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रुक सत्तो..

रुक सत्तो!

एक बेहद सर्द दिन! दोपहर के बावजूद बाहर घटाटोप अंधकार है, जो खिड़की के रास्ते शारदा के मन-मस्तिष्क में उतरता जा रहा है। हलकी बूँदा-बाँदी बाहर भी हो रही है और अंदर भी। आसमान में रह-रह कर बिजली चमक रही है और दिल में टीस। प्रवासी बच्चों के विछोह ने स्वर्गवासी पति की यादों पर भी धार रख दी है, सो वो उसके वजूद को लहूलुहान कर रही हैं। व्हाट्सप्प के उस मैसेज को आँखों ने स्कैन करके अंदर रख लिया था और दोपहर से बार-बार रिवाइंड कर के देख रही थीं कि शायद आँखों में घिरी बदली के कारण ठीक से न पढ़ा गया हो ।
पंद्रह दिन पहले ही बड़े का फ़ोन आया था कि बच्चों की सर्दी की छुट्टियाँ हैं, सो हम आ रहे हैं आपके पास। यहाँ तो इन दिनों भारी बर्फबारी के कारण कहीं भी निकलना असम्भव हो जाता है। बच्चे घर में बंद, बोर हो जाते हैं ।
सुन कर ख़ुशी से शारदा के हाथ-पैरों में पंख लग गए थे। उसने पहले बेटे-बहु और दोनों पोतों की पसंद के खाने और नाश्तों की लिस्ट बनाई फिर स्वयं बाजार जा-जाकर सारा जरूरी सामान लाई । दुकानदार ने टोका भी--"माता जी, आप फ़ोन कर देतीं न, मैं घर भिजवा देता सारा सामान । इतनी सर्दी में क्यों जोखिम उठा रही हैं ।"
"अरे बेटा! यहाँ सामान देखकर बहुत-सी भूली हुई चीजें भी याद आ जाती हैं। और फिर, इतनी भी बुढ़ा नहीं गयी हूँ मैं। इतने दिन बाद घर में ढंग का खाना-पीना होगा| कोई कसर नहीं रहनी चाहिए ।"
सामान से शारदा की सारी रसोई भर गयी है| अमेरिका में पल रहे बच्चे है,पता नहीं उन्हें ये पारम्परिक खाना अब कितना पसंद आएगा | पिछली बार भी उनकी पसंद की कुछ चीजे इस छोटे से शहर में नहीं मिली थी |इस बार वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती| सो गूगल पर कांटिनेंटल डिशेज ढूंढ क्र उन्हें बनाने की विधियां ढूंढ कर पास के बड़े शहर से सब सामग्री खोज खोज कर ले आई | इसके बाद उन्हें तसल्ली के लिए एक एक बार बना कर भी देखा| बच्चों के समाने पहली बार बनाने का जोखिम भी नहीं लेना चाहती थी शारदा | यही नहीं पड़ोसन के बच्चों से अपने सामने ही ट्राई भी करवाया ताकि उनकी प्रतिक्रिया से अपनी सफलता का अंदाज़ा लगा सके|
बेटे-बहु और बच्चों के कमरे की ठीक से सफाई करवा के एक-एक चीज को कई बार चैक कर चुकी थी कहीं कोई कमी-पेशी न रह जाये | नई चादरें नए कवर्स ,बच्चों के लिए नया फोल्डिंग स्विमिंग पूल नए खिलौने ,हर चीज से आश्वस्त हो शारदा ने चैन की साँस ली ही थी कि आज व्हाट्सप्प पर –“सीमा को छुट्टी नहीं मिली, ऑफिस में अर्जेंट काम है। सॉरी माँ! अभी नहीं आ पाएंगे ।“
ऐसा लगा जैसे किसी ने सक्शन पम्प से बदन की सारी जान खींच ली हो। जितनी बार वो मनहूस मैसेज आँखों के सामने फ़्लैश सा चमकता, अवसाद के बादल और घने हो जाते। मन में आया कि इतने दिनों से इकठ्ठा किया सारा सामान उठा कर फेंक दे।
आकाश में छाई घटाओं में अपनों के चेहरे ढूँढती शारदा को पता ही नहीं चला, कब दोपहर ढल गयी और कब उसकी मेड सारा काम निपटा कर उसके पीछे आ खड़ी हुई । शारदा के कंधे पर धीरे-से हाथ रख बोली -- "मम्मी जी, जा रही हूँ, दरवाजा लगा लो।"
"हाँ .....आती हूँ ...अरे .. रुक सत्तो ! बारिश तेज हो गयी है, भीग जाएगी । चल...चाय के साथ गर्मागर्म पकौड़े बनाते हैं। दोनों बैठकर खाएंगे।"
और सुन तेरे बेटे का बर्थडे आने वाला है न इसी हफ्ते | तूने बताया था वो जिद करता है कि कोठीवालों के बच्चों जैसा बर्थडे मनाना है | उसके सारे दोस्तों को और अपने बच्चों को यहां लेकर आना | मैं केक, पीज़ा, पास्ता, बर्गर और भी बढ़िया-बढ़िया चीजें बनाऊंगी| खूब शानदार पार्टी करेंगे हम |

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