Chapter 3
अगले दिन
आरुषि लंच टाइम में अपने स्कूल के गार्डन में बैठी होती हैं, वही पर सौम्या आती हैं)
सौम्या "यार आरुषि तू यहाँ बैठी हैं, नीतू ने बताया था तू क्लास रूम में हैं मैं तुझे वहां देख कर आ रही हूँ, कमीनी कितनी झूठी हैं.....उसको तो मैं छोडूंगी नहीं"
आरुषि "अरे…. मैं क्लास रूम में ही थी, अभी थोड़ी देर पहले आयी हूँ......बैठ जा तू भी"
सौम्या "अच्छा....आज तो बच गयी नीतू की बच्ची .....सुन ना, अभी ना टीचर्स रूम में ना अंजली के साथ एक कांड हो गया हैं, सुनेगी ना तो तुझे भी बड़ी हसी आएगी"
आरुषि "सौम्या प्लीज़, मेरा मन नहीं हैं कुछ भी सुनने का, तूने लंच कर लिया ना मैंने टेबल पर रखा था"
सौम्या "ओये तुझे के हो गया......तू काये को अपसेट हैं बता, क्लास में भी मुँह लटकाये बैठी थी, कहाँ लुट गयी तेरी इज़्ज़त......?"
आरुषि "ओये...कहावते तो अच्छी किया कर"
सौम्या "ओ जानी...वर्ड्स पे नहीं इमोशंस पे जाओ इमोशंस पे, क्या हुआ बताएगी अब…..."
आरुषि "यार मैं अपसेट नहीं कन्फूज़ हूँ, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा की मैं क्या करू "
सौम्या "अरे यार तू बता तो बात क्या है, मैं अभी सॉल्व कर देती हूँ(थोड़ी देर तक आरुषि को देखते हुए) बताएगी अब"
आरुषि "हाँ, आई होप तू कुछ अच्छा सा सजेशन देगी, एक्चुअली कल शाम को जब मैं बालकनी में खड़ी थी तब वो सामने वाले लड़के ने मुझे ये लेटर दिया और उस लेटर में लिखा हैं......"
(लेटर आरुषि के हाथों में ही होता है सौम्या उसके हाथ से जल्दी से लेटर लेकर पढ़ने लगती है, आरुषि उसका चेहरा देखने लगती है)
(लेटर पढ़ कर हसते हुए) सौम्या "ये तो तुझसे फ्रेंडशिप करना चाहता है, बुद्धू ने अपना पहला लेटर कितना डर-डर कर लिखा है (मजाक करते हुए )”
आरुषि "सौम्या तुझे मजाक सूझ रहा है, मैं कितनी टेंशन में हूँ तुझे पता भी है "
सौम्या "अरे यार इसमें टेंशन लेने की क्या बात है, तुझे तो खुश होनी चाहिए उस हैंडसम को तुझसे प्यार हो गया हैं, फिर शादी... देन बच्चे....हाउ स्वीट "
आरुषि "ओये...स्वीट की बच्ची...,तूने तो पूरी फॅमिली प्लानिंग कर दी, तेरा दिमाग तो ठीक हैं ना"
सौम्या "हाँ जी अब हम तो पागल हो गए हैं ....अच्छा तो सिर्फ वही हैं... हुऊँ...लेकिन मैं कह देती हूँ हाँ मैं पागल नहीं मेरा दिमाग ख़राब हैं...हाहाहाहा"
आरुषि "ओफ्फो...यह सब छोड़...कुछ सोलुशन देगी अब"
सौम्या अरे यार.....तू कितना सोचती हैं और वैसे भी उसने तो सिर्फ तुझसे फ्रेंडशिप के लिए ही तो बोला है इसमें इतना क्या सोचना यार, कही तुझे ये तो नहीं लग रहा कि तुझे उससे प्यार हो जायेगा"
(सौम्या की बातों को काटते हुए) आरुषि "शट अप, मुझे उससे कभी प्यार नहीं होगा"
सौम्या-"लेकिन तूने ही तो कहा था ....."
(फिर से सौम्या की बातों को रोकते हुए) आरुषि "ओये सौम्या की बच्ची मुझे भी पता है कि मैंने क्या कहा था, वो बस ठीक ठाक दिखता हैं इसका मतलब यह थोड़ी हैं के मुझे उससे प्यार हो गया हैं....कुछ भी",
सौम्या "एक ही बात हुई ना, अभी ठीक ठाक लग रहा है फिर प्यार भी हो जाएगा"
आरुषि "ओफ्फो.......तुझसे तो कुछ कहना ही बेकार हैं, चल क्लास में चलते हैं"
सौम्या "अरे बैठ ना... गुस्सा क्यूँ हो रही है....तू मुझे जानती तो हैं ना.....वैसे तूने "हाँ "कह दिया है ना"
आरुषि "नहीं यार, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या कहुँ"
सौम्या "कहना क्या है बस एक स्माइल पास करनी है हीहीही डरावनी सी....ओह सॉरी, वैसे तू कितना सोचती है, अगर मैं तेरी जगह होती तो कब का स्माइल कर चुकी होती और सिर्फ
स्माइल ही नहीं और भी बहुत कुछ कर चुकी होती....हाहाहाहा"
आरुषि "हाँ तो तू जाकर कर देना न......स्माइल"
सौम्या "चिल यार, उसको तो तेरे से करनी हैं फ्रेंडशिप मुझसे नहीं वैसे तू कहती क्यू नहीं है "हाँ"
(सोचते हुए) आरुषि "यार....सौम्या ......"
सौम्या "मुझे तो शक हो रहा है कि तुझे उससे प्यार हो गया है"
आरुषि "कुछ भी…..(मुस्कुराते हुए ) ठीक है मैं उसे फ्रेंडशिप के लिए हाँ कह दूंगी, लेकिन सिर्फ फ्रेंडशिप के लिए ...."
सौम्या -"ओहो क्या बात है मेरी सीधी-साधी फ्रेंड कितनी बदलती जा रही है, कही उससे फ़्रैंड्सशिप के बाद तू मुझे तो नहीं भूल जाएगी न"
आरुषि -"सौम्या ...."
सौम्या -" मजाक था भई, एक सेकंड तो तू इसी टेंशन में यहाँ अकेले सुनसान जगह पर बैठी थी"
आरुषि-"तो...तुझे क्या लगा था"
सौम्या - ओये होये होये होये ....तू भी न आशु, तुझे पता हैं आज के ज़माने की लड़कियों का न एक नहीं दो तीन बॉयफ्रैंड्स होते हैं और तुझे तो सिर्फ एक ने फ्रैंडशिप के लिए बोला हैं....उसमे भी"
आरुषि -"ओए डोंट कम्पेयर माय सेल्फ तो एनी अदर गर्ल्स....आयी ऍम द ओनली वन"
सौम्या -"या....आई सी दैट.....चल चलते हैं क्लास रूम में "
(दोनों हसने लगते है और फिर वापस अपने क्लास रूम में चले जाते हैं)
Chapter 4
शाम के छह बजे
(आरुषि अपने बालकनी में एक दिन बाद वापस आती है, दीवांक उसका पहले से ही इंतज़ार कर रहा होता है, आरुषि दीवांक की तरफ देखती है और फिर उसके बाद एक प्यारी सी स्माइल पास करती है, दोनों की दोस्ती की शुरुआत हो जाती है, दिवांक उसे अपना दूसरा लेटर देता हैं, जिसमे सिर्फ "थैंक्स" लिखा होता हैं, आरुषि अपने कमरे में चली जाती हैं और उसके थैंक्स का जवाब लिख कर देती हैं, दीवांक हमेशा आरुषि के लिए लेटर लिख कर रखता था और जब भी आरुषि छत्त पर आती तो वो उसे देता, कुछ दिनों बाद आरुषि दीवांक को अपना नंबर देती हैं और दोनों फ़ोन से बातें करने लगते हैं, दीवांक आरुषि से मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ता था, आरुषि भी उसे पसंद करने लगी थी और फिर कुछ महीनो बाद इनकी ये दोस्ती प्यार में बदल गयी, दोनों छूप-छुपकर घूमने भी जाते थे, आरुषि के ट्वेल्थ ख़त्म होने के बाद ही उसके मॉम और डैड उसे कलकत्ता के बेस्ट म्यूजिक अकैडमी में दाख़िला करवा देते हैं, आरुषि अपनी आगे की पढाई कॉरेस्पोंडेंस से करती हैं दीवांक भी अपना ग्रेजुएशन कम्पलीट कर चुका था अब वो हॉस्पिटल में इंटर्नशिप कर रहा था, वो जानता था के आरुषि को म्यूजिक से लगाव हैं इसलिए वो म्यूजिक सीख रही हैं लेकिन वो यह नहीं जानता था की आरुषि उसे अपना करियर बनाना चाहती हैं, धीरे-धीरे दीवांक की दीवानगी इतनी बढ़ गयी थी के वह आरुषि को देखे बिना एक पल भी नहीं रह सकता था, दीवांक ने अपने कमरे में अपने हाथो से आरुषि की एक बड़ी सी तस्वीर भी बनवाई थी और उस तस्वीर को एक पर्दे से ढक दिया था, उसने उस तस्वीर पर 'आरुषि आई लव यू' लिख रखा था, आरुषि से फ्रेंडशिप होने के बाद दीवांक बहुत बदल चुका था, वो घर में भी किसी से ठीक तरह से बात नहीं करता था और तो और उसका घर में कम छत्त पर ज्यादा ध्यान रहता था, हर समय आरुषि को ही याद करता रहता था, दीवांक की माँ उसका ऐसा बर्ताव देख रह नहीं पाती हैं, एक दिन वह दिवांक से बात करने के लिए उसके कमरे में जाती है, दीवांक का कमरा बंद होता हैं )
दीवांक की माँ "दीवांक दरवाज़ा खोलो मुझे आपसे बात करनी है बेटा"
दीवांक "मॉम मैं अभी बिजी हूँ, बाद में बात करेंगे "
माँ "दीवांक बेटा आपको क्या हो गया है, मुझे आपसे ज़रूरी बात करनी है वो भी अभी, ओपन दी डोर "
दीवांक “मॉम मैं कह रहा हूँ न आप से बाद में बात करूँगा, आप जाओ मैं आता हूँ थोड़ी देर में”
माँ "ठीक है जल्दी आना, मैं हॉल में वेट कर रही हूँ"
दीवांक "ओके मॉम"
(दीवांक की माँ वहाँ से चली जाती है, वह दीवांक का इंतज़ार करती है लेकिन दीवांक उनसे मिलने नहीं जाता हैं, शाम के समय दीवांक अपने कमरे से निकलता है, माँ हॉल में ही बैठी होती है वो उन्हें अनदेखा करते हुए सीधा छत्त पर चला जाता है,आरुषि से दोस्ती होने से पहले दीवांक अपनी माँ से बहुत प्यार करता था और उनकी एक भी बात को टालता नहीं था, दीवांक की ये हरकते उन्हें सोचने पर मज़बूर करती है)
continue......