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बाली का बेटा (17)

17 बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

रावण की सभा

त्रिजटा के जाने के बाद सीताजी रूआंसी हो उठीं और बोली ‘‘ आज मुझे कोई भी साथ नहीं दे रहा। चंद्रमा तुम्ही आग दे दो। हे अशोक वृक्ष तुम्ही मेरा शोक दूरकर दो।’’

मुझको लगा कि यह अच्छा मौका है सो मैंने अपने जनेऊ में बांधी अंगूठी निकाली और सीताजी के सामने उछाल दी। सूरज की किरणों से दमकता अंगूठी का हीरा सीताजी के सामने गिरा तो वे चौंकी। उन्होंने

अंगूठी उठाई और तुरंत पहचान लिया कि यह कौन की अंगूठी है। वे चकित थीं कि श्रीराम अंगूठी यहां कहां से आ गई। वे बोलीं ‘‘ यह अंगूठी कौन लाया। मैं प्रार्थना करती हूं कि जो भी इस अंगूठी को लाया है वह मेरे सामने प्रकट हो जाये।’’

मैं कूद कर सीताजी के सामने जा पहुँचा ।

सीता ने आदिवासी कबीले बानर बिरादरी के एक अजनबी सदस्य को सामने खड़ा देखा तो वे मुंह फेर कर बैठ गईं। मैंने कहा ‘‘ आपको शंका होगी कि एक बानर आपके पास प्रभुू का संदेश लेकर क्येां आया इसलिए पहचान के लिए करूणानिधान ने यह अंगूठी मुझे दी है।’’

सीता फिर चौंक गई । क्यों कि श्रीराम और सीता ही जानते थे कि सीताजी उन्हे करूणानिधान कहती हैं। उन्होने सकुचाते हुए पूछा ‘‘आप बानर और वे अयोध्या के राजकुमार। आपका मिलन कैसे हुआ?’’

मैंने उनके हरण से लेकर समुद्र पार करके मेरे आने तक की सारी कथा सुनाई तो उन्हे कुछ विश्वास हुआ। फिर मैंने उन्हें वह गुप्त संदेश दिया जो उन्होने मेरे चलते वक्त श्रीराम ने मेरे कान में कहा था। अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया था।

मैंने उनसे कहा कि आप धीरज धरिये हमारे पूरे दलके साथ बहुत जल्दी श्रीराम यहां आयेंगे और रावण को उसके कर्मो की सजा देंगे।

अचानक मुझे ध्यान आया कि दिन आधा हो चुका है, लेकिन मैंने कुछ भी नहीं खाया है, पेट में चूहे कूद रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि मुझे भूख लग रही है, यदि अनुमति दें अशोक वन के दूसरे हिस्से में लगे पेड़ों से कुछ फल खा लूं। सीताजी ने मुझे बताया कि लंका में चार तरह के सैनिक हैं - भट, सुभट, महाभट और दारूणभट।दारूण भट पूरे संसार में अकेला एक है और वह है मेघनाद। इस बागीचे की रखवाली भट श्रेणी के सैनिक करते हैं, और सुभट श्रेणी का सैनिक उनकी टुकड़ी का नायक है।

मैंने कहा कि आप आज्ञा दें तो आज हर श्रेणीके सैनिकों की ताकत का परीक्षण कर लेता हूं।

उनकी अनुमति लेकर मैं फल वाले हिस्से में गया और पेड़ पर चढ़ कर फल खाने लगा। सहसा किसी सैनिक ने मुझे देखातो गालियां देता हुआ वह अपना भाला लेकर मेरी ओर दौड़ा। मैं पेड़ों पर छलांग लगाता हुआ उसके ठीक ऊपर जाकर गिरा। फिर उसका भाला लेकर मैंने उसकी पिटाई शुरू कर दी तो वह सिर पर पैर रखकर भागा। एक-एक करके मैंने बारह के बारह रखवालों को मार भगाया। गुस्सा आया तो मैंने पेड़ उखाड़ कर फेंकने लगा।

कुछ देर बाद एक तगड़ा सेनानायक अपने साथ ढेर सारे सैनिक लेकर चिल्लाता हुआ वहां आया। एक सैनिक ने चिल्ला करकहा अरे ओ बानर, आज तू अक्षयकुमार से भिढ़ रहा है, इसलिए तेरा काम-तमाम हेाने वाला है। मैं समझ गया कि यह रावण का बेटा अक्षय कुमार है, चलो इसी से दो-दो हाथ करता हूं। मैं जमीन पर कूद गया और उसे कुश्ती के लिए ललकारा तो वह अपने हथियार फेंके बिना मुझसे कुश्ती लड़ने आया और अचानक अपनी तलवार निकाल कर मुझ पर हमला किया तो मैंने उसकी तलवार छीन कर उसी के पेट में घुसेड़ दी।

वह चीख मार कर अपनी जगह पर गिरा तो मुझे ध्यान आया कि मैंने बैठे-ठाले एक आफत मोल ले ली है। खैर, जो होगा देखा जायेगा सोच कर मैं फिर से फल खाने लगा।

कुछ देर बाद अचानक आवाज आई ‘‘ हे मेघनाद जी, वो रहा उत्पाती बानर।’’

मेघनाद ने मुझे देख कर अपना धनुष बाण संभाला और मुझ पर बाणों की बौछार कर डाली। मैं इधर-उधर झुक कर बाण बचाता रहा। फिर मैंने सुना कि मेघनाद चिल्ला कर मुझसे कह रहा है कि ओ बानर तुम्हारे बदन पर पहना हुआ जनेऊ यह इशारा कर रहा है कि तुम ब्राह्मण हो, तुम्हे ब्रह्मा की सौगंध है कि अब इस वन को उजाड़ना बंद कर दो और अपने आपको मेरे हवाले कर दो।

मुझे बड़ा अचरज हुआ। युद्ध में कसम और सौगंध का क्या काम ? विभीषण बता रहे थे कि रावण को यह बागीचा अपने पुत्रों से भी बढ़कर प्यारा है, इसे उजाड़ना रोकने के लिए शायद मेघनाद ने मुझे सौगंधदी है।

मैं जहां खड़ा था वहीं खड़ा हो गया।

वह लपकता हुआ आया और मुझे पकड़ लिया। एक रस्सी से मुझे बांध दिया गया। वे लोग मुझे अपने साथ लेकर चल पड़े।

कुछ देर बाद हम लोग रावण के दरबार में हाजिर थे।

दुःखी स्वर में मुझसे रावण ने पूछा ‘‘ हे बानर, तुम कौन हो ? तुमने यह बागीचा क्यों उजाड़ दिया!’’

मै बहुत झुक कर बोला ‘‘ हे लंकेश, मैं उन श्रीराम का दूत हूं जिनकी पत्नी को तुमने अपने यहाँ कैद कर रखा है । मुझे भूख लग रही थी सो मैंने कुछ फल खा लिए। फल खाना इतना बड़ा गुनाह तो न था कि मुझे मारा-पीटा जाता। वे लोग मुझे मारने लगे तो मैंने उन्हे मारा । आपके एक बेटे ने मुझे जान से मार देना चाहा तो गलती से वह मेरे हाथों मारा गया, फिर आपके इन राजकुमार ने ब्रहमा की सौगंध देकर मुझे बांध लिया।

रावण गुस्से में आ गया और बोला ‘‘ इस बानर ने बहुत बड़ी गलती की है। इसे तुरंत मौत के घाट उतार दिया जाय।’’

तभी जाने कहां से विभीषण राज दरबार में आ पहुंचे और बेाले ‘‘ भैया, आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। किसी दूत को जान से नहीे मारा जाता।’’

माल्यवंत नाम के बूढ़े मंत्री ने भी यही कहा । फिर सबने एक निर्णय लिया कि मेरी देह पर कपड़ा लपेट कर आग लगा के मुझे थोड़ा सा झुलसा दिया जाय।

तुरंत ही सारी तैयारियां की जाने लगीं।

मेरे बदन पर कपड़ा लपेट कर खूब सारा तेल उड़ेला गया और आग लगा दी गई, वे आग से बचते वक्त मेरे उछलने कूदने का तमाशा देखना चाहते थे लेकिन मेरे मन में कुछ और याद आ गया था। मैं तुरंत ही जमीन पर लेट गया और अपनी आग बुझाने लगा, मेरी आग तेजी से बुझ गयी और उल्टा हो गया, जमीन पर बिछे कालीन में आग लग गई। में फुर्ती से उठा और मैंने आग लगाने के लिए मशाल लेकर आये एक सैनिक से मशाल छीनी और दरबार वाले कमरे से ऊपर की ओर जाने वाले सीड़ियों पर सरपट भाग चला। ऊपर ही तो रावण का रनिवास था, मैंने वहां की हर चीज से मशाल छुआई और आगे बढ़ताचला गया। छतों से कूदता कुछ ही देर में मैं उस जगह था जहां अन्न का भण्डार था। यदि इस जगह आग लग गई तो लंका का कई महीनों का भोजन समाप्त हो जायगा यह सोच कर मैंने मशाल को लहराते हुए उस तरफ फेंका और दौड़ता हुआ सीधा अशोक वन में जा पहुंचा।

सीताजी के पास बैठी त्रिजटा राजदरबार के सारे समाचार उन्हे सुना रही थी। मुझे देख कर वह उठी तो मैंने उसे प्रणाम किया और सीताजी से बोला ‘‘ आप मुझे आज्ञा दीजिये, मैंने ऐसा खेल शुरू किया है कि लंकेश बौखला उठे है। बाहर मेरी तलाश जोरों पर हो रही है। अब मैं तुरंत लौटना चाहता हूं।

सीताजी बोलीं ‘‘ ठीक है हनुमान, तुम अपना ध्यान रखना। प्रभु से कहना वे जल्दी आवें। ’’

मैंने उन्हें प्रणाम किया और छिपता-छिपाता लंका नगर की चहार दिवारी की तरफ बढ़ने लगा। एक जगह सुनसान थी , वहां मैं चहारदिवारी पर चढ़ गया और फुर्ती से सामने दीख रहे समुद्र में छलांग लगा दी। थोड़ाही आगे बढ़ा था कि मैनाक अपनी टापु नुमा नाव के साथ मेरी राह देखते मिले। उनके साथ मैं आपके पास चला आया हूँ ।

इतना कह कर हनुमान जी से अपनी लंका यात्रा का किस्सा समाप्त किया।

हम मन ही मन हनुमानजी की तारीफ कर रहे थे।

रात गहरी हो चुकी थी। जामवंत ने आदेश दिया कि हनुमानजी की बात पूरी हो चुकी है, अब सब सो जाओ। कल सुबह उठ कर हमे वापस किष्किन्धा नगरी चलना है। लम्बी यात्रा होगी। इसलिए बिश्राम जरूरी है।

कुछ ही देर में सब के सब नींद में गाफिल हो गये।

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