब शाम हुई, पता ही न चला। हां, मन के कोने में आस थी कि काश अपनी तरह से जिंदगी जीने का मौका मिले! देखो न, फिर सब बातें एक साथ हुईं। हमारी जिंदगी में पद्मजा आई, मुझे अहसास हुआ कि हमारे सामने भी चॉइस है। मां और भाई के शिकंजे से निकली, तो कैंसर के चंगुल में आ गई। सच कहती हूं मन्नू। जिस दिन पता चला कि मुझे कैंसर है, मैं रोई नहीं, दुख भी नहीं हुआ। बस यही ख्याल आया कि अगर बच गई, तो जो थोड़े-बहुत दिन उधार के मिले हैं, उन्हें भरपूर जिऊंगी। हर दिन नया होगा। हर सुबह सूरज उगेगा, तो हाथ जोड़कर कहूंगी कि एक नया दिन दिखाने का शुक्रिया। तुम ही बताओ मन्नू, अगर व्योम से न मिलती, तो क्या जिंदगी में इतनी ऊर्जा आती? एक पूरी जिंदगी जी रही हूं इस फक्कड़ के साथ। कभी कैनवस पर रंग बिखारने-बिखारते लगता है कि बस आज जिंदगी खत्म हो गई, तो कोई शिकायत न होगी, तो अगले पल मेरा पगला मुझे ले जाता है शब्दों की एक तीसरी दुनिया में। क्या तुम कभी गई हो निजामुद्दीन की दरगाह पर, और वहां बैठकर सूफी संतों को गाते सुना है? रात को हल्की रोशनी में, लोबान के धुएं के इर्द-गिर्द बैठकर अपने को जब झूमते पाती हूं, तब भी लगता है कि इस रात की सुबह न हो, तो कोई गम नहीं... क्या अब भी तुम कहोगी कि मैंने गलत किया?’’
उज्ज्वला कब कमरे में आई, मन्नू को अहसास न हुआ। यह कौन है जो प्यार से उसके गीले और सूखे गालों को सहला रहा है? कौन है जो अपने रेशमी बालों से उसे झकझोर रहा है?
टुटू?
उज्ज्वला हंसने लगी, ‘‘मन्नू, तुम्हें क्या लगा? मैं चाट रही हूं तुम्हारे गाल? मैं ले आई इसे। देख, कैसा बावला हो रहा है? खाना ही नहीं खा रहा था। मैं गई, तो ऐसे रोया कि मेरी रूह कांप गई। मेरे हाथ से आधा लीटर दूध पी गया। चार दिन से बुखार था इसे...’’
‘‘तुझे किसने बताया?’’ मन्नू ने अपनी गोद में भींच लिया टुटू को।
उज्ज्वला चुप रही। फिर कुछ सोचकर बोली, ‘‘मन्नू, एक तू ही नहीं, उधर पद्मजा भी परेशान है। उसने मुझे कुछ कहा, तुमने उसे। पर ऐसे थोड़े ही न रिश्ते टूट जाते हैं। ...कल आधी रात फोन आया था पद्मा का। मेरे मोबाइल पर। रो रही थी। बहुत दुखी थी। कह रही थी कि उसका टुटू बीमार है। मैंने जब कहा कि मैं उसे ले आऊंगी अपने पास तो इतना रोई, इतना रोई... नाना के मरने पर भी मैंने उसे इतना रोते नहीं देखा था।’’
मन्नू ने धीरे से नजरें उठाईं, ‘‘मेरे बारे में कुछ पूछ रही थी वो?’’
उज्ज्वला ने मन्नू का हाथ पकड़ लिया, ‘‘वो पूछे, न पूछे, क्या फर्क पड़ता है मन्नू? तुम भी जानती हो, वो भी जानती है कि हमारे दिल में एक-दूसरे के लिए क्या है? पद्मजा को गलत मत समझो मन्नू। वो हमारे लिए कभी गलत नहीं सोच सकती। उसने ही तो सिखाया था हमें नई जिंदगी जीना।’’
मन्नू न जाने क्यों रोने लगी। टुटू ने उसके चेहरे से अपना चेहरा सटा दिया और आंखों के बहते खारे पानी को अपने होंठों से जज्ब करने लगा।
क्रमश..