लौट आई पावनी
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बहुत बरसों बाद पाँव ज़मीन पर से जैसे हवा के झौंकों के साथ इधर-उधर लहराने लगे |सच्ची ! ज़िंदगी का पता ही कहाँ चलता है ,किस मोड़ पर आकर या तो बिलकुल बेजान कर दे या फिर उन्हीं हवाओं की लहरावदार घुमावदार तरन्नुम भरी राहों पर कोई ऎसी सीढ़ी तैयार कर दे जिसके सबसे ऊपर की मंज़िल पर चढ़कर छलाँग लगाने को जी करने लगे | आदमी दो मन:स्थितियों में ख़ूब ऊँचाई से छलांग लगा लेना चाहता है | या तो उसके हाथ कोई 'खुल जा सिमसिम' लग जाए या फिर वो बिलकुल नकारा हो जाए और डिप्रेशन में बहक जाए | कुछ ऐसा सोचने लगे , 'अरे यार ! अब जीकर भी क्या होगा?' होती रहती हैं ऎसी घटनाएँ ,लम्हों को निचोड़ने वाली ! क्यों एक आवारा शाम दिलों में डेरा जमाने लगती है ? कोई न कोई कहानी ,कोई न कोई फ़साना या फिर तराना हवाओं में तैरता हुआ मन को मथने लगता है |
"ज़िंदगी ऎसी भी नहीं होनी चाहिए --" उसके स्वर में टूटन थी |
"हमसे पूछकर ज़िंदगी नहीं बनती,बिगड़ती ----वह तो व्यवस्थित होती है ---पर अपना दिमाग़ लगाने की ज़रुरत नहीं होती क्या ?ये दिमाग़ क्यों फिट किया गया है इस लंबे-चौड़े शरीर में ? "
क्यों हर समय सवालों की क़तारें आ जमती हैं मन में ? टुकड़े -टुकड़े हुए तन्हा से दिनों की रफ़्तार जैसे आँखों के सामने ही झर-झर बरसात की बूंदों की तरह आँखों के रास्ते फिसलती है |
"बैसाखियों के बीच लटकती ज़िंदगी के सुर-ताल बिगड़ जाते हैं ---पता नहीं आगे क्या होगा--" पावनी के पाँवों से लेकर चेहरे तक झुरझुरी फिसलने लगी |पूरे शरीर में ही तो ----
"जो होगा ,देखा जाएगा --- सोचने से तो कुछ होगा नहीं ,कोई स्टैप लेना होगा---" श्वेताभ भी चिंतित था | समझ नहीं आ रहा था अपनी इतनी करीबी मित्र की सहायता किस प्रकार करे ?पावनी उसके लिए केवल मित्र तो थी नहीं ,उसका तो पता नहीं पर श्वेताभ के मन तो वह न जाने क्या-क्या थी ! कबसे उसके साथ पूरी उम्र जीने के सपने संजोए बैठा था वह ! पर पावनी को इन सब पचड़ों से फुरसत मिलती तब न ! कोई न कोई दोस्त बना ही लेती वह ! आज ज़िंदगी नए तराने पर चलती है ,चलती क्या थिरकती है ,मॉडर्न बनने की हौंस में होश खो बैठना ,कोई बड़ी बात नहीं |
कितनी बार समझाया था पावनी को उसने ,हर फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार मत करो ,लेकिन अपने गुमान में फूलती पावनी को हमेशा श्वेताभ की बात नागवार गुज़री है | पता नहीं क्यों जलता है मुझसे ? सवाल बार-बार टकराता उसके दिमाग़ की नसों को ढीला कर गया है |
"सीधी सी बात है या तो बिलकुल मॉडर्न बन जाओ या फिर अपनी सीमाएं खुद तय कर लो| जीवन को तमाशा बनाने की ज़रुरत है क्या ? ऐसा न हो ,कहीं ऊपर से नीचे उस समय धम्म से गिरो जब तुम्हारे पास शक्ति ज़ीरो भर हो | हमारे दिल काँच के बने हैं ,बिखर जाएंगे तो किरचें चुभने की तैयारी रखना,चुभेंगे तो पीड़ा तो होगी ही |"
एफ़.बी पर न जाने कितने दोस्त पावनी के ! सच में ,कुछ बहुत अच्छे भी मिले जिन्होंने उसकी काव्य-रचनाओं के विभिन्न भाषाओँ में बड़े सुन्दर अनुवाद करके उसे भेजे,खुशी से गोलगप्पा हो जाती वह ! कितने अच्छे ,प्यारे दोस्त मिले हैं उसे सोशल-मीडिया के माध्यम से ! न जाने क्यों उसे यह ऊँगली के सहारे बटन से चलने वाला संसार कभी आभासी लगा ही नहीं ,काल्पनिक नहीं --बस दोस्ती होती चली गई |
तभी किसीने पावनी को एक ऐसे एप पर जोड़ लिया जिसमें धड़ाधड़ उसकी प्रोफ़ाइल पर कमेंट्स आने लगे और वह प्रसन्न-वदन अपने आपको 'मलिकाए-पावनी' समझने लगी | पर ---जब अचानक कॉफ़ी पीने ,घूमने और यहाँ तककि रात बिताने के संदेश आने लगे ,उसकी रूह काँपने लगी |क्या होने लगा था ये अचानक ? उसकी खिलखिलाती बिंदास ज़िंदगी की धड़कनें बढ़ने लगीं | हाय राम ! कैसे रोके वह उन मित्रों को कुछ भी लिखने से ? मज़े की बात यह कि दिल धड़कता ,सहमता। उसने वह एप खोलना बंद कर दिया पर उसका मेल-बॉक्स भरा रहता उस एप की मेल से ! खुद बत्तीस वर्ष की ,और मुहब्बत जताने वाले कभी बीस-पच्चीस वर्ष के तो कभी सत्तर वर्ष के ! समझ को घोलकर पी गई वह | श्वेताभ ने पहले ही कहा था ,न घुसे उस सबमें इतना | ईमानदारी की बात है ,उसे खुद भी पता नहीं चला था वह कब ऐसे एप में घुस गई जो खोलते ही धड़कनें बढ़ा देता,न जाने किसने उसे जोड़ लिया था उस एप में |जवाब न देती पर दूसरों ने उसके बारे में क्या लिखा, पढ़े बिना रहा न जाता,इतना बचपना ! अपनी प्रशंसा पढ़कर फूल जाती पर जब कुछ 'ऐसी-वेसी' डिमांड पढ़ती तो एक झटके से उस पेज को बंद कर देती ,कुछ गुमसुम सी भी हो जाती --पर,कितने दिन के लिए ? जहाँ कहीं मेल दिखाई देती ,फिर खोलकर पढ़ने बैठ जाती | हाँ, जवाब किसी को न देती ! सो,शिकायतें भी पढ़ती !
विदेशियों की लाइन लगी रहती उसकी फ्रैंड-रिक्वेस्ट लिस्ट में ! बड़े फख्र से श्वेताभ को बताती | पहले- पहल तो वह उसके साथ हँस लेता ,बाद में तो सिर ठोककर रह जाता | अच्छी-ख़ासी इंटेलीजेंट पावनी को अपनी तारीफ़ पढ़ने का ,अपनी तस्वीरों पर कमेंट्स देखने का रोग लग गया | ऐसा समय भी आया ,पावनी को काम के सिलसिले में यू.के जाना पड़ा |उसने सोचा जब जाना ही है तो क्यों न एक माह की छुट्टी लेकर जाया जाय ! श्वेताभ ने मुख से कुछ न कहकर आँखों से बहुत कुछ उसे समझाया ,पता नहीं इतनी इंटेलीजेंट पावनी समझी या उसने यूँ ही श्वेताभ को टाल दिया |
लंदन में अपना काम पूरा करके वह इटली में वेनिस पहुँच गई जहाँ उसका आभासी दुनिया का दोस्त एलेक्स उसकी अगवानी में एयरपोर्ट पर पलक-पाँवड़े बिछाए खड़ा था | उसने एक खूबसूरत होटल में ,एक खूबसूरत सूट बुक करवा रखा था | पावनी के भारतीय सौंदर्य से प्रभावित एलेक्स ने उसके घूमने के पूरे प्लान तैयार कर रखे थे |पावनी ने उसके साथ कई कार्नीवाल अटैंड किए ,इस प्राकृतिक छोटे से ख़ूबसूरत शहर में पावनी एलेक्स के साथ खो सी गई | अपनी सारी बातों को श्वेताभ से शेयर करने वाली पावनी श्वेताभ से एलेक्स के बारे में छिपा गई थी | ख़राब आदमी नहीं था एलेक्स ,मूल इटली का निवासी एलेक्स वेनिस में कोई व्यापार करता था | पावनी 'रिसर्च एसोसिएट' ! कविताएँ लिखने वाली ,साहित्य के प्रति समर्पित एक युवा नृत्यांगना भी | एलेक्स के साथ उसका एक सप्ताह कहाँ बीत गया ,उसे पता भी न चला |स्वाभाविक था शरीर व मन की मर्यादा टूटना ! ख़ुशी से झूम रही थी पावनी ! अपनी व एलेक्स की तस्वीरें रोज़ भेजती श्वेताभ को ,वह अपना दिल मुट्ठी में भींच लेता |
फ़ोन पर एलेक्स कुछ परेशान सा दिखा ,पूछने पर उसने बड़ी सादगी व स्पष्टता से बता दिया ,उसे इटली जाना होगा | उसकी बिटिया बीमार है और वो अपने पिता को बेहद याद कर रही है | पावनी के नीचे से ज़मीन निकल गई ,बेटी ? क्या एलेक्स शादीशुदा है ? पता चला सिंगल पेरेंट है वह ! बारह वर्ष की अपनी बेटी को अपने पेरेंट्स के पास छोड़कर यहाँ अपना काम करता है |
पावनी के पसीने छूट गए ,वह तो सोच रही थी श्वेताभ को सरप्राइज़ देगी | यहाँ उसके लिए इतना बड़ा सरप्राइज़ खड़ा था | एलेक्स ने पावनी से पूछा था कि क्या वह अभी यहाँ और रहना चाहेगी या फिर वह उसकी कहीं और की टिकिट बुक करवा दे,वह जहाँ भी जाना चाहे | पावनी किंकर्तव्यमूढ़ थी ,उसकी सोचने की शक्ति ही शून्य हो गई थी | बड़ी मुश्किल से ख़ुद को संभालकर उसने एलेक्स से कहा कि वह ख़ुद अपना मैनेज कर लेगी ,उसे अपनी बेटी के पास जाना चाहिए | दोनों साथ ही एयरपोर्ट पर आए थे | एलेक्स ने पावनी को बाहों में भरकर एक लंबा चुंबन लेते हुए उसे अच्छा समय बिताने के लिए शुक्रिया अदा किया और देखते ही देखते उसकी आँखों से ओझल हो गया |पावनी अपनी संवेदना का भार ढोते हुए एक कोने में बहुत देर तक अधमरी सी बैठी रह गई | कौन था वहाँ जो उसकी बेकार की पीड़ा को सहलाने बैठता ? अब उसे सोचना था कि यूरोप रुककर अपने और आभासी दोस्तों से मिले या भारत की वापिसी करे | उसके पास लौटने का 'ओपन टिकिट ' था --बस फ़्लाइट की अवेलेबिलिटी देखनी थी |
मन को मनाने की बहुत कोशिश की पावनी ने ,एलेक्स पर ग़ुस्सा भी आया,पर उसका दोष कहाँ था ? जब यह सोचा तो गुमसुम हो उठी , उसका मन उखड़ चुका था | एलेक्स ने उसकी ख़ातिरदारी में कुछ भी कमी नहीं आने दी थी | लेकिन अब जैसे एक ही झटके से पावनी खाली हो गई थी | भारतीयता के संस्कारों को पल्लू से बाँधे भटकती पावनी जैसे बेबस हो गई ,कहाँ जाए? क्या करे ? टिकिट मिलते ही वापिस लौटना उसे बेहतर लगा |
अपनी सारी चेतना खोकर पावनी भारत पहुँची , श्वेताभ को एयरपोर्ट पर देखते ही उसका बाँध टूट गया , वह बेतहाशा उससे लिपटकर सुबक उठी | श्वेताभ कुछ ऎसी ही तस्वीर लिए बैठा था अपने भीतर , बिना कुछ बताए भी वह सब कुछ समझ गया | यह समय कुछ समझाने या उपदेश देने का तो था नहीं | श्वेताभ ने पावनी से कुछ नहीं पूछा ,बस वह जो बताती रही उसे सुनता रहा | भीतर से उदास श्वेताभ ऊपर से विवेक की चादर ओढ़े चुपचाप सब कुछ सुनता रहा था | पावनी एक नन्ही ,मासूम बालिका की तरह उससे चिपटी सुबकती रही | वह उसे अपने से चिपटाए ,उसके बालों में कोमलता से ऊँगलियाँ फिराता रहा ,भीतर से उसका मन भी तो पावनी के आँसुओं की ताल पर ही सुबक रहा था |संवेदनाएँ कभी अँधेरे,कभी उजाले में भरकर थिरक रहीं थीं , ब्लैंक हो गया था वह भी पावनी की ही भाँति ! सही-ग़लत कुछ नहीं समझ में आ रहा था लेकिन दूसरी ओर पावनी के प्रति उसकी बरसों पुरानी संवेदनाएँ सब कुछ एक सपना समझकर मन में थाप देने लगीं थीं ,वह तो जानता था --पावनी का स्वभाव और उसकी मासूम बचकानी हरकतें ! न जाने कितने लोग आभासी दुनिया के हिसाब-किताब में फँसकर अपने भीतर एक अँधेरी दुनिया रचा लेते हैं ! श्वेताभ का अंतर अब केवल पावनी के नॉर्मल होने की प्रतीक्षा में डबडबाई आँखों से दूर क्षितिज में उगते सूरज की ललाई में खो जाना चाहता था |
डॉ. प्रणव भारती