सुबह के साढ़े आठ बजे थे, राकेश का कहीं अता पता नहीं था| सुबह सात बजे शिप्रा ढाई महीने की बेटी पीकू को तैयार कर मंदिर जाने के लिए घर के आंगन में खड़े स्कूटर तक पहुंची ही थी कि राकेश ने कहा ,"बस अभी आया" और स्कूटर स्टार्ट कर कहीं निकल गया | शिप्रा "अरे पीकू भूखी है सुनो तो !" कहती ही रह गयी लेकिन राकेश तो यह जा और वह जा|"
आधा घंटे बाद पीकू ने भूख से अपने होंठ चाटना और कुनमुनाना शुरू कर दिया और कुछ मिनट बाद रोना| शिप्रा कभी बाँहों में झूला कर, कभी थपक कर, कभी सीने से लगा ,कभी झनझुना बजा उसे चुप कराने की भरपूर कोशिश कर रही थी लेकिन तीन घंटे से भूखी बच्ची चुप ही नहीं हो रही थी| दरअसल यह ढाई महींने की पीकू का पहला बसौड़ा था पहले दिन खाना बना कर रख दिया गया था| पीकू की दादी यानि शिप्रा की सास की ताकीद थी कि बच्ची को जब तक नहला कर शीतला माता के मंदिर ले जाकर छींटा न लगवाया जाये तब तक उसे दूध नहीं पिलाना | हाँ सुबह उसे और खुद के नहाने से पहले एक बार फीड करा सकती है, लेकिन नहाने के बाद नहीं| सो शिप्रा ने पांच बजे पीकू के उठते ही उसे फीड कराया और फिर खुद नहाकर, उसे नहला कर जल्दी जल्दी पूजा की तैयारी की| राकेश को उसने पहले ही बता दिया था कि साढ़े छह बजे तक मंदिर निकल जाना है क्योकि मंदिर में भी न जाने कितनी लम्बी पंक्ति हो वहां से लौटते और बच्ची को फीड कराते आठ नौ बज जायेंगे एक ढाई महीने की बच्ची इससे ज्यादा भूखी नहीं रह सकती |
राकेश ने फिर भी नहा कर तैयार होते सात बजा दिए , शिप्रा ने सोचा चलों इतनी भी देर नहीं हुई और फिर अचानक जाने क्या हुआ कि उसे "बस अभी आया" कह कर राकेश स्कूटर लेकर निकल गया और अब साढ़े आठ बजे थे बच्ची भूख से कुलबुला रही थी | आखिर शिप्रा से उसका भूख से बिलखना सहन नहीं हुआ और वो अपनी सास से बोली ,"मम्मीजी , पीकू भूख से तड़प रही है, मैं रिक्शा लेकर मंदिर जा रही हूँ ये आयें तो इन्हे वहीँ भेज देना| सास ने एक बार नजर उठायी, बोली कुछ नहीं| अब शिप्रा ने ड्राइंग रूम में बैठे देवर से भी यही कहा -" अब इसका रोना नहीं देखा जा रहा मैं मंदिर जा रही हूँ| तुम्हारे भैया आयें तो उन्हें मंदिर भेज देना|"
मंदिर में पूजा से निबट कर थोड़ी देर और राकेश की राह देखकर शिप्रा रिक्शा से ही घर लौट आयी | तब तक दस बजने वाले थे| शिप्रा ने घर में घुसते ही जल्दी से भूख से बिलखती बच्ची को दूध पिलाना शुरू कर दिया | तभी गुस्से में भरा राकेश दनदनाता हुआ कमरे में घुसा और बोला, "कहाँ गयी थी|"
पहले तो शिप्रा के कुछ समझ ही नहीं आया फिर कुछ समझ कर बोली, "मंदिर गयी थी, आप अभी आया - कह कर साढ़े आठ बजे तक आये नहीं पीकू का भूख से रो रो कर बुरा हाल था|"
"किसे बताकर गयी थी?"
"मम्मीजी और भैया दोनों को..."
"नहीं हमे नहीं बताया|"- दोनों साफ झूठ बोल गए |
हैरानी में शिप्रा के मुंह से निकला,-"अरे ? दोनों को तो बताया था| पीकू भूख से बिलख रही थी ये भी आपको पता है|"
"नहीं वो तो नहीं रो रही थी, ना ही तुमने हमें बताया कि कहाँ जा रही हो|"
"आप लोग झूठ क्यों बोल रहे हो ?" शिप्रा ने रुआंसी होकर कहा
तड़ाक से एक झन्नाटेदार थप्पड़ शिप्रा के गाल पर पड़ा| थप्पड़ इतना जोर का था कि पीकू भी दूध छोड़कर रोने लगी|
शिप्रा की आँखों में दर्द और अपमान के आंसू छलछला आए और गालों पर थप्पड़ के निशान |
उसने पीकू को कस कर गले लगा लिया | सफेद झूठ बोल रही सास और देवर के चेहरे पर विजयी भाव था |
कुछ ही देर में दरवाजे की घंटी बजी | शिप्रा ने दरवाजा खोला तो एक महिला ने,जो घरेलू सहायिका लग रही थी, राकेश का वॉलेट उसकी और बढ़ा दिया, बीबीजी ने भिजवाया है साहब वहीं छोड़ आये थे | "मतलब ?" शिप्रा ने प्रश्नवाचक नजरों से उसे देखते हुए पूछा |
वो साहब सुबह उषा बीबीजी और टिंकू (उषा का दस महीने का बेटा) को शीतला माता के मंदिर छींटा लगवाने ले गए थे न सो ये वालेट उनकी जेब से बीबीजी के घर के सामने गिर गया था |
तभी राकेश ने पीछे से आकर उससे अपना वॉलेट झपट लिया| शिप्रा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा लेकिन अपने पीछे फैली ढीठता को महसूस कर सकती थी | उसके वजूद पर एक और थप्पड़ के निशान उभर आये|"
---शोभना श्याम