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फोटोशॉप

आरुषि ने उसकी पसंद के रंग की ड्रेस पहनी, हल्का मेकअप किया, एक बार फिर स्वयं को शीशे में निहारा और अपनी सुंदरता पर पूरी तरह आश्वस्त हो गुनगुनाते हुए घर से निकल पड़ी| आज पांच महीनों के आभासी रिश्ते को वास्तविकता के संसार में लाने का वक्त आ गया था| आरुषि का मन कर रहा था की वह उड़ कर मिलने की जगह पहुँच जाये| धड़कन इतनी तेज कि पाँव भी डगमगा रहे थे| पांच महीने पहले फेसबुक पर आरुषि की समीर से दोस्ती शुरू हुइ थी| दोनों ही मल्टी नेशनल कम्पनी में काम करते हैं जिसकी वजह से दोनों की फेसबुक प्रोफाइल में कई म्युचुअल मित्र हैं| इन्ही में से किसी की वाल पर आरुषि की फोटो देखकर उसकी ख़ूबसूरती से मोहित हो समीर ने आरुषि को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी थी | यूं तो आरुषि के लिए ये कोई नई बात नहीं थी| उसके पास रोज ही कई यंग लड़कों की फ्रेंड रिक्वेस्ट आती है| आरुषि बहुत पूरी जाँच पड़ताल कर सब तरफ से आश्वस्त होकर ही मित्रता स्वीकार करती है| उसने समीर की फ्रेंड रिक्वेस्ट आने पर उसकी प्रोफ़ाइल को बड़े ध्यान से देखा| काफी म्यूच्यूअल फ्रेंड जिनमे उसके ऑफिस के एक सीनियर भी थे, देखकर पूरा इत्मीनान कर के ही उसकी रिक्वेस्ट स्वीकार की| धीरे धीरे ये दोस्ती कब प्यार में बदली, उन्हें पता ही नहीं चला| ये कोई ‘लव एट फस्ट साइट’ का मामला नहीं था| एक दूसरे की पोस्ट पर कमेंट से शुरू हो, चैटिंग से होती हुई बातें अब फोन कॉल तक पहुँच गयी थीं| दोनों घंटो बातें किया करते| परिवार, रिश्तेदार, कालेज, जॉब, समाज, देश सबकी बातें होती| अपने-अपने कार्यक्षेत्र की मुश्किलों से लेकर फायदों तक, जीवन के चैलेन्ज, जॉब कल्चर की बारीकियां, फैशन ट्रेंड्स कौन सी ऐसी बात थी जो उनके बीच अछूती थी| अब दोनों की आवाज एक दूसरे की धड़कनों को छूने लगी| दोनों को लगने लगा था कि इस रिश्ते को एक बंधन में बाँधा जा सकता है जो इस दुनिया का सबसे पक्का और स्थायी रिश्ता है| और इसके लिए आज दोनों ने मिलने का फैसला लिया| आखिर वो घडी आ ही गई जब समीर उसके सामने था| एक पल के लिए तो आरुषि जैसे आसमान से जमीन पर आ गयी हो, समीर उतना हैंडसम नहीं था जितना फेसबुक पर और व्हाट्सअप की डी पी में लगता था, बल्कि यूं कहे कि बहुत ही साधारण सा था| लेकिन आरुषि ने तो समीर के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को चाहा था| व्यक्तित्व जो केवल उसकी मोहक छवि से नहीं बल्कि उसकी मनमोहक बातचीत, उसकी शिक्षा, उसके विचारों और उसकी रुचियों इन सब से मिल कर बना था| सो अगले ही पल वो सहज हो गयी- "हाय, इस दिस समीर? आई एम आरुषि! "

"या आई एम, हाउ आर यू… .. समीर की निगाहें तो आरुषि के रूप पर जैसे अटक गयी थी, "इतनी सुन्दर! "

आरुषि समझ गयी थी कि समीर उसके सौन्दर्य-सागर में डूब रहा है| इससे पहले कि वह अपने होश खो बैठे, आरुषि ने टोका लेटस सिट एनी वेयर|"

"या श्योर!

“क्या लोगी? कैपेचीनो न ?"

आरुषि मुस्कुराई, "और तुम तो एस्प्रेसो! है न! "

"ऑफ कोर्स! हम इतना तो जानते ही हैं एक दूसरे के बारे में "

"जनाब, हम तो इससे बहुत ज्यादा जानते है एक दूजे को|"

"तो क्या ख्याल है? एक दूजे के लिए.....|"

"ख्याल तो नेक ही है|"

"ये बात है?" समीर ने एक आंख दबाई|

वेटर को ऑर्डर देकर दोनों एक दूसरे की आँखों में खो गए| उन्हें होश तब आया, जब वेटर ने काफी लेकर रखी| जैसे ही आरुषि ने कफी का पहला सिप लिया कि समीर की नजर उसके दाहिने हाथ पर पड़ी|

"अरे ये तुम्हारा हाथ? ये....ओह माय गॉड! यह स्कार....कितना बड़ा "

"हाँ केमिस्ट्री लैब में केमिकल गिर गया था|”

"इउ, इट्स सो 'अगली', रियली यक!!!....तुमने तो कभी जिक्र ही नहीं किया|"

"कभी ख्याल ही नहीं आया कि ये भी कोई बताने वाली बात है...एक चार इंच का स्कार|"

"ये न बताने वाली बात भी नहीं आरुषि! इतना अगली स्कार वो भी सीधे हाथ पर |"

समीर! ये कैसी बात कर रहे हो ? दुर्घटना तो किसी के साथ भी हो सकती है|"

"मगर ये बिलकुल सामने है ऐसी जगह कि इसे छिपाया भी नहीं जा सकता|"

"छिपाने की जरूरत क्या है? क्या मेरा सारा वजूद इस स्कार का मोहताज है समीर?"

"सॉरी आरुषि, आई कान्ट स्टैंड विथ इट………मैने हमेशा अपनी प्रेयसी अपनी पत्नी के रूप में एक सर्वांग सुंदरी की कल्पना की है| फेस बुक पर और इतने दिनों की बातचीत में तुमने अपने.... इस ... हाथ को छिपाये रखा, तुमने चीट किया है मुझे|”

"लेकिन तुम तो ...तुम तो कहते थे कि तुम्हारे लिए विचारो की सुंदरता ही मायने रखती है|" कहना तो वह यह चाहती थी कि चीट तो तुमने किया है समीर, अपनी फोटोज को फोटोशॉप कर के, लेकिन कह नहीं पाई ….|

"आरुषि तुम सचमुच इतनी भोली हो या जानबूझ कर शो कर रही हो, अरे फ्रेंड्स बनाने के लिए तो ये सब कहा ही जाता है| मतलब कह दिया होगा कभी बातों-बातों में, तुमने इस बात को सीरियसली ले लिया, इसीलिए नहीं बताया? लेकिन ....... आई थिंक इट एक्सप्लेन्स यू एव्री थिंग और कुछ नहीं कहना मुझे ..|”

“"ओह तो फोटो ही नहीं, विचार भी फोटोशॉप करके पेश करते थे तुम ....मेरे चार इंच के दाग छिपाने को चीटिंग कह रहे हो| खुद तो अपने पूरे व्यक्तित्व के दाग छिपाये रखेअलविदा समीर!"

अलविदा कहकर वापस तो आ गयी आरुषि, मगर समीर उसका पहला प्यार था| दिल की अतल गहराइयों से चाहा था उसे| अब एकदम से भुला देना उसके वश में नहीं था| और न ही फिर किसी और से दिल को जोड़ पायी आरुषि, अक्सर शीशे के सामने खड़ी हो जाती तो वह भी उसके सौंदर्य की आंच से पिघलने लगता, मगर हाथ पर निगाह पड़ते ही एक अपराध बोध, एक बेचारगी सी उसके दिल दिमाग पर हावी हो जाती क्या सचमुच हाथ का निशान उसके सौंदर्य पर भारी है| मगर इससे पहले तो किसी ने नोटिस नहीं किया| स्कूल-कालेज से लेकर ऑफिस तक न जाने कितने लड़कों ने उसके समीप आना चाहा, मगर आरुषि ने कभी किसी को एंटरटेन नहीं किया| पहली बार समीर से प्यार किया, वो भी बिना मिले, बिना देखे सिर्फ फेसबुक और फोन पर बातों से और उसका अंजाम ....| जिन आँखों ने कभी समीर के साथ एक सुखद भविष्य के ख्वाब संजोये थे, वो अब कभी भी, कहीं भी छलक पड़तीं और आरुषि शर्मिंदा सी कभी तिनके का तो कभी हवा का बहाना बनाती| आरुषि ने फेसबुक भी लगभग छोड़ दिया|

इसी तरह लगभग दो साल बीत गए| आरुषि काफी हद तक उस ब्रेक-अप से उबर चुकी थी| आँखों से आँसू की जगह होठों पर मुस्कानों की बूंदे फिर से छलकने लगी थीं| लेकिन दिल ने दुबारा प्रेम की डगर पर चलने से साफ इंकार कर दिया था| अब जिंदगी बस जॉब और घर के छोटे मोटे कामों तक ही सीमित थी| आज आरुषि छोटी बहन की जिद पर उसे शॉपिंग कराने शहर की सुदूर मॉल में गयी हुई थी| एक यूनिसेक्स स्टोर पर अचानक कोई सामने से निकल गया| आरुषि को लगा यह समीर है| "होने दे, अब तुझे उससे क्या ?" दिमाग ने चेताया| मगर दिल ने अनसुनी कर आँखों को उसी के पीछे लगा दिया|

आँखों ने बताया,"हाँ हाँ ,वही है|" लेकिन ये छिप क्यों रहा है| "ब्रेकअप के कारण नहीं चाहता होगा सामने पड़ना", दिमाग ने फिर टाँग अड़ाई| दिल ने फिर चुप कराया | इस बीच समीर स्टोर से बाहर निकल चुका था| दिल ने गहरी साँस भरी| "हाँ ठीक ही है, अब मुझे उससे क्या ....|"

थोड़ी देर बाद दोनों फ़ूड कोर्ट पहुंची| वहां जैसे ही एक स्टॉल परऑर्डर देने पहुंची, समीर से फिर सामना हो गया| वह उसी स्टॉल पर था| आरुषि की आवाज सुनते ही वह तेजी से वहाँ से जाने के लिए पलटा, आरुषि ने एकदम से पुकारा -"समीर !"

अब समीर के पास रुकने के आलावा कोई चारा न था लेकिन वह पीठ घुमाये ही खड़ा रहा| इस तरह छिपने का मतलब, हम दोस्त नहीं तो दुश्मन भी नहीं न?" कहते कहते आरुषि उसके सामने जा खड़ी हुई| समीर ने तेजी से अपने दाएं गाल पर अपना रुमाल वाला हाथ रख लिया| मानों पसीना पोंछ रहा हो|

कैसे हो समीर? आशा है तुम्हें तुम्हारे सपनों की सर्वांग सुंदरी मिल गयी होगी|"

एक क्षण को चुप रहने के बाद समीर ने अपना हाथ चेहरे से हटा लिया| उसके दाएं गाल के बीचोबीच से ठोड़ी तक चाप के आकार का टाँकों का निशान था | दायी आँख भी लाल थी |

"देख लो आरुषि और हँस लो मेरी बेबसी पर| तुम्हारे साथ किये अन्याय का अंजाम है शायद| मेरी बाइक का भयंकर एक्सीडेंट हुआ था| बस जान बच गयी किसी तरह| पैर में भी रॉड डली हुई है |"

कहते हुए समीर तेज कदमों से चल पड़ा| आरुषि ने अब ध्यान दिया, उसका दायाँ पैर हल्का सा लचक खा रहा था|

"रुको समीर! मैंने समूचे समीर को चाहा था| उसके गाल, हाथ या पैर को नहीं|"

समीर ने पलट कर देखा। आरुषि की आँखों में अब भी वही प्यार घुमड़ रहा था|

-शोभना श्याम

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