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आहुति

आहुति
शिल्पी के दिल में धधकती आग इतनी तेज थी कि फायर प्लेस भी उससे हाथ ताप रहा था| फायर प्लेस से ज्यादा लपटे तो उंसके जीवन मे उठ रही थी। पता नहीं जो उसने किया वो उन लपटों पर पानी का काम करेगा या ऑक्सीजन का| इंतज़ार के इन बेचैन पलों में कोई उसका साथी था तो बस ये फायर प्लेस की आग|
छोटे से हिल स्टेशन लैंसडाउन की सीधी सादी शिल्पी। देखा जाए तो एक ऐसा घर मिला था उसे कि उसकी सहेलियां भी उसके भाग्य से ईर्ष्या करें। एक सुदर्शन वैज्ञानिक पति, शहर के पॉश इलाके में सुंदर सा बंगला। लेकिन ये ख़ुशी शादी के कुछ ही दिनों में कुम्हलाने लगी थी | जल्दी ही शिल्पी को पता चल गया था कि उसका पति जितेश जीनियस होते हुए अपने पिता का पापाज़ बॉय है | एक तो उन्होंने बड़ी गरीबी में जितेश और उसकी दोनों बहनों को पढ़ा लिखा कर क़ाबिल बनाया था, दूसरे पत्नी की असमय मृत्यु ने पुत्र की सहानुभूति को अंध-भक्ति में बदल दिया था। इस अंध भक्ति का उसके पिता जो फायदा उठा रहे थे, उससे अनजान जितेश को उनके खिलाफ शिल्पी की हर बात गलत लगती थी| पिता दिन कहे तो दिन, रात कहे तो रात। नीलिमा को पिता-पुत्र के प्यार से, ससुर के सम्मान से कोई ऐतराज़ नहीं था लेकिन उसका अपना सम्मान......?
सबसे ज्यादा मुश्किल वक्त तब आया जब विवाह के 6 महिने बाद ही जितेश को एक प्रोजेक्ट पर एक वर्ष के लिए फ़्रांस जाना पड़ा। शिल्पी को बुजुर्ग श्वसुर की सेवा और देखभाल के लिए भारत में ही रहना पड़ा और इतने बड़े बंगले में वह और उसके श्वसुर अकेले रह गए। दिन भर तो फिर भी एक मेड और एक कुक घर मे होते थे लेकिन रात में कुक अपने घर चला जाता था और मेड बंगले के साथ बने आउट हाउस में। यही समय था जब पिता सामान श्वसुर की बेजा हरकतें और अनैतिक दवाब शिल्पी को परेशान करने लगा। रात आते ही वह दहशत से भर जाती थी उसकी कोशिश होती कि मेड के आउट हाउस में जाने से पहले वे रात का खाना लें और वह अपने कमरे में बन्द हो जाये। लेकिन उसके श्वसुर जान बूझकर खाने के लिए देर कर देते। आखिर मेड को अपना घर अपने बच्चों को भी देखना होता था ये पहले से तय था कि वह आठ बजे से पहले फ्री होकर अपने कमरे में चली जाएगी।
उसके जाने के बाद खाना शिल्पी को ही लगाना होता था। खाने के बाद दूध या काफी भी। बस उसके श्वसुर को मौका मिल जाता था उसे मोलेस्ट करने का। जान बूझकर उसके खाना परोसते हाथों पर अपने हाथ ऐसे रख देते जैसे कुछ हुआ ही न हो। शिल्पी को लगता जैसे कोई केंचुआ या कोई कॉकरोच छू गया हो। आधी रात को उसे आवाज देकर पानी मांगते और पानी लेते हुए उसका हाथ पकड़ लेते। एक रात तो जब वह बुलाने पर नही गयी तो उसके कमरे का दरवाजा जोर जोर से पीटने लगे। शिल्पी सारी रात सहमी सी जागती रही। अगली सुबह उनका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था ।"रात को दरवाजा क्यों नही खोला? मेरे घुटने में दर्द था और वॉलिनी की ट्यूब नही मिल रही थी?" ऐसा लगता था पुत्र के अंधे विश्वास ने उन्हें निडर और बेशर्म बना दिया था।
दहशत के इन क्षणों में शिल्पी ने कई बार ये सब जितेश को बताने का निश्चय किया, मगर हिम्मत नही पड़ती थी कि आखिर कैसे क्या बताएगी। क्या जितेश उसका विश्वास करके अपने प्रिय पिता के खिलाफ ये सब सुन पाएंगे? इसी उहापोह में कई दिन गुजर गए ।फिर एक दिन उसके शवसुर इतना आगे बढ़ गए कि आखिरकार उसने डरते-डरते जितेश को फोन पर बता ही दिया। लेकिन जिस बात का डर था वो ही हुआ। जितेश की कड़वी प्रतिक्रिया ने उसे सकते में डाल दिया | विश्वास करना तो दूर उल्टा गुस्से में जितेश ने उसका फोन उठाना भी बन्द कर दिया।
हैरान- परेशान शिल्पी दो तरफ़ा मार झेलते टूट रही थी, जब एक दिन उसने अपनी पक्की सहेली ऋचा से अपना दर्द साझा किया -
"क्या करू ऋचा, जितेश को कैसे यकीन दिलाऊं ?"
"ये तो हद हो गयी शिल्पी! अपनी पत्नी पर इतना भी विश्वास नही? पितृ-भक्ति की पट्टी आंख के साथ दिमाग पर भी बाँध रखी है जितेश ने।"
" ऋचा, उन्होंने तो मेरा फोन भी उठाना बन्द कर दिया । अब तो डर लगने लगा है मेरी रिश्ते में एक बुआ की गृहस्थी भी इसी तरह बर्बाद हो गयी थी लेकिन आज के जमाने में ये सब ???"
"शिल्पी! तेरे सवाल में ही तो जवाब है, आज के जमाने में ये बेबसी ? 25 वर्ष पहले जब तेरी बुआ के साथ ये हुआ तो उस समय आज जैसे हथियार नहीं थे उनके पास |"
"हथियार ? मैं समझी नहीं ऋचा |"
"वही हथियार, जिसका दुरूपयोग आजकल हम औरतों के खिलाफ होने लगा है, शिल्पी हम उसी को अपनी ताकत, अपनी ढाल बना सकते हैं|"
"............?"
"मेरा मतलब एम एम एस से है शिल्पी , मोबाइल से वीडीओ , ऑडियो रिकॉर्डिंग |"
"ये क्या बक रही है ऋचा! इतना गन्दा काम अपने बड़ों के खिलाफ ?.... हमारे संस्कार...... ?"
" हाँ संस्कार ही तो, सावित्री ने अपनी तपस्या से अपने पति को यमराज से छुड़ाया था, तुझे भी अपने पति को अंध-भक्ति के यमराज से छुड़ाना है, एक संस्कार की रक्षा करने के लिए तुझे दूसरे संस्कार की आहुति देनी होगी शिल्पी। जब बड़ों को अपनी मर्यादा का ख्याल नहीं तो हम उनके मान के लिए अपनी इज्जत दांव पर क्यों लगाए "
"लेकिन ..........?"
"कुछ मत सोच शिल्पी, इसके अलावा कोई रास्ता तेरे पति की अंध-भक्ति ने छोड़ा ही कहाँ है । देख इतना बड़ा घर है तेरा, दोपहर में जिस समय अंकल सो रहे होंगे या शाम को जब इवनिंग वाक पर निकलेंगे। मैं चुपके से घर मे आकर छिप जाउंगी और फिर .......समझ गयी न ? सच कहूँ तो इस नीच आदमी को अंकल कहते भी घिन आती है ,कैसे सहन करती है तू ये सब । खैर अब और नही। या तो जितेश तेरा विश्वास करें नहीं तो छोड़ देना ऐसे व्यक्ति का साथ। जिसे तेरी इज्जत, तेरी मर्यादा की परवाह नही ऐसे आदमी के साथ जीकर भी क्या करेगी।"
"और कोई चारा न देख शिल्पी ने इसमे अपनी सहमति तो दे दी मगर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। लेकिन ऋचा इस कदम की सफलता पर आश्वस्त थी ।
तीन दिन की कोशिशों के बाद आखिरकार ऋचा उस व्यक्ति की घिनौनी हरकत को कैमरे में बन्द करने में सफल हो गयी। उस एम एम एस को जितेश को भेज कर शिल्पी अब इंतज़ार और भय की दोहरी अग्नि में जलती घुटनों में मुँह छिपाये फायर प्लेस के पास बैठी है| "मुझे माफ़ कर देना जितेश ! ये अग्नि साक्षी है कि मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था !"
शोभना श्याम

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