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मीठा मुँह


जैसे ही भात देने की रस्म पूरी कर विमल अपनी पत्नी, बेटा, बेटी, दामाद और अन्य परिवार जनों के साथ अपनी बहन संध्या के घर में प्रविष्ट हुए, घर की महिलाओं ने सब को आदर से बैठक में बिठा कर सामने मिठाई और नाश्ते की प्लेटें सजा दी| आँगन में कुछ महिलायें भात के गीत गा रहीं थीं -".भातईया बैठा बीच आँगन खोले गठरी ...जेवर लाया, कपड़ा लाया, लाया चुंदरी ..... |" इतने में बहन की जेठानी नीता एक थाल में मठरी और घी-बूरा ले कर आ गई और बोली- "अरे भाई जी पहले ये खाकर मुंह मीठा की रस्म करो फिर बाकी पकवान खाना|" विमल की पत्नी बीणा ने तो घर में प्रवेश करते ही घर में छोटे बड़े सब को शगुन के लिफ़ाफ़े देना प्रारम्भ कर दिया था कि नीता ने मठरी के एक टुकड़े पर बूरा लगा कर उसके मुंह में डालते हुए कहा-भाभी पहले मुंह तो मीठा करो, आपने तो बहुत सामान दे दिया भात में, अभी अभी तो आप इतनी परेशानियों से गुजरे हो…. भगवान करे, सबको संध्या जैसे भाई भावज मिलें ....अरे इतने रुपये... भाभी क्या कर रही हो इतने सारे लोग है, शगुन के तो सौ सौ रुपये बहुत थे "- लिफाफों के अंदर पांच सौ के नोट देखकर नीता ने कहा| "अरे कहाँ दीदी ! हम से जितना बन पड़ा बस .....", शालीनता से मुस्कुराते हुए वीणा बस इतना ही कह पाई थी कि अश्रुओं ने उसका कंठ अवरुद्ध कर दिया | लेकिन सबका मुंह मीठा कराने के उत्साह में नीता की नजर उसके सजल नयनों पर पड़ी ही नहीं | वीणा ने भी जल्दी से अपने आँखों को पौंछ डाला |

विमल ने घर की महिलाओं के आग्रह पर नाश्ता की प्लेट अपने हाथ में तो ले ली थी लेकिन उनकी नज़र अपनी बहन के मुंह पर ही थी जिस पर ख़ुशी की कोई झलक उन्हें नहीं मिली थी | संध्या जब द्वार पर भात के पटरे पर खड़े अपने भाई और भाभी की आरती कर रही थी तब तो उसका चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था लेकिन जैसे जैसे विमल और उनकी पत्नी भात में लाये कपड़ों के जोड़े, साड़ी तथा अन्य उपहार देते जा रहे थे वैसे वैसे उसका चेहरा उतरता जा रहा था और अंत में जैसे ही विमल ने आरती के थाल में ग्यारह हज़ार की गड्डी रखी संध्या के चेहरे पर खिन्नता की लकीरें बिलकुल स्पष्टतः उभर आई | अब सामान को समेटते हुए भी उसका चेहरा वैसे ही बुझा हुआ था | आखिरकार संध्या ने इशारे से उन्हें अपने कमरे में बुलाया | विमल प्लेट मेज रखकर तुरंत उसके पीछे चले गए | "भैया ये क्या किया आपने ? आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी मुझे| " लगभग कांपते हुए संध्या ने कहा | मुंह में रखे मिठाई के टुकड़े को चबाना छोड़ अवाक होकर विमल ने बहन की ओर प्रश्न सूचक निगाहों से देखा |" कितना हल्का भात दिया है भैया और आरती में ग्यारह हजार ! इक्कीस हजार भी न दिए गए आपसे ? मेरी तो नाक कटा दी आपने मेरे ससुराल में | ये सब भाभी का किया धरा है न? एक ही ननद है उनकी , उसके लिए भी उनकी थैली का मुंह नहीं खुलता | मेरा भाई तो जोरू का गुलाम हो गया है न , कर भी क्या सकती हूँ मैं सिवाय बर्दाश्त करने के ......." संध्या बड़बड़ाती जा रही थी | विमल किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े थे | संध्या की बड़ी बेटी के विवाह में उन्होंने पांच लाख का भात दिया था | लेकिन इसके बाद पत्नी की कैंसर की बीमारी और व्यापार में घाटे की वजह से उनका हाथ बहुत तंग हो गया था | अपनी बेटी के विवाह ने तो उनकी कमर तोड़ कर रख दी थी | अभी भी पत्नी की महँगी पोस्ट केसर थेरेपीज के चलते घर की आर्थिक दशा बिगड़ती ही जा रही थी | संध्या को ये सब पता था, वो तो उनके बेटे को भी अक्सर समझाती थी कि घर की खराब आर्थिक स्थिति के चलते उसे अपने माँ बाप का ध्यान रखना चाहिए, फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए आदि आदि ….और आज वही संध्या ......और तो और उसने सारा इल्जाम अपनी भाभी पर ........ वीणा पर लगा दिया| वीणा ?..... जिसने अपने जेवर गिरवी रख दो लाख का कर्ज लेकर बड़े उत्साह से सारा इंतज़ाम किया था | विमल ने आपत्ति भी जताई थी कि इतने सारे पैसे वो कैसे चुकाएंगे परन्तु वीणा के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी, उसने कहा- "देखो जी अब संध्या जीजी बड़े घर की बहु हैं, ससुराल में उनका मान बना रहे,.. नहीं चुका पाये क़र्ज़ तो जेवर बेच कर चुका देंगे | जेवरों का क्या हैं .? फिर बन जायेंगे, पर ब्याह शादी के अवसर बार बार नहीं आते| इकलौती बहन हैं तुम्हारी, अगर उसका जी दुखा तो तुम्हारे माँ बाबूजी की आत्मा भी दुखी होगी | उनके सौंपे रिश्तों का ब्याज चुकाना हमारा कर्तव्य हैं|" ये सब सोचते विमल के मुंह में रखी मिठाई का स्वाद कसैला हो चला था ...... ..........लोक गीत की आवाज कानो में पिघले सीसे सी पड़ रही थी ......"मेरा छोटा सा भातईया भात लेके आया , मुंह मीठा कराओ सखियों ........"

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