कहानी के मुख्यपात्र
आरुषि रॉय
दीवांक शर्मा
आरुषि की फॅमिली
माँ
पापा
दो बहनें
दीवांक की फॅमिली
माँ
पापा
एक बहन
आरुषि के दोस्त - सौम्या और रोहित
असिस्टेंट - रिया
ड्राइवर - मोहन (काका)
दीवांक के दोस्त - मयंक, नंदू , रेहान और जसलीन
सारांश
आरुषि - आरुषि कोलकाता की एक मिडेल क्लास फैमिली से हैं, आरुषि के पापा अपने ज़माने में बहुत अच्छे संगीतकार रहे हैं लेकिन एक मिडेल क्लास फैमिली में इस तरह के शौक को अक्सर दफनाया जाता रहा है, उन्होंने भी ऐसा ही किया, बहुत ही कम उम्र में रिश्तों और ज़िम्मेदारियों में उलझ कर रह गए लेकिन जब आरुषि बड़ी हुई तो उसके अंदर भी उसके पापा के तरह संगीत के शौक पनपने लगे थे, उसके पापा अपने सपनो को आरुषि में महसूस करते थे, वो चाहते थे कि जो वो नहीं कर पाए, वह उनकी बेटी करे इसके लिए वो अपनी बेटी की बहुत मदद करते थे, उन्हें जितनी भी जानकारिया थी संगीत के बारे में वह सब उसे बताने लगे और शहर में आने के बाद उन्होंने उसे एक म्यूजिक अकेडमी में दाखिला भी करवा दिया।
आरुषि का अतीत बहुत बुरा था, सब छोटे ही थे तभी उसके पापा का एक्सीडेंट हो गया था, वह एक्सीडेंट इतना बुरा था की उनका इलाज करवाने के लिए उन्हें अपने घर तक को बेचना पड़ा, आरुषि के पापा के ठीक होने के बाद उन्हें शहर आना पड़ा क्युकि गाँव में इतनी सुविधाएं नहीं थी की वह तुरंत वैसा ही मक़ाम खड़ा कर सके, शहर में ही आरुषि और उसकी दोनों बहने पढ़ती थी, आरुषि के माँ-बाप दोनों नौकरी करते थे, उसके पापा सरकारी स्कूल के शिक्षक थे और माँ नर्स थी।
कई सालो तक तो उन्हें शहर में बहुत दिक्कते हुई दरअसल दिक्कत होने की वजह थी नए जगह पर शिफ्ट होना, लेकिन कुछ सालो में ही सब ठीक हो गया, शहर में वह अपना एक फ़्लैट खरीद लेते है और वही सैटल्ड हो जाते है।
दीवांक - दीवांक एक रिच फैमिली से हैं, आरुषि की तरह उसके लाइफ में ऐसी कोई समस्या नहीं हैं, उसके पापा एक सफल बिजनेस मैन हैं और माँ हाउस वाइफ हैं दीवांक मेडिकल साइंस का स्टूडेंटहैं, पढ़ना उसे बहुत पसंद हैं, दीवांक तब थर्ड ईयर में था जब उसकी मुलाकात आरुषि से हुई थी, आरुषि और उसका घर आमने-सामने हैं, उस समय आरुषि बारवीं क्लास में पढ़ती थी, दीवांक को उसे देखते ही उससे पहली नज़र में प्यार हो गया था, आरुषि भी उसे पसंद करती थी, बहुत मुसीबतो के बाद आरुषि और दीवांक दोनों एक होते है ।
chapter - 1
20 june 2010
शाम का समय
(आरुषि अपने बालकनी में खड़ी होती है और दीवांक अपने छत्त पर टहल रहा होता है, दीवांक की निगाहे बार-बार आरुषि की तरफ जा रही होती है और जब आरुषि की नज़र दीवांक पर पड़ती तो वह उसे अनदेखा करने लगता है, ऐसा लगभग कई दिनों से चल रहा था, दीवांक उसे हमेशा छुप-छुप कर देखता रहता था और जब वो उसे देखती तो दीवांक ऐसा बर्ताव करता जैसे की उसने उसे देखा ही नहीं, लगभग आधे घंटे बाद आरुषि की फ्रेंड सौम्या स्कूल के प्रोजेक्ट के सिलसिले में उसके घर पर आती है, आरुषि की बहन दरवाज़ा खोलती है)
आरुषि की बहन –“हेलो सौम्या दी, आरुषि जीजी तो अपने कमरे में है, अंदर आइये .... (सोफे की तरफ इशारा करते हुए ) बैठिएं”
(मुस्कुरा कर आरुषि की बहन के गालो को खींचते हुए) सौम्या -"हेलो किऊटिपायी,कैसी हो.....?"
आरुषि की बहन -"मैं ठीक हूँ (सोफे की तरफ इशारा करते हुए ) आप बैठो, मैं जीजी को बुला कर लाती हूँ"
सौम्या - "तुम रहने दो स्वीटी मैं खुद जाती हूँ"
आरुषि की बहन - "ओके, नो प्रॉब्लम”
(आरुषि की बहन सोफे के सामने वाले टेबल पर रखी बुक उठाकर पड़ने लग जाती हैं तबतक सौम्या अपनी जुत्ती उतार कर साइड में रखती हैं और आरुषि से मिलने घर के अंदर चली जाती है)
(कमरे के अंदर जाते हुए) सौम्या –“आरुषि कहा हो तुम, आरुषि........”
(आरुषि बालकनी में ही खड़ी होती हैं लेकिन जब वो सौम्या की आवाज़ सुनती हैं तो अंदर चली जाती है)
(सौम्या के पास जाते हुए) आरुषि ”हाय सौम्या, कैसी हो ?"
(चलते हुए ) सौम्या "मैं तो ठीक हूँ, तु कहाँ खोई रहती है, तेरी बहन ने दरवाज़ा खोला था"
आरुषि "यार मैं बालकनी में खड़ी थी और तेरा प्रोजेक्ट बन गया?"
सौम्या "कहाँ यार, उसी के लिए तो आई हूँ "
आरुषि "आओ चलो अंदर बैठ कर बनाते है"
(सिर हिलाते हुए ) सौम्या "हैं चलो"
(सौम्या कमरे में जाकर बेड पर बैठ जाती है, आरुषि सौम्या के लिए कॉफी बनाती है और दोनों बालकनी के साथ वाले रूम में बैठ कर बातें करने लगते है, आरुषि अपनी दोस्त से दीवांक की तरफ इशारे करते हुए कहती हैं), "यार सौम्या ये जो लड़का सामने वाले छत्त पर खड़ा है ना, बहुत ही अजीब है, जब देखो इधर ही देखता रहता है, पता नहीं इसकी प्रॉब्लम क्या हैं......"
(खिड़की की तरफ देखते हुए) सौम्या “कौन है ये...?”
आरुषि "क्या पता कौन हैं......, सामने वाले घर में रहता होगा क्युकि मैंने तो इसे यही देखा है (दोनों कॉफी की एक-एक घूट लेते है )”
(मज़ाक करते हुए) सौम्या "वैसे है बड़ा हैंडसम, तुझसे कुछ कहा इसने "
आरुषि “हिम्मत नहीं है कुछ कहने की इसकी, हाँ वैसे हैं तो हैंडसम”
(मज़े लेते हुए) सौम्या "ओहो, यानि के तुझे भी ये पसंद है, चल ना इससे बातें करते है"
(कफ टेबल पर रखते हुए) आरुषि “क्या.....तेरा दिमाग ख़राब है, मुझे नहीं करनी इससे बात और तुझे भी
नहीं करनी, समझ आई तुझे (थोड़े गुस्से से कहती है)”
सौम्या "चिल यार, तू तो अभी से ही जेलेस हो रही है (सैड फेस बनाते हुए), ठीक है मैं बात नहीं करुँगी, ओके”
(अफ़सोस करते हुए) आरुषि“ कुछ भी....,मैं क्यू जेलस होउंगी और तेरा अभी से क्या मतलब हैं, "हाँ" तुझे बात करनी है तो तू खुद कर ले लेकिन यहाँ से नहीं, ओके"
सौम्या "अरे बाबा गुस्सा क्यूँ हो रही है, मैं बस मज़ाक कर रही हूँ" (फिर दोनों हॅसने लगते है)
(दोनों मिल कर प्रोजेक्ट बनाने लगते है और फिर कुछ देर बाद सौम्या वहाँ से चली जाती है, अगले दिन दोनों स्कूल में मिलते हैं)
आरुषि को देखते ही सौम्या बोल पड़ती हैं "आशु वो हैंडसम सा हीरो कैसा रहेगा जो तेरे घर के सामने रहता हैं......,मैंने उसे अपनी एक फ्रेंड के लिए पसंद किया हैं"
(क्लास रूम में जाते हुए) आरुषि ” कौन वो चँम्पू....ठीक नहीं रहेगा....वैसे कौन सी फ्रेंड के लिए तूने उसे पसंद किया हैं"
सौम्या "तुझे बड़ी जल्दी हो रही हैं जानने की, क्या बात हैं..... "
आरुषि "ओ हेलो......तू किसी को भी पसंद कर उस चँम्पू लिए मुझे क्या.....एनी वे क्लास रूम आ चुका हैं, अब थोड़ा पढ़ ले मैडम"
सौम्या "अरे आरुषि......सुन न (हाथ पकड़ कर पीछे खींचते हुए) पढाई-वढ़ाई तो चलती रहेगी, पहले बता उस हीरो के बारे में और क्या जानती हो तुम, मुझे तो अपनी फ्रेंड को बताना होगा न "
आरुषि "सौम्या तेरी इस फालतू काम के लिए मेरे पास टाइम नहीं हैं, चल अभी मैथ का पीरियड लगा हैं, कुछ पढ़ लेते हैं.........और हाँ उस चम्पू के लिए मैं इतना ही कहूँगी के वो एक आवारा, निक्कम्मा ....और..और...."
सौम्या "बस,बस...तू उसके बारे में ऐसा नहीं कह सकती......तू तो फ्रेंडशिप होने से पहले ही उसका ब्रेकअप करवा देगी"
(हसते हुए) आरुषि “तुझे ही तो जानना था उसके बारे में ( सामने देखते हुए) ओह शिट, टीचर आ रही, चल भाग"
(दोनों क्लास रूम में जाकर बैठ जाते हैं, और बुक खोल कर पढ़ने लग जाते हैं )
(सौम्या बार-बार आरुषि को दीवांक के बारे में पूछ-पूछ कर चिढ़ा रही होती हैं, जब भी सौम्या आरुषि से दीवांक के बारे में पूछती तो वो चिढ जाती और फिर दोनों लड़ने लग जाते हैं, दोनों की दोस्ती ऐसी ही थी, सौम्या को उसे चिढ़ाने में अच्छा लगता था इसलिए वो हर समय मौके की तलाश में रहती थी, लेकिन उस गर्ल्स स्कूल में सब को पता था इन दोनों की दोस्ती कितनी गहरी हैं, दोनों वीक स्टूडेंट्स कि मदद भी करती थी )
Chapter 2
उसी दिन शाम पांच बजे
(आरुषि और सौम्या का टूशन भी एक ही था और क्लास ख़त्म होने के बाद दोनों एक ही साथ वापस भी आते थे लेकिन दोनों का घर दूर-दूर होने की वजह से आधे रास्ते में दोनों को अलग होना पड़ता था, दोनों जब वापस आ रही थी तब सौम्या फिर से आरुषि को छेड़ते हुए पूछती हैं)
सौम्या "वैसे आशु तू चिढ़ती क्यूँ है उससे, इतना अच्छा तो है वो हैंडसम, यू नो मेरा भी एक सपना हैं कोई हैंडसम मुंडा मुझे बार-बार इधर उधर से झांक कर देखता रहे................हायें....और मैं फिर शर्मा कर अपनी पलके झुकाऊं......",
(अफ़सोस करते हुए) आरुषि ”वाह जी वाह....क्या सपने हैं....एक सेकंड, वैसे कौन हैं हैंडसम?"
सौम्या "ओ....मेरे सपने के बारे में कुछ मत कहना, लकी होती हैं वो गर्ल्स जिनके ऐसे सपने होते (नाखूनों पर फूंक मरते हुए) वेल अभी तक तो कोई मिला नहीं हैं इसलिए सिर्फ सपना ही हैं(थकान भरी फूंक मरते हुए)"
आरुषि "(हसते हुए) ओह !...सो सैड".
(झूट मूट के आंसू पोछते हुए) सौम्या "या ..... बता न तू क्यूँ इग्नोर करती हैं उसे "
आरुषि "हें... मैं किसको इग्नोर करती हूँ?"
(फेस दूसरी तरफ घुमाते हुए) सौम्या "अरे वही जो तेरे घर के सामने रहता है” (फिर आरुषि की तरफ देख कर हसने लगती हैं)
आरुषि "ओह गॉड....सौम्या.....बस तुझे कुछ पता लगनी चाहिए फिर तू उस बात को कभी भूल नहीं सकती है ना, वैसे मैं उसे इग्नोर नहीं करती हूँ ओके, वो तो खुद ही मुझे इगनोर करता है जब मैं उसे देखती हूँ तो ......"
(हसते हुए) सौम्या "डरता होगा तुझसे ...."
आरुषि " गॉड …यार मुझे कैसे पता होगा की वह डरता है या नहीं, सौम्या बस तू मुझसे उसी के बारे में पूछती रहियो और कोई काम नहीं है क्या मेरे पास"
(आरुषि को चिढ़ाते हुए) सौम्या "अच्छा ठीक है नहीं पूछूँगी ओके, बस एक बात बता तुझे तो वो हैंडसम लगता है ना तो कही तुझे उससे प्यार तो नहीं हो गया"
(चिढ़ते हुए) आरुषि “सौम्या यार ....प्लीज ....मुझे कभी उससे प्यार नहीं होगा, अब बस बहुत हो गया, अब से कोई सवाल नहीं ख़ास कर उसके बारे में ओके, अब तू बस अपना मुँह बंद करके चलेगी, ओके"
सौम्या "ठीक है ठीक है देखते है तू कब तक खुद को रोकती हो"
आरुषि "देखती ही रहियो, मुझे उससे कभी प्यार नहीं होगा, समझी मिस सौम्या ”
सौम्या “ओह डिअर …लेट्स सी ”
आरुषि “या …लेट्स सी, चल मैं जा रही हूँ मेरा घर आ गया"
सौम्या "यार सुनना, प्रोजेक्ट का क्या करे…..थर्सडे को लास्ट डेट हैं, और तुझे तो पता हैं एचएस की मैम कितनी डेंजरस हैं…..ओह गॉड…..मैं तो इमेजिन भी नहीं कर सकती”
आरुषि “इसी लिए तुझे कहती हूँ फालतू के बातों में टाइम वैस्ट न किया कर ”
सौम्या –ओह हेलो….डोंट बी मॉम टाइप, तुझे पता हैं न अगर मैं एक दिन भी कम बोलती हूँ न तो मेरे पेट में गैस बनने लगती हैं, तू चाहती हैं तेरी फ्रेंड के साथ ऐसा कुछ हो”
(हसते हुए) आरुषि "ओह गॉड….ये भी कोई रीज़न हैं गैस बनने का,चल मैं तुझे अपना प्रोजेक्ट देती हूँ ….लेकिन तू कल लेकर अइयो स्कूल में ..…समझी”
सौम्या –“ओह डिअर …पक्का ..पक्का …पक्का लेकर आउंगी”
आरुषि -“ओके,चल फिर”
(दोनों जैसे ही गली के अंदर जाते हैं वही सामने से दीवांक आ रहा होता हैं आरुषि उसे देखकर चौक जाती है, सौम्या उसे देख कर फिर से आरुषि को छेड़ने लगती हैं)
(धीरे से ) सौम्या "आरुषि...मुझे न बहुत ज़ोर से गाना आ रहा हैं...और अभी मैं रह नहीं सकती"
आरुषि "सौम्या चुप कर....तेरा दिमाग ख़राब हैं"
सौम्या "ओये क्या चुप कर....तू मेरे टैलेंट को दबाना चाहती हैं....नो वे...आई विल सिंग"
आरुषि "ओह रियली... यार तुझे अभी ही गाना आ रहा हैं.....प्लीज् सौम्या (उसका हाथ ज़ोर से दबाते हुए)"
(दीवांक भी आरुषि और उसकी फ्रेंड को देख चुका होता था लेकिन दोनों से आँखे बचाते हुए, साइड से जा रहा होता हैं, तभी सौम्या आरुषि का हाथ छोड़ कर लाउडली गाना गाने लगती हैं)
सौम्या "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे....तोड़ेंगे दम अगर तेरा साथ न छोड़ेंगे "
आरुषि सोचने लगती हैं की कही दीवांक उससे कुछ कहे ना लेकिन वो चुपचाप वहाँ से गुजर जाता है)
दीवांक जब थोड़ा दूर निकल जाता हैं तब आरुषि सौम्या से कहती हैं "ओये तुझे बहुत ज़ोर से यही गाना आ रहा था"
सौम्या "वॉव, कितना हॉट था न (आरुषि को देखते हुए) वेल मेरी फ्रेंड भी इतनी बुरी नहीं दिखती हैं"
आरुषि "सौम्या....तुम कब क्या करती हो तुम्हे पता भी हैं....ओह गॉड तुम थोड़ा अपना मुँह बंद नहीं कर सकती थी क्या उसके सामने गाना जरुरी था"
सौम्या "हाँ तो वो क्या प्राइम मिनिस्टर हैं जो उसके सामने नहीं गा सकती और मैं क्या करूँ वो उसी वक़्त आ गया तो..हुऊँ"
आरुषि "ओह शट उप, मुझे पता हैं....तू ने अब से ऐसा कुछ किया ना तो मैं तेरी बिलकुल भी हेल्प नहीं करने वाली"
सौम्या "(गाना गाते हुए)ओ जानी.....यह क्या कह डाला, लुट गयी मैं, मिट गयी मैं........"
आरुषि "बस बस हाँ....बहुत हुआ, सच बोल रही हूँ मैं ड्रामा क़्वीन.... एक भी प्रोजेक्ट नहीं दिखाउंगी"
सौम्या "ओह नहीं....यार तेरी कसम आज से मैं चूं तक नहीं बोलूंगी ओके बट सिर्फ उसकेसामने (मुँह पर ऊँगली डालते हुए)"
(अपने दरवाज़े पर रुकते हुए) आरुषि "चल ऊपर, असाइनमेंट ले लियो "
(सौम्या ऊँगली मुँह पर रख कर,सर हिला कर हाँ कहती हैं)
(हसते हुए) आरुषि "पागल...." ( फिर सौम्या का हाथ निचे कर देती हैं)
(सौम्या असाइनमेंट लेकर चली जाती हैं, आरुषि भी अपने कामो में बिजी हो जाती हैं, शाम के टाइम जब वो बालकनी में खड़ी होती हैं तब उसी वक़्त सामने से एक कागज़ का टुकड़ा आता हैं जो एक लेटर होता हैं, वो चौंक जाती है और देखने लगती है की ये कागज कहा से आया है, उसकी नज़र सामने वाले घर पर पड़ती है, उस छत्त पर दीवांक खड़ा होता है, दीवांक आरुषि के देखने पर दूसरी तरफ मुड़ जाता है लेकिन आरुषि ये समझ जाती है कि उसी ने फेंका है, दीवांक दुबारा पीछे मुड़ कर देखता है, आरुषि तब भी उसे देख रही होती है, दीवांक फिर आगे मुड़ कर चलने लग जाता है इसबार वह पीछे नहीं मुड़ता, आरुषि उस कागज़ के टुकड़े को उठाती है और उसे लेकर कमरे में चली जाती है और फिर गेट बंद कर लेती है, गेट बंद होने की आवाज़ से दीवांक पीछे मुड़ कर देखता है, वह जल्दी से छत्त के किनारे आकर लेटर को इधर-उधर देखने लगता है, दीवांक को लगता है शायद आरुषि ने उस लेटर को ले लिया होगा, वो एक किनारे बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगता है,आरुषि उस लेटर को खोल कर देखती है)
उसमे लिखा था :-
आरुषि आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मैं आप से बात करना चाहता तो हूँ लेकिन मुझे डर लगता है कि कही आप मुझे सामने से चाटे न मार दो इसलिए बहुत हिम्मत कर के मैं यह लेटर लिख रहा हूँ, क्या आप मुझसे दोस्ती करोगी, अगर "हाँ" है तो बस एक स्माइल कर देना, मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा )
(दीवांक छत्त पर बैठा उसका इंतज़ार करता रहता हैं लेकिन उस दिन आरुषि वापस अपने बालकनी में नहीं आती है, रात हो जाती है, दीवांक की माँ उसे बुला कर निचे ले जाती है)