चंपा पहाड़न - 5 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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चंपा पहाड़न - 5

चंपा पहाड़न

5.

वकील साहब के अंग्रेज़ मित्र मि. जैक्सन भारतीय संगीत, नृत्य व अन्य भारतीय कलाओं के प्रति बेहद संवेदनशील थे | वे वकील साहब के शौक से भली प्रकार परिचित हो चुके थे और इसी शौक के कारण उन दोनों की मित्रता परवान चढ़ी थी | दिल्ली आने पर वे उन्हें ‘सपना बाई’ के पास ठुमरी सुनाने ले जाया करते थे |जैक्सन के बाक़ी मित्रों को शराब व शबाब में रूचि थी, उनकी टोली में गोरों के साथ सांवले हिन्दुस्तानी भी थे जिन्हें मुफ़्त के मज़े लूटने की आदत पड़ चुकी थी और जब कभी जैक्सन का शिकार पर जाने वालों का काफ़िला दिल्ली से शुरू होता उसमें कई लोग ऐसे भी आ जुड़ते जिन्हें जैक्सन पसंद नहीं करते थे किन्तु उनको कई अन्य कारणों से बर्दाश्त करना पड़ता था | वे लोग अन्य गोरों की भांति शराब, शबाब में रचे-बसे रहते, उनका कला से दूर-दूर का कोई रिश्ता न था बस उनकी रूचि मुफ़्त के मज़े उड़ाने में होती थी |

जब मि. जैक्सन अपने मित्रों के काफिले के साथ शिकार के लिए निकले तब इस बार भी रास्ते में रुककर वकील साहब को अपने साथ जिद करके उनके शहर से उन्हें लेते गये | वकील साहब के बहुत नानुकर करने के उपरान्त भी जैक्सन न माने और उन्हें ठुमरी के नए ‘रेकार्ड्स’ दिखाकर बोले ;

“ वकील साहब!आप जानते हैं हमारा शिकार और संगीत के अलावा कोई और शौक नहीं है | ये सारे लोग जब अपनी मस्ती में होंगे तब हम बोर होने वाले हैं | अबी तो दो दिनों का चुट्टी है, आपका साथ बैठकर शास्त्रीय संगीत का आनन्द लेंगे ---“जैक्सन वैसे तो अच्छी-खासी हिन्दी बोल लेते थे किन्तु जब कभी बहुत उत्साह में होते तब उनकी ज़ुबान से कुछ शब्द ऐसे ‘ट्विस्ट’ हो जाते कि सामने वाले के मुख पर मुस्कुराहट आ जाती, उनके हिन्दी बोलने का सलीका बहुत प्यारा था |

जैक्सन ने वकील साहब की एक न सुनी और जबरदस्ती मित्रता का वास्ता देकर अपने साथ घसीटकर ले ही गए |शिकार के बाद सभी नशे में धुत्त अपने–अपने टैंटों में‘फ्री’ की मस्ती में मग्न ! हर बार यही होता, टैंटों के बाहर लटकी हुईं ‘पैट्रोमैक्स’ की भांति झप-झप करती बड़ी लालटेनें जो टैंटों के ऊपरी भाग में टांग दी जाती थीं, एक अजीबोगरीब वातावरण तैयार कर देतीं | हलकी झप झप करती रोशनी में नौकरों के टैंट के बाहर सर्दी से मिमियाते से घोड़ों की दबी आवाजें रक्त में सनसनाहट भरने लगतीं और एक अंग्रेज़ तथा एक भारतीय मित्र अपने अलग टैंट में बैठकर शास्त्रीय संगीत में गुम हो जाते|इस बार भी वातावरण वही था, वैसे ही शिकार से टूटे-थककर चूर ‘शिकारी गैंग’ के गोरे–काले हबस से भरे हुए मदिरा के नशे में पगलाए आसमानों में तैरते बनमानुष से लोग पहाड़ी-बालाओं के यौवन का मज़ा लूटने में लगे थे, उन्हें दीन –दुनिया का होश कहाँ?

दोनों मित्र संगीत के सुरापान में आनन्दित थे | अचानक जैक्सन संगीत सुनते–सुनते उठे और अपने थैले में से वह नया रेकॉर्ड निकालने के लिए उदृत हुए जिसे सुनाने का वायदा करके वे वकील बाबू को अपने साथ घसीटकर लाए थे कि किसी की मद्धम सिसकियों ने उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया | टैंट की ज़रा सी झिर्री में से उन्होंने बाहर झाँकने का प्रयत्न किया लेकिन कुछ विशेष सुनाई नहीं दिया, जैसे ही वहाँ से हटने को हुए कि फिर से पीड़ा-भरी सिसकारी उनके कानों में पड़ी, उनके आगे की ओर उठते हुए कदम वहीं थम से गए |

“ फ्रैंड ! समबडी इज़ इन ट्रबल ---“

वकील साहब नेत्र मूंदे स्वर-लहरी में खोए थे, जैक्सन की आवाज़ सुनकर वे संगीत के मधुर मोहपाश से बाहर निकले और एक प्रश्नवाचक दृष्टि बोलने वाले के मुख पर डाली | रेकार्ड समाप्ति की ओर था |

“ लेट अस गो एंड सी इफ़ वी कैन बी हेल्प ---“ जैक्सन ने अपना टंगा हुआ ओवरकोट उतारा और अपने बदन पर चढ़ा लिया |

वकील साहब एक-दो पैग के बाद अब कहीं जाकर गरमाई महसूस कर रहे थे, उन्हें उठने में जोर पड़ रहा था लेकिन उस अंग्रेज़ की तत्परता ने उन्हें बैठे नहीं रहने दिया | उठकर उन्होंने भी अपना ओवरकोट चढ़ाया, पैरों में गर्म मोज़े घुटनों तक चढ़े थे, उन्हें मोटे, भारी जूतों के हवाले किया और कानों पर गर्म मफलर लपेटते हुए जैक्सन के पीछे बाहर की सनसनाहट में निकल गए | जैक्सन ने टैंट में लटकी हुई लालटैन अपने हाथ में पकड़ ली थी |दोनों चुपचाप, दबे कदमों से सिसकारी वाली दिशा की ओर चल दिए |

पहाड़ियों के बीच छोटी-छोटी झाड़ियाँ उग आती थीं | पत्थरों की सन्न कर देने वाली शीत-लहर से झाड़ियों का कंपन मानो पूरे वातावरण में ठंडी बेहोशी पसरा जाता |उन्हीं उबड-खाबड़ पत्थरों पर कंटीली झाड़ियों के बीच से सुबकने वाली सिसकारी उन दोनों को अपनी ओर खींचकर ले गई | घने अँधेरे में एक हिलती-डुलती हिम समान गठरी को टटोलने पर सिसकारी अचानक बंद हो गई और गठरी का कंपन दुगुना हो गया | जैक्सन ने गठरी पर हाथ फिराया ;

“ओ माय गॉड !सी” उन्होंने उस हिलती हुई गठरी पर लालटैन की पूरी रोशनी उंडेल दी |अँधेरे में पूरी तरह चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था परन्तु यह स्पष्ट आभास हो रहा था कि वह एक युवा जिस्म था जो न जाने कितने घंटों पूर्व यहाँ फेंक दिया गया था|जैक्सन ने अपने हाथ की लालटैन वकील मित्र के हाथ में थमा दी और उन्हें रोशनी लेकर आगे चलने का इशारा कर गठरी को अपने हाथों में समेट लिया | जैक्सन चुप्पी साधे उस गठरी को अपने सीने से सटाए लंबे-लंबे डग भरते अपने टैंट में घुस गए और उसको बिस्तर में रखकर कई मोटे कंबलों से ढक दिया, वे स्वयं बुझती हुई आग में लकड़ी डालकर भरपूर गर्माहट का इंतजाम करने में व्यस्त हो गए | वकील बाबू उनकी सहृदयता व मानवीय निष्ठा से अभिभूत हो उठे थे | कुछ देर बाद कंपकपाती गठरी में कुछ हलचल हुई | वकील साहब कंबल के भीतर से ही उसके हाथ-पैर रगड़कर उस बेजान शरीर में गर्मी लाने का प्रयास कर रहे थे | लगभग घंटे भर बाद गठरी ने कराहकर आँखें खोलीं |यह एक खूबसूरत नवयौवना थी जिसका कंपन अब काफ़ी हद तक कम हो गया था किन्तु कभी-कभी सुबकियों के बीच नेत्रों की कोरों से रपटते गुमसुम आँसू उसकी पीड़ित व्यथ-कथा की कहानी सुना रहे थे |स्पष्ट था कि वह नाज़ुक देह मसली-कुचली गई थी |दोनों ने इस बारे में कोई बात करना मुनासिब नहीं समझा | जैक्सन नौकरों के टैंट में से अपने सबसे विश्वासपात्र नौकर को जगा लाए थे और उसे चाय बनाने का आदेश दे दिया गया था |रसोई बनाने वाले स्थान पर जाकर महतू कुछेक देर में ही चाय बनाकर केटली में भर खाली प्यालों सहित साहब के समक्ष उपस्थित हो गया|

शनै:शनै: सिमटी-सिकुड़ी गठरी लड़की में परिवर्तित होने लगी थी लेकिन उसकी स्थिति बहुत खराब थी, उसे बामुश्किल सहारा देकर उठाया गया और चाय का प्याला उसके मुख से लगाया गया | जैक्सन ने लड़की को इस प्रकार सहारा देकर बैठा रखा था मानो उसकी अपनी बच्ची हो | वकील बाबू की आँखों में बादल गहरा आए | लड़की बहुत घबराई हुई थी, अपने समक्ष बैठे दोनों पुरुषों की सदाशयता देखकर भी आशंका की लहर उसकी आँखों में उठ-गिर रही थीं|काँपते होठों से उसने चाय के कुछ घूँट भरे, उसके चेहरे पर एक गरमाई की परत सी लरजने लगी |उसकी बेहतर होती हुई स्थिति को देखकर दोनों मित्रों की आँखों में एक प्रकार की संतुष्टि सी भरने लगी जैसे कोई पूजा सार्थक होने लगी हो |

“क्या नाम है ?” गोरे जैक्सन के पूछने पर लड़की चुप बनी रही, न जाने उसके भीतर क्या चल रहा था ?

“घबराओ नहीं, अपने बारे में कुछ बताओ तभी तो हम तुम्हारी सहायता कर सकेंगे |”

लड़की फिर भी चुप्पी साधे रही |

“भूख लग रही है ?” वकील बाबू के पूछने पर हलकी सी सुबक के साथ लड़की की आँखों की कोरों से फिर से पानी बहने लगा | भूख उसके हर अंग से टपक रही थी |

जैक्सन ने उठकर डिब्बे में से कुछ खाने की चीजें लड़की के सामने एक प्लेट में रख दीं लेकिन वह उन चीजों को घूरती रही, शायद अपनी स्थिति से भयभीत हो रही थी मानो किसी बकरे को खिला-पिलाकर बलि के लिए ले जाया जाने वाला हो|

“ चिंता मत करो, खाओ | तुम बिलकुल सुरक्षित हो ---” वकील बाबू ने उसे ढाढस बंधाया तब कहीं लड़की के हाथ धीरे से खाने की ओर बढ़े | वह बिस्किट इतनी शीघ्रता से मुह में ठूंसने लगी थी जिससे उसकी भूख का अंदाज़ा हो रहा था, वह काफ़ी लंबे समय की भूखी थी जिसका अहसास दोनों पुरुषों को पहले ही हो गया था |

लड़की कांपते हाथों से जल्दी जल्दी खाद्यपदार्थ अपने मुख में डालती रही, कुछ ऐसे जैसे उसके सामने से कोई उन खाने की वस्तुओं को उठाकर ले जाएगा |काफ़ी कुछ खा लेने के बाद अब वह थोड़ी स्वस्थ दिखाई देने लगी थी लेकिन उसकी आँखों में शंका के बादल अभी तक घिरे हुए थे, उसकी मासूम आँखों की कोरों में पानी भरा हुआ था और गोरे, गुलाबी गालों पर काली, मटमैली सी लकीरों ने नक्शा सा बनाया हुआ था जिसे वह कभी कभी काँपते हाथों से छू लेती थी |

उसने एक साथ इतना कुछ अपने मुह में ठूंस लिया था कि उसे उल्टी सी होने लगी, अपने मुख पर काँपता हाथ रखकर वह फिर से बहुत-बहुत असहज हो उठी | शायद बहुत समय बाद कुछ पेट में पड़ने की ऐंठन और घबराहट का मिलाजुला सा अहसास उसे घबराहट से भर रहा था | फिर वह बेहोश सी होने लगी और कुछ टेढ़ी-मेढ़ी सी स्थिति में पलंग पर पसर गई |

“शी नीड्स ए डॉक्टर ---” जैक्सन बुदबुदाए और पास खड़े मह्तू से आस-पास के बारे में पूछताछ करने लगे |

“साहेब ! दूसरे गाँव में एक बैद जी रहते हैं, नाथूराम बैद, वो बहुत मशहूर हैं यहाँ |”

“कितनी दूर है गाँव --?” जैक्सन ने पूछा |

“लगभग पन्द्रह मील तो होगा साहब !”

“ हूँ—“जैक्सन सोच में पड़ गए थे |

“फ्रैंड !एक काम हो सकता है | हम मह्तू को लेकर चलते हैं फिर आप लड़की को लेकर सुबह कहीं इसको ठिकाना दिलाने की कोशिश करना | मुझे नहीं लगता यह बिना दवाई के ठीक हो पाएगी | मैं आपके साथ चलता हूँ, मह्तू के साथ वापिस आ जाऊंगा |”

क्रमश..

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